भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ZL के तहत भारत की मौद्रिक नीति समिति (MPC) प्रत्येक तिमाही में बैठक करती है, जहाँ यह तय किया जाता है कि देश में ब्याज दरें किस दिशा में जाएँ। ये दरें ऋण, ईएमआई, निवेश और पूरे वित्तीय तंत्र की लागत को प्रभावित करती हैं।
3 से 5 दिसंबर 2025 के बीच एमपीसी की 58वीं बैठक आयोजित हुई। इसकी अध्यक्षता आरबीआई गवर्नर श्री संजय मल्होत्रा ने की और इसमें शामिल थे:
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डॉ. नागेश कुमार
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श्री सॉगाता भट्टाचार्य
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प्रो. राम सिंह
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डॉ. पूनम गुप्ता
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श्री इंद्रनील भट्टाचार्य
इन सभी ने घरेलू और वैश्विक आर्थिक संकेतकों, मुद्रास्फीति के रुझानों, विकास दर और वित्तीय बाज़ारों का गहन विश्लेषण कर भारत की मौद्रिक दिशा तय की।
बड़ा निर्णय: आर्थिक बढ़ोतरी को गति देने के लिए रेपो दर में कटौती
एमपीसी ने सर्वसम्मति से प्रमुख नीतिगत दर—रेपो रेट—को घटाकर 5.25% कर दिया। यह वह दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को उधार देता है और यह पूरी बैंकिंग प्रणाली की आधार दर मानी जाती है।
अन्य नीति दरें भी इसके साथ बदलीं—
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एसडीएफ (SDF): 5.00%
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एमएसएफ (MSF) / बैंक रेट: 5.50%
हालाँकि दरें घटाई गईं, लेकिन नीति रुख तटस्थ (Neutral) रखा गया।
केवल एक असहमति यह रही कि प्रो. राम सिंह चाहते थे कि नीति रुख अनुकूल (Accommodative) किया जाए, ताकि विकास को और मजबूत संकेत मिले।
आरबीआई ने दरें क्यों घटाईं? कारण समझें
आरबीआई को हमेशा दो लक्ष्यों का संतुलन साधना होता है—
मुद्रास्फीति नियंत्रण बनाम आर्थिक विकास।
लेकिन इस बार परिदृश्य अनोखा था:
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मुद्रास्फीति ऐतिहासिक रूप से नीचे थी
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विकास दर मजबूत थी लेकिन धीमी पड़ने के शुरुआती संकेत दिख रहे थे
ऐसे में दरों में कटौती से कर्ज सस्ता होगा, निवेश बढ़ेगा और विकास गति पकड़ेगा। एमपीसी ने संभावित सुस्ती को पहले से पहचानकर कदम उठाया।
वैश्विक परिदृश्य: सुधार के साथ अनिश्चितता
एमपीसी ने वैश्विक रुझानों पर भी ध्यान दिया:
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वैश्विक अर्थव्यवस्था उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन कर रही है
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अमेरिका में शटडाउन समाप्त होने से अनिश्चितता कम हुई
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कुछ व्यापार समझौतों में प्रगति हुई
लेकिन जोखिम अब भी मौजूद हैं—
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विकसित देशों में मुद्रास्फीति असमान है
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सुरक्षित निवेश की तलाश में अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ
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शेयर बाज़ारों में अस्थिरता बढ़ी
यह भारत के निर्यात और पूँजी प्रवाह को प्रभावित कर सकता है।
भारत की विकास कहानी: मजबूत प्रदर्शन लेकिन हल्की चुनौतियाँ
2025-26 की दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी 8.2% रही—पिछली छह तिमाहियों में सबसे तेज़। जीवीए 8.1% रहा, जिसका बड़ा योगदान उद्योग और सेवाओं से आया।
विकास को मदद मिली—
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जीएसटी सरलीकरण
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कच्चे तेल की कम कीमतें
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सरकार का अग्रिम पूँजी व्यय
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बेहतर मौद्रिक माहौल
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कॉर्पोरेट और बैंकिंग क्षेत्र की मजबूत बैलेंस शीट
लेकिन कुछ संकेत चिंता भी दिखाते हैं—
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माल (merchandise) निर्यात में तेज़ गिरावट
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सेवा निर्यात में नरमी
आगे की राह: विकास को क्या आगे बढ़ाएगा?
एमपीसी को भरोसा है कि घरेलू कारक मजबूत रहेंगे—
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कृषि क्षेत्र के अच्छे संकेत
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जीएसटी सुधारों का प्रभाव
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कॉर्पोरेट वित्तीय स्थिति का बेहतर होना
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कम मुद्रास्फीति और आसान कर्ज उपलब्धता
जीडीपी अनुमान (2025-26): 7.3%
तिमाही अनुमान:
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Q3: 7.0%
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Q4: 6.5%
अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही: 6.7–6.8%
मुद्रास्फीति: दर कटौती के पीछे वास्तविक कारण
अक्टूबर 2025 में मुद्रास्फीति इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुँची। इसका मुख्य कारण था—
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खाद्य मुद्रास्फीति में तीव्र गिरावट
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कोर इन्फ्लेशन स्थिर
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सोने के प्रभाव को हटाने पर दबाव और भी कम दिखाई दिया
इससे एमपीसी को भरोसा हुआ कि महंगाई का जोखिम फिलहाल कम है।
मुद्रास्फीति का अनुमान (Outlook)
2025-26 के लिए अनुमान: 2.0%
विभाजन—
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Q3: 0.6%
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Q4: 2.9%
2026-27 में धीरे-धीरे लक्ष्य 4% की ओर:
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Q1: 3.9%
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Q2: 4.0%
छात्रों के लिए सीख
यह बैठक मौद्रिक नीति को समझने का उत्कृष्ट उदाहरण है:
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कम और स्थिर मुद्रास्फीति होने पर केंद्रीय बैंक दरें घटाकर विकास को समर्थन देता है
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Neutral रुख = आगे की राह खुली
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मौद्रिक नीति भविष्य-केंद्रित (forward-looking) होती है
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घरेलू कारक मजबूत हों तो वैश्विक अनिश्चितता के बावजूद नीति ढील दी जा सकती है


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