
सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के आर्थिक कमजोरों को आरक्षण देने के लिए किए गए संविधान के 103वें संशोधन को सही ठहराकर इसके लाभार्थियों को राहत दी है और इस मसले पर उठे विवाद को शांत कर दिया है। इस आरक्षण के खिलाफ 40 याचिकाएं दी गई थीं, ऐसे में लंबी कानूनी लड़ाई भी अंजाम तक पहुंची है।
Bank Maha Pack includes Live Batches, Test Series, Video Lectures & eBooks
इस फैसले से पात्र व्यक्ति सरकारी, प्राइवेट या गैर सहायता प्राप्त संस्थान में दाखिले के लिए आरक्षण का लाभ लेता रहेगा। साथ ही सरकारी नौकरी पाने के लिए भी इस कैटिगरी के लोगों के लिए यह रूट खुला रहेगा। साथ ही इसने आरक्षण नीति पर नए सिरे से विचार की जरूरत भी बता दी है। एक से ज्यादा जजों ने कहा है कि आरक्षण नीति पर दोबारा विचार होना चाहिए। यह अनंतकाल तक जारी नहीं रह सकता।
चीफ जस्टिस यूयू ललित की अगुआई वाली पांच जजों की संविधान बेंच ने बेशक फैसला 3-2 से दिया है, मगर यह साबित हो गया है कि यह आरक्षण संविधान के खिलाफ नहीं है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं है। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि 103वां संविधान संशोधन वैध है और संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं है। बहुमत की राय थी कि रिजर्वेशन के लिए 50 फीसदी की जो सीमा तय की गई है, वह फिक्स नहीं है बल्कि लचीली है।
जनवरी 2019 में संसद ने 103वां संविधान संशोधन बिल पास किया था। इसके तहत केंद्र ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन किया था। इस कदम से आरक्षण की सीमा 60 फीसदी हो गई।



World Soil Day 2025: जानें मृदा दिवस क्य...
अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक दिवस 2025: इतिह...
संयुक्त राष्ट्र प्रणाली: मुख्य निकाय, को...

