बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच भारत–रूस संबंध लगातार विकसित हो रहे हैं। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 2025 की भारत यात्रा से पहले रूस ने रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स सपोर्ट (RELOS) समझौते को मंज़ूरी दे दी है, जो द्विपक्षीय रक्षा सहयोग में एक बड़ा मील का पत्थर है।
यह कदम उस समय आया है जब भारत इंडो-पैसिफिक से लेकर यूरेशिया तक रणनीतिक लचीलेपन की तलाश में है, वहीं रूस बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में एशियाई साझेदारियों को मज़बूत कर रहा है।
RELOS समझौता क्या है?
रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स सपोर्ट (RELOS) भारत और रूस के बीच एक द्विपक्षीय सैन्य लॉजिस्टिक्स समझौता है।
इससे दोनों देशों की सशस्त्र सेनाएँ एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं का उपयोग कर सकती हैं:
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एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों तक पहुँच
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रीफ्यूलिंग, मरम्मत, आपूर्ति, बर्थिंग और रखरखाव
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संयुक्त सैन्य अभियानों का सुचारू संचालन
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लंबी दूरी की तैनाती को कम लागत और कम समय में पूरा करना
RELOS के तहत भारत को रूस के 40 से अधिक नौसैनिक और हवाई अड्डों तक पहुँच मिलेगी, जिनमें आर्कटिक और प्रशांत क्षेत्र के महत्वपूर्ण ठिकाने भी शामिल हैं। इससे भारत की संचालन क्षमता में बड़ा विस्तार होगा।
RELOS समझौते के उद्देश्य
1. सैन्य स्थलों तक पारस्परिक पहुँच
पोर्ट, एयरफ़ील्ड और आपूर्ति सुविधाओं तक मरम्मत, रीफ्यूलिंग और रखरखाव के लिए पहुँच उपलब्ध कराना।
2. रक्षा सहयोग को मज़बूत करना
संयुक्त युद्धाभ्यास और सैन्य अभियानों के दौरान लॉजिस्टिक्स को सुगम बनाकर तैयारियों को बेहतर बनाना।
3. परिचालन क्षमता में सुधार
विशेष रूप से लंबी दूरी के नौसैनिक अभियानों में समय और लागत को कम करना।
4. आपदा राहत सहयोग
मानवीय और आपदा राहत (HADR) अभियानों को तेज़ी और दक्षता से संभव बनाना।
भारत–रूस संबंधों के लिए RELOS क्यों महत्वपूर्ण है?
भारत और रूस दशकों से गहरे रक्षा सहयोग से जुड़े हैं। RELOS इस साझेदारी में एक नया संस्थागत ढांचा जोड़ता है।
1. महासागरों से परे रणनीतिक पहुँच
इस समझौते से भारत रूस के प्रमुख बंदरगाहों—
व्लादिवोस्तोक, मुरमान्स्क, पेट्रोपावलोव्स्क-कामचात्स्की
—से संचालित हो सकेगा, जिससे:
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आर्कटिक उपस्थिति
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प्रशांत निगरानी
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समुद्री मार्गों पर नज़र
और अधिक प्रभावी होंगी। ये क्षेत्र भारत के समुद्री व्यापार के 70% मार्गों को कवर करते हैं।
2. इंटरऑपेरिबिलिटी को बढ़ावा
INDRA जैसे त्रि-सेवा अभ्यासों के साथ यह समझौता सक्षम करेगा:
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20+ नौसैनिक जहाजों का संयुक्त संचालन
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परस्पर सैन्य सहायता और रखरखाव
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वास्तविक-समय में समन्वित अभियान
3. रक्षा आपूर्ति श्रृंखला को मज़बूत करना
भारत के कई प्रमुख सैन्य प्लेटफॉर्म— Su-30MKI, T-90 टैंक, MiG/Sukhoi बेड़े, S-400—रूस पर निर्भर हैं। RELOS से:
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लॉजिस्टिक्स देरी कम होगी
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स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता बढ़ेगी
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मरम्मत और रखरखाव तेज़ होंगे
4. रणनीतिक विश्वास को और गहरा करना
यह समझौता लंबे समय से चल रहे कार्यक्रमों को मज़बूत करता है:
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ब्रह्मोस मिसाइल
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पनडुब्बी सहयोग
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13 बिलियन डॉलर से अधिक का रक्षा व्यापार
भारत के अन्य लॉजिस्टिक्स समझौतों से RELOS की तुलना
भारत अमेरिका और उसके साझेदार देशों के साथ कई रणनीतिक समझौते कर चुका है।
LEMOA (भारत–अमेरिका)
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परस्पर सैन्य ठिकानों तक पहुँच
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इंडो-पैसिफिक फोकस
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नौसेना एवं वायु सहयोग को मज़बूत करता है
COMCASA (भारत–अमेरिका)
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सुरक्षित एन्क्रिप्टेड संचार
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अमेरिकी सैन्य नेटवर्क से सिस्टम इंटीग्रेशन
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रियल-टाइम ऑपरेशनल समन्वय
BECA (भारत–अमेरिका)
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उपग्रह एवं जियोस्पैशियल डेटा
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लक्ष्य भेदन की सटीकता बढ़ाता है
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उन्नत निगरानी और टोही में मदद करता है
RELOS कैसे अलग है?
अमेरिका के साथ समझौतों के विपरीत, RELOS:
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भारत की पहुँच को यूरेशिया और आर्कटिक तक बढ़ाता है
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रूसी सैन्य उपकरणों की आपूर्ति श्रृंखला का समर्थन करता है
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पाँच दशकों से अधिक की रणनीतिक साझेदारी पर आधारित है
इस प्रकार, RELOS पश्चिमी समझौतों का विकल्प नहीं है— बल्कि यह भारत की रणनीतिक साझेदारियों में विविधता लाता है।


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