पंजाब सरकार ने पारंपरिक विरासती खेलों पर लगे लंबे समय से प्रतिबंध को हटा दिया है, जिसमें बैलगाड़ी दौड़, कुत्तों की दौड़, घुड़दौड़ और कबूतरबाज़ी जैसे खेल शामिल हैं। इस निर्णय से राज्य की सांस्कृतिक पहचान को पुनर्जीवित करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।मुख्यमंत्री भगवंत मान ने लुधियाना में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह फैसला पंजाब की जनता से किए गए वादे को पूरा करता है, जिससे गांवों की प्रिय परंपराओं को दोबारा जीवंत किया जा सके।
पंजाब की विरासती खेलों की पुनर्वापसी
1997 से इन पारंपरिक खेलों पर पशु क्रूरता की आशंका के कारण प्रतिबंध लगा हुआ था। हालांकि अब राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए नए कानून के तहत ये आयोजन पंजाब भर में बिना किसी क्रूरता के दोबारा आयोजित किए जा सकेंगे।
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि पंजाब के लोग अपने पशु-पक्षियों को परिवार के सदस्य जैसा मानते हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रतियोगिता के दौरान बैलों को केवल तालियों की ध्वनि से निर्देशित किया जाए, किसी प्रकार की कठोरता न हो।
पशु कल्याण को लेकर आश्वासन
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सरकार ने जनता को आश्वस्त किया है कि इन खेलों की वापसी कड़े नियमों और निगरानी के साथ होगी ताकि किसी भी प्रकार की अमानवीयता या गलत व्यवहार न हो।
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आयोजनों के दौरान पशुओं को हानिकारक आहार या उपचार से बचाया जाएगा।
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इस पहल का उद्देश्य पंजाब की संस्कृति की असली रंगत को उजागर करना है, पशु कल्याण का सम्मान करते हुए।
जन प्रतिक्रिया और सांस्कृतिक महत्व
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इस घोषणा से गांवों, विरासती खेलों के प्रेमियों और पशु प्रेमियों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई।
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माना जा रहा है कि इन खेलों की वापसी से युवा पीढ़ी परंपराओं से दोबारा जुड़ सकेगी, जिससे उन्हें मोबाइल और डिजिटल व्यसनों से दूर रखने में मदद मिलेगी।
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कबूतरबाज़ी, जो गांवों में बच्चों तक के लिए एक प्रिय खेल रही है, उसकी वापसी से सामुदायिक एकता और ग्रामीण उत्सवों में फिर से जान आ जाएगी।


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