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RBI ने बैंकों, एनबीएफसी के लिए एआईएफ निवेश मानदंडों को आसान बनाया

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) — जिन्हें सामूहिक रूप से विनियमित संस्थाएँ (RE) कहा जाता है — द्वारा वैकल्पिक निवेश कोषों (AIF) में निवेश की सीमा तय करने वाले अपने नियमों में महत्वपूर्ण ढील देने की घोषणा की है। नए ढाँचे के तहत, RBI ने किसी AIF योजना में सभी RE के संचयी निवेश को योजना की कुल राशि के 20% तक सीमित कर दिया है। इसके अतिरिक्त, किसी भी एकल RE द्वारा निवेश की सीमा योजना की कुल राशि के 10% तक सीमित है। ये नए निर्देश 1 जनवरी, 2026 से या उससे पहले लागू होंगे, यदि कोई विशेष RE अपनी आंतरिक नीति के तहत इन्हें अपनाता है।

आईएफ क्या हैं?

वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) निजी तौर पर एकत्रित निवेश माध्यम होते हैं जो एक निश्चित निवेश नीति के अनुसार निवेश के लिए घरेलू या विदेशी निवेशकों से धन एकत्र करते हैं। ये आमतौर पर रियल एस्टेट, निजी इक्विटी, वेंचर कैपिटल और हेज फंड जैसे क्षेत्रों में निवेश करते हैं।आरबीआई बैंकों और एनबीएफसी द्वारा एआईएफ में निवेश को नियंत्रित करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे ऋण सदाबहारीकरण के माध्यम न बनें या अन्य नियामक प्रतिबंधों को दरकिनार न करें।

पूर्व प्रस्ताव बनाम नया निर्णय

मई 2025 में, RBI ने एक मसौदा परिपत्र जारी किया था जिसमें किसी भी AIF योजना में RE द्वारा कुल निवेश पर 15% की कठोर सीमा का प्रस्ताव था, जबकि एकल-RE सीमा को 10% पर बनाए रखा गया था। हितधारकों और उद्योग निकायों के साथ परामर्श के बाद, RBI ने कुल निवेश सीमा को 15% से घटाकर 20% करने का निर्णय लिया, जबकि एकल RE के लिए 10% की सीमा को बनाए रखा।

नए नियमों में प्रमुख राहतें 

1. इक्विटी निवेश को प्रावधान नियमों से छूट

AIFs द्वारा की गई डाउनस्ट्रीम इक्विटी निवेश (यानि जिन कंपनियों में AIF आगे जाकर निवेश करता है) को अब सख्त प्रावधान (provisioning) नियमों से बाहर कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि यदि कोई नियंत्रित संस्था (RE) किसी AIF में निवेश करती है, और वह AIF किसी कंपनी के इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स (जैसे शेयर, CCPS, CCDs) में निवेश करता है, तो इसे अब उस RE के लिए अप्रत्यक्ष जोखिम (indirect exposure) नहीं माना जाएगा।

2. कुछ विशेष डाउनस्ट्रीम निवेशों पर प्रावधान की अनिवार्यता

यदि कोई RE किसी AIF स्कीम के कॉर्पस में 5% से अधिक योगदान करता है, और वह AIF उस RE की किसी कर्जदार कंपनी (debtor company) में इक्विटी को छोड़कर अन्य रूपों में निवेश करता है,

  • तो उस RE को उस निवेश हिस्से के लिए 100% प्रावधान (provisioning) करना होगा।
  • हालांकि, यह प्रावधान राशि RE द्वारा उस कंपनी में दिए गए सीधे ऋण या निवेश की राशि से अधिक नहीं हो सकती — यानी यह सीमित रहेगी।

3. सबऑर्डिनेटेड यूनिट्स का ट्रीटमेंट

यदि कोई RE किसी AIF में निवेश सबऑर्डिनेटेड यूनिट्स (निचले स्तर की निवेश श्रेणियाँ या कम प्राथमिकता वाले निवेश ट्रैंच) के रूप में करता है,

  • तो पूरी निवेश राशि को उस RE की पूंजी (capital funds) से घटा दिया जाएगा।
  • यह कटौती दोनों श्रेणियों से होगी — Tier-1 और Tier-2 capital, अनुपात के अनुसार।

पृष्ठभूमि: ये नियम क्यों आवश्यक थे?

दिसंबर 2023 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने नियंत्रित संस्थाओं (REs) को उन वैकल्पिक निवेश फंडों (AIFs) में निवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया था, जिनका किसी RE के मौजूदा या हालिया कर्जदारों से संबंध था।

  • यह कदम तब उठाया गया जब SEBI ने यह संकेत दिया कि कुछ मामलों में AIF का उपयोग “एवरग्रीनिंग ऑफ लोन” (Evergreening of Loans) के लिए हो रहा है। इसमें कर्जदाता पुराने कर्ज चुकाने के लिए नया ऋण देते हैं, जिससे खराब कर्ज (NPA) की पहचान टल जाती है।
  • इस प्रतिबंध के कारण कई AIFs के लिए कैपिटल कॉल (funding commitment) संकट पैदा हो गया, क्योंकि REs अब फंडिंग नहीं कर पा रहे थे।
  • मार्च 2024 में RBI ने इन ऑपरेशनल चुनौतियों को दूर करने के लिए कुछ प्रावधानों में ढील दी।

उद्योग जगत की प्रतिक्रिया

सिद्धार्थ पई, सह-अध्यक्ष, IVCA रेगुलेटरी अफेयर्स काउंसिल:

इक्विटी निवेश को carve-out करने और “debtor company” की परिभाषा से कुछ कंपनियों को बाहर करने से निवेशकों को अधिक भरोसा मिलेगा।

पल्लबी घोषाल, पार्टनर

  • CCPS और CCDs को इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स के रूप में स्पष्ट करना लंबे समय से लंबित उद्योग मांग थी जिसे अब स्वीकार कर लिया गया है।
  • नए नियम 1 जनवरी 2026 से लागू होंगे, जिससे फंड मैनेजर्स को अपनी फंडरेज़िंग रणनीति समायोजित करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा।

भारत में AIF निवेश का स्तर (मार्च 2025 तक):

  • कुल प्रतिबद्ध निवेश: ₹13.49 लाख करोड़

  • कुल वास्तविक निवेश: ₹5.38 लाख करोड़

  • इक्विटी व इक्विटी-लिंक्ड निवेश: ₹3.5 लाख करोड़

  • घरेलू निवेशकों की हिस्सेदारी: ₹4.08 लाख करोड़ (₹5.63 लाख करोड़ में से)

  • शीर्ष सेक्टर:

    • रियल एस्टेट: ₹69,896 करोड़

    • आईटी, वित्तीय सेवाएं, NBFCs

SEBI दिशानिर्देशों के साथ समन्वय:

नए RBI नियम अब SEBI के जांच एवं निवेश मानदंडों के अधिक अनुरूप हैं। इनका उद्देश्य है:

  • AIF के जरिए लोन एवरग्रीनिंग को रोकना
  • निवेश नियमों में समानता और स्पष्टता लाना
  • इक्विटी-केंद्रित AIFs को अधिक स्वतंत्रता देना
  • जबकि प्राइवेट क्रेडिट पर सख्त निगरानी रखना

मुख्य बिंदुओं का सारांश:

  • किसी AIF स्कीम में कुल RE निवेश सीमा: 20%

  • किसी एकल RE की सीमा: 10%

  • इक्विटी निवेश अब सख्त provisioning नियमों से बाहर

  • यदि AIF किसी RE की कर्जदार कंपनी में debt निवेश करता है और उस AIF में उस RE का योगदान 5% से अधिक है, तो 100% प्रावधान अनिवार्य

  • Subordinated units पूरी तरह से पूंजी से घटाई जाएंगी

  • प्रभावी तिथि: 1 जनवरी 2026 (या उससे पहले यदि RE चाहे)

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