भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) ने 31 मार्च 2025 तक कुल 1,629 कॉर्पोरेट इकाइयों को जानबूझकर ऋण न चुकाने वाले (विलफुल डिफॉल्टर) के रूप में चिन्हित किया है, जिन पर कुल ₹1.62 लाख करोड़ की बकाया राशि है। यह जानकारी संसद में केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत की गई, जो देश में बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की चिंता और पारदर्शिता व ऋण अनुशासन को सुदृढ़ करने के लिए जारी प्रणालीगत प्रयासों को दर्शाती है।
पृष्ठभूमि
विलफुल डिफॉल्टर वे उधारकर्ता होते हैं जिनके पास ऋण चुकाने की क्षमता होते हुए भी वे जानबूझकर भुगतान नहीं करते। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के आधार पर इस श्रेणी का निर्धारण किया जाता है। बड़े ऋणों पर सूचना का केन्द्रीय भंडार (सीआरआईएलसी) ऐसे खातों पर नज़र रखता है, तथा ऋणदाताओं और नियामकों को सचेत करने के लिए डेटा को नियमित रूप से अद्यतन किया जाता है।
सरकारी उपाय और कानूनी ढांचा
वित्त मंत्रालय ने बताया है कि जानबूझकर किए गए ऋण डिफॉल्ट को रोकने और बकाया राशि की वसूली के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इनमें सरफेसी अधिनियम (SARFAESI Act), ऋण वसूली अधिकरण (DRTs), दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के तहत कार्रवाई करना, और आवश्यकतानुसार आपराधिक मामले दर्ज करना शामिल है। साथ ही, ऐसे डिफॉल्टर्स को भविष्य में ऋण लेने और कंपनियों में निदेशक बनने से प्रतिबंधित किया जाता है।
पारदर्शिता और सार्वजनिक प्रकटीकरण
उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए, जानबूझकर डिफॉल्ट करने वालों की सूची सार्वजनिक की जाती है। यह जानकारी CIBIL, Equifax, Experian और CRIF High Mark जैसी क्रेडिट ब्यूरो के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है। ये एजेंसियां बैंकों द्वारा प्रदान की गई जानकारी के आधार पर हर माह अपने डेटाबेस को अपडेट करती हैं (विदेशी ऋणकर्ताओं को छोड़कर), जिससे वित्तीय प्रणाली में उचित परिश्रम (due diligence) को बल मिलता है।
बैंकिंग क्षेत्र के लिए महत्त्व
जानबूझकर डिफॉल्ट के बढ़ते मामलों से बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता को खतरा पैदा हो रहा है, खासकर तब जब जमा राशि की वृद्धि ऋण विस्तार की तुलना में धीमी बनी हुई है। ऐसे डिफॉल्टर्स की पहचान करना और उन्हें दंडित करना जमा कर्ताओं के धन की सुरक्षा, ऋण अनुशासन बनाए रखने और करदाताओं पर खराब ऋणों (bad loans) का बोझ कम करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
वसूली में चुनौतियां
हालांकि कई उपाय किए गए हैं, लेकिन लंबी कानूनी प्रक्रियाएं, संपत्ति की पहचान करना और अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्राधिकार (jurisdiction) जैसी जटिलताएं वसूली प्रक्रिया में बाधा बनती हैं। साथ ही, यह आलोचना भी होती है कि बड़े डिफॉल्टर अक्सर कानूनी खामियों या पुनर्संरचना योजनाओं का उपयोग कर भुगतान टालने में सफल हो जाते हैं।


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