RBI ने सुरक्षित डिजिटल बैंकिंग के लिए ‘Bank.in’ और ‘Fin.in’ लॉन्च किया

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने डिजिटल बैंकिंग की साइबर सुरक्षा और ग्राहकों के विश्वास को बढ़ाने के लिए भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए विशेष इंटरनेट डोमेन नाम जारी करने की घोषणा की है। अब भारतीय बैंकों के लिए ‘Bank.in’ और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFCs) के लिए ‘Fin.in’ डोमेन निर्धारित किया गया है।

यह घोषणा RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा द्वारा वित्तीय वर्ष की अंतिम द्वि-मासिक मौद्रिक नीति बैठक में की गई। इसका उद्देश्य साइबर धोखाधड़ी को कम करना, फ़िशिंग हमलों को रोकना और सुरक्षित वित्तीय लेनदेन को बढ़ावा देना है।

‘Bank.in’ और ‘Fin.in’ डोमेन क्यों जरूरी हैं?

डिजिटल बैंकिंग और ऑनलाइन वित्तीय सेवाओं की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता के कारण साइबर धोखाधड़ी, फ़िशिंग हमलों और नकली वित्तीय वेबसाइटों में वृद्धि हुई है। कई जालसाज नकली बैंकिंग वेबसाइट बनाकर ग्राहकों को ठगने और संवेदनशील वित्तीय जानकारी चुराने की कोशिश करते हैं।

इस खतरे को कम करने के लिए, RBI ने सभी वित्तीय संस्थानों के लिए विशिष्ट डोमेन नाम शुरू करने का निर्णय लिया, जिससे ग्राहकों और व्यवसायों के लिए सुरक्षित डिजिटल पहचान सुनिश्चित की जा सके।

‘Bank.in’ और ‘Fin.in’ डोमेन की प्रमुख विशेषताएँ

1. ‘Bank.in’ डोमेन – भारतीय बैंकों के लिए

  • सभी पंजीकृत भारतीय बैंकों की आधिकारिक वेबसाइट अब ‘Bank.in’ डोमेन के तहत होगी।
  • अप्रैल 2025 से ‘Bank.in’ के लिए पंजीकरण शुरू होंगे, जिन्हें RBI नियंत्रित करेगा।
  • इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड रिसर्च इन बैंकिंग टेक्नोलॉजी (IDRBT) इस डोमेन का विशेष रजिस्ट्रार होगा।
  • फ़िशिंग हमलों को रोकने, साइबर सुरक्षा को मजबूत करने और डिजिटल बैंकिंग में विश्वास बढ़ाने में मदद मिलेगी।

2. ‘Fin.in’ डोमेन – गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के लिए

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs), फिनटेक फर्म और अन्य वित्तीय संस्थान ‘Fin.in’ डोमेन का उपयोग करेंगे।
  • यह डोमेन वैध वित्तीय कंपनियों को नकली वेबसाइटों से अलग करने और वित्तीय लेनदेन की सुरक्षा बढ़ाने में मदद करेगा।
  • ‘Fin.in’ के कार्यान्वयन की समय-सीमा चरणबद्ध तरीके से घोषित की जाएगी।

साइबर सुरक्षा और डिजिटल भुगतान पर प्रभाव

1. डिजिटल बैंकिंग सुरक्षा को मजबूत करना

  • नए डोमेन सिस्टम से बैंक और वित्तीय संस्थान साइबर धोखाधड़ी और फ़िशिंग हमलों से सुरक्षित रहेंगे
  • ग्राहक किसी भी बैंक की वेबसाइट की प्रामाणिकता ‘.Bank.in’ डोमेन से आसानी से सत्यापित कर सकेंगे

2. ऑनलाइन वित्तीय लेनदेन में विश्वास बढ़ाना

  • सुरक्षित डोमेन नामों के माध्यम से ग्राहक डिजिटल लेनदेन बिना धोखाधड़ी के डर से कर सकेंगे
  • वित्तीय संस्थाएँ RBI की साइबर सुरक्षा नीतियों का पालन सुनिश्चित कर सकेंगी

3. सुरक्षित वित्तीय सेवाओं को सुव्यवस्थित करना

  • विशेष डोमेन से सही बैंकिंग और वित्तीय सेवा प्रदाताओं की पहचान करना आसान होगा
  • यह पहल भारत में डिजिटल बैंकिंग ऑपरेशनों को एक सुरक्षित और मानकीकृत वातावरण प्रदान करेगी

अंतरराष्ट्रीय कार्ड लेनदेन के लिए दो-स्तरीय प्रमाणीकरण (AFA)

‘Bank.in’ और ‘Fin.in’ डोमेन के साथ-साथ, RBI ने अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन लेनदेन की सुरक्षा बढ़ाने के लिए ‘Additional Factor of Authentication (AFA)’ लागू करने की योजना बनाई है।

AFA (अतिरिक्त प्रमाणीकरण कारक) क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

  • AFA एक सुरक्षा उपाय है, जिसमें ऑनलाइन लेनदेन के दौरान एक अतिरिक्त सत्यापन चरण आवश्यक होता है।
  • भारत में घरेलू ऑनलाइन भुगतान के लिए AFA पहले से अनिवार्य है, जिससे डिजिटल लेनदेन सुरक्षित रहता है।
  • हालांकि, अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन लेनदेन में भारतीय कार्डों पर AFA लागू नहीं था, जिससे धोखाधड़ी की संभावना बढ़ जाती थी।

AFA से सुरक्षा कैसे बढ़ेगी?

  • अब अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में भी AFA अनिवार्य किया जाएगा
  • यदि विदेशी व्यापारी AFA सक्षम होगा, तो भारतीय ग्राहकों को एक अतिरिक्त प्रमाणीकरण चरण पूरा करना होगा
  • इस नए नियम के लिए RBI जल्द ही मसौदा परिपत्र (Draft Circular) जारी करेगा और हितधारकों से सुझाव मांगेगा।

निष्कर्ष

भारतीय रिज़र्व बैंक की यह पहल डिजिटल बैंकिंग सुरक्षा को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। विशेष रूप से ‘Bank.in’ और ‘Fin.in’ डोमेन से ग्राहकों के लिए वैध वित्तीय संस्थानों की पहचान करना आसान होगा, जिससे साइबर धोखाधड़ी में कमी आएगी

इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय कार्ड लेनदेन में AFA लागू करने से भारतीय कार्डधारकों के लिए अतिरिक्त सुरक्षा मिलेगी। यह कदम डिजिटल लेनदेन को अधिक सुरक्षित, पारदर्शी और भरोसेमंद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

 

हिमाचल प्रदेश ने भांग की खेती की पायलट परियोजना शुरू की

हिमाचल प्रदेश सरकार ने बढ़ती मांग और वैश्विक स्तर पर भांग (कैनबिस) की औषधीय, कृषि और औद्योगिक उपयोगिता को मान्यता देते हुए एक पायलट परियोजना को मंजूरी दी है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में यह परियोजना राज्य में भांग की खेती की संभावनाओं का मूल्यांकन करेगी, विशेष रूप से इसके औषधीय और औद्योगिक उपयोगों पर ध्यान केंद्रित करेगी।

मुख्य बिंदु

पायलट परियोजना का शुभारंभ

  • हिमाचल प्रदेश में औषधीय और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए नियंत्रित भांग की खेती शुरू।
  • परियोजना को चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर और डॉ. वाई.एस. परमार उद्यानिकी विश्वविद्यालय, नौणी (सोलन) का समर्थन प्राप्त।

वैश्विक मान्यता

  • हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली भांग को अब वैश्विक स्तर पर कृषि, औषधीय और औद्योगिक फायदों के लिए मान्यता मिल रही है।
  • कनाडा, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भांग की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।

ऐतिहासिक संदर्भ

  • हिमाचल प्रदेश में 1985 में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम के तहत प्रतिबंध से पहले भांग की खेती आम थी।
  • प्रतिबंध के बावजूद, राज्य के कुछ जिलों में अवैध रूप से इसकी खेती जारी है।

औद्योगिक और औषधीय लाभ

  • भांग को आज “ट्रिलियन-डॉलर फसल” माना जाता है क्योंकि इसका उपयोग रेशे, बीज, बायोमास सहित कई रूपों में किया जाता है।
  • वैश्विक बाजार में 25,000 से अधिक उत्पादों में भांग का उपयोग होता है, जिसमें 100+ कैनाबिनोइड्स शामिल हैं, जैसे CBD (ग़ैर-नशीला) और THC (नशीला)।

स्थानीय समर्थन और विरोध

  • संथ राम जैसे समर्थकों ने भांग की खेती को पुनर्जीवित करने की मांग की है, इसे आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बताया है।
  • उनका मानना है कि अंतरराष्ट्रीय शराब लॉबी ने भांग को लेकर नकारात्मक धारणा बनाई।
  • गुमान सिंह जैसे आलोचकों का कहना है कि जो देश पहले भांग पर प्रतिबंध लगा रहे थे, वही अब इसकी खेती को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

भविष्य की संभावनाएं

  • पायलट परियोजना सफल होने पर हिमाचल प्रदेश में वृहद स्तर पर भांग की खेती का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
  • सरकार को आर्थिक लाभ और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव के बीच संतुलन बनाना होगा।
क्यों चर्चा में? हिमाचल प्रदेश ने भांग की खेती पर पायलट परियोजना शुरू की
पायलट परियोजना की शुरुआत 24 जनवरी को हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा औषधीय और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भांग की खेती को लेकर स्वीकृत।
सहयोगी संस्थान चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर और डॉ. वाई.एस. परमार उद्यानिकी विश्वविद्यालय, नौणी
वैश्विक मान्यता भांग को औषधीय, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिए वैश्विक स्तर पर बढ़ती स्वीकृति मिल रही है।
ऐतिहासिक संदर्भ 1985 में NDPS अधिनियम के तहत प्रतिबंध से पहले हिमाचल में भांग की खेती आम थी; अवैध खेती अब भी जारी।
औद्योगिक और औषधीय लाभ भांग का उपयोग रेशे, बीज और कैनाबिनोइड्स में किया जाता है, और इसका वैश्विक बाजार ट्रिलियन-डॉलर का है।
स्थानीय समर्थन संथ राम जैसे कार्यकर्ताओं ने भांग की खेती को आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण बताया।
सांस्कृतिक प्रभाव पारंपरिक रूप से भांग का उपयोग रेशे और खाद्य पदार्थों में किया जाता था, लेकिन 1990 के दशक में मनोरंजक उपयोग बढ़ा।
वैश्विक प्रवृत्तियां यूरोपीय और अमेरिकी देश, जो कभी भांग पर प्रतिबंध लगाते थे, अब इसकी कानूनी खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।
भविष्य की संभावनाएं यदि पायलट परियोजना सफल होती है, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती है, लेकिन सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चिंताओं का समाधान भी आवश्यक होगा।

महासागर समन्वय तंत्र का लक्ष्य कैरेबियाई और उत्तरी ब्राजील शेल्फ की रक्षा करना

महासागर, जो पृथ्वी की सतह का 70% से अधिक भाग कवर करते हैं, जलवायु को संतुलित करने और अरबों लोगों को आजीविका एवं पोषण प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, वे प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ने, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आवास के विनाश जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। समुद्री जीवन की रक्षा करने और महासागर संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए ओशन कोऑर्डिनेशन मैकेनिज्म (OCM) जैसी नई पहलें शुरू की जा रही हैं। OCM का उद्देश्य कैरेबियन और नॉर्थ ब्राज़ील शेल्फ में जैव विविधता संरक्षण, सतत संसाधन प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने पर केंद्रित है।

मुख्य बिंदु

महासागर का महत्व

  • महासागर जलवायु को नियंत्रित करने, जैव विविधता को बनाए रखने और अरबों लोगों को भोजन और रोजगार प्रदान करने में मदद करते हैं।
  • स्वस्थ महासागर मत्स्य पालन, तटीय समुदायों और जलवायु संरक्षण के लिए आवश्यक हैं।

महासागर के लिए खतरे

  • प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ने और प्राकृतिक आवास के विनाश से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान हो रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर और अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं।

समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas) की भूमिका

  • समुद्री संरक्षण क्षेत्रों का उद्देश्य महासागर पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखना है।
  • प्रभावी प्रबंधन और समन्वय की आवश्यकता है ताकि ये संरक्षण क्षेत्र अपने उद्देश्यों को पूरा कर सकें।

ओशन कोऑर्डिनेशन मैकेनिज्म (OCM) की शुरुआत

  • UNESCO के इंटरगवर्नमेंटल ओशनोग्राफिक कमीशन (IOC) द्वारा 14 जनवरी 2025 को OCM की घोषणा की गई।
  • यह कैरेबियन और नॉर्थ ब्राज़ील शेल्फ पर केंद्रित है, जो जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • यह पहल पैसिफिक आइलैंड्स रीजनल ओशन पॉलिसी (PIROP) जैसे पिछले सफल परियोजनाओं से सीखे गए अनुभवों पर आधारित है।

OCM की प्रमुख विशेषताएँ

  • जैव विविधता संरक्षण: प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) और मत्स्य संसाधनों की सुरक्षा, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • ब्लू कार्बन प्रोजेक्ट्स: तटीय पारिस्थितिक तंत्रों का उपयोग कार्बन भंडारण के लिए करना, जिससे पर्यावरण और समुदायों को लाभ होगा।
  • सहयोगी ढांचा (Collaborative Framework): महासागर संरक्षण के लिए एक समावेशी और स्थायी दृष्टिकोण सुनिश्चित करना, जिसमें स्पष्ट उद्देश्य और एकीकृत प्रबंधन शामिल हो।

वित्तीय सहायता और स्थिरता

  • ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी (GEF) के UNDP/GEF PROCARIBE+ प्रोजेक्ट से प्रारंभिक $15 मिलियन की निधि प्राप्त हुई।
  • GEF द्वारा $126.02 मिलियन का सह-वित्त पोषण प्रदान किया गया।
  • ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ्स (GFCR) ने $225 मिलियन जुटाए, जिससे स्पष्ट होता है कि महासागर संरक्षण के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन जुटाना एक चुनौती है।

स्थानीय समुदायों की भागीदारी

  • OCM स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल करने पर जोर देता है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान और पारंपरिक ज्ञान के समावेश से संस्कृति के अनुकूल और प्रभावी संरक्षण रणनीतियाँ विकसित की जाएंगी।
सारांश/स्थिर विवरण विवरण
क्यों चर्चा में? कैरेबियन और नॉर्थ ब्राज़ील शेल्फ की सुरक्षा के लिए ओशन कोऑर्डिनेशन मैकेनिज्म (OCM) शुरू
महासागरों की भूमिका जलवायु संतुलन, जैव विविधता संरक्षण, अरबों लोगों के लिए भोजन और रोजगार का स्रोत
महासागरों के लिए खतरे प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ना, प्राकृतिक आवास का विनाश, जलवायु परिवर्तन
समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas) महासागर संरक्षण के लिए आवश्यक, लेकिन बेहतर समन्वय और प्रबंधन की जरूरत
लक्षित क्षेत्र कैरेबियन और नॉर्थ ब्राज़ील शेल्फ – जैव विविधता से समृद्ध, स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण
OCM की प्रमुख विशेषताएँ जैव विविधता संरक्षण, ब्लू कार्बन प्रोजेक्ट्स, सहयोगी ढांचा, सतत और समावेशी दृष्टिकोण
पिछली पहलें PIROP से सीखे गए सबक; PIROP की अस्पष्ट रणनीति और असमान संसाधन पहुंच की चुनौतियों को हल करने का प्रयास
वित्तीय निवेश GEF से प्रारंभिक $15 मिलियन और $126.02 मिलियन का सह-वित्त पोषण
वित्त पोषण की चुनौती ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ्स (GFCR) ने $225 मिलियन जुटाए; OCM के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन जुटाने की चिंता
समुदाय की भागीदारी पारंपरिक ज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान का समावेश, सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त संरक्षण रणनीतियाँ

के. बालासुब्रमण्यम को सिटीबैंक इंडिया का नया प्रमुख नियुक्त किया गया

सिटीबैंक ने के. बालासुब्रमण्यम को इंडिया सब-क्लस्टर और बैंकिंग प्रमुख के रूप में नियुक्त किया है। वे अशु खुल्लर का स्थान लेंगे, जिनकी नियुक्ति अब वैश्विक संपत्ति प्रबंधन (GAM) के सह-प्रमुख के रूप में हुई है। बालासुब्रमण्यम की नियुक्ति भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मंजूरी के अधीन है।

नेतृत्व परिवर्तन के प्रमुख बिंदु

नई नियुक्ति

  • के बालासुब्रमण्यम को सिटीबैंक के इंडिया सब-क्लस्टर और बैंकिंग प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया।
  • उनकी नियुक्ति RBI की मंजूरी के बाद प्रभावी होगी।

रिपोर्टिंग संरचना

  • बालासुब्रमण्यम एमोल गुप्ते (एशिया साउथ प्रमुख और बैंकिंग प्रमुख) को रिपोर्ट करेंगे।

अशु खुल्लर की नई भूमिका

  • खुल्लर अब वैश्विक संपत्ति प्रबंधन (GAM) के सह-प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालेंगे।
  • वे सिटीबैंक की इन्वेस्टमेंट बैंकिंग ग्लोबल ऑपरेटिंग कमेटी के भी सदस्य होंगे।

खुल्लर का कार्यकाल (2019-2025)

  • उनके नेतृत्व में सिटीबैंक इंडिया निवेश बैंकिंग में शीर्ष स्थान पर पहुंचा।
  • बैंक ने इक्विटी कैपिटल मार्केट्स और विलय एवं अधिग्रहण (M&A) में शानदार प्रदर्शन किया।

सिटीबैंक का आधिकारिक बयान

  • भारत को एक प्रमुख बाजार बताते हुए, सिटीबैंक ने मजबूत व्यापार वृद्धि पर बल दिया।
  • एमोल गुप्ते ने बालासुब्रमण्यम की नेतृत्व क्षमता और अनुभव की सराहना की।

के बालासुब्रमण्यम का परिचय

  • अनुभवी बैंकर, दो दशकों से अधिक का अनुभव
  • 1996 में सिटी इंडिया से जुड़े, विभिन्न नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाईं।
  • वाणिज्य स्नातक (सेंट जेवियर्स कॉलेज, कोलकाता)
  • चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) और कॉस्ट अकाउंटेंट (ICWA)
क्यों चर्चा में है? के बालासुब्रमण्यम सिटीबैंक इंडिया के नए प्रमुख नियुक्त
नई नियुक्ति के बालासुब्रमण्यम को इंडिया सब-क्लस्टर और बैंकिंग प्रमुख बनाया गया
अनुमोदन आवश्यक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मंजूरी के अधीन
किसे रिपोर्ट करेंगे? एमोल गुप्ते (एशिया साउथ प्रमुख और बैंकिंग प्रमुख)
पूर्ववर्ती अशु खुल्लर
अशु खुल्लर की नई भूमिका वैश्विक संपत्ति प्रबंधन (GAM) के सह-प्रमुख और इन्वेस्टमेंट बैंकिंग ग्लोबल ऑपरेटिंग कमेटी के सदस्य
खुल्लर का कार्यकाल 2019-2025 के बीच सिटीबैंक इंडिया को निवेश बैंकिंग और M&A में शीर्ष स्थान दिलाया
सिटीबैंक का बयान भारत सिटीबैंक के सबसे बड़े बाजारों में से एक, बालासुब्रमण्यम से बैंक की नेतृत्व क्षमता और विकास को मजबूत करने की उम्मीद
बालासुब्रमण्यम का अनुभव सिटीबैंक में 20+ वर्षों का अनुभव, विभिन्न उद्योगों और बाजारों में विशेषज्ञता
शैक्षिक योग्यता वाणिज्य स्नातक (सेंट जेवियर्स कॉलेज, कोलकाता), चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA), कॉस्ट अकाउंटेंट (ICWA)

आयुष मंत्रालय का ‘शतावरी- बेहतर स्वास्थ्य के लिए’ विशेष अभियान शुरू

आयुष मंत्रालय ने “शतावरी – बेहतर स्वास्थ्य के लिए” नामक प्रजाति-विशेष अभियान की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य शतावरी के औषधीय लाभों के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। इस पहल का उद्घाटन श्री प्रतापराव जाधव, (स्वतंत्र प्रभार) आयुष राज्य मंत्री द्वारा किया गया। इस अवसर पर वैद्य राजेश कोटेचा (सचिव, आयुष मंत्रालय) और डॉ. महेश कुमार दधीच (सीईओ, राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड – NMPB) सहित कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। यह अभियान आंवला, मोरिंगा, गिलोय और अश्वगंधा जैसी औषधीय पौधों को बढ़ावा देने वाली पूर्व की पहलों की सफलता के बाद शुरू किया गया है।

यह अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के समग्र विकास के लिए 2047 तक निर्धारित पंच प्रण लक्ष्य के अनुरूप है, जिसमें विशेष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

अभियान की प्रमुख विशेषताएँ

1. उद्घाटन एवं प्रमुख हस्तियाँ

  • इस अभियान का उद्घाटन श्री प्रतापराव जाधव, (स्वतंत्र प्रभार) आयुष राज्य मंत्री द्वारा किया गया।
  • इस अवसर पर वैद्य राजेश कोटेचा (सचिव, आयुष मंत्रालय) और डॉ. महेश कुमार दधीच (सीईओ, NMPB) उपस्थित थे।

2. अभियान के उद्देश्य

  • शतावरी के औषधीय लाभों के बारे में जागरूकता फैलाना, विशेष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए।
  • शतावरी की खेती और संरक्षण को बढ़ावा देना, जिसके लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
  • पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को सशक्त बनाना और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।

3. राष्ट्रीय लक्ष्यों से संबद्धता

  • यह अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त 2022 को घोषित पंच प्रण लक्ष्य का समर्थन करता है, जिसका उद्देश्य 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है।
  • महिला स्वास्थ्य सुधार में शतावरी को एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधे के रूप में मान्यता दी गई है।

4. NMPB की भूमिका एवं वित्तीय सहायता

  • राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB) इस अभियान का नेतृत्व कर रहा है।
  • ₹18.9 लाख की वित्तीय सहायता पात्र संगठनों को इस पहल को बढ़ावा देने के लिए दी जाएगी।

5. शतावरी का महत्व

  • औषधीय लाभ: यह महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता और समग्र कल्याण को बढ़ाने में सहायक है।
  • आर्थिक संभावनाएँ: किसानों को शतावरी की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जिससे हर्बल और औषधीय पौधों के उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।

6. सरकार की व्यापक पहल

  • यह अभियान “औषधीय पौधों के संरक्षण, विकास और सतत प्रबंधन के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना” का हिस्सा है।
  • आंवला, मोरिंगा, गिलोय और अश्वगंधा जैसे औषधीय पौधों को बढ़ावा देने वाले पिछले सफल अभियानों की तर्ज़ पर शुरू किया गया है।
  • आयुष मंत्रालय के अंतर्गत पारंपरिक चिकित्सा क्षेत्र को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
विषय विवरण
क्यों चर्चा में? शतावरी के स्वास्थ्य लाभों के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान की शुरुआत
अभियान का नाम शतावरी – बेहतर स्वास्थ्य के लिए”
उद्घाटनकर्ता श्री प्रतापराव जाधव (आयुष राज्य मंत्री, स्वतंत्र प्रभार)
समर्थक अधिकारी वैद्य राजेश कोटेचा (सचिव, आयुष मंत्रालय), डॉ. महेश कुमार दधीच (सीईओ, NMPB)
उद्देश्य शतावरी के औषधीय लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, विशेष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए
संबंधितता भारत के 2047 तक विकास के लिए पंच प्रण लक्ष्य के अनुरूप
वित्तीय सहायता ₹18.9 लाख पात्र संगठनों के लिए आवंटित
सरकारी योजना औषधीय पौधों के संरक्षण, विकास और सतत प्रबंधन के लिए केंद्रीय क्षेत्र योजना
औषधीय लाभ महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता और समग्र कल्याण को बढ़ावा देना
आर्थिक प्रभाव हर्बल खेती और औषधीय पौधों की सतत खेती को प्रोत्साहन

आरबीआई मौद्रिक नीति समिति 2025: मुख्य बातें

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने 5 से 7 फरवरी 2025 तक अपनी 53वीं बैठक आयोजित की। बैठक की अध्यक्षता RBI के गवर्नर श्री संजय मल्होत्रा ने की। इस बैठक में डॉ. नागेश कुमार, श्री सौगत भट्टाचार्य, प्रो. राम सिंह, डॉ. राजीव रंजन और श्री एम. राजेश्वर राव ने भाग लिया।

वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों और भविष्य के आर्थिक रुझानों का मूल्यांकन करने के बाद, MPC ने सर्वसम्मति से रेपो दर में 25 बेसिस पॉइंट (bps) की कटौती करने और तटस्थ मौद्रिक नीति रुख (Neutral Monetary Policy Stance) बनाए रखने का निर्णय लिया। यह निर्णय मुद्रास्फीति (Inflation) नियंत्रण, आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिरता को संतुलित रखने की RBI की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

RBI मौद्रिक नीति समिति 2025 की प्रमुख घोषणाएँ

1. रेपो दर में कटौती

  • रेपो दर को 25 आधार अंक (bps) घटाकर 6.25% कर दिया गया है।
  • इसका उद्देश्य उधारी को सस्ता बनाकर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना है।

2. अन्य प्रमुख दरों में बदलाव

रेपो दर में कटौती के बाद, RBI ने अन्य महत्वपूर्ण दरों को भी समायोजित किया:

दर नई दर (%)
स्थायी जमा सुविधा (SDF) दर 6.00%
सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) दर 6.50%
बैंक दर 6.50%

3. तटस्थ मौद्रिक नीति रुख

  • RBI ने तटस्थ रुख बनाए रखा है, जिससे भविष्य में किसी भी आर्थिक अस्थिरता के अनुसार नीतियों को समायोजित किया जा सके।

4. मुद्रास्फीति लक्ष्य और आर्थिक वृद्धि

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति को 4% (+/- 2%) के दायरे में बनाए रखने का लक्ष्य।
  • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि को संतुलित रूप से बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित।

आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति का आउटलुक

1. वैश्विक आर्थिक रुझान

वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि औसत से कम बनी हुई है, जिससे भारत पर भी प्रभाव पड़ सकता है। प्रमुख चुनौतियाँ:

  • अस्थिर वैश्विक मुद्रास्फीति
  • भू-राजनीतिक तनाव (Geopolitical Tensions)
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों में अनिश्चितता
  • अमेरिकी डॉलर की मजबूती से वित्तीय बाजारों में अस्थिरता

2. भारत की आर्थिक वृद्धि का पूर्वानुमान

  • वित्त वर्ष 2024-25 के लिए वास्तविक GDP वृद्धि दर 6.4% रहने का अनुमान।
  • वित्त वर्ष 2025-26 के लिए GDP वृद्धि दर 6.7% रहने की संभावना।

त्रैमासिक GDP वृद्धि दर पूर्वानुमान (2025-26)

तिमाही GDP वृद्धि दर (%)
Q1 (अप्रैल-जून 2025) 6.7%
Q2 (जुलाई-सितंबर 2025) 7.0%
Q3 (अक्टूबर-दिसंबर 2025) 6.5%
Q4 (जनवरी-मार्च 2026) 6.5%
संभावित आर्थिक जोखिम
  • भू-राजनीतिक अस्थिरता (जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य पूर्व तनाव)।
  • व्यापार नीतियों में संरक्षणवाद (टैरिफ और निर्यात प्रतिबंध)।
  • अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी कीमतों में उतार-चढ़ाव।
  • वित्तीय बाजारों में अस्थिरता।

3. मुद्रास्फीति रुझान

  • अक्टूबर 2024 में 6.2% के उच्चतम स्तर पर पहुँचने के बाद, नवंबर-दिसंबर 2024 में हेडलाइन मुद्रास्फीति में गिरावट आई।
  • इस गिरावट के कारण:
    • सब्जियों की कीमतों में कमी
    • कोर मुद्रास्फीति (Core Inflation) स्थिर
    • ईंधन क्षेत्र में मूल्य गिरावट

त्रैमासिक CPI मुद्रास्फीति पूर्वानुमान (2025-26)

तिमाही CPI मुद्रास्फीति (%)
Q1 (अप्रैल-जून 2025) 4.5%
Q2 (जुलाई-सितंबर 2025) 4.0%
Q3 (अक्टूबर-दिसंबर 2025) 3.8%
Q4 (जनवरी-मार्च 2026) 4.2%
  • सामान्य मानसून और अच्छी रबी फसल उत्पादन से खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की उम्मीद।
  • हालाँकि, वैश्विक अस्थिरता और ऊर्जा मूल्य अस्थिरता संभावित जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं।

मौद्रिक नीति निर्णयों का औचित्य

1. मुद्रास्फीति में कमी से दर कटौती का समर्थन

  • MPC ने मुद्रास्फीति में निरंतर गिरावट को देखते हुए नीतिगत दर कटौती की सिफारिश की।
  • खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट और पूर्व नीतिगत उपायों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया।

2. आर्थिक विकास को समर्थन आवश्यक

  • वर्तमान आर्थिक विकास दर पिछले वर्ष की तुलना में कम है।
  • रेपो दर में कटौती से:
    • ऋण लेना और निवेश करना आसान होगा
    • निजी खपत को बढ़ावा मिलेगा
    • अर्थव्यवस्था की रिकवरी तेज होगी

3. वैश्विक अनिश्चितताओं के प्रति सतर्कता

  • अस्थिर वित्तीय बाजार और व्यापारिक नीतियों में बदलाव के कारण RBI सतर्क रहेगा।
  • मौसमी घटनाओं का भी कृषि उत्पादन और मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ सकता है।

4. लचीलेपन के लिए तटस्थ नीति रुख

  • अर्थव्यवस्था की जरूरतों के अनुसार भविष्य में नीतिगत समायोजन की संभावना बनी रहेगी

आगामी MPC बैठकें

  • MPC बैठक के मिनट्स का प्रकाशन – 21 फरवरी 2025।
  • अगली MPC बैठक – 7 से 9 अप्रैल 2025।

RBI भविष्य की आर्थिक परिस्थितियों की बारीकी से निगरानी करेगा और आवश्यकतानुसार मौद्रिक नीति में समायोजन करेगा।

यदि आरबीआई रेपो दर घटा दे तो क्या लाभ होंगे?

जब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) रेपो दर को कम करता है, तो इसका अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, जिससे आम जनता को कई फायदे मिलते हैं। रेपो दर वह दर होती है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देता है। इस दर में कटौती से बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता हो जाता है, और वे इस लाभ को उपभोक्ताओं तक पहुँचा सकते हैं। यहां रेपो दर में कटौती से आम जनता को होने वाले मुख्य लाभ दिए गए हैं:

यदि RBI रेपो दर कम करता है तो क्या लाभ होंगे?

1. ऋण पर ब्याज दरों में कमी

  • होम लोन: रेपो दर में कटौती से होम लोन की EMI (समान मासिक किस्तें) कम हो जाती हैं, जिससे घर खरीदना अधिक किफायती हो जाता है।
  • कार लोन: कार लोन पर ब्याज दरें कम हो सकती हैं, जिससे वाहन खरीदना सस्ता हो जाता है।
  • पर्सनल लोन: शिक्षा, चिकित्सा खर्च या विवाह जैसी जरूरतों के लिए पर्सनल लोन लेना सस्ता हो जाता है।

2. बढ़ी हुई डिस्पोजेबल आय

  • कम EMI और कम ब्याज दरों के कारण लोगों के पास अधिक बचत होती है।
  • यह अतिरिक्त पैसा उपभोक्ता खर्च बढ़ाने, बचत करने या निवेश करने में मदद कर सकता है।

3. आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा

  • कम ब्याज दरों से व्यवसायों के लिए ऋण लेना सस्ता हो जाता है, जिससे वे विस्तार कर सकते हैं और रोजगार के नए अवसर पैदा कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता खर्च में वृद्धि से बाजार में मांग बढ़ती है, जिससे आर्थिक विकास को गति मिलती है।

4. व्यापारों के लिए सस्ता कर्ज

  • कम लागत पर ऋण मिलने से व्यवसाय नए प्रोजेक्ट शुरू कर सकते हैं, उत्पादन बढ़ा सकते हैं और अधिक लोगों को रोजगार दे सकते हैं।

5. उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं की वहन क्षमता में सुधार

  • रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन, इलेक्ट्रॉनिक्स और फर्नीचर जैसी उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं पर लिए गए लोन सस्ते हो जाते हैं।
  • इससे लोगों की जीवनशैली में सुधार होता है।

6. निवेश को प्रोत्साहन

  • कम ब्याज दरों के कारण लोग अचल संपत्ति, शेयर बाजार और अन्य परिसंपत्तियों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
  • यह दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता और संपत्ति निर्माण में सहायक होता है।

7. किसानों के लिए सस्ता कर्ज

  • कृषि ऋण पर ब्याज दरों में कमी से किसानों को कम लागत पर पूंजी मिलती है।
  • इससे वे बेहतर बीज, उन्नत उपकरण और सिंचाई सुविधाओं में निवेश कर सकते हैं, जिससे उनकी उत्पादकता और आय बढ़ती है।

8. लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) को बढ़ावा

  • SMEs कम ब्याज दर पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं, जिससे वे अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकते हैं।
  • इससे नए रोजगार सृजित होते हैं और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है।

9. शिक्षा ऋण की लागत में कमी

  • छात्रों और उनके परिवारों को शिक्षा ऋण पर कम ब्याज दरों का लाभ मिलता है।
  • इससे उच्च शिक्षा अधिक सुलभ और किफायती हो जाती है।

10. बचत पर प्रभाव

  • हालांकि कम ब्याज दरों से सावधि जमा (FD) और बचत खातों पर मिलने वाला रिटर्न कम हो सकता है, लेकिन इससे लोग अन्य निवेश विकल्पों जैसे म्यूचुअल फंड, शेयर बाजार या रियल एस्टेट में निवेश करने के लिए प्रेरित होते हैं।

11. महंगाई नियंत्रण में मदद

  • रेपो दर में कटौती से बाजार में धन आपूर्ति बढ़ती है, जिससे महंगाई को नियंत्रित किया जा सकता है और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें स्थिर रह सकती हैं।

12. उपभोक्ता विश्वास में वृद्धि

  • कम ब्याज दरें वित्तीय सुरक्षा की भावना को बढ़ाती हैं, जिससे लोग अधिक आत्मविश्वास से खर्च और निवेश करते हैं।

चुनौतियाँ और विचारणीय बिंदु

  • बैंक हमेशा पूरी तरह से रेपो दर कटौती का लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंचाते।
  • अत्यधिक तरलता से संपत्ति बाजार में अस्थिरता या महंगाई बढ़ सकती है।
  • इसका प्रभाव जनता तक पहुँचने में कुछ समय लग सकता है।

रेपो दर में कटौती से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है और आम जनता को कई प्रकार के लाभ मिलते हैं, जिससे देश की समग्र आर्थिक वृद्धि को सहायता मिलती है।

Cocoa Crisis: अध्ययन में 2050 तक पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में 50% भूमि हानि की चेतावनी दी गई

एक नए अध्ययन से पता चला है कि चल रहे जलवायु परिवर्तन का पश्चिम और मध्य अफ्रीका में कोको उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। यह क्षेत्र विश्व के 70% से अधिक कोको आपूर्ति के लिए जिम्मेदार है। आइवरी कोस्ट, घाना, नाइजीरिया और कैमरून में किए गए इस शोध के अनुसार, 2050 तक वर्तमान में उपयुक्त कोको उगाने वाले क्षेत्रों का लगभग 50% हिस्सा बढ़ते तापमान और बदलते वर्षा पैटर्न के कारण खेती के लिए अनुपयुक्त हो सकता है। निष्कर्षों से यह स्पष्ट होता है कि कोको उत्पादन को बनाए रखने और वनों की कटाई को रोकने के लिए अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता है।

मुख्य निष्कर्ष

अध्ययन क्षेत्र

  • अध्ययन चार प्रमुख कोको उत्पादक देशों—आइवरी कोस्ट, घाना, नाइजीरिया और कैमरून—में किया गया।

कोको पर निर्भरता

  • आइवरी कोस्ट और घाना वर्तमान में दुनिया के 60% से अधिक कोको का उत्पादन करते हैं।

शोध पद्धति

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन करने के लिए CASEJ मेकेनिस्टिक कोको क्रॉप मॉडल का उपयोग किया गया।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • तापमान और वर्षा में बदलाव के कारण कोको उत्पादन के लिए उपयुक्त क्षेत्र घट रहे हैं।
  • उत्तरी आइवरी कोस्ट और घाना में कोको की पैदावार में 12% तक की गिरावट की संभावना।
  • नाइजीरिया और कैमरून में क्रमशः 10% और 2% की पैदावार गिर सकती है।

कोको उत्पादन में बदलाव

  • उपयुक्त कोको क्षेत्र घाना और आइवरी कोस्ट से हटकर नाइजीरिया और कैमरून की ओर बढ़ सकते हैं।
  • कोको खेती के विस्तार के कारण कैमरून के जंगलों में वनों की कटाई का खतरा बढ़ सकता है।

चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ

  • बढ़े हुए CO₂ का कोको की पैदावार पर प्रभाव अभी भी अनिश्चित है।
  • जलवायु परिवर्तन से कोको के फूलने-फलने और कीटों के प्रकोप पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • कोको और अन्य फसलों पर प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए और शोध की आवश्यकता है।

कोको के बारे में जानकारी

  • कोको एक महत्वपूर्ण बागानी फसल है जिसका उपयोग चॉकलेट उत्पादन के लिए किया जाता है।
  • यह उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु की फसल है और दक्षिण अमेरिका के अमेज़न बेसिन का मूल निवासी है।
  • यह मुख्य रूप से भूमध्य रेखा के 20° उत्तर और दक्षिण अक्षांश के बीच उगाई जाती है।

आवश्यक जलवायु परिस्थितियाँ

  • समुद्र तल से 300 मीटर की ऊँचाई तक उगाई जा सकती है।
  • वार्षिक वर्षा: 1500-2000 मिमी आवश्यक।
  • तापमान: 15°-39°C के बीच फलती-फूलती है, आदर्श तापमान 25°C है।
  • मिट्टी: गहरी, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद करती है, विशेष रूप से चिकनी-दोमट और बलुई-दोमट, pH 6.5-7.0 के साथ।
  • छाया की आवश्यकता: कोको एक अधस्तरीय फसल है और इसे 50% फ़िल्टर्ड प्रकाश की आवश्यकता होती है।

मुख्य उत्पादक क्षेत्र

वैश्विक स्तर पर

  • विश्व के लगभग 70% कोको बीन्स चार पश्चिम अफ्रीकी देशों—आइवरी कोस्ट, घाना, नाइजीरिया और कैमरून—से आते हैं।

भारत में उत्पादन

  • भारत में कोको मुख्य रूप से कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में सुपारी और नारियल के साथ अंतरफसल के रूप में उगाया जाता है।
सारांश/स्थिर जानकारी विवरण
क्यों चर्चा में? कोको संकट: अध्ययन में 2050 तक पश्चिम और मध्य अफ्रीका में 50% भूमि हानि की चेतावनी
कारक कोको उत्पादन पर प्रभाव
प्रभावित देश आइवरी कोस्ट, घाना, नाइजीरिया, कैमरून
उत्पादकता में गिरावट आइवरी कोस्ट और घाना (-12%), नाइजीरिया (-10%), कैमरून (-2%)
जलवायु परिवर्तन प्रभाव वर्षा में कमी, तापमान वृद्धि, उपयुक्त क्षेत्रों का स्थानांतरण
अनुमानित बदलाव कोको उगाने वाले क्षेत्र पूर्व की ओर नाइजीरिया और कैमरून में स्थानांतरित हो सकते हैं
वनों की कटाई का खतरा कैमरून में कोको विस्तार से जंगलों को खतरा
शोध में कमियाँ CO₂ का पैदावार पर प्रभाव, कीट/बीमारियों में बदलाव, शमन रणनीतियाँ
जलवायु आवश्यकताएँ 15°-39°C तापमान, 1500-2000 मिमी वार्षिक वर्षा
मिट्टी की पसंद गहरी, अच्छी जल निकासी वाली चिकनी-दोमट और बलुई-दोमट मिट्टी (pH 6.5-7.0)
भारत में उत्पादन कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु

युगांडा में इबोला टीकाकरण का परीक्षण शुरू

युगांडा ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और वैश्विक साझेदारों के सहयोग से सूडान प्रजाति के इबोला वायरस के खिलाफ पहला नैदानिक ​​परीक्षण शुरू किया है। यह परीक्षण 30 जनवरी को प्रकोप की पुष्टि के केवल चार दिन बाद शुरू किया गया, जो आपातकालीन स्थिति में टीके के परीक्षण की अभूतपूर्व गति को दर्शाता है। यदि यह सफल होता है, तो यह टीका भविष्य में इबोला के प्रकोप को नियंत्रित करने और नियामकीय मंजूरी प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

मुख्य बिंदु

ऐतिहासिक परीक्षण

  • यह सूडान प्रजाति के इबोला वायरस के खिलाफ पहला नैदानिक परीक्षण है।
  • 30 जनवरी को प्रकोप की पुष्टि के मात्र चार दिन बाद इसे शुरू किया गया, जो बेहद तेज़ प्रतिक्रिया को दर्शाता है।
  • ज़ैरे इबोला वायरस के लिए पहले से लाइसेंस प्राप्त टीका मौजूद है, लेकिन सूडान प्रजाति के लिए अब तक कोई टीका उपलब्ध नहीं था।

समर्थन और सहयोगी संगठन

  • यह परीक्षण मेकरेरे यूनिवर्सिटी और युगांडा वायरस अनुसंधान संस्थान (UVRI) के नेतृत्व में किया जा रहा है।
  • WHO, CEPI, कनाडा का IDRC, यूरोपीय संघ का HERA और अफ्रीका CDC द्वारा समर्थित।
  • गैर-लाभकारी संगठन IAVI द्वारा टीका दान किया गया है।

प्रक्रिया और अपेक्षा

  • रिंग वैक्सीनेशन रणनीति अपनाई गई है, जिसमें पुष्टि किए गए मामलों के संपर्क में आए लोगों को टीका लगाया जाएगा।
  • कड़े नियामक और नैतिक मानकों का पालन किया जा रहा है।
  • परिणाम कुछ महीनों में मिलने की उम्मीद, जो भविष्य में इबोला के प्रकोप के प्रति प्रतिक्रिया रणनीति को प्रभावित कर सकता है।

इबोला वायरस: एक परिचय

खोज और इतिहास

  • खोज वर्ष: 1976, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में।
  • परिवार: ऑर्थोइबोलावायरस (पूर्व में इबोलावायरस)।
  • नाम की उत्पत्ति: इबोला नदी के नाम पर रखा गया, जो डीआरसी में पहले प्रकोप के निकट थी।
  • मुख्य मेजबान: मुख्य रूप से फ्रूट बैट (Pteropodidae परिवार), अन्य प्राइमेट और जंगली जानवर जैसे गोरिल्ला, चिम्पांजी, बंदर, वन मृग और साही।

संक्रमण कैसे फैलता है?

  • प्राथमिक स्रोत: संक्रमित चमगादड़ों के माध्यम से।
  • पशु से मानव संक्रमण: संक्रमित जानवरों (चमगादड़, प्राइमेट) के शारीरिक तरल पदार्थ के संपर्क में आने से।
  • मानव से मानव संक्रमण: संक्रमित व्यक्ति के रक्त, लार, मूत्र, पसीने, उल्टी, मल, या अन्य शारीरिक तरल पदार्थों के संपर्क में आने से फैलता है।

इबोला के लक्षण

  • इन्क्यूबेशन पीरियड: संक्रमण के 2 से 21 दिनों के भीतर लक्षण विकसित हो सकते हैं।
  • सामान्य लक्षण:
    • तेज बुखार
    • डायरिया
    • उल्टी
    • आंतरिक और बाहरी रक्तस्राव
    • अत्यधिक थकान
    • अंग विफलता
    • मृत्यु दर लगभग 50%

इबोला का उपचार

  • कोई निश्चित इलाज नहीं: अब तक इबोला का कोई प्रमाणित उपचार नहीं है।
  • प्रायोगिक उपचार:
    • ज़ैरे इबोला वायरस के लिए FDA द्वारा अनुमोदित दो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी उपचार: इनमाज़ेब (Inmazeb) और एबांगा (Ebanga)
    • हालांकि, ये उपचार सूडान प्रजाति पर पूरी तरह प्रभावी नहीं हैं।
  • सहायक देखभाल:
    • तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखना।
    • रक्त आधान (ब्लड ट्रांसफ्यूज़न) और प्लाज्मा थेरेपी द्वारा रक्तस्राव नियंत्रित करना।
  • रिकवरी कारक:
    • वायरस के संपर्क में आने की मात्रा।
    • समय पर उपचार की उपलब्धता।
    • रोगी की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और आयु।
विषय विवरण
क्यों चर्चा में? युगांडा ने ऐतिहासिक इबोला वैक्सीन परीक्षण शुरू किया
वैक्सीन का लक्ष्य सूडान प्रजाति का इबोला वायरस
परीक्षण स्थल युगांडा
नेतृत्व करने वाले संस्थान मेकरेरे यूनिवर्सिटी, युगांडा वायरस अनुसंधान संस्थान (UVRI)
सहयोगी संगठन WHO, CEPI, IDRC (कनाडा), EU HERA, अफ्रीका CDC
वैक्सीन प्रकार पुनः संयोजित वेसिकुलर स्टोमैटाइटिस वायरस (rVSV) वैक्सीन
वैक्सीन दाता IAVI (गैर-लाभकारी संगठन)
नैतिक मानक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नियामकों का पालन करता है
अपेक्षित समयरेखा कुछ महीनों में डेटा संग्रह
वैश्विक प्रभाव नियामकीय मंजूरी और भविष्य में प्रकोप नियंत्रण में मदद की संभावना
इबोला की खोज वर्ष 1976
वायरस प्रकार ऑर्थोइबोलावायरस (पूर्व में इबोलावायरस)
खोज का स्थान डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC)
वायरस के मेजबान फ्रूट बैट, प्राइमेट्स (गोरिल्ला, बंदर, चिम्पांजी), वन्यजीव (जैसे मृग)
संक्रमण का तरीका ज़ूनोटिक संक्रमण (जानवरों से मनुष्यों में शारीरिक तरल पदार्थ के माध्यम से) और मानव-से-मानव संक्रमण (शारीरिक तरल पदार्थ के संपर्क से)
लक्षण बुखार, डायरिया, उल्टी, रक्तस्राव, मृत्यु (औसत मृत्यु दर: 50%)
उपचार कोई ज्ञात इलाज नहीं; FDA द्वारा अनुमोदित मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (इनमाज़ेब, एबांगा) ज़ैरे इबोला स्ट्रेन के लिए; सहायक देखभाल (तरल पदार्थ, रक्त/प्लाज्मा)
इन्क्यूबेशन पीरियड 2 से 21 दिन
सुधार के कारक वायरस के संपर्क में आने की मात्रा, समय पर उपचार, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया, आयु
मृत्यु दर लगभग 50%
वर्तमान उपचार तरल संतुलन बनाए रखना, रक्त/प्लाज्मा चिकित्सा, प्रयोगात्मक उपचार

RBI MPC Meeting 2025: RBI ने घटाया ब्याज दर, 25 बेसिस पॉइंट की कटौती का ऐलान

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) वित्तीय वर्ष 2025 के लिए अपनी छठी और अंतिम द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा करने जा रहा है। नई आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक 5 से 7 फरवरी तक निर्धारित की गई थी। यह नई गवर्नर संजय मल्होत्रा के कार्यकाल की पहली आरबीआई नीति होगी और 1 फरवरी को प्रस्तुत केंद्रीय बजट 2025-26 के बाद पहली आरबीआई एमपीसी बैठक भी होगी।

आरबीआई एमपीसी बैठक 2025 की प्रमुख घोषणाएं

Policy Repo Rate 6.25%
Standing Deposit Facility Rate 6.00%
Marginal Standing Facility Rate 6.50%
Bank Rate 6.50%
Fixed Reverse Repo Rate 3.35%
Cash Reserve Ratio 4.00%
Statutory Liquidity Ratio 18.00%

आरबीआई एमपीसी बैठक 2025 – नवीनतम अपडेट

रेपो रेट कटौती: आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए रेपो दर को 25 बेसिस पॉइंट घटाकर 6.25% किया गया।

अन्य प्रमुख दरें:

  • एसडीएफ दर: 6.00%
  • एमएसएफ और बैंक दर: 6.50%

मौद्रिक नीति रुख: तटस्थ, जिससे आर्थिक अनिश्चितताओं के प्रति लचीलापन बना रहे।

2025-26 के लिए जीडीपी वृद्धि अनुमान: 6.7%, तिमाही अनुसार अनुमान:

  • Q1: 6.7%
  • Q2: 7.0%
  • Q3 और Q4: 6.5%

मुद्रास्फीति रुझान: खाद्य कीमतों में गिरावट के कारण प्रमुख मुद्रास्फीति नरम हुई, 2025-26 के लिए 4.2% रहने की संभावना।

2025-26 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति अनुमान:

  • Q1: 4.5%
  • Q2: 4.0%
  • Q3: 3.8%
  • Q4: 4.2%

विकास के प्रमुख कारक: निजी उपभोग में सुधार, सेवा क्षेत्र में तेजी और मजबूत रबी फसल की संभावनाएं।

आर्थिक जोखिम: भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार नीतियों की अनिश्चितता और वित्तीय बाजार में अस्थिरता।

अगली एमपीसी बैठक: 7-9 अप्रैल, 2025।
एमपीसी बैठक के मिनट जारी होने की तिथि: 21 फरवरी, 2025।

मुख्य मौद्रिक नीति शर्तें और उनकी परिभाषाएं

  1. नीतिगत रेपो दर
    रेपो दर (रीपरचेज रेट) वह ब्याज दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) सरकारी प्रतिभूतियों के बदले वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देता है। जब आरबीआई रेपो दर बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए उधारी महंगी हो जाती है, जिससे ऋण ब्याज दरें बढ़ती हैं। इसके विपरीत, यदि रेपो दर घटती है, तो उधारी सस्ती हो जाती है, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।
  2. स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) दर
    स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) वह ब्याज दर है जिस पर बैंक आरबीआई के पास बिना किसी संपार्श्विक (गिरवी) के अपनी अधिशेष नकदी जमा कर सकते हैं। 2018 में शुरू की गई यह सुविधा आरबीआई को बैंकिंग प्रणाली से अतिरिक्त तरलता को सोखने में मदद करती है, जिससे मुद्रास्फीति और मौद्रिक स्थिरता पर नियंत्रण रखा जाता है।
  3. मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) दर
    मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) दर बैंकों के लिए आपातकालीन उधारी दर होती है, जिससे उन्हें आरबीआई से अल्पकालिक धन प्राप्त करने की अनुमति मिलती है। जब बैंकों को नकदी की तंगी होती है, तो वे सरकारी प्रतिभूतियों को गिरवी रखकर इस दर पर रातोंरात ऋण प्राप्त कर सकते हैं। एमएसएफ दर आमतौर पर रेपो दर से अधिक होती है ताकि अत्यधिक उधारी को हतोत्साहित किया जा सके।
  4. बैंक दर
    बैंक दर वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई बिना किसी संपार्श्विक के वाणिज्यिक बैंकों को दीर्घकालिक ऋण प्रदान करता है। यह दर रेपो दर से अलग होती है और यह सीधे अर्थव्यवस्था में उधारी दरों को प्रभावित करती है। इसका उपयोग तरलता, मुद्रास्फीति और धन आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
  5. स्थिर रिवर्स रेपो दर
    स्थिर रिवर्स रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों से धन उधार लेता है ताकि बैंकिंग प्रणाली से अधिशेष नकदी को सोखा जा सके। यदि रिवर्स रेपो दर अधिक होती है, तो बैंक अपनी अधिशेष नकदी को आरबीआई के पास जमा करने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे मुद्रा प्रवाह घटता है और मुद्रास्फीति नियंत्रित होती है।
  6. नकद आरक्षित अनुपात (CRR)
    नकद आरक्षित अनुपात (CRR) वह प्रतिशत है, जो बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक भाग आरबीआई के पास नकद के रूप में रखना होता है। बैंक इस राशि का उपयोग ऋण देने या निवेश करने के लिए नहीं कर सकते। उच्च सीआरआर से बैंकिंग प्रणाली में तरलता घटती है, जिससे मुद्रास्फीति नियंत्रित होती है, जबकि निम्न सीआरआर से तरलता बढ़ती है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  7. वैधानिक तरलता अनुपात (SLR)
    वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) वह न्यूनतम प्रतिशत है, जिसे बैंकों को अपनी कुल शुद्ध मांग और समय देनदारियों (NDTL) के रूप में बनाए रखना आवश्यक होता है। इसे नकदी, सोना या सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में रखा जा सकता है। यह बैंक की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने और ऋण विस्तार को नियंत्रित करने में मदद करता है।

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