भारत का लंबे समय से प्रतीक्षित एस-400 मिसाइल सौदा अब पूरा होने की ओर है। 2018 में हुए इस समझौते के तहत रूस से पाँच एस-400 त्रिउंफ (Triumf) वायु रक्षा प्रणाली खरीदी गई थीं। इनमें से चार इकाइयाँ पहले ही भारत को मिल चुकी हैं, जबकि पाँचवीं और अंतिम इकाई की डिलीवरी 2026 में होगी। यह सौदा भारत-रूस रक्षा साझेदारी की मजबूती और निरंतरता का प्रतीक है, भले ही भू-राजनीतिक तनाव और अमेरिका जैसे देशों का प्रतिबंध लगाने का दबाव क्यों न रहा हो।
एस-400 सौदा क्या है?
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2018 में अनुबंध : 5.43 अरब अमेरिकी डॉलर का करार।
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उद्देश्य : भारत की वायु रक्षा क्षमता को कई गुना बढ़ाना।
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क्षमता :
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400 किमी तक की दूरी और 30 किमी ऊँचाई पर दुश्मन के लक्ष्यों को पहचानना, ट्रैक करना और नष्ट करना।
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लड़ाकू विमान, ड्रोन (UAV), क्रूज़ मिसाइल और बैलिस्टिक खतरों को बेअसर करना।
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इसे दुनिया की सबसे उन्नत लंबी दूरी की वायु रक्षा प्रणालियों में माना जाता है।
डिलीवरी की स्थिति (2025 तक)
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चार प्रणालियाँ पहले ही भारतीय रक्षा नेटवर्क में शामिल हो चुकी हैं।
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पाँचवीं प्रणाली : 2026 में मिलने की संभावना।
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भविष्य में भारत अतिरिक्त एस-400 या इससे जुड़े अपग्रेड पर भी विचार कर रहा है।
रणनीतिक महत्व
एस-400 की तैनाती से भारत को यह क्षमताएँ मिलेंगी :
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संवेदनशील सीमाओं और क्षेत्रों पर बहु-स्तरीय वायु सुरक्षा कवच।
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दुश्मन के हवाई अतिक्रमण को रोकने और जवाब देने की क्षमता।
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भारतीय वायु सेना (IAF) की अर्ली-वार्निंग और त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली मजबूत होगी।
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अन्य रक्षा प्लेटफॉर्म्स के साथ मिलकर एक मल्टी-टियर रक्षा नेटवर्क तैयार करना।
यह सौदा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का भी प्रतीक है, खासकर तब जब अमेरिका के CAATSA प्रतिबंध कानून के दबाव के बावजूद भारत ने अपनी सुरक्षा प्राथमिकताओं को सर्वोपरि रखा।


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