प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 से 26 जुलाई 2025 तक ब्रिटेन और मालदीव के द्विदेशीय दौरे पर जाने वाले हैं। यह यात्रा भारत की सक्रिय और गतिशील विदेश नीति का प्रतीक है। इस दौरे का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के साथ रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी को मजबूत करना है, जिससे भारत की वैश्विक प्रभावशीलता बढ़े और क्षेत्रीय एवं वैश्विक सहयोग के प्रति उसकी प्रतिबद्धता सुदृढ़ हो।
पृष्ठभूमि
यह प्रधानमंत्री मोदी की ब्रिटेन की चौथी आधिकारिक यात्रा और मालदीव की तीसरी यात्रा होगी। ब्रिटेन दौरा हाल ही में निर्वाचित प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर के आमंत्रण पर हो रहा है, जबकि मालदीव यात्रा वहां के राष्ट्रपति मोहम्मद मुईज्जू के आमंत्रण पर होगी। यह दौरा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ के साथ मेल खाता है, जिससे भारत की समुद्री पड़ोसी देशों के प्रति प्रतिबद्धता भी उजागर होती है।
भारत-ब्रिटेन संबंध: महत्व और एजेंडा
प्रधानमंत्री मोदी की यूनाइटेड किंगडम यात्रा का उद्देश्य भारत-ब्रिटेन समग्र रणनीतिक साझेदारी (CSP) को नई गति देना है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर के साथ उनकी बातचीत निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित होगी:
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व्यापार और अर्थव्यवस्था
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प्रौद्योगिकी और नवाचार
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रक्षा और सुरक्षा सहयोग
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जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय कार्रवाई
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स्वास्थ्य, शिक्षा और सांस्कृतिक संबंध
इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री मोदी की किंग चार्ल्स तृतीय से भेंट भी प्रस्तावित है, जो उच्च स्तरीय कूटनीतिक संबंधों की गहराई को दर्शाता है।
भारत-मालदीव संबंध: रणनीतिक सहयोग
मालदीव में प्रधानमंत्री मोदी की राजकीय यात्रा भारत की “पड़ोसी प्रथम” नीति और “विजन महासागर” के अंतर्गत समुद्री रणनीतिक दृष्टिकोण को बल देती है। यह राष्ट्रपति मोहम्मद मुईज्जू के कार्यभार संभालने के बाद किसी विदेशी सरकार प्रमुख की पहली आधिकारिक यात्रा होगी। इस दौरे के दौरान निम्नलिखित मुद्दों पर विशेष ध्यान रहेगा:
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भारत-मालदीव समग्र आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी की समीक्षा
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द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ करना
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बुनियादी ढांचे, पर्यटन और ब्लू इकोनॉमी में सहयोग
प्रधानमंत्री मोदी 26 जुलाई को मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भी भाग लेंगे, जो दोनों देशों के घनिष्ठ संबंधों का प्रतीक है।
उद्देश्य और सामरिक महत्व
इस दो-राष्ट्र यात्रा का उद्देश्य है:
- द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाना
- आर्थिक, तकनीकी और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करना
- क्षेत्रीय स्थिरता और सामरिक समुद्री उपस्थिति को बढ़ावा देना
- दक्षिण एशिया और यूरोप दोनों में भारत की वैश्विक भूमिका को मज़बूत करना


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