भारत में कॉफी बागान: वैश्विक रैंक, क्षेत्र, इतिहास, आवश्यकताएँ और महत्व

भारत में कॉफी बागान एक वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जो जैव-विविधता संरक्षण, जनजातीय आजीविका, निर्यात आय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार से गहराई से जुड़ी हुई है। कच्चे तेल के बाद कॉफी दुनिया की दूसरी सबसे अधिक कारोबार की जाने वाली वस्तु है और प्रतिदिन विश्वभर में लगभग 2.25 अरब कप कॉफी का उपभोग होता है। भारत विश्व में कॉफी उत्पादन में 7वें स्थान पर है और अपनी उच्च गुणवत्ता, छाया में उगाई गई (shade-grown) तथा सतत (sustainable) कॉफी के लिए जाना जाता है।

कॉफी उत्पादन में भारत की वैश्विक स्थिति

भारत कॉफी उत्पादन और खेती के क्षेत्रफल के आधार पर विश्व में 7वें स्थान पर है। देश में लगभग 4.45 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कॉफी बागान फैले हुए हैं, जो—

  • कृषि निर्यात
  • ग्रामीण रोजगार
  • विदेशी मुद्रा अर्जन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

भारत के कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 70% निर्यात किया जाता है, जिससे यह एक प्रमुख निर्यातोन्मुख बागानी फसल बन जाती है।

भारत में कॉफी बागान की प्रमुख विशेषताएँ

भारतीय कॉफी को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रीमियम पहचान मिलती है, क्योंकि यह—

  • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में छाया में उगाई जाती है
  • मृदु अम्लता (mild acidity) और समृद्ध सुगंध वाली होती है
  • जनजातीय एवं लघु कृषकों द्वारा सतत खेती पद्धतियों से उत्पादित होती है
  • रसायनों का न्यूनतम उपयोग कर जैव-विविधता संरक्षण को बढ़ावा देती है

भारत में दो प्रमुख किस्में उगाई जाती हैं—

  • अरेबिका (Arabica): बेहतर गुणवत्ता और सुगंध के लिए प्रसिद्ध
  • रोबस्टा (Robusta): अधिक उपज और तीव्र स्वाद के लिए जानी जाती है

दोनों किस्में लगभग समान अनुपात में उत्पादित होती हैं।

भारत में कॉफी बागान का ऐतिहासिक विकास

उत्पत्ति और परिचय

  • कॉफी की उत्पत्ति इथियोपिया के काफ़ा प्रांत में मानी जाती है
  • अरबों ने यमन में इसका व्यवस्थित उत्पादन कर व्यापार मार्ग विकसित किए

बाबा बूदन का योगदान (लगभग 1600 ई.)

भारत में कॉफी की शुरुआत तब हुई जब सूफी संत बाबा बूदन यमन से सात कॉफी बीज लाकर कर्नाटक के बाबा बूदन गिरि में बोए।

औपनिवेशिक विस्तार

  • 18वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों ने दक्षिण भारत में वाणिज्यिक कॉफी बागान विकसित किए
  • सड़कों, बंदरगाहों और निर्यात प्रणालियों का विकास हुआ
  • भारतीय कॉफी को छाया में उगाई गई उच्च गुणवत्ता वाली कॉफी के रूप में वैश्विक पहचान मिली

कॉफी बागान के लिए जलवायु और मृदा आवश्यकताएँ

  • मृदा (Soil)
  • गहरी, उपजाऊ, जैविक तत्वों से भरपूर और अच्छी जल-निकास वाली
  • हल्की अम्लीय मृदा सर्वाधिक उपयुक्त
  • जलवायु (Climate)
  • वर्षा: 1000–2500 मिमी

तापमान:

  • अरेबिका: 15–25°C
  • रोबस्टा: 20–30°C
  • आर्द्रता: 70–90%

ऊँचाई और छाया

  • अरेबिका: 1000–1500 मीटर
  • रोबस्टा: 500–1000 मीटर

प्राकृतिक छाया वृक्ष आवश्यक, जो पौधों की रक्षा और गुणवत्ता बढ़ाते हैं

भारत के प्रमुख कॉफी उत्पादक क्षेत्र

  • पारंपरिक क्षेत्र (पश्चिमी घाट) – कुल उत्पादन का लगभग 96%
  • कर्नाटक: 70% से अधिक उत्पादन (कोडागु/कूर्ग, चिक्कमगलूरु, हसन)
  • केरल: प्रमुख रोबस्टा उत्पादक (वायनाड, इडुक्की)
  • तमिलनाडु: उच्च गुणवत्ता अरेबिका (नीलगिरि, डिंडीगुल, थेनी)

गैर-पारंपरिक क्षेत्र (पूर्वी घाट)

आंध्र प्रदेश: अराकू घाटी

ओडिशा: कोरापुट, रायगढ़

(जनजातीय व जैविक खेती पर आधारित)

उत्तर-पूर्वी भारत

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा

कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया की भूमिका

  • स्थापना: कॉफी अधिनियम, 1942
  • मंत्रालय: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
  • मुख्यालय: बेंगलुरु

प्रमुख कार्य

एकीकृत कॉफी विकास परियोजना

गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में विस्तार

जनजातीय सशक्तिकरण

निर्यात संवर्धन और ब्रांडिंग

आर्थिक और पारिस्थितिक महत्व

वार्षिक उत्पादन: लगभग 3.6 लाख टन

निर्यात: 128 से अधिक देशों को

घरेलू खपत: 2012 (84,000 टन) → 2023 (91,000 टन)

छाया-आधारित एग्रो-फॉरेस्ट्री से जैव-विविधता संरक्षण

विशेष कॉफी किस्में

मॉनसूनड मालाबार

मैसूर नगेट्स एक्स्ट्रा बोल्ड

कापी रॉयल

हालिया विकास

5वां विश्व कॉफी सम्मेलन 2023 – बेंगलुरु

GI टैग: कूर्ग अरेबिका, वायनाड रोबस्टा, अराकू वैली अरेबिका आदि

निर्यात वृद्धि:

  • 2020–21: USD 719 मिलियन
  • 2023–24: USD 1.29 बिलियन
  • 2024–25: USD 1.8 बिलियन
  • GST में कमी (5%), और मुक्त व्यापार समझौतों से लाभ
  • जनजातीय मॉडल: कोरापुट कॉफी (TDCCOL)

सिंगापुर चांगी एयरपोर्ट ने 2025 का दुनिया के सबसे अच्छे एयरपोर्ट का खिताब जीता

सिंगापुर के चांगी एयरपोर्ट ने एक बार फिर वैश्विक विमानन क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता साबित करते हुए वर्ष 2025 के लिए ‘विश्व का सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा’ का खिताब जीता है। यह सम्मान Travel + Leisure India’s Best Awards 2025 में प्रदान किया गया, जहाँ दुनिया भर के पाठकों ने यात्रा अनुभव, आराम और सुविधाओं के आधार पर चांगी को शीर्ष स्थान दिया।

ट्रैवल + लेज़र इंडिया के बेस्ट अवार्ड्स 2025

यह पुरस्कार Travel + Leisure India’s Best Awards के 14वें संस्करण के तहत घोषित किया गया, जो यात्रा और आतिथ्य क्षेत्र में उत्कृष्टता को सम्मानित करता है। विजेताओं का चयन ऑनलाइन रीडर वोटिंग के माध्यम से किया जाता है, जिससे यह सम्मान यात्रियों के वास्तविक अनुभव और पसंद को दर्शाता है। चांगी एयरपोर्ट का शीर्ष पर रहना यात्रियों के निरंतर भरोसे और संतुष्टि को रेखांकित करता है।

चांगी एयरपोर्ट को वैश्विक पहचान क्यों

  • संचालन दक्षता, आराम, सौंदर्य और नवाचार का अनूठा संयोजन
  • यात्रियों के लिए विश्वसनीय और यादगार अनुभव
  • लगातार उच्च मानकों के कारण वैश्विक प्रशंसा

चांगी एयरपोर्ट की खासियतें

  • स्काई-लिट टर्मिनल और खुले स्थान
  • इनडोर गार्डन और कला प्रतिष्ठान

प्रतिष्ठित आकर्षण जैसे—

  • दुनिया का सबसे ऊँचा इनडोर वाटरफॉल
  • बटरफ्लाई गार्डन
  • इमर्सिव लेज़र व मनोरंजन क्षेत्र

लंबे ट्रांजिट को भी यादगार अनुभव में बदल देता है

यात्री आराम और सुविधाएँ

  • ट्रांजिट होटल, स्लीपिंग पॉड्स और विश्राम क्षेत्र
  • सुगम इमिग्रेशन और सुरक्षा प्रक्रियाएँ
  • स्पष्ट टर्मिनल लेआउट और सुचारु यात्री प्रवाह
  • व्यस्त समय में भी सुविधा और तनाव-मुक्त अनुभव

भोजन, खरीदारी और लाइफस्टाइल

  • स्थानीय सिंगापुरियन व्यंजन से लेकर वैश्विक फूड ब्रांड्स
  • प्रीमियम शॉपिंग और ड्यूटी-फ्री आउटलेट्स
  • चांगी केवल ट्रांजिट पॉइंट नहीं, बल्कि अपने आप में एक गंतव्य

प्रमुख तथ्य

  • सिंगापुर चांगी एयरपोर्ट को विश्व का सर्वश्रेष्ठ हवाई अड्डा 2025 घोषित
  • सम्मान: Travel + Leisure India’s Best Awards (14वां संस्करण)
  • चयन प्रक्रिया: वैश्विक रीडर वोटिंग
  • पहचान: आराम, सुविधाएँ और उत्कृष्ट यात्रा अनुभव
  • विशेषताएँ: इनडोर गार्डन, दुनिया का सबसे ऊँचा इनडोर वाटरफॉल, मनोरंजन क्षेत्र

पारंपरिक चिकित्सा पर दूसरा WHO ग्लोबल समिट नई दिल्ली में शुरू

द्वितीय WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन 2025 का औपचारिक शुभारंभ 17 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली में हुआ। इस तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन का सह-आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और आयुष मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है। सम्मेलन में नीति-निर्माताओं, वैज्ञानिकों, स्वास्थ्य पेशेवरों, स्वदेशी ज्ञान धारकों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों सहित विश्वभर के हितधारक भाग ले रहे हैं।

WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन की पृष्ठभूमि

WHO का पहला वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन 2023 में गांधीनगर, गुजरात में आयोजित हुआ था। उस सम्मेलन ने पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को आधुनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में सुरक्षित और प्रभावी ढंग से एकीकृत करने पर वैश्विक संवाद की नींव रखी। उसी की निरंतरता में नई दिल्ली में आयोजित दूसरा शिखर सम्मेलन नीति कार्यान्वयन, वैज्ञानिक प्रमाणीकरण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर विशेष जोर देता है।

नई दिल्ली शिखर सम्मेलन की थीम

इस शिखर सम्मेलन की थीम है —
“संतुलन की पुनर्स्थापना: स्वास्थ्य और कल्याण का विज्ञान एवं व्यवहार”।
यह थीम इस विचार को रेखांकित करती है कि स्वास्थ्य केवल रोग की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि शरीर, मन, समाज और पर्यावरण के बीच संतुलन की अवस्था है। आयुर्वेद, पारंपरिक चीनी चिकित्सा और विभिन्न स्वदेशी उपचार पद्धतियाँ इसी समग्र दृष्टिकोण पर आधारित हैं।

पारंपरिक चिकित्सा क्या है

  • पारंपरिक चिकित्सा उन ज्ञान, कौशल और पद्धतियों को संदर्भित करती है जो विभिन्न संस्कृतियों के अनुभव और सिद्धांतों पर आधारित हैं। इनका उपयोग सदियों से स्वास्थ्य संरक्षण और रोग उपचार में होता आ रहा है।
  • भारत में पारंपरिक चिकित्सा को आयुष प्रणालियों के माध्यम से बढ़ावा दिया जाता है, जिनमें आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर भी, विशेषकर विकासशील देशों में, प्राथमिक और निवारक स्वास्थ्य देखभाल में पारंपरिक चिकित्सा की अहम भूमिका है।

शिखर सम्मेलन के प्रमुख फोकस क्षेत्र

यह सम्मेलन WHO की वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा रणनीति 2025–2034 के अनुरूप आयोजित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत प्रमुख फोकस क्षेत्र हैं—

  • वैज्ञानिक अनुसंधान को सुदृढ़ करना
  • नियमन और गुणवत्ता मानकों में सुधार
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में पारंपरिक चिकित्सा का एकीकरण
  • स्वदेशी ज्ञान का संरक्षण
  • समान और सुलभ स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना

प्रमुख तथ्य 

  • द्वितीय WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित
  • सह-आयोजक: WHO और आयुष मंत्रालय, भारत सरकार
  • थीम: “संतुलन की पुनर्स्थापना: स्वास्थ्य और कल्याण का विज्ञान एवं व्यवहार”
  • पहला शिखर सम्मेलन 2023 में गांधीनगर में हुआ था
  • सम्मेलन WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा रणनीति 2025–2034 पर आधारित है

नरपुह वन्यजीव अभयारण्य: संरक्षण चुनौतियाँ और पारिस्थितिक महत्व

हाल ही में वैज्ञानिकों और संरक्षण विशेषज्ञों ने नरपुह (Narpuh) वन्यजीव अभयारण्य को लेकर गंभीर चिंता जताई है। चूना-पत्थर (लाइमस्टोन) की खनन गतिविधियाँ और आसपास स्थापित सीमेंट फैक्ट्रियाँ इस अभयारण्य के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए दीर्घकालिक खतरा बन रही हैं। यह क्षेत्र मेघालय के सबसे जैव-विविध और पारिस्थितिक रूप से समृद्ध क्षेत्रों में से एक है।

नरपुह वन्यजीव अभयारण्य के बारे में

स्थान और स्थापना

नरपुह वन्यजीव अभयारण्य मेघालय के पूर्व जयंतिया हिल्स ज़िले, जोवाई (Jowai) के निकट स्थित है। इसे वर्ष 2014 में आधिकारिक रूप से वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। यह जयंतिया हिल्स क्षेत्र का एकमात्र संरक्षित क्षेत्र है।

  • इस अभयारण्य का पारिस्थितिक महत्व इसके भौगोलिक स्थान के कारण और भी बढ़ जाता है:
  • चारों ओर से यह रिज़र्व फ़ॉरेस्ट से घिरा हुआ है
  • केवल दक्षिण-पश्चिमी सीमा असम राज्य से लगती है
  • इस कारण नरपुह मेघालय और असम के बीच एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक गलियारे (Ecological Corridor) के रूप में कार्य करता है।

भौगोलिक विशेषताएँ और नदियाँ

लुखा नदी (Lukha River)

अभयारण्य की उत्तरी सीमा लुखा नदी द्वारा निर्धारित होती है, जो एक प्राकृतिक अवरोध का कार्य करती है। ऐसी नदियाँ:

  • स्थानीय जैव-विविधता को बनाए रखने
  • जलीय जीवों के संरक्षण
  • सूक्ष्म जलवायु (Microclimate) के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

जलवायु और वर्षा

नरपुह वन्यजीव अभयारण्य की सबसे विशिष्ट विशेषता इसकी अत्यधिक वर्षा है। यहाँ वार्षिक वर्षा 6,000 मिमी से अधिक होती है, जो मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्राप्त होती है।

अधिक वर्षा का प्रभाव:

  • घने वनों के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ
  • संकटग्रस्त और स्थानिक (Endemic) प्रजातियों का संरक्षण
  • सदाबहार (Evergreen) और अर्ध-सदाबहार (Semi-evergreen) वनों की निरंतरता
  • इसी कारण यह अभयारण्य भारत के सबसे अधिक वर्षा वाले वन पारिस्थितिकी तंत्रों में गिना जाता है।

वनस्पति (Vegetation)

नरपुह में मेघालय के बचे हुए सबसे ऊँचे सदाबहार और अर्ध-सदाबहार वन पाए जाते हैं। ये वन:

  • महत्वपूर्ण कार्बन सिंक हैं
  • जलवायु संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं

प्रमुख वनस्पति प्रजातियाँ:

  • कैस्टानोप्सिस इंडिका
  • कैस्टानोप्सिस ट्रिबुलॉइड्स
  • डायसॉक्सिलम प्रजाति
  • एलेओकार्पस प्रजाति
  • एंगेलहार्डटिया स्पिकाटा
  • सियाजियम प्रजाति

ये पौध प्रजातियाँ वन्यजीवों के साथ-साथ स्थानीय समुदायों के जीवन-यापन में भी सहायक हैं।

जीव-जंतु (Fauna): समृद्ध जैव-विविधता

  • इस अभयारण्य में कई दुर्लभ, संकटग्रस्त और संवेदनशील जीव प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

प्रमुख पशु प्रजातियाँ:

  • हूलॉक गिब्बन (भारत का एकमात्र वानर/एप)
  • सेरो (Serow)
  • स्लो लॉरिस
  • स्लॉथ भालू
  • लार्ज इंडियन सिवेट
  • लेपर्ड कैट
  • क्लाउडेड लेपर्ड
  • बार्किंग डियर

क्लाउडेड लेपर्ड जैसे शीर्ष शिकारी की उपस्थिति इस क्षेत्र के स्वस्थ और संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र को दर्शाती है।

  • हाल की संरक्षण चुनौतियाँ
  • चूना-पत्थर खनन से खतरा

पूर्व जयंतिया हिल्स क्षेत्र चूना-पत्थर से समृद्ध है, जिसके कारण:

  • अनियंत्रित खनन
  • आवास का विखंडन (Habitat Fragmentation)
  • वन क्षेत्र में कमी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।

सीमेंट फैक्ट्रियों का प्रभाव

अभयारण्य के निकट स्थित सीमेंट संयंत्र:

  • वायु और जल प्रदूषण
  • वन्यजीवों की आवाजाही में बाधा
  • दीर्घकालिक पारिस्थितिक क्षति का कारण बन रहे हैं।

वैज्ञानिकों का चेतावनी है कि यदि इन गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो नरपुह वन्यजीव अभयारण्य की जैव-विविधता को अपूरणीय क्षति पहुँच सकती है।

नरपुह वन्यजीव अभयारण्य का महत्व

परीक्षा और नीति-निर्माण के दृष्टिकोण से नरपुह वन्यजीव अभयारण्य अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह:

  • एक जैव-विविधता हॉटस्पॉट है
  • जलवायु नियमन में योगदान देता है
  • कई संकटग्रस्त प्रजातियों का प्राकृतिक आवास है
  • विकास बनाम संरक्षण के संघर्ष को उजागर करता है

फीफा बेस्ट फुटबॉल अवॉर्ड्स 2025 में विजेताओं की सूची

फीफा बेस्ट फ़ुटबॉल अवॉर्ड्स 2025 का आयोजन दोहा, क़तर में किया गया, जहाँ पिछले वर्ष विश्व फुटबॉल में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों, कोचों, गोलकीपरों, प्रशंसकों और खेल भावना के उदाहरणों को सम्मानित किया गया। इस समारोह में ओस्मान डेम्बेले और आइतना बोनमती क्रमशः पुरुष और महिला वर्ग में वर्ष के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बने।

फीफा पुरुष खिलाड़ी ऑफ द ईयर 2025

  • ओस्मान डेम्बेले (फ्रांस / पेरिस सेंट-जर्मेन) को फीफा पुरुष खिलाड़ी ऑफ द ईयर 2025 चुना गया।
  • उन्होंने एक शानदार सीज़न के बाद यह सम्मान जीता, जिसमें वे बैलन डी’ओर भी अपने नाम कर चुके हैं।
  • डेम्बेले ने पीएसजी की ऐतिहासिक ट्रेबल जीत में निर्णायक भूमिका निभाई, जिसमें क्लब का बहुप्रतीक्षित यूईएफए चैंपियंस लीग खिताब भी शामिल है।
  • उनकी गति, रचनात्मकता और मैच जिताऊ प्रदर्शन उन्हें बाकी खिलाड़ियों से अलग बनाते हैं।

उन्होंने निम्न खिलाड़ियों को पीछे छोड़ा:

  • लामिन यामल (बार्सिलोना, स्पेन)
  • किलियन एम्बाप्पे (रियल मैड्रिड, फ्रांस)
  • विजेता का चयन राष्ट्रीय टीम कप्तानों, कोचों, पत्रकारों और प्रशंसकों की वैश्विक वोटिंग से किया गया।

फीफा महिला खिलाड़ी ऑफ द ईयर 2025

  • आइतना बोनमती (स्पेन / बार्सिलोना) ने लगातार तीसरी बार फीफा महिला खिलाड़ी ऑफ द ईयर का खिताब जीता।
  • क्लब और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर उनका निरंतर उत्कृष्ट प्रदर्शन निर्णायक रहा।

उन्होंने निम्न दावेदारों को पीछे छोड़ा:

  • मारियोना काल्डेंटे (स्पेन)
  • एलेक्सिया पुटेल्यास (स्पेन)
  • यह उपलब्धि महिला फुटबॉल में बार्सिलोना और स्पेन के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करती है।

फीफा बेस्ट 2025 अवॉर्ड्स: पूरी विजेता सूची

पुरुष वर्ग

  • फीफा पुरुष खिलाड़ी ऑफ द ईयर: ओस्मान डेम्बेले (फ्रांस / पीएसजी)
  • सर्वश्रेष्ठ पुरुष गोलकीपर: जियानलुइजी डोनारुम्मा (पीएसजी)
  • पुरुष कोच ऑफ द ईयर: लुइस एनरिक (पीएसजी)
  • पुस्कास अवॉर्ड (सर्वश्रेष्ठ गोल): सैंटियागो मोंटिएल (अर्जेंटीना)

बेस्ट मेन्स XI

  • गोलकीपर: जियानलुइजी डोनारुम्मा
  • डिफेंडर्स: अशराफ हकीमी, विलियम पाचो, वर्जिल वान डाइक, नूनो मेंडेस
  • मिडफील्डर्स: जूड बेलिंघम, कोल पामर, वितिन्हा, पेड्री
  • फॉरवर्ड्स: ओस्मान डेम्बेले, लामिन यामल

महिला वर्ग

  • फीफा महिला खिलाड़ी ऑफ द ईयर: आइतना बोनमती (स्पेन / बार्सिलोना)
  • सर्वश्रेष्ठ महिला गोलकीपर: हन्ना हैम्पटन (इंग्लैंड / चेल्सी)
  • महिला कोच ऑफ द ईयर: सरीना विगमैन
  • मार्टा अवॉर्ड (महिला फुटबॉल में सर्वश्रेष्ठ गोल): लिज़बेथ ओवाले (मेक्सिको / लीगा एमएक्स फेमिनिल)

विशेष पुरस्कार

  • फीफा फेयर प्ले अवॉर्ड: डॉ. एंड्रियास हारलास-न्यूकिंग (जर्मनी)
  • फीफा फैन अवॉर्ड: ज़ाखो एससी के समर्थक

अल्पसंख्यक अधिकार दिवस 2025: भारत में संविधान, नीतियां और जागरूकता

भारत में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस 2025, जो 18 दिसंबर को मनाया जाता है, सभी नागरिकों के लिए समानता, न्याय और समावेशन के प्रति भारत की संवैधानिक प्रतिबद्धता की याद दिलाता है। भारत विश्व स्तर पर “विविधता में एकता” के लिए जाना जाता है, जहाँ विभिन्न धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं के लोग साथ रहते हैं। ऐसे बहुलतावादी समाज में, अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा सामाजिक सौहार्द और लोकतांत्रिक स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है।

अल्पसंख्यक अधिकार दिवस: अर्थ और महत्व

  • अल्पसंख्यक अधिकार दिवस प्रतिवर्ष 18 दिसंबर को मनाया जाता है, ताकि संयुक्त राष्ट्र की 1992 की घोषणा— राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों की घोषणा—को स्मरण किया जा सके।
  • इस घोषणा का उद्देश्य अल्पसंख्यकों की पहचान की सुरक्षा करना और सार्वजनिक जीवन में उनकी प्रभावी भागीदारी को बढ़ावा देना है।
  • भारत में यह दिवस 2013 से मनाया जा रहा है।
  • यह दिन अल्पसंख्यक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने, भेदभाव के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और राष्ट्र-निर्माण में अल्पसंख्यक समुदायों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक योगदान को मान्यता देने पर बल देता है।
  • यह भारत की लोकतांत्रिक मूल्यों और समावेशी विकास के प्रति प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है।

अल्पसंख्यक अधिकार: संक्षिप्त परिचय

  • अल्पसंख्यक अधिकार उन समुदायों को दिए गए संवैधानिक और कानूनी संरक्षण हैं, जो संख्या में बहुसंख्यक आबादी से कम होते हैं।
  • इन समुदायों की धार्मिक, भाषायी या सांस्कृतिक पहचान विशिष्ट होती है।
  • इन अधिकारों का उद्देश्य समानता सुनिश्चित करना और भेदभाव रोकना है।
  • भारतीय संदर्भ में, ये अधिकार समुदायों को अपनी संस्कृति संरक्षित करने, धर्म का स्वतंत्र पालन करने, निष्पक्ष शिक्षा तक पहुँच और सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक जीवन में समान भागीदारी सुनिश्चित करते हैं।
  • महत्वपूर्ण रूप से, ये अधिकार विशेषाधिकार नहीं, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त वस्तुगत समानता प्राप्त करने के साधन हैं।

भारत में अल्पसंख्यक: जनसंख्या परिदृश्य

  • भारतीय संविधान में “अल्पसंख्यक” की स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।
  • टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन मामला (2002) में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अल्पसंख्यक दर्जा राज्य-वार तय होता है, न कि राष्ट्रीय स्तर पर।
  • वर्तमान में भारत सरकार राष्ट्रीय स्तर पर छह धार्मिक अल्पसंख्यकों को मान्यता देती है: मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी (ज़ोरोस्ट्रियन)।
  • जनगणना 2011 के अनुसार, मुसलमान लगभग 14.2% के साथ सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह हैं; इसके बाद ईसाई और सिख आते हैं।
  • संख्या में कम होने के बावजूद, जैन और पारसी समुदायों का भारत के आर्थिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
  • यह विविधता मजबूत संवैधानिक संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

अल्पसंख्यकों के लिए संवैधानिक संरक्षण

  • अनुच्छेद 29: किसी भी वर्ग के नागरिकों को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार देता है। यह अधिकार अल्पसंख्यकों और गैर-अल्पसंख्यकों—दोनों पर लागू होता है।
  • अनुच्छेद 30: धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार देता है; सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अल्पसंख्यक पहचान और स्वायत्तता के लिए आवश्यक माना है।
  • अनुच्छेद 350A: भाषायी अल्पसंख्यकों के बच्चों को मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 350B: भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी का प्रावधान करता है, जो राष्ट्रपति को सुरक्षा उपायों की स्थिति पर रिपोर्ट देता है।
  • ये प्रावधान मिलकर भारत के बहुसांस्कृतिक ढाँचे को सुदृढ़ करते हैं।

अल्पसंख्यकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति

  • अल्पसंख्यक समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में व्यापक भिन्नताएँ हैं।
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वे (66वाँ राउंड) के अनुसार, ईसाई समुदाय में साक्षरता और शैक्षिक उपलब्धि अपेक्षाकृत अधिक है, जबकि मुसलमानों में—विशेषकर उच्च शिक्षा में—पिछड़ापन देखा गया है।
  • सिख परिवारों का प्रति व्यक्ति व्यय अधिक है, जबकि मुसलमानों का औसत कम है।
  • रोजगार में स्वरोज़गार का अनुपात अधिक है, ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में भिन्नताओं के साथ।
  • सभी समूहों में महिला श्रम बल भागीदारी कम है, हालांकि ईसाइयों में लैंगिक अंतर अपेक्षाकृत कम पाया गया है।
  • ये असमानताएँ लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता को दर्शाती हैं।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM)

  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना 1992 में हुई।
  • इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पाँच सदस्य होते हैं—सभी अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों से।
  • आयोग संवैधानिक संरक्षणों की निगरानी, अधिकार उल्लंघन की शिकायतों की जाँच, नीतिगत सलाह और साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने का कार्य करता है।
  • यह भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे में अल्पसंख्यक संरक्षण की एक प्रमुख संस्था है।

अल्पसंख्यक कल्याण हेतु सरकारी पहल

  • शिक्षा के लिए: प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति, मेरिट-कम-मीन्स, नया सवेरा (कोचिंग), नई उड़ान (प्रतियोगी परीक्षाएँ)।
  • कौशल व आर्थिक सशक्तिकरण: सीखो और कमाओ, USTTAD, नई मंज़िल, तथा NMDFC के माध्यम से रियायती ऋण।
  • क्षेत्रीय विकास: बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम (MsDP)।
  • विशेष पहल: नई रोशनी (महिला सशक्तिकरण), जियो पारसी, हमारी धरोहर (सांस्कृतिक संरक्षण)।

मुख्य बिंदु

  • 18 दिसंबर: संयुक्त राष्ट्र की 1992 की घोषणा की स्मृति में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस।
  • भारत में अवलोकन: 2013 से।
  • राष्ट्रीय स्तर पर मान्य छह धार्मिक अल्पसंख्यक।
  • अनुच्छेद 29 और 30: प्रमुख संवैधानिक संरक्षण।
  • अल्पसंख्यक दर्जा राज्य-वार निर्धारित (टी.एम.ए. पाई, 2002)।
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक प्रमुख वैधानिक संस्था।

चिली के नए राष्ट्रपति चुने गए जोस एंटोनियो कास्ट

चिली में एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन देखने को मिला है, जहाँ मतदाताओं ने अति-रूढ़िवादी नेता जोसे एंटोनियो कास्ट को देश का अगला राष्ट्रपति चुना है। उनकी जीत अपराध, अवैध प्रवासन और सुरक्षा को लेकर बढ़ती जन-चिंताओं को दर्शाती है और मौजूदा वामपंथी सरकार से स्पष्ट बदलाव का संकेत देती है।

क्या है खबर?

जोसे एंटोनियो कास्ट ने चिली का राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया है। उन्होंने वामपंथी उम्मीदवार जैनेट जारा को हराया। कास्ट को 58.16% मत मिले, जबकि जारा को 41.84% वोट प्राप्त हुए। कास्ट 11 मार्च 2026 को राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करेंगे।

पृष्ठभूमि

  • चिली ने 1990 में पिनोशे शासन के बाद लोकतंत्र में वापसी की।
  • तब से सत्ता वाम और दक्षिणपंथ के बीच बदलती रही है।
  • कास्ट 2021 का चुनाव मौजूदा राष्ट्रपति गैब्रियल बोरिक से हार गए थे।
  • बढ़ती अपराध दर और वेनेजुएला से बढ़े प्रवासन ने 2025 के चुनाव परिणामों को प्रभावित किया।

नए राष्ट्रपति के प्रमुख उद्देश्य

जोसे एंटोनियो कास्ट के मुख्य लक्ष्य हैं—

  • अवैध प्रवासन पर नियंत्रण
  • अपराध और संगठित हिंसा में कमी
  • सीमा सुरक्षा को मजबूत करना
  • अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए सरकारी खर्च में कटौती

कास्ट की जीत की प्रमुख विशेषताएँ

  • कानून-व्यवस्था पर कड़ा जोर
  • अवैध प्रवासियों के प्रति सख्त रुख
  • रूढ़िवादी मतदाताओं का मजबूत समर्थन
  • संसद में स्पष्ट बहुमत के बिना राष्ट्रपति पद पर जीत

इस विकास का महत्व

  • चिली की राजनीति में दक्षिणपंथ की ओर झुकाव
  • मतदाताओं की सुरक्षा और स्थिरता को प्राथमिकता
  • दक्षिण अमेरिका में दक्षिणपंथी सरकारों की बढ़ती सूची में चिली का जुड़ना
  • चिली की विदेश और आर्थिक नीतियों पर संभावित प्रभाव

स्थिर तथ्य 

  • राजधानी: सैंटियागो
  • निर्वाचित राष्ट्रपति: जोसे एंटोनियो कास्ट
  • निवर्तमान राष्ट्रपति: गैब्रियल बोरिक
  • क्षेत्र: दक्षिण अमेरिका
  • शासन प्रणाली: राष्ट्रपति प्रणाली

Google Pay ने लॉन्च किया अपना पहला क्रेडिट कार्ड

भारत के डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि के रूप में Google ने अपना पहला-ऐतिहासिक क्रेडिट कार्ड दुनिया में पहली बार भारत में लॉन्च किया है। यह कार्ड Axis Bank के साथ साझेदारी में और RuPay नेटवर्क पर जारी किया गया है। यह क्रेडिट कार्ड Google Pay से एकीकृत है और इसे सीधे UPI से जोड़ा जा सकता है, जिससे उपयोगकर्ता क्रेडिट के माध्यम से UPI मर्चेंट भुगतान आसानी से कर सकते हैं।

Google के को-ब्रांडेड क्रेडिट कार्ड की प्रमुख विशेषताएँ

  • यह Google–Axis Bank को-ब्रांडेड क्रेडिट कार्ड RuPay नेटवर्क पर आधारित है, जिससे यह UPI मर्चेंट भुगतान के लिए पूरी तरह अनुकूल है।
  • यह इसकी सबसे बड़ी खासियत है, क्योंकि Visa और Mastercard के क्रेडिट कार्ड को UPI से लिंक नहीं किया जा सकता।
  • कार्ड की एक प्रमुख नवाचार विशेषता है इंस्टेंट रिवॉर्ड सिस्टम।
  • पारंपरिक क्रेडिट कार्ड्स के विपरीत, जहाँ रिवॉर्ड या कैशबैक महीने के अंत में मिलता है, इस कार्ड पर हर लेन-देन पर तुरंत रिवॉर्ड मिलता है, जिसे अगली पेमेंट में तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता है।

RuPay–UPI इंटीग्रेशन का महत्व

  • RuPay और UPI, दोनों का संचालन नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) द्वारा किया जाता है।
  • इनके एकीकरण से उपयोगकर्ताओं को UPI की सरलता और क्रेडिट कार्ड की सुविधा व रिवॉर्ड्स एक साथ मिलते हैं।
  • भारत में RuPay–UPI क्रेडिट मॉडल तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
  • PhonePe और Paytm जैसे फिनटेक प्लेटफॉर्म पहले से ही UPI से जुड़े RuPay क्रेडिट कार्ड पेश कर रहे हैं, और अब Google की एंट्री इस मॉडल को वैश्विक स्तर पर मान्यता देती है।

Axis Bank की भूमिका

  • Axis Bank इस क्रेडिट कार्ड का इश्यूइंग बैंक है।
  • यह साझेदारी Google की तकनीकी क्षमता और विशाल यूजर बेस को Axis Bank की बैंकिंग विशेषज्ञता, रेगुलेटरी अनुपालन और क्रेडिट अंडरराइटिंग के साथ जोड़ती है।
  • यह सहयोग भारत के वित्तीय क्षेत्र में बैंक–फिनटेक साझेदारी के बदलते मॉडल को दर्शाता है।

मुख्य बिंदु 

  • Google ने दुनिया का पहला क्रेडिट कार्ड भारत में लॉन्च किया।
  • Axis Bank के साथ साझेदारी, RuPay नेटवर्क पर आधारित।
  • कार्ड को UPI से लिंक कर मर्चेंट भुगतान किया जा सकता है।
  • हर ट्रांजैक्शन पर तुरंत रिवॉर्ड/कैशबैक।
  • RuPay और UPI दोनों NPCI द्वारा संचालित हैं।
  • Visa और Mastercard क्रेडिट कार्ड UPI से लिंक नहीं किए जा सकते।

पोंडुरु खादी को GI टैग मिला

भारत की पारंपरिक हथकरघा विरासत को एक महत्वपूर्ण बढ़ावा देते हुए, आंध्र प्रदेश का विशिष्ट पोंडुरु खादी—जो हाथ से काते और हाथ से बुने गए सूती कपड़े के लिए प्रसिद्ध है—को केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया गया है। यह मान्यता उस ऐतिहासिक प्रशंसा के लगभग 100 वर्ष बाद मिली है, जब महात्मा गांधी ने स्वयं पोंडुरु खादी की असाधारण महीनता और उत्कृष्ट शिल्पकला की सराहना की थी। GI टैग से न केवल पोंडुरु खादी की पहचान और संरक्षण सुदृढ़ होगा, बल्कि स्थानीय बुनकरों की आजीविका को भी मजबूती मिलेगी।

पोंडुरु खादी क्या है?

पोंडुरु खादी एक पारंपरिक हाथ से काती और हाथ से बुनी सूती कपड़ा है, जो अपनी अत्यंत महीन बनावट और मजबूती के लिए प्रसिद्ध है। इसे अन्य खादी किस्मों से अलग बनाने वाली विशेषता है स्थानीय रूप से उगाई गई कपास और पारंपरिक कताई तकनीक का उपयोग, जिसमें अक्सर विशेष लकड़ी की चरखा और चावल की माड़ से सूत को मजबूत किया जाता है। ऐतिहासिक रूप से, पोंडुरु खादी को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विशेष पहचान मिली, जब महात्मा गांधी ने इसे स्वावलंबन और स्वदेशी आंदोलन के प्रतीक के रूप में प्रोत्साहित किया।

GI टैग: इसका अर्थ क्या है?

भौगोलिक संकेत (Geographical Indication – GI) टैग एक बौद्धिक संपदा अधिकार है, जो ऐसे उत्पादों को दिया जाता है जो किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र से संबंधित हों और जिनकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या विशिष्टता उस स्थान से जुड़ी हो। GI टैग से पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण, उत्पाद के नाम के दुरुपयोग पर रोक, और यह सुनिश्चित होता है कि केवल अधिकृत उत्पादक ही उस नाम से उत्पाद का विपणन कर सकें।

सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व

पोंडुरु खादी को मिला GI टैग भारत के पारंपरिक वस्त्रों और स्वदेशी शिल्प के संरक्षण के व्यापक प्रयासों को मजबूत करता है। भारत में पहले से ही बनारसी रेशम, कांचीपुरम रेशम, पोचमपल्ली इकत और चंदेरी कपड़ा जैसे कई GI-टैग प्राप्त वस्त्र हैं। इस सूची में पोंडुरु खादी का शामिल होना आंध्र प्रदेश की सांस्कृतिक और कारीगर पहचान को और सुदृढ़ करता है।

मुख्य बिंदु 

  • पोंडुरु खादी को भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया गया है।
  • यह आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के पोंडुरु गांव से संबंधित है।
  • GI टैग केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा दिया गया।
  • पोंडुरु खादी की प्रशंसा महात्मा गांधी ने लगभग 100 वर्ष पहले की थी।
  • GI टैग एक भौगोलिक मूल से जुड़ा बौद्धिक संपदा अधिकार है।

SBI के प्रबंध निदेशक अश्विनी कुमार तिवारी का कार्यकाल बढ़ा

बैंकिंग क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण विकास के तहत भारत सरकार ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के प्रबंध निदेशक (Managing Director) अश्विनी कुमार तिवारी के कार्यकाल को दो वर्षों के लिए बढ़ा दिया है। यह निर्णय ऐसे समय लिया गया है जब देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक आर्थिक विकास, डिजिटल विस्तार और वित्तीय सुधारों के दौर से गुजर रहा है। इस कार्यकाल विस्तार की जानकारी एसबीआई द्वारा एक नियामकीय फाइलिंग के माध्यम से दी गई।

कार्यकाल विस्तार का विवरण

आधिकारिक फाइलिंग के अनुसार, केंद्र सरकार ने अश्विनी कुमार तिवारी को उनके मौजूदा कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी एसबीआई के प्रबंध निदेशक के रूप में पुनर्नियुक्त किया है।

  • उनका वर्तमान कार्यकाल 27 जनवरी 2026 को समाप्त होना था।
  • नए विस्तार के बाद उनका कार्यकाल अब 31 दिसंबर 2027 तक जारी रहेगा, जो उनकी सेवानिवृत्ति (सुपरएनुएशन) की तिथि के अनुरूप है।
  • यह निर्णय एसबीआई के शीर्ष प्रबंधन में निरंतरता सुनिश्चित करता है और तिवारी के नेतृत्व व प्रदर्शन पर सरकार के भरोसे को दर्शाता है।

अश्विनी कुमार तिवारी को दूसरा विस्तार

  • यह उल्लेखनीय है कि यह अश्विनी कुमार तिवारी को दिया गया दूसरा दो-वर्षीय विस्तार है।
  • इससे पहले उन्हें 2024 में भी इसी तरह का विस्तार दिया गया था।
  • उनकी प्रारंभिक नियुक्ति जनवरी 2021 में तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए हुई थी।
  • अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने बैंक के बैलेंस शीट को मजबूत करने, डिजिटल बैंकिंग के विस्तार और ऋण वृद्धि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अहम भूमिका निभाई है।

भारतीय स्टेट बैंक की नेतृत्व संरचना

  • भारतीय स्टेट बैंक देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक है।
  • इसका नेतृत्व एक चेयरमैन करता है।
  • चेयरमैन की सहायता के लिए चार प्रबंध निदेशक (MDs) होते हैं, जो बैंक के विभिन्न रणनीतिक और परिचालन क्षेत्रों की जिम्मेदारी संभालते हैं।
  • यह संरचना एसबीआई के विशाल घरेलू, अंतरराष्ट्रीय, डिजिटल और वित्तीय समावेशन से जुड़े कार्यों के प्रभावी प्रबंधन के लिए बनाई गई है।

मुख्य बिंदु 

  • अश्विनी कुमार तिवारी का नया कार्यकाल: 31 दिसंबर 2027 तक
  • पूर्व कार्यकाल समाप्ति तिथि: 27 जनवरी 2026
  • यह उनका दूसरा दो-वर्षीय विस्तार है (पहला 2024 में)
  • प्रारंभिक नियुक्ति: जनवरी 2021
  • एसबीआई का नेतृत्व: एक चेयरमैन और चार प्रबंध निदेशक

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