हर साल 28 सितंबर को लोगों को अवेयर करने के लिए ‘वर्ल्ड रेबीज डे’ (World Rabies Day) मनाया जाता है। ग्लोबल एलायंस फॉर रेबीज कंट्रोल (GARC) द्वारा स्थापित और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मान्यता प्राप्त, इस दिन का उद्देश्य रेबीज से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देना और रोकथाम के महत्व को उजागर करना है।
हर साल रेबीज की वजह से देश में तलकरीबन 20 हजार लोगों की मौत हो जाती है। बता दें, रेबीज कुत्त के काटने से फैलती है। भारत में रेबीज के मामले सबसे ज्यादा सामने आते हैं।
विश्व रेबीज दिवस की थीम
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, साल 2024 के विश्व रेबीज दिवस की थीम “ब्रेकिंग रेबीज बाउंड्रीज” या ‘रेबीज की सीमाओं को तोड़ना’ है, जो घातक बीमारी के खिलाफ मुकाबले में आने वाली अड़चनों को दूर करने के लिए चल रहे वैश्विक प्रयासों को सामने लाता है।
रेबीज की बीमारी
ज्यादातर लोगों को लगता है कि सिर्फ कुत्ते के काटने से रेबीज की बीमारी फैलती है, लेकिन ऐसा नहीं है। बता दें, रेबीज का वायरस कुत्ता, बिल्ली, बंदर, चमगादड़ लोमड़ी, नेवला और सियार जैसे जानवरों में भी होता है। अगर इनमें से कोई भी जानवर आपको काट ले तो आपको तुरंत एंटी-रेबीज वैक्सीन लगवानी चाहिए क्योंकि इलाज में लापरवाही बरतने से व्यक्ति की मौत हो सकती है।
रेबीज डे मनाने का महत्व
रेबीज डे मनाने का महत्व या उद्देश्य लोगों में रेबीज की बीमारी फैलने से रोकना है। इस दिवस को मनाकर जगह-जगह कैंप लगाए जाते हैं, जहां मेडिकल प्रोफेशनल्स लोगों को रेबीज के टीके का महत्व समझाते हैं और कुत्ते के काटने पर क्या करना चाहिए, इसकी जानकारी देते हैं। रेबीज को अगर नजरअंदाज किया जाए तो यह जानलेवा हो सकता है। कुत्ते के काटने के शुरूआत में ही अगर रेबीज की वैक्सीन लगवा ली जाए तो संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है।
रेबीज डे का इतिहास
रेबीज डे को पहली बार साल 2007 में मनाने की घोषणा की गई थी। ग्लोबल अलायंस फॉर रेबीज कंट्रोल ने इसे मनाने की घोषणा की थी। दरअसल, इसे मनाने का मकसद केवल रेबीज की बीमारी के बढ़ते मामलों और लोगों में इसकी जागरूकता की कमी था। यह दिवस मनाने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इसे मनाने पर सहमति जताई, जिसके बाद से हर साल 28 सितंबर को यह दिवस मनाया जाने लगा।