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पारसी नव वर्ष 2023: तिथि, इतिहास और महत्व

पारसी नव वर्ष 2023: तिथि, इतिहास और महत्व |_3.1

दुनियाभर में आज यानी 16 अगस्त 2023 को पारसी समुदाय के लोग अपना नववर्ष पूरे हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं. पारसी समुदाय के नववर्ष को नवरोज कहा जाता है. ये त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है, एक 16 अगस्त को और दूसरा 21 मार्च को. दरअसल, नवरोज एक फारसी शब्द है, जो नव और रोज से मिलकर बना है. नवरोज में नव का अर्थ होता है- नया और रोज का अर्थ होता है दिन. इसलिए नवरोज को एक नए दिन के प्रतीक के रूप में उत्सव की तरह मनाया जाता है. ईरान में नवरोज को- ऐदे नवरोज कहा जाता है. पारसी नव वर्ष, पारसी समुदाय के लिए आस्था का विषय है.

नवरोज का उत्सव पारसी समुदाय में पिछले तीन हजार साल से मनाया जाता रहा है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वैसे तो एक साल में 365 दिन होते हैं, लेकिन पारसी समुदाय के लोग 360 दिनों का ही साल मानते हैं। साल के आखिरी पांच दिन गाथा के रूप में मनाए जाते हैं। यानी इन पांच दिनों में परिवार के सभी लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं।

 

कैसे मनाते हैं ये पर्व?

नवरोज के दिन पारसी धर्म को मानने वाले लोग सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाते हैं। इस दिन घर की साफ-सफाई करके घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है। फिर खास पकवान बनाए जाते हैं। इसके अलावा इस दिन एक-दूसरे के प्रति प्रेम व्यक्त करने के लिए आपस में उपहार भी बांटते हैं। साथ ही पारसी लोग चंदन की लकड़ियों के टुकड़े घर में रखते हैं। ऐसा करने के पीछे उनकी ये मान्यता है कि चंदन की लकड़ियों की सुगंध हर ओर फैलने से हवा शुद्ध होती है।

 

नवरोज का इतिहास

मान्यताओं के अनुसार पारसी धर्म को मानने वाले लोग नवरोज का पर्व राजा जमशेद की याद में मनाते हैं। कहा जाता है कि करीब तीन हजार साल पहले पारसी समुदाय के एक योद्धा जमशेद ने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। तब से आज तक लोग इस दिन को नए साल के रूप में मनाते हैं। ये भी कहा जाता है कि इसी दिन ईरान में जमदेश ने सिंहासन ग्रहण किया था।

 

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