विज्ञानिका: विज्ञान साहित्य महोत्सव 2025 का आयोजन 8–9 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (IISF) के प्रमुख भाग के रूप में किया गया। यह कार्यक्रम CSIR–NIScPR द्वारा विज्ञान भारती (VIBHA), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी (IITM), पुणे, और पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के सहयोग से आयोजित किया गया। महोत्सव का उद्देश्य यह दिखाना था कि विज्ञान को सरल भाषा, रचनात्मक लेखन और भारतीय सांस्कृतिक रूपों के माध्यम से आम लोगों तक कैसे पहुँचाया जा सकता है। कार्यक्रम में कई जाने-माने वैज्ञानिकों, लेखकों, संपादकों और विज्ञान संचारकों ने भाग लिया, जिससे विज्ञान की लोकप्रियता और जनसंपर्क को नई दिशा मिली।
उद्घाटन सत्र: भारतीय विज्ञान में साहित्य और मीडिया की भूमिका
महोत्सव की शुरुआत “भारतीय विज्ञान विमर्श में साहित्य और संचार माध्यमों की भूमिका” विषयक उद्घाटन सत्र से हुई।
वक्ताओं ने बताया कि कैसे साहित्य और संचार के आधुनिक साधन भारत में वैज्ञानिक सोच को आकार देते हैं।
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डॉ. परमानंद बर्मन (CSIR–NIScPR) ने महोत्सव का परिचय प्रस्तुत किया।
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डॉ. नील सरोवर भावेश (VIBHA) ने बताया कि भारत को सांस्कृतिक रूप से जुड़े विज्ञान संचार की आवश्यकता क्यों है।
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श्री विवेकानंद पै (महासचिव, VIBHA) ने मुख्य वक्तव्य देते हुए विज्ञान संचार में भारतीय दृष्टिकोण की अहमियत पर प्रकाश डाला।
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प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर, पूर्व कुलपति, पंजाब विश्वविद्यालय ने भारत की वैज्ञानिक संस्थाओं की समृद्ध परंपरा का उल्लेख किया।
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डॉ. गीता वाणी रयसाम, निदेशक, CSIR–NIScPR ने जनसामान्य के लिए विज्ञान को सरल बनाने के प्रयासों पर बात की।
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डॉ. रश्मि शर्मा (NCSTC, DST) ने विज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने की आधुनिक तकनीकों पर चर्चा की।
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डॉ. अतुल कुमार श्रीवास्तव (IITM) ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
विज्ञान कवि सम्मेलन: कविता में विज्ञान का स्पर्श
पहले दिन आयोजित विशेष विज्ञान कवि सम्मेलन में प्रसिद्ध कवियों ने विज्ञान और कविता का सुंदर संगम प्रस्तुत किया।
भाग लेने वाले प्रमुख कवि थे—
प्रो. मनोज कुमार पाटेरिया, प्रो. राजेश कुमार, मोहन सगोڑिया, राधा गुप्ता, प्रो. नीरा राघव, यशपाल सिंह ‘यश’, TSRS संदीप और डॉ. अनुराग गौर।
इनकी रचनाओं ने दिखाया कि वैज्ञानिक विचारों को भावपूर्ण और सरल भाषा में कितनी खूबसूरती से समझाया जा सकता है।
दूसरा दिन: आत्मनिर्भर भारत के लिए विज्ञान
दूसरे दिन का सत्र “विज्ञान से समृद्धि – फॉर आत्मनिर्भर भारत” विषय पर केंद्रित था। इसमें भारत के पारंपरिक ज्ञान और उसकी वैज्ञानिक प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा हुई।
मुख्य वक्ता थे—
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डॉ. अरविंद रणड़े, निदेशक, NIF – पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा और उसके मूल धारकों को सम्मान देने की आवश्यकता पर जोर।
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डॉ. विश्वजननी जे. सट्टीगेरी (CSIR–TKDL) – पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण और साझा करने के महत्व पर प्रकाश।
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डॉ. एन. श्रीकांत (CCRAS) – पारंपरिक पद्धतियों में वैज्ञानिक मूल्य जोड़ने पर चर्चा।
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डॉ. कणुप्रिया वशिष्ठ (DBT–BIRAC) – जीवन विज्ञान और बायोटेक्नोलॉजी में हाल के नवाचारों को रेखांकित किया।
सत्र में यह संदेश सामने आया कि भारत का प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान एक साथ मिलकर राष्ट्र की प्रगति को तेज कर सकते हैं।
अपनी भाषा अपना विज्ञान: भारतीय भाषाओं की शक्ति
“अपनी भाषा अपना विज्ञान” शीर्षक वाली पैनल चर्चा में इस बात पर जोर दिया गया कि जब विज्ञान को भारतीय भाषाओं में साझा किया जाता है, तो लोग उसे अधिक आसानी से समझते हैं।
प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर, श्री देबोब्रत घोष, डॉ. मनीष मोहन गोरे, डॉ. एच. एस. सुधीरा और डॉ. ननाओचा शर्मा ने बताया कि मातृभाषा में विज्ञान संचार से समाज में वैज्ञानिक जागरूकता तेज़ी से बढ़ती है।


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