जापान की अपनी हालिया दो दिवसीय यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा और उनकी पत्नी को कई सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और प्रतीकात्मक उपहार भेंट किए। इन उपहारों ने भारतीय शिल्पकला और जापानी परंपरा के गहरे संबंधों को उजागर किया और दोनों देशों के बीच साझा सभ्यता एवं आध्यात्मिक बंधनों को और सुदृढ़ किया।
पाक कूटनीति का प्रतीक कलात्मक कटोरा सेट
रामेन बाउल सेट
प्रधानमंत्री मोदी के उपहारों में प्रमुख था—विंटेज मूनस्टोन (चंद्रकांत मणि) कटोरे का सेट, जो जापानी डोनबुरी और सोबा भोजन परंपरा से प्रेरित है। इस सेट में शामिल थे:
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एक बड़ा भूरा मूनस्टोन कटोरा
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चार छोटे कटोरे
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एक जोड़ी चाँदी की चॉपस्टिक
विशेषताएं
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मूनस्टोन (आंध्र प्रदेश में खनन किया गया) अपनी चमकदार आभा (Adularescence) के लिए प्रसिद्ध है और पारंपरिक मान्यताओं में इसे प्रेम, संतुलन और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।
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मुख्य कटोरे का आधार मकराना संगमरमर से बना है—यही संगमरमर ताजमहल में भी प्रयुक्त हुआ था।
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इसे राजस्थान की प्रसिद्ध नक्काशी तकनीक ‘पर्चिन कारी’ से अर्ध-बहुमूल्य पत्थरों से जड़ा गया है।
यह उपहार केवल एक पाक श्रद्धांजलि ही नहीं बल्कि भारतीय कला और जापानी परंपरा का अनोखा संगम है—सांस्कृतिक कूटनीति का उत्कृष्ट उदाहरण।
शालीनता और गरमाहट का उपहार: पश्मीना शॉल
जापान की प्रथम महिला के लिए
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प्रधानमंत्री मोदी ने जापानी प्रधानमंत्री की पत्नी को एक पश्मीना शॉल भेंट की, जिसे खूबसूरती से हस्त-चित्रित पेपर-मेशे बॉक्स में पैक किया गया था।
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यह शॉल लद्दाख की चांगथांगी बकरी के ऊन से बनी है, जो हल्की, गर्म और विलासितापूर्ण मानी जाती है।
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शॉल पर हाथीदांत (आइवरी) रंग का आधार है, जिस पर फूल और पेसली डिज़ाइन जड़े हैं, जिनमें हल्के जंग (rust), गुलाबी और लाल रंगों का संयोजन है—कश्मीरी डिज़ाइन की खास पहचान।
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पेपर-मेशे का बॉक्स, जिस पर पक्षियों और फूलों की पेंटिंग की गई है, कश्मीर की प्रसिद्ध सजावटी कला का प्रतीक है।
यह उपहार भारत की हिमालयी और कश्मीरी वस्त्र व हस्तकला परंपरा का सुंदर प्रतिनिधित्व करता है।
आध्यात्मिक आदान-प्रदान: दरुमा गुड़िया
प्रधानमंत्री मोदी को शोरिनज़ान दरुमा-जी मंदिर (ताकासाकी, गुन्मा) के मुख्य पुजारी रेव. सेइशी हीरोसे ने एक दरुमा डॉल भेंट की।
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दरुमा डॉल जापान में भाग्य और धैर्य का प्रतीक मानी जाती है।
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इसका उद्गम बोधिधर्म से जुड़ा है—कांचीपुरम (भारत) के एक भिक्षु जिन्होंने लगभग एक हज़ार वर्ष पूर्व ज़ेन बौद्ध धर्म को जापान पहुँचाया।
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यह उपहार भारत और जापान के बीच ऐतिहासिक व आध्यात्मिक संबंधों की पुनर्पुष्टि करता है, जो साझा मूल्यों और धार्मिक परंपराओं पर आधारित हैं।


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