पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट सेवाओं के वितरण में बड़ी क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिले हैं। इन्हीं में से एक है स्टारलिंक, जो एक सैटेलाइट-आधारित ब्रॉडबैंड नेटवर्क है, जिसे दुनिया भर में—विशेषकर दूरदराज़ और पिछड़े क्षेत्रों में—तेज़ और विश्वसनीय इंटरनेट उपलब्ध कराने के लिए विकसित किया गया है। छात्रों, पेशेवरों और सरकारी नौकरी की तैयारी करने वालों के लिए स्टारलिंक को समझना तकनीक और डिजिटल नीति के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है।
स्टारलिंक, स्पेसएक्स (SpaceX) द्वारा विकसित एक सैटेलाइट इंटरनेट प्रोजेक्ट है, जिसे एलन मस्क ने स्थापित किया है।
यह पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में घूमने वाले हजारों छोटे उपग्रहों के माध्यम से इंटरनेट सिग्नल धरती पर भेजता है। ये उपग्रह पारंपरिक दूरस्थ उपग्रहों की तुलना में बहुत पास होते हैं, जिससे स्पीड तेज़ और लेटेंसी कम होती है।
दूरदराज़ गांवों, पहाड़ी क्षेत्रों, द्वीपों और ऐसे इलाकों तक इंटरनेट पहुँचाना जहां फाइबर केबल बिछाना मुश्किल या महंगा है।
ऑनलाइन शिक्षा, ई-गवर्नेंस, टेलीमेडिसिन, स्मार्ट खेती और आपदा प्रबंधन के लिए तेज़ एवं भरोसेमंद इंटरनेट उपलब्ध कराना।
एक ऐसी दुनिया बनाना जहाँ हर व्यक्ति डिजिटल अर्थव्यवस्था से जुड़ सके।
यह सिस्टम तीन हिस्सों पर आधारित है:
उपग्रह (Satellites): हजारों छोटे LEO उपग्रहों का नेटवर्क
ग्राउंड स्टेशन: उपग्रहों को मुख्य इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ते हैं
यूज़र टर्मिनल: घरों/संस्थानों में लगाया जाने वाला छोटा डिश एंटेना
इन सभी के बीच संचार से बिना ज़मीनी केबल के इंटरनेट पहुंचता है—इसीलिए यह दूरस्थ क्षेत्रों के लिए क्रांतिकारी तकनीक है।
कई क्षेत्रों में फाइबर जैसी तेज़ स्पीड।
LEO उपग्रह पृथ्वी के पास होते हैं, जिससे लाइव वीडियो, गेमिंग और ट्रेडिंग जैसी सेवाएँ तेज़ चलती हैं।
प्लग-एंड-प्ले टर्मिनल—कहीं भी जल्दी से सेटअप संभव।
पिछड़े क्षेत्रों के लोगों को शिक्षा, जानकारी और सेवाओं से जोड़ने की क्षमता।
उपकरणों की कीमत अभी भी अधिक
अंतरिक्ष में बढ़ते उपग्रहों से “स्पेस ट्रैफिक” चिंताएँ
विभिन्न देशों में नियामकीय (regulatory) अनुमतियों की आवश्यकता
खगोल विज्ञान पर प्रभाव (उपग्रहों की चमक के कारण)
विश्वभर की सरकारें सुरक्षित तकनीकी विकास के लिए नए नियम बना रही हैं।
स्टारलिंक ने भारत में ग्रामीण क्षेत्रों, स्कूलों और दूरस्थ इलाकों के लिए सेवाएँ शुरू करने में रुचि दिखाई है। इसके लिए ज़रूरी है:
सरकारी मंज़ूरी
स्पेक्ट्रम आवंटन
भारतीय कानूनों के अनुरूप तकनीकी अनुपालन
यदि सेवा शुरू होती है, तो यह डिजिटल इंडिया, ऑनलाइन शिक्षा, ई-हेल्थ और स्मार्ट कृषि के लिए बड़ा बदलाव ला सकती है।
स्टारलिंक इंडिया देश के दूरदराज़ और पिछड़े इलाकों को हाई-स्पीड सैटेलाइट इंटरनेट से जोड़ने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
यह इंटरनेट के लिए फाइबर या मोबाइल टावरों पर निर्भर नहीं है।
परंतु इसका व्यावसायिक संचालन पूरी तरह भारतीय नीतियों, मंजूरी और स्पेक्ट्रम नियमों पर निर्भर करता है।
स्टारलिंक आगामी वर्षों में:
कवरेज बढ़ाएगा
लागत कम करने का प्रयास करेगा
लेज़र-लिंक्ड उपग्रहों और AI आधारित नेटवर्क मैनेजमेंट का उपयोग करेगा
Amazon का Project Kuiper, OneWeb और अन्य देशों के प्रोजेक्ट भी इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा ला रहे हैं।
सैटेलाइट इंटरनेट भविष्य में वैश्विक संचार को पूरी तरह बदल सकता है।
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