भारत का रक्षा उत्पादन लक्ष्य 2029 तक 3 लाख करोड़ तक पहुंचना

भारत रक्षा उत्पादन क्षमताओं को तेजी से सशक्त बना रहा है, जिसकी अगुवाई रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कर रहे हैं। रक्षा सम्मेलन 2025 – “Force of the Future” में बोलते हुए उन्होंने बताया कि भारत का लक्ष्य 2029 तक ₹3 लाख करोड़ के रक्षा उत्पादन तक पहुंचना है, जबकि 2025 में यह आंकड़ा ₹1.60 लाख करोड़ रहने की संभावना है। यह महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य आयात पर निर्भरता कम करना, स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा देना और रक्षा निर्यात को सशक्त बनाना है। बदलते युद्ध के स्वरूप, नई सुरक्षा चुनौतियों और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में लचीलापन भारत के भविष्य-उन्मुख रक्षा रोडमैप को आकार दे रहे हैं।

मुख्य बिंदु 

उत्पादन और निर्यात लक्ष्य

  • वर्ष 2025 में रक्षा उत्पादन ₹1.60 लाख करोड़ से अधिक रहने की संभावना।

  • 2029 तक रक्षा उत्पादन को ₹3 लाख करोड़ तक पहुँचाने का लक्ष्य।

  • रक्षा निर्यात लक्ष्य:

    • 2025: ₹30,000 करोड़

    • 2029: ₹50,000 करोड़

रणनीतिक दृष्टिकोण

  • रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना भारत का प्रमुख उद्देश्य।

  • आयात पर निर्भरता कम करने और एक मजबूत घरेलू औद्योगिक तंत्र बनाने का लक्ष्य।

  • रक्षा निर्माण को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में मजबूती प्रदान करने वाला क्षेत्र माना जा रहा है।

नवाचार और आधुनिकीकरण

  • ‘मेक इन इंडिया’ पहल के माध्यम से स्वदेशीकरण को बढ़ावा।

  • नए युद्धक्षेत्रों की पहचान की गई है: साइबर, अंतरिक्ष और नैरेटिव वॉरफेयर।

  • समग्र क्षमता निर्माण और निरंतर सुधारों पर विशेष ध्यान।

संस्थागत सुधार

  • 200 वर्षों से अधिक पुराने ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों का निगमीकरण कर उन्हें लाभकारी इकाइयों में बदला गया।

  • सरकार ने इसे 21वीं सदी का ऐतिहासिक सुधार करार दिया।

बजटीय प्राथमिकता

  • रक्षा खरीद बजट का 75% हिस्सा अब घरेलू कंपनियों के लिए आरक्षित किया गया है।

सारांश/स्थैतिक विवरण
क्यों चर्चा में? 2029 तक भारत का रक्षा उत्पादन लक्ष्य ₹3 लाख करोड़
वर्तमान रक्षा उत्पादन (2025) ₹1.60 लाख करोड़
लक्ष्य रक्षा उत्पादन (2029) ₹3 लाख करोड़
रक्षा निर्यात लक्ष्य (2025) ₹30,000 करोड़
रक्षा निर्यात लक्ष्य (2029) ₹50,000 करोड़
स्वदेशी वस्तुएं (सशस्त्र बलों हेतु) 509 वस्तुएं
स्वदेशी वस्तुएं (रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा) 5,012 वस्तुएं
घरेलू कंपनियों के लिए आरक्षित रक्षा बजट 75%

भारत 2026 तक सबसे तेजी से बढ़ने वाला प्रमुख विमानन बाजार बनने के लिए तैयार

भारतीय विमानन क्षेत्र 2026 तक दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला बड़ा विमानन बाजार बनने की ओर अग्रसर है, ऐसा एयरपोर्ट्स काउंसिल इंटरनेशनल (ACI) का कहना है। हालांकि कुल विमानन बाजार के आकार में चीन अभी भी काफी आगे है, लेकिन भारत की तेज़ी से होती वृद्धि का कारण है देश की विशाल आबादी में बढ़ती हवाई यात्रा की मांग, जहाँ प्रति व्यक्ति हवाई यात्रा अभी भी बहुत कम है। बढ़ते बुनियादी ढांचे का विकास, नीतिगत सुधार और मध्यम वर्ग की बढ़ती आकांक्षाएं इस वृद्धि को और गति दे रही हैं। अगले तीन दशकों में, भारत वैश्विक स्तर पर तीसरे सबसे बड़े विमानन बाजार के रूप में बना रहेगा, लेकिन विकास दर के मामले में यह शीर्ष पर रहेगा।

मुख्य बिंदु 

2026 तक भारत की वृद्धि चीन को पीछे छोड़ेगी

  • 2026 में हवाई यात्री वृद्धि दर: भारत – 10.5%, चीन – 8.9%

  • 2027 में अनुमानित वृद्धि: भारत – 10.3%, चीन – 7.2%

  • भारत की CAGR (2023–2027): 9.5%, जबकि चीन की 8.8%

2025 का अनुमान

  • चीन: 12% वृद्धि

  • भारत: 10.1% वृद्धि

भारत की तेज़ वृद्धि के कारण

  • प्रति व्यक्ति हवाई यात्रा दर कम (2023 में: भारत – 0.1, चीन – 0.5) – इसमें अपार संभावनाएं

  • उभरता मध्यम वर्ग, बेहतर विमानन आधारभूत संरचना, और विस्तारित एयरलाइन नेटवर्क

  • नीतिगत समर्थनउड़ान (UDAN) और गति शक्ति जैसी योजनाओं से प्रोत्साहन

दीर्घकालिक दृष्टिकोण (2053 तक)

  • भारत की दीर्घकालिक CAGR: 5.5% – सबसे तेज़

  • चीन की दीर्घकालिक CAGR: 3.8%

अन्य तेज़ी से बढ़ते विमानन बाज़ार

  • वियतनाम – 4.6%, फिलीपींस – 4.5%, सऊदी अरब – 4.5%

  • थाईलैंड – 4.3%, क़तर – 4.2%, मिस्र – 4%, UAE – 3.8%

प्रति व्यक्ति हवाई यात्रा तुलना (2023 में)

  • अमेरिका: 2.1 ट्रिप्स

  • चीन: 0.5 ट्रिप्स

  • भारत: 0.1 ट्रिप्स

  • ACI का अनुमान: भारत 2043 तक 0.4 ट्रिप्स प्रति व्यक्ति तक पहुंच सकता है

भारत की वैश्विक स्थिति – 2053 तक

  • दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार (चीन और अमेरिका के बाद)

  • लेकिन सबसे तेज़ वृद्धि दर वाला देश

ACI की राय

भारत में हवाई यात्रा की मांग तेज़ी से बढ़ रही है क्योंकि बाज़ार अभी विकास के चरण में है। नए हवाई अड्डों, बेहतर कनेक्टिविटी, और नीतिगत सुधारों के चलते आपूर्ति पक्ष भी सशक्त हो रहा है।

सारांश / स्थैतिक विवरण
क्यों चर्चा में है? भारत 2026 तक सबसे तेज़ी से बढ़ता प्रमुख विमानन बाजार बनने को तैयार
भारत की यात्री वृद्धि (2026) अनुमानित 10.5%, जबकि चीन की 8.9%
भारत की CAGR (2023–2027) 9.5%, जबकि चीन की 8.8%
2027 का अनुमान भारत: 10.3%, चीन: 7.2%
2025 की वृद्धि दर चीन: 12%, भारत: 10.1%
दीर्घकालिक CAGR (2053 तक) भारत: 5.5%, चीन: 3.8%
वैश्विक रैंकिंग (2053) भारत तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार बना रहेगा
प्रति व्यक्ति हवाई यात्रा (2023) भारत: 0.1, चीन: 0.5, अमेरिका: 2.1
अनुमानित प्रति व्यक्ति यात्रा (2043) भारत 0.4 ट्रिप्स प्रति व्यक्ति तक पहुंच सकता है
तेज़ विकास के कारण हवाई यात्रा की कम पहुंच, उभरता मध्यम वर्ग, आधारभूत ढांचे का विस्तार
अन्य तेज़ी से बढ़ते बाजार वियतनाम (4.6%), फिलीपींस (4.5%), सऊदी अरब (4.5%), थाईलैंड (4.3%)

बाल तस्करी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 15 अप्रैल 2025 को दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले में माता-पिता को सख्त चेतावनी दी है, जिससे बच्चों की तस्करी के बढ़ते खतरे के प्रति अत्यधिक सतर्क रहने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि तस्करी के गिरोह बच्चों को यौन शोषण, बंधुआ मजदूरी, बाल विवाह और अवैध गोद लेने जैसे अपराधों के लिए शिकार बना रहे हैं। अदालत ने विशेष रूप से यह चिंता व्यक्त की कि अब ये आपराधिक नेटवर्क तकनीक का दुरुपयोग करके अपने जाल फैला रहे हैं, जबकि सरकारी और संस्थागत उपाय अभी भी इन चुनौतियों से निपटने में अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। यह निर्णय बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।

निर्णय के मुख्य बिंदु 

माता-पिता को सतर्क रहने की सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता को चेताया कि बच्चों की तस्करी के खतरे को हल्के में न लें, क्योंकि एक क्षण की लापरवाही भी गंभीर परिणाम ला सकती है।

अपराधों का स्वरूप
बच्चों की तस्करी यौन शोषण, बंधुआ मजदूरी, भीख मंगवाने, छोटे-मोटे अपराधों, बाल विवाह और अवैध गोद लेने (अंतरदेशीय गोद लेने के नाम पर) जैसे कार्यों के लिए की जाती है।

तकनीक का दुरुपयोग
संगठित तस्करी गिरोह डिजिटल तकनीक के माध्यम से पीड़ित बच्चों की जानकारी, लोकेशन और धन का लेन-देन साझा करते हैं।

लापता बच्चों का दर्द
न्यायालय ने कहा कि बच्चों की तस्करी से होने वाला दुख मृत्यु से भी अधिक स्थायी होता है, क्योंकि इसमें कोई “क्लोजर” नहीं होता।

अस्पतालों की जिम्मेदारी
यदि नवजात बच्चे अस्पताल से लापता होते हैं, तो संबंधित अस्पतालों के लाइसेंस रद्द किए जा सकते हैं और उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही हो सकती है।
नवजात शिशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना अस्पतालों की जिम्मेदारी है।

किशोर न्याय कानून की खामियाँ
अपराधी किशोर न्याय अधिनियम की सुरक्षा का दुरुपयोग करके बच्चों को आपराधिक कार्यों में शामिल करते हैं, क्योंकि सजा कम होती है।

अवैध गोद लेने के रैकेट
गोद लेने की लंबी प्रतीक्षा सूची के कारण अपराधी गिरोह बच्चों की तस्करी कर अवैध गोद लेने को बढ़ावा दे रहे हैं।

जमानत रद्द और मुकदमे के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दी गई 13 आरोपियों की जमानत रद्द की।
मुकदमा 6 महीनों में पूरा करने का आदेश दिया।
फरार आरोपियों को दो महीनों में गिरफ्तार करने का निर्देश दिया।

विशेष लोक अभियोजक एवं गवाह सुरक्षा
तीन विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति का आदेश।
पीड़ित परिवारों के लिए गवाह सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश।

राज्य सरकार को फटकार
उत्तर प्रदेश सरकार को हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध अपील न करने पर फटकार लगाई।

उच्च न्यायालयों को निर्देश
सभी हाईकोर्ट को आदेश दिया गया है कि लंबित बाल तस्करी मामलों का निपटारा 6 महीने के भीतर करें।

आदेश की अवहेलना पर परिणाम
अगर कोई अधिकारी आदेशों की अवहेलना करता है या लापरवाही बरतता है, तो उस पर अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।

विषय विवरण
समाचार में क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी पर दिशानिर्देश जारी किए
सुप्रीम कोर्ट पीठ न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन
माता-पिता के लिए मुख्य निर्देश अत्यधिक सतर्क रहें; बाल तस्करी संगठित नेटवर्क के माध्यम से होती है
शामिल अपराध यौन शोषण, बाल मजदूरी, भीख मंगवाना, गोद लेने में धोखाधड़ी, बाल विवाह
तस्करों द्वारा तकनीक का उपयोग फोटो, लोकेशन और पैसों का लेन-देन साझा करना
अस्पतालों की जवाबदेही नवजात शिशु लापता होने पर लाइसेंस रद्द/कानूनी कार्रवाई
गोद लेने की खामियां लंबी प्रतीक्षा अवधि के कारण अवैध गोद लेने को बढ़ावा मिलता है
किशोर न्याय अधिनियम की खामी अपराधी गिरोह बच्चों को कम सजा के चलते आपराधिक कार्यों में शामिल करते हैं
जमानत स्थिति 13 आरोपियों की जमानत रद्द
मुकदमा समयसीमा 6 महीनों में मुकदमा पूरा करना अनिवार्य
पुलिस समयसीमा फरार आरोपियों को 2 महीनों में गिरफ्तार करना

मल्टी-कोर फाइबर पर भारत का पहला क्वांटम कुंजी वितरण (क्यूकेडी)

सी-डॉट ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में स्टरलाइट टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (एसटीएल) के साथ मिलकर 4-कोर मल्टी-कोर फाइबर (एमसीएफ) पर भारत के पहले क्यूकेडी ट्रांसमिशन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। यह क्वांटम-सुरक्षित संचार नेटवर्क की दिशा में देश की महत्‍वपूर्ण उपलब्धि है। मल्टी-कोर फाइबर (एमसीएफ) तकनीक एक ही फाइबर के भीतर कई कोर में डेटा ट्रांसमिशन को सक्षम करके शक्तिशाली समाधान प्रदान करती है। इससे भौतिक स्थान और बुनियादी ढांचे की लागत में काफी बचत होती है। क्‍यूकेडी के लिए आमतौर पर क्वांटम चैनल के लिए एक समर्पित डार्क फाइबर की आवश्यकता होती है। इसके संदर्भ में – एमसीएफ एक महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है: यह एकल फाइबर के भीतर अलग-अलग कोर में क्वांटम और पारम्‍परिक संकेतों के भौतिक पृथक्करण को सक्षम बनाता है। यह क्वांटम सिग्नल संचार से समझौता किए बिना एक ही फाइबर पर क्‍यूकेडी और उच्च क्षमता वाले डेटा ट्रैफ़िक के एक साथ प्रसारण की अनुमति देता है जिससे फाइबर की लागत बचती है।

प्रमुख बिंदु

भारत में पहली बार:

4-कोर मल्टी-कोर फाइबर (MCF) पर QKD का सफल प्रदर्शन — यह भारत में अपनी तरह की पहली उपलब्धि है।

साझेदार:

यह एक संयुक्त पहल है:

  • सी-डॉट (C-DOT) — भारत का दूरसंचार अनुसंधान केंद्र, संचार मंत्रालय (DoT) के तहत

  • स्टरलाइट टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (Sterlite Technologies Ltd.) — वैश्विक ऑप्टिकल नेटवर्किंग में अग्रणी

दूरी:

100 किलोमीटर से अधिक की दूरी पर QKD ट्रांसमिशन का परीक्षण और सफलता से संचालन किया गया।

कोर उपयोग:

  • एक कोर: केवल QKD (क्वांटम सिग्नल) के लिए समर्पित

  • बाकी तीन कोर: उच्च गति वाले पारंपरिक (classical) डेटा ट्रैफिक के लिए

MCF (मल्टी-कोर फाइबर) का महत्व:

  • क्वांटम और पारंपरिक सिग्नलों के बीच भौतिक पृथक्करण की सुविधा देता है

  • बिना हस्तक्षेप के एक साथ संचार संभव बनाता है

  • इन्फ्रास्ट्रक्चर और फाइबर तैनाती की लागत कम करता है

अन्य जानकारी:

  • तकनीकी अनुमोदन: C-DOT के QKD सिस्टम को टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग सेंटर (TEC) से मंजूरी प्राप्त

  • सुरक्षा और दक्षता: यह प्रदर्शन साबित करता है कि क्वांटम-सुरक्षित संचार पारंपरिक डेटा ट्रैफिक के साथ एक ही ऑप्टिकल फाइबर पर चल सकता है

  • सार्वजनिक-निजी सहयोग: यह सफलता भारत की डिजिटल वृद्धि में सार्वजनिक अनुसंधान एवं निजी उद्योग की साझेदारी की ताकत को दर्शाती है

शामिल संगठन:

C-DOT (सी-डॉट)

  • दूरसंचार विभाग (DoT) के अधीन भारत का प्रमुख अनुसंधान एवं विकास केंद्र

  • स्वदेशी दूरसंचार तकनीक पर केंद्रित

  • QKD सिस्टम विकसित किए जिन्हें TEC से अनुमोदन प्राप्त है

स्टरलाइट टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (STL)

  • ऑप्टिकल फाइबर, कनेक्टिविटी और डिजिटल नेटवर्किंग में वैश्विक अग्रणी

  • देश में ही निर्मित मल्टी-कोर फाइबर विकसित किया

  • अल्ट्रा-हाई डेटा क्षमता के लिए स्पेस डिवीजन मल्टीप्लेक्सिंग (SDM) तकनीक का उपयोग

संतोष कुमार इंडसइंड बैंक के डिप्टी सीएफओ नियुक्त

वित्तीय जांच के बीच एक महत्वपूर्ण नेतृत्व परिवर्तन में, इंडसइंड बैंक ने संतोष कुमार को अपना उप मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) नियुक्त किया है। यह कदम डिप्टी सीईओ अरुण खुराना के कार्यवाहक सीएफओ के रूप में कार्यकाल समाप्त होने के बाद उठाया गया है। माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में बढ़ते खराब ऋणों और इसके डेरिवेटिव लेनदेन में लेखांकन विसंगतियों के कारण बैंक को बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे काफी वित्तीय प्रभाव और नियामक जांच हो रही है।

मुख्य बिंदु 

नेतृत्व में बदलाव

  • नई नियुक्ति: संतोष कुमार को इंडसइंड बैंक का डिप्टी सीएफओ (Deputy CFO) नियुक्त किया गया।

  • प्रभावी तिथि: 18 अप्रैल 2025 से लागू।

  • कारण: अरुण खुराना का कार्यकारी CFO का कार्यकाल समाप्त होने के बाद वित्त और लेखा विभाग की जिम्मेदारी संभालना।

  • लंबित स्थिति: पूर्णकालिक CFO की नियुक्ति अभी बाकी है।

बैंक प्रोफाइल

  • इंडसइंड बैंक: भारत का 5वां सबसे बड़ा निजी बैंक, संपत्ति के आधार पर।

  • प्रमुख क्षेत्र: माइक्रोफाइनेंस, कॉरपोरेट बैंकिंग और रिटेल लोन में सशक्त उपस्थिति।

वित्तीय अनियमितताएं

  • लेखांकन अंतर: मुद्रा डेरिवेटिव (Currency Derivatives) की बुकिंग में गड़बड़ी, जो कम से कम छह वर्षों से चली आ रही थी

अनुमानित वित्तीय प्रभाव

  • प्रारंभिक अनुमान: ₹1,600 करोड़।

  • PwC का अनुमान: ₹1,979 करोड़ (लगभग $175 मिलियन)।

सारांश / स्थिर जानकारी विवरण
समाचार में क्यों? संतोष कुमार की इंडसइंड बैंक के डिप्टी CFO के रूप में नियुक्ति
नया डिप्टी CFO संतोष कुमार
पूर्व CFO (कार्यकारी) अरुण खुराना (डिप्टी CEO)
बैंक रैंक भारत का 5वां सबसे बड़ा निजी क्षेत्र का बैंक
शेयर मूल्य 10 मार्च 2025 से अब तक 15% की गिरावट
माइक्रोफाइनेंस प्रभाव बढ़ते खराब ऋणों (Bad Loans) से मुनाफे में गिरावट

विश्व धरोहर दिवस 2025: तिथि, थीम और महत्व

विश्व धरोहर दिवस, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल दिवस (International Day for Monuments and Sites) के रूप में भी जाना जाता है, प्रत्येक वर्ष 18 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य विश्वभर की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण और सुरक्षा के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। यह दिन सतत पर्यटन, समुदाय की भागीदारी, और आने वाली पीढ़ियों के लिए ऐतिहासिक धरोहरों को सुरक्षित रखने को प्रोत्साहित करता है। वर्ष 2025 में इस दिवस की थीम आपदा तैयारी और संघर्षों में सहनशीलता पर केंद्रित है, ताकि संकटों के समय में धरोहर स्थलों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।

मुख्य बिंदु – विश्व धरोहर दिवस (World Heritage Day)

दिवस का नाम:
विश्व धरोहर दिवस / अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल दिवस

तिथि:
हर वर्ष 18 अप्रैल

आयोजक संस्था:
अंतरराष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद (ICOMOS)

प्रस्तावित वर्ष:
1982 (ICOMOS द्वारा)

मान्यता:
यूनेस्को द्वारा 1983 में

2025 की थीम:
“आपदाओं और संघर्षों से खतरे में धरोहर: तैयारी और ICOMOS की 60 वर्षों की सीख”

उद्देश्य

  • ऐतिहासिक स्मारकों और धरोहर स्थलों के संरक्षण के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाना

  • सतत पर्यटन को प्रोत्साहित करना

  • स्थानीय समुदायों को संरक्षण में शामिल करना

भारत में महत्व

विश्व धरोहर स्थलों की संख्या (UNESCO सूची में): 43

  • सांस्कृतिक (Cultural): 35

  • प्राकृतिक (Natural): 7

  • स्थान: भारत विश्व में 6वें स्थान पर है

पहले शामिल स्थल (1983):

  • अजंता गुफाएं

  • एलोरा गुफाएं

  • आगरा किला

  • ताज महल

हालिया जोड़ (2023–2024):

  • 2023: शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल), होयसलों के पवित्र परिसरों का समूह (कर्नाटक)

  • 2024: अहोम वंश के मोइडम (असम)

भारत के प्रमुख विश्व धरोहर स्थल:

  • ताज महल / उत्तर प्रदेश

  • अजंता और एलोरा गुफाएं / महाराष्ट्र

  • काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान / असम

  • खजुराहो स्मारक समूह / मध्य प्रदेश

  • सूर्य मंदिर, कोणार्क / ओडिशा

  • धोलावीरा / गुजरात

  • अहमदाबाद का धरोहर शहर

  • महाबलीपुरम स्मारक समूह / तमिलनाडु

  • हम्पी / कर्नाटक

  • वेस्टर्न घाट / पश्चिमी भारत (प्राकृतिक – 2012)

महत्व (पर्यटन व सभ्यता के दृष्टिकोण से):

  • सांस्कृतिक और संरक्षण आधारित अर्थपूर्ण पर्यटन को बढ़ावा

  • वैश्विक स्मृति के संरक्षण में मदद

  • जलवायु परिवर्तन, युद्ध, शहरीकरण जैसे आधुनिक खतरों का समाधान

  • ऐतिहासिक, स्थापत्य और पारिस्थितिक दृष्टि से शिक्षा

  • समुदाय और युवाओं की भागीदारी से संरक्षण को बल

वैश्विक परिप्रेक्ष्य

यूनेस्को का मिशन:
धरोहरों के माध्यम से शांति और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देना

विश्व धरोहर सूची में:
1,100+ स्थल, 167 देशों में

वैश्विक चुनौतियां:

  • युद्ध और संघर्ष (जैसे – सीरिया, यमन)

  • प्राकृतिक आपदाएं (भूकंप, बाढ़)

  • शहरीकरण और जलवायु क्षरण

यह दिन हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ने वाली धरोहरों को सहेजने की दिशा में वैश्विक और स्थानीय प्रयासों को याद करने और आगे बढ़ाने का सशक्त माध्यम है।

चीन द्वारा दुर्लभ मृदा निर्यात पर प्रतिबंध

चीन ने सात दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (Rare Earth Elements – REEs) के निर्यात पर नए प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे पहले से ही अस्थिर वैश्विक व्यापार माहौल में तनाव और बढ़ गया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया जब अमेरिका ने अपने प्रमुख व्यापारिक भागीदारों पर नए शुल्क लगाए हैं।चीन लंबे समय से दुर्लभ पृथ्वी खनन और परिशोधन में वैश्विक स्तर पर अग्रणी रहा है, और ये तत्व इलेक्ट्रॉनिक्स, स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियों और सैन्य तकनीकों के निर्माण में बेहद आवश्यक हैं। इन प्रतिबंधों के चलते वैश्विक उद्योगों पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। इससे यह स्पष्ट होता है कि दुनिया के विभिन्न देशों को अब अपने आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने और चीनी निर्यात पर निर्भरता कम करने की दिशा में तेजी से काम करने की जरूरत है।

मुख्य बिंदु

प्रतिबंधित 7 मुख्य REEs:

  1. सैमेरियम (Sm)

  2. गैडोलिनियम (Gd)

  3. टर्बियम (Tb)

  4. डिस्प्रोसियम (Dy)

  5. ल्यूटेथियम (Lu)

  6. स्कैन्डियम (Sc)

  7. इट्रियम (Y)

प्रतिबंध का कारण:

  • राष्ट्रीय सुरक्षा

  • अंतरराष्ट्रीय दायित्व

  • अप्रसार (non-proliferation) से जुड़ी चिंताएँ

क्या होते हैं REEs (Rare Earth Elements)?

  • 17 धात्विक तत्वों का समूह जिनके रासायनिक गुण एक जैसे होते हैं और इनका रंग चांदी जैसा होता है।

  • इसमें 15 लैंथेनाइड्स, स्कैन्डियम और इट्रियम शामिल होते हैं।

उदाहरण:

  • नियोडिमियम (Nd), सैमेरियम (Sm), गैडोलिनियम (Gd), डिस्प्रोसियम (Dy), इट्रियम (Y), टर्बियम (Tb), ल्यूटेथियम (Lu) आदि।

गुणधर्म:

  • उच्च चुंबकीय और ऑप्टिकल गुण

  • उपयोग:

    • इलेक्ट्रिक वाहनों और पवन टर्बाइनों के मैग्नेट

    • डिजिटल डिस्प्ले, रक्षा प्रणालियाँ, स्मार्टफोन, लेजर आदि

REEs क्यों महत्वपूर्ण हैं?

प्रमुख उपयोग:

  • रक्षा तकनीक: जेट, मिसाइल, रडार

  • हरित ऊर्जा: EVs, सौर पैनल, पवन टरबाइन

  • उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स: मोबाइल, लैपटॉप

  • फ़ॉस्फर, चमकदार पदार्थ, मैग्नेट और बैटरी मिश्रधातुओं में उपयोग

चीन की भूमिका:

  • वैश्विक REE आपूर्ति का 85–95% हिस्सा अकेले चीन से

  • सिर्फ खनन नहीं, परिशोधन (refining) और प्रसंस्करण (processing) में भी अग्रणी

  • प्रमुख भंडार: जियांग्शी, गुआंगडोंग, हुबेई, सिचुआन, इनर मंगोलिया

  • 1990 के दशक से चीन इन्हें “रणनीतिक खनिज” घोषित कर चुका है।

पिछले कदम:

  • 2010: जापान से विवाद के दौरान निर्यात रोक दिया गया

  • 2022: अमेरिका से ट्रेड वॉर के दौरान निर्यात रोकने की धमकी

वैश्विक प्रभाव:

  • कीमतों में वृद्धि:

    • जैसे, डिस्प्रोसियम की कीमत $230 से $300 प्रति किलो तक जा सकती है

  • आपूर्ति श्रृंखला में बाधा:

    • ऑफशोर विंड टर्बाइन

    • इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन

    • एयरोस्पेस और तकनीकी उद्योग

  • कुछ देशों के पास भंडारण है, जिससे अल्पकालिक राहत मिल सकती है

  • लेकिन दीर्घकालिक निर्भरता अब भी अधिक बनी हुई है

गुजरात के सूरत में कैप-एंड-ट्रेड योजना से प्रदूषण में 30% की कमी आई

एक नवीन और प्रभावशाली अध्ययन, जो The Quarterly Journal of Economics के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुआ है, ने यह खुलासा किया है कि सूरत में लागू किया गया कणीय पदार्थ (Particulate Matter) उत्सर्जन के लिए कैप-एंड-ट्रेड कार्यक्रम पर्यावरणीय और आर्थिक दोनों ही दृष्टिकोणों से अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुआ है। यह योजना, जो गुजरात के औद्योगिक शहर सूरत में शुरू की गई थी, विश्व की पहली ऐसी उत्सर्जन व्यापार योजना (Emissions Trading Scheme – ETS) है जो कणीय प्रदूषण पर केंद्रित है, और भारत की भी पहली प्रदूषण व्यापार प्रणाली है। इस पर रैंडमाइज़्ड कंट्रोल्ड ट्रायल (RCT) के आधार पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि इस योजना से प्रदूषण के स्तर में महत्वपूर्ण कमी आई है, नियमों का पालन बेहतर हुआ है और प्रदूषण नियंत्रण की लागत में भी गिरावट आई है। यह अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है कि भारत जैसे सीमित शासन संसाधनों वाले क्षेत्रों में भी बाज़ार आधारित समाधान सफलतापूर्वक लागू किए जा सकते हैं।

मुख्य बिंदु 

कार्यक्रम का परिचय

  • स्थान: सूरत, गुजरात – एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र

  • प्रारंभकर्ता: गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (GPCB) और एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो

  • प्रारंभ वर्ष: सितंबर 2019

  • पहला प्रयास: कणीय प्रदूषण (Particulate Matter – PM) के लिए विश्व का पहला व्यापार आधारित उत्सर्जन नियंत्रण कार्यक्रम और भारत की पहली प्रदूषण व्यापार प्रणाली

कैसे काम करता है कैप-एंड-ट्रेड तंत्र

  • संयंत्रों में सतत उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (CEMS) लगाई गई है, जो वास्तविक समय में उत्सर्जन डेटा देती है

  • सभी 318 संयंत्रों के लिए कुल उत्सर्जन सीमा (cap) तय की गई

  • संयंत्रों को एक तय मात्रा में उत्सर्जन की अनुमति (permits) दी जाती है –

    • 80% परमिट मुफ्त में

    • 20% साप्ताहिक नीलामी के ज़रिए

  • नियम उल्लंघन पर वित्तीय दंड

  • प्रारंभिक उत्सर्जन सीमा: 280 टन/माह → बाद में घटाकर 170 टन/माह

अध्ययन विवरण

  • समय अवधि: सितंबर 2019 – अप्रैल 2021 (COVID लॉकडाउन सहित)

  • शोधकर्ता:

    • माइकल ग्रीनस्टोन (यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो)

    • रोहिणी पांडे व निकोलस रयान (येल यूनिवर्सिटी)

    • अनंत सुधर्शन (यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरिक)

  • पद्धति: रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल (RCT) –

    • 317 संयंत्रों में से

      • 162 संयंत्र – ETS समूह

      • 155 संयंत्र – नियंत्रण समूह (पारंपरिक नियमों पर आधारित)

मुख्य निष्कर्ष

  • उत्सर्जन में कमी: ETS संयंत्रों में 20–30% की कमी

  • अनुपालन दर:

    • ETS समूह – 99%

    • नियंत्रण समूह – 66%

  • लागत प्रभावशीलता: ETS संयंत्रों की प्रदूषण नियंत्रण लागत 11% कम

  • पर्यावरणीय कानूनों का बेहतर पालन

  • लागत-लाभ अनुपात: लाभ, लागत से कम से कम 25 गुना अधिक

महत्व

  • यह योजना कम प्रशासनिक क्षमता वाले देशों के लिए एक मॉडल उदाहरण बनकर उभरी

  • पारंपरिक नियमों की तुलना में बाज़ार-आधारित प्रणाली अधिक प्रभावी सिद्ध हुई

  • यह मॉडल दूसरे शहरों व देशों में भी लागू किया जा सकता है जहाँ वायु प्रदूषण एक गंभीर चुनौती है

भारत-उज्बेकिस्तान संयुक्त सैन्य अभ्यास डस्टलिक-VI पुणे के औंध में शुरू हुआ

भारत और उज्बेकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संयुक्त सैन्य अभ्यास, डस्टलिक का छठा संस्करण 16 अप्रैल, 2025 को विदेशी प्रशिक्षण नोड, औंध, पुणे में शुरू हुआ। 28 अप्रैल, 2025 तक चलने वाले इस अभ्यास का उद्देश्य द्विपक्षीय सैन्य सहयोग को मजबूत करना, संयुक्त सामरिक अंतर-संचालन क्षमता विकसित करना और दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच समन्वय को बढ़ाना है। डस्टलिक को भारत और उज्बेकिस्तान में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है, जिसका पिछला संस्करण अप्रैल 2024 में उज्बेकिस्तान के टर्मेज़ जिले में आयोजित किया गया था।

एक्सरसाइज़ DUSTLIK-VI (2025) के प्रमुख बिंदु 

मूल जानकारी

  • अभ्यास का नाम: DUSTLIK-VI (छठा संस्करण)

  • स्थान: विदेशी प्रशिक्षण केंद्र, औंध, पुणे, महाराष्ट्र, भारत

  • तिथियाँ: 16 से 28 अप्रैल, 2025

  • भागीदार देश: भारत और उज्बेकिस्तान

  • आवृत्ति: वार्षिक; दोनों देशों में बारी-बारी से आयोजित

भाग लेने वाली टुकड़ियाँ

  • भारतीय टुकड़ी: 60 कर्मी, मुख्य रूप से जाट रेजिमेंट और भारतीय वायुसेना से

  • उज्बेकिस्तान टुकड़ी: उज्बेकिस्तान सेना के सैनिक

अभ्यास का विषय और उद्देश्य

  • मुख्य विषय: अर्ध-शहरी परिदृश्य में संयुक्त मल्टी-डोमेन उप-पारंपरिक संचालन

  • परिदृश्य: एक परिभाषित क्षेत्र पर कब्जे के साथ आतंकवादी हमला

उद्देश्य:

  • उप-पारंपरिक युद्ध में आपसी सहयोग और समन्वय को बढ़ाना

  • आतंकवाद-रोधी अभियानों का संचालन

  • बटालियन स्तर पर संयुक्त संचालन केंद्र (JOC) की स्थापना

  • छापेमारी, खोज और विनाश मिशन, और जनसंख्या नियंत्रण उपायों का कार्यान्वयन

  • हेलीकॉप्टरों और ड्रोन सहित वायु शक्ति का उपयोग

  • संचालन हेतु हेलीपैड की सुरक्षा और उपयोग

  • विशेष हेलीबोर्न ऑपरेशन (SHBO) और छोटे दलों की तैनाती व निकासी (STIE)

  • ड्रोन हमलों के खिलाफ काउंटर-UAS उपाय लागू करना

  • दुश्मन क्षेत्रों में वायुसेना से लॉजिस्टिक सहायता सुनिश्चित करना

प्रौद्योगिकी और संसाधनों का उपयोग

  • ड्रोन: निगरानी और स्थिति की जानकारी हेतु

  • हेलीकॉप्टर: टोही, सैनिकों की तैनाती/निकासी, और अग्नि समर्थन के लिए

  • काउंटर-UAS तकनीक: दुश्मन ड्रोन खतरों को निष्क्रिय करने हेतु

महत्व

  • रणनीतियों, तकनीकों और प्रक्रियाओं (TTPs) का आपसी आदान-प्रदान

  • संयुक्त ऑपरेशनल क्षमताओं को बढ़ावा देना

  • द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को मज़बूत करना

  • दोनों सेनाओं के बीच विश्वास और मित्रता को प्रोत्साहित करना

CPCB ने उद्योगों के वर्गीकरण में संशोधन कर नई श्रेणी शुरू की

पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण को सरल बनाने और पर्यावरणीय सेवाओं में अहम भूमिका निभाने वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने उद्योगों के लिए एक नया वर्गीकरण लागू किया है। इस संशोधित श्रेणीकरण में “आवश्यक पर्यावरणीय सेवाओं” (Essential Environmental Services – EES) के लिए एक नई ‘ब्लू श्रेणी’ बनाई गई है। इस ब्लू श्रेणी में वे उद्योग शामिल हैं जो पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में सीधे योगदान करते हैं, जैसे वेस्ट-टू-एनर्जी संयंत्र, बायोमाइनिंग इकाइयाँ, और कंप्रेस्ड बायोगैस संयंत्र। इन उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण की मंज़ूरी (consent) की अवधि लंबी दी जाएगी, जिससे उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा। इस पहल का उद्देश्य है कि ऐसे उद्योग जो प्रदूषण को कम करने में मदद करते हैं, उन्हें बेहतर नियमन और प्रोत्साहन के साथ सतत और पर्यावरण-अनुकूल कार्यप्रणाली के लिए प्रेरित किया जा सके।

प्रमुख बिंदु 

ब्लू श्रेणी की शुरुआत

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने आवश्यक पर्यावरणीय सेवाएं प्रदान करने वाले उद्योगों के लिए एक नई ‘ब्लू श्रेणी’ शुरू की है। इस श्रेणी में शामिल हैं:

  • वेस्ट-टू-एनर्जी संयंत्र

  • कंप्रेस्ड बायोगैस (CBG) संयंत्र – जो नगरपालिका ठोस अपशिष्ट, कृषि अवशेष, ऊर्जा फसलें और खरपतवार जैसे स्रोतों पर आधारित हों

  • बायोमाइनिंग कार्य

  • पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में सहायक यूटिलिटी सेवाएं (जैसे लैंडफिल प्रबंधन)

अनुमति वैधता 

ब्लू श्रेणी के उद्योगों को अन्य श्रेणियों की तुलना में 2 वर्ष अतिरिक्त संचालन की अनुमति दी जाएगी, जिससे कुल वैधता अवधि 7 वर्ष हो जाती है।

यह प्रोत्साहन इन उद्योगों की पर्यावरण प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देता है।

प्रदूषण सूचकांक (Pollution Index – PI) वर्गीकरण

  • रेड श्रेणी: PI > 80 (उच्च प्रदूषण क्षमता)

  • ऑरेंज श्रेणी: 55 ≤ PI < 80 (मध्यम प्रदूषण)

  • ग्रीन श्रेणी: PI ≤ 25 (कम प्रदूषण)

  • ब्लू श्रेणी: आवश्यक पर्यावरणीय सेवाओं के लिए विशेष रूप से नई श्रेणी

वेस्ट-टू-एनर्जी संयंत्र, जिनका PI 97.6 है और तकनीकी रूप से रेड श्रेणी में आते हैं, उन्हें उनके सेवा योगदान के आधार पर ब्लू श्रेणी में शामिल किया गया है।

CBG संयंत्र जो कृषि अपशिष्ट, नगरपालिका कचरे या ऊर्जा फसलों का उपयोग करते हैं, वे ब्लू श्रेणी में आते हैं।

जबकि वे संयंत्र जो औद्योगिक या प्रोसेस अपशिष्ट पर आधारित हैं, रेड श्रेणी में बने रहेंगे।

पुष्टि और प्रोत्साहन (Verification and Incentives)

जो उद्योग पर्यावरणीय प्रबंधन के उपायों को सफलतापूर्वक लागू करते हैं और समिति द्वारा सत्यापित होते हैं, वे प्रोत्साहन के पात्र होंगे:

  • संचालन की अनुमति की वैधता बढ़ाई जाएगी।

  • पर्यावरणीय मानकों का पालन करने वाले उद्योगों को विशेष लाभ दिए जाएंगे।

पर्यावरण मंज़ूरी प्रक्रिया में बदलाव

  • अब जिन उद्योगों को पर्यावरणीय मंज़ूरी (Environmental Clearance – EC) प्राप्त है, उन्हें स्थापना की सहमति (Consent to Establish – CTE) की आवश्यकता नहीं होगी। इससे प्रक्रिया अधिक सरल हो जाएगी।

  • व्हाइट श्रेणी के उद्योग: न तो CTE और न ही संचालन की सहमति (CTO) की आवश्यकता।

यह पहल पर्यावरणीय सेवाओं से जुड़े उद्योगों को प्रोत्साहित करने और पर्यावरण-संवेदनशील विनियमन को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

विषय विवरण
समाचार में क्यों? CPCB ने उद्योगों की श्रेणी में संशोधन किया
नई श्रेणी आवश्यक पर्यावरणीय सेवाओं (Essential Environmental Services) के लिए ब्लू श्रेणी
शामिल उद्योग – वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट्स
– कंप्रेस्ड बायोगैस (CBG) संयंत्र
– बायोमाइनिंग
ब्लू श्रेणी के प्रोत्साहन – सहमति की वैधता दो वर्ष अधिक
– कुल 7 वर्षों की सहमति वैधता
प्रदूषण सूचकांक (PI) – रेड (PI > 80) – उच्च प्रदूषण क्षमता
– ऑरेंज (55 ≤ PI < 80) – मध्यम प्रदूषण
– ग्रीन (PI ≤ 25) – कम प्रदूषण
– ब्लू – कम प्रदूषण वाले आवश्यक पर्यावरणीय सेवा उद्योग
प्रमुख बदलाव – कृषि अपशिष्ट और ऊर्जा फसलों पर आधारित CBG संयंत्र ब्लू श्रेणी में
– उच्च PI के बावजूद वेस्ट-टू-एनर्जी संयंत्रों को ब्लू श्रेणी में रखा गया

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