उत्तर प्रदेश को तीन और ओ.डी.ओ.पी. शिल्प- मैनपुरी तारकाशी, महोबा गौरा पत्थर शिल्प, और संभल सींग शिल्प के लिए जीआई टैग मिल गया है। इसके बाद अब उत्तर प्रदेश अब सबसे ज्यादा जीआई टैग वाले सामान की लिस्ट में दूसरे नंबर पर आ गया है। संभल में बने हॉर्न-बोन हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट बेहद लोकप्रिय हैं। इन शिल्प वस्तुओं को बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कच्चा माल मरे हुए जानवरों से मिलता है। संभल के सींग और हड्डी के उत्पाद पूरी दुनिया में जाने जाते हैं।
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महोबा अपने गौरा पत्थर शिल्प के लिए पूरे देश में जाना जाता है। गौरा स्टोन क्राफ्ट चमकीले सफेद रंग के पत्थर से बना है जो मुख्य रूप से इस क्षेत्र में पाया जाता है। गौरा स्टोन का टेक्सचर सॉफ्ट होता है। इसे कई टुकड़ों में काटा जाता है जिनका उपयोग अलग-अलग शिल्प वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता है जिनका उपयोग सजावट के लिए होता है।
तारकशी लकड़ी में पीतल, तांबे या चांदी के तार जड़ने की एक तकनीक है। यह मैनपुरी जिले की अनूठी एवं कलात्मक कृति है। इसका इतेमाल ज्वेलरी के बक्से, नेमप्लेट और दूसरे समान को सजाने के लिए किया जाता है।
तमिलनाडु में सबसे ज्यादा जीआई-टैग
तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 55 जीआई-टैग वाले सामान हैं. जबकि यूपी और कर्नाटक में 48 और 46 जीआई प्रोडक्ट हैं। हालांकि, जीआई-टैग वाले हस्तशिल्प के मामले में यूपी पहले स्थान पर है, जिसके क्रेडिट में 36 शिल्प हैं।
क्या है जीआई टैग और इससे क्या फायदा?
जीआई टैग का मतलब भौगोलिक संकेत (Geographical Indications) है. इसके आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है। ये प्रोडक्ट की एक तरह की पहचान होती है कि वो उस राज्य का है। इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि उस चीज की अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में कीमत और महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। जिसके कारण उसके उस चीज का एक्सपोर्ट और टूरिज्म वैल्यू बढ़ जाती है।