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“द कॉन्शियस नेटवर्क” — सगाटा श्रीनिवासराजू द्वारा लिखित एक पुस्तक

जून 1975 में भारत ने अपने लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे उथल-पुथल भरे अध्यायों में प्रवेश किया, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। नागरिक स्वतंत्रताएँ निलंबित कर दी गईं, चुनाव स्थगित कर दिए गए, प्रेस पर सेंसरशिप लागू हुई और हजारों राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया। जहाँ एक ओर कई लोगों ने इस लड़ाई को भारत में ही लड़ा, वहीं दूसरी ओर एक अद्भुत प्रतिरोध आंदोलन हजारों मील दूर अमेरिका में उभर रहा था। पत्रकार और लेखक सुगाटा श्रीनिवासराजू अपनी पुस्तक द कॉन्शियस नेटवर्क में उन युवा भारतीयों की कहानी प्रस्तुत करते हैं, जिन्होंने अमेरिका में रहकर भी चुप रहने से इनकार कर दिया। उनका यह संघर्ष, अपनी मातृभूमि से दूर रहकर भी, नैतिक साहस का प्रतीक बना और यह सिद्ध किया कि लोकतंत्र की रक्षा की कोई सीमाएँ नहीं होतीं।

पुस्तक का सार
द कॉन्शियस नेटवर्क का मूल भाव अमेरिका में बसे भारतीय छात्रों और पेशेवरों द्वारा बनाए गए समूह “इंडियंस फॉर डेमोक्रेसी” (IFD) की प्रेरणादायक कहानी है। ये लोग न तो स्थापित राजनेता थे, न ही अनुभवी कार्यकर्ता — बल्कि सामान्य नागरिक थे जिन्होंने अपने देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए आवाज़ उठाई। उन्होंने अमेरिकी विश्वविद्यालयों में व्याख्यान आयोजित किए, वहाँ के सांसदों से संपर्क साधा, समाचार पत्रों में लेख लिखे और सार्वजनिक प्रदर्शन किए ताकि भारत में हो रही लोकतांत्रिक क्षति की ओर दुनिया का ध्यान खींचा जा सके।

उनका संघर्ष गांधीवादी सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित था — अहिंसक और नैतिक प्रतिरोध। उन्होंने अमेरिकी सिविल राइट्स कार्यकर्ताओं से सहयोग किया, राजनेताओं से संवाद किया और मीडिया के ज़रिये भारत में आपातकाल की सच्चाई उजागर की। 1970 के दशक के अमेरिका में, जहाँ वियतनाम युद्ध, वॉटरगेट और नागरिक अधिकारों का आंदोलन चल रहा था, उन्होंने एक सहानुभूतिपूर्ण श्रोता वर्ग पाया।

भारतीय राजनयिकों द्वारा वीज़ा और करियर संबंधी धमकियों के बावजूद, IFD के सदस्य डटे रहे। उनकी ताकत संख्या में नहीं, बल्कि नैतिक स्पष्टता में थी। उन्होंने दुनिया को याद दिलाया कि भारत की असली पहचान एक लोकतंत्र के रूप में है, और उसकी रक्षा करना दूर से भी एक कर्तव्य है।

यह पुस्तक केवल इतिहास नहीं, बल्कि प्रवासी देशभक्ति की कहानी है — यह दिखाती है कि अपने देश के प्रति सच्ची निष्ठा का अर्थ यह भी हो सकता है कि जब वह लोकतांत्रिक राह से भटके, तो उसका विरोध करना भी ज़रूरी है।

लेखक परिचय
सुगाटा श्रीनिवासराजू एक अनुभवी पत्रकार, इतिहासकार और स्तंभकार हैं, जिन्हें राजनीतिक और सांस्कृतिक लेखन में तीन दशक से अधिक का अनुभव है। उन्होंने प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में वरिष्ठ संपादकीय भूमिकाएँ निभाई हैं और कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फैलोशिप प्राप्त की हैं।

उनकी लेखनी में राजनीतिक जीवनी, सांस्कृतिक विश्लेषण और ऐतिहासिक वृत्तांत शामिल हैं। उनकी प्रमुख पुस्तकों में शामिल हैं:

  • “स्ट्रेंज बर्डन्स: द पॉलिटिक्स एंड प्रिडिक्टामेंट्स ऑफ राहुल गांधी”

  • ‘फरोज इन ए फील्ड: द अनएक्सप्लोर्ड लाइफ ऑफ एचडी देवेगौड़ा’

  • ‘पिकल्स फ्रॉम होम: द वर्ल्ड्स ऑफ़ ए बाइलींगुअल’

  • ‘कीपिंग फेथ विद द मदर टंग: द एंग्ज़ायटीज़ ऑफ़ अ लोकल कल्चर’

‘द कॉन्शियस नेटवर्क’ में सुगाता श्रीनिवासराजू ने भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के एक कम चर्चित लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू — अधिनायकवाद के खिलाफ प्रवासी भारतीयों की भूमिका — पर ध्यान केंद्रित किया है। उनका लेखन गहन शोध और मानवीय संवेदनाओं की गहरी समझ का मेल है, जो इस पुस्तक को न केवल एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज बनाता है, बल्कि नैतिक साहस की एक प्रेरणादायक कहानी भी।

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