भारतीय सैन्य निगरानी बढ़ाने के लिए वैश्विक सैटेलाइट कंपनियों से सहयोग

रणनीतिक सैन्य निगरानी और तत्परता को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने वैश्विक वाणिज्यिक उपग्रह इमेजरी प्रदाताओं से बातचीत शुरू कर दी है। यह कदम मई 2025 में हुए ऑपरेशन “सिंदूर” के दौरान चीन द्वारा पाकिस्तान को लाइव सैटेलाइट डेटा मुहैया कराए जाने की खुफिया रिपोर्टों के बाद उठाया गया है। इस पहल का उद्देश्य भारत की मौजूदा क्षमताओं को उन्नत बनाकर रियल-टाइम, हाई-रिजोल्यूशन इमेजरी को रक्षा संचालन में एकीकृत करना है।

पृष्ठभूमि

वर्तमान में भारतीय सशस्त्र बलों की निगरानी और इमेजिंग जरूरतों को कार्टोसैट और रिसैट जैसे स्वदेशी उपग्रह पूरा करते हैं। ये उपग्रह दुश्मन की गतिविधियों को ट्रैक करने और हमलों के परिणामों की पुष्टि करने में सक्षम हैं, लेकिन इनमें इमेजिंग की आवृत्ति और रिजोल्यूशन की कुछ सीमाएं हैं। हालिया भू-राजनीतिक घटनाओं, विशेषकर चीन द्वारा पाकिस्तान को उपग्रह डेटा उपलब्ध कराने की भूमिका, ने भारत के सैटेलाइट-आधारित निगरानी तंत्र को तत्काल उन्नत करने की आवश्यकता को उजागर किया है।

महत्व

तेज़ गति से बदलते युद्धक्षेत्र की स्थितियों में रियल-टाइम, हाई-रिजोल्यूशन इमेजरी प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक होता है। बेहतर दृश्यता से निर्णय लेने की गति, लक्ष्य की सटीकता और सैनिकों की गतिविधियों पर नज़र रखने की क्षमता बढ़ती है। मैक्सार टेक्नोलॉजीज जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से सहयोग भारत की मौजूदा सीमाओं को पाट सकता है और संभावित संघर्षों में रणनीतिक बढ़त दे सकता है।

उद्देश्य

इस पहल के मुख्य लक्ष्य हैं:

  • वर्तमान क्षमताओं से परे निगरानी कवरेज का विस्तार

  • संघर्ष की स्थिति में समय पर कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी की उपलब्धता सुनिश्चित करना

  • स्वदेशी उपग्रह कार्यक्रमों को वाणिज्यिक रियल-टाइम इमेजरी समाधानों से पूरक बनाना

एसबीएस-III कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ

  • इस स्पेस बेस्ड सर्विलांस कार्यक्रम के तहत 2029 तक कुल 52 निगरानी उपग्रह प्रक्षेपित किए जाएंगे।

  • प्रारंभिक 21 उपग्रह इसरो द्वारा विकसित और प्रक्षेपित किए जाएंगे।

  • शेष 31 उपग्रह भारतीय निजी कंपनियों द्वारा बनाए जाएंगे।

  • रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) इन उपग्रहों का संचालन और निगरानी करेगी।

  • इस कार्यक्रम के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2024 में $3.2 अरब (लगभग ₹26,500 करोड़) की मंजूरी दी थी।

चुनौतियाँ

  • विदेशी वाणिज्यिक संस्थाओं पर निर्भरता रणनीतिक जोखिम उत्पन्न कर सकती है।

  • वैश्विक कंपनियों के साथ भागीदारी के दौरान डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता बनाए रखना अत्यावश्यक है।

  • स्वदेशी प्रणालियों में हर मौसम में संचालन और क्षेत्र पुनरावृत्ति समय जैसी तकनीकी बाधाएं अब भी चुनौती बनी हुई हैं।

यह पहल भारत की सुरक्षा नीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाती है, जो तकनीकी सहयोग और स्वदेशी विकास दोनों को संतुलित करने की दिशा में उठाया गया है।

स्वदेशी मलेरिया वैक्सीन का व्यवसायीकरण करेगा ICMR

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने जनस्वास्थ्य नवाचार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए स्वदेशी मलेरिया वैक्सीन ‘AdFalciVax’ के व्यवसायीकरण की प्रक्रिया शुरू की है। इस वैक्सीन का उद्देश्य मानवों में सबसे घातक मलेरिया परजीवी प्लाजमोडियम फेल्सीपेरम से लड़ना है। ICMR ने तकनीक हस्तांतरण और बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए दवा कंपनियों और विनिर्माताओं से साझेदारी हेतु “रुचि की अभिव्यक्ति” (Expression of Interest – EoI) आमंत्रित की है।

वैक्सीन के बारे में: AdFalciVax

  • यह वैक्सीन ICMR-रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर, भुवनेश्वर (ICMR-RMRCBB) द्वारा विकसित की जा रही है।

  • इसका लक्ष्य प्लाजमोडियम फेल्सीपेरम को निशाना बनाना है, जो गंभीर और घातक मलेरिया का प्रमुख कारण है।

  • यह समुदाय स्तर पर संक्रमण की श्रृंखला को भी तोड़ने में सहायक होगी।

  • यह एक रिकॉम्बिनेंट मल्टी-स्टेज वैक्सीन है, जो परजीवी के जीवनचक्र की विभिन्न अवस्थाओं पर कार्य करती है।

व्यवसायीकरण और तकनीकी हस्तांतरण

  • ICMR ने योग्य कंपनियों से EoI आमंत्रित की है ताकि वे तकनीक हस्तांतरण के जरिए उत्पादन कर सकें।

  • चयनित कंपनियों को विकास के प्रत्येक चरण में ICMR-RMRCBB द्वारा विशेषज्ञ मार्गदर्शन और तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी।

  • इस साझेदारी से वैक्सीन की उपलब्धता में तेजी आएगी और अनुसंधान से व्यावहारिक उपयोग के बीच की दूरी घटेगी।

विकास का समयचक्र

  • वैक्सीन के पूर्ण विकास में कम से कम 7 वर्ष लगने का अनुमान है, जिसे 4 चरणों में विभाजित किया गया है।

  • प्रत्येक चरण में 6 माह का अतिरिक्त समय रखा गया है ताकि किसी भी अप्रत्याशित देरी का समाधान किया जा सके।

महत्व

भारत में मलेरिया, विशेषकर प्लाजमोडियम फेल्सीपेरम, से प्रभावित क्षेत्रों की संख्या अधिक है, खासकर जनजातीय और पिछड़े इलाकों में। एक स्वदेशी रूप से विकसित वैक्सीन से न केवल इसकी उपलब्धता और वहनीयता बढ़ेगी, बल्कि भारत की वैश्विक आपूर्ति पर निर्भरता भी घटेगी। यह भारत के 2030 तक मलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य को भी बल प्रदान करेगा।

यूके और मालदीव के दौरे पर जाएंगे PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 से 26 जुलाई 2025 तक ब्रिटेन और मालदीव के द्विदेशीय दौरे पर जाने वाले हैं। यह यात्रा भारत की सक्रिय और गतिशील विदेश नीति का प्रतीक है। इस दौरे का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के साथ रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी को मजबूत करना है, जिससे भारत की वैश्विक प्रभावशीलता बढ़े और क्षेत्रीय एवं वैश्विक सहयोग के प्रति उसकी प्रतिबद्धता सुदृढ़ हो।

पृष्ठभूमि

यह प्रधानमंत्री मोदी की ब्रिटेन की चौथी आधिकारिक यात्रा और मालदीव की तीसरी यात्रा होगी। ब्रिटेन दौरा हाल ही में निर्वाचित प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर के आमंत्रण पर हो रहा है, जबकि मालदीव यात्रा वहां के राष्ट्रपति मोहम्‍मद मुईज्‍जू के आमंत्रण पर होगी। यह दौरा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ के साथ मेल खाता है, जिससे भारत की समुद्री पड़ोसी देशों के प्रति प्रतिबद्धता भी उजागर होती है।

भारत-ब्रिटेन संबंध: महत्व और एजेंडा

प्रधानमंत्री मोदी की यूनाइटेड किंगडम यात्रा का उद्देश्य भारत-ब्रिटेन समग्र रणनीतिक साझेदारी (CSP) को नई गति देना है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर के साथ उनकी बातचीत निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित होगी:

  • व्यापार और अर्थव्यवस्था

  • प्रौद्योगिकी और नवाचार

  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग

  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय कार्रवाई

  • स्वास्थ्य, शिक्षा और सांस्कृतिक संबंध

इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री मोदी की किंग चार्ल्स तृतीय से भेंट भी प्रस्तावित है, जो उच्च स्तरीय कूटनीतिक संबंधों की गहराई को दर्शाता है।

भारत-मालदीव संबंध: रणनीतिक सहयोग

मालदीव में प्रधानमंत्री मोदी की राजकीय यात्रा भारत की “पड़ोसी प्रथम” नीति और “विजन महासागर” के अंतर्गत समुद्री रणनीतिक दृष्टिकोण को बल देती है। यह राष्ट्रपति मोहम्‍मद मुईज्‍जू के कार्यभार संभालने के बाद किसी विदेशी सरकार प्रमुख की पहली आधिकारिक यात्रा होगी। इस दौरे के दौरान निम्नलिखित मुद्दों पर विशेष ध्यान रहेगा:

  • भारत-मालदीव समग्र आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी की समीक्षा

  • द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ करना

  • बुनियादी ढांचे, पर्यटन और ब्लू इकोनॉमी में सहयोग

प्रधानमंत्री मोदी 26 जुलाई को मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भी भाग लेंगे, जो दोनों देशों के घनिष्ठ संबंधों का प्रतीक है।

उद्देश्य और सामरिक महत्व

इस दो-राष्ट्र यात्रा का उद्देश्य है:

  • द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाना
  • आर्थिक, तकनीकी और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करना
  • क्षेत्रीय स्थिरता और सामरिक समुद्री उपस्थिति को बढ़ावा देना
  • दक्षिण एशिया और यूरोप दोनों में भारत की वैश्विक भूमिका को मज़बूत करना

संयुक्त राष्ट्र में भारत की नई मतदान नीति: ऐतिहासिक स्तर पर पहुँची मतदान से दूरी

संयुक्त राष्ट्र (UN) में भारत की मतदान प्रवृत्ति में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिला है। विशेष रूप से 2025 में मतदान से दूरी ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गई, जो भारत की विदेश नीति में एक नए चरण की शुरुआत को दर्शाता है। यह बदलाव एक ध्रुवीकृत वैश्विक व्यवस्था के प्रति भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया है, जिसमें वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए एक अधिक मुखर और संतुलित वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने का प्रयास कर रहा है।

भारत की UN मतदान प्रवृत्ति का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:

भारत ने 1946 से अब तक 5,500 से अधिक UN प्रस्तावों पर मतदान किया है, जिनमें समय के साथ उसका रुख काफी बदला है:

  • 1946–1960 के दशक के अंत तक: अत्यधिक अस्थिर मतदान पैटर्न; ‘हाँ’ (Yes) मत 20% से 100% तक के बीच रहे, जबकि मतदान से दूरी में भारी उतार-चढ़ाव देखा गया।

  • 1970–1994: अधिक स्थिरता के संकेत; ‘हाँ’ मत 74%–96% तक और मतदान से दूरी 8%–19% के बीच रही।

  • 1995–2019: एक परिपक्व और स्थिर चरण; ‘हाँ’ मत 75%–83%, जबकि Abstentions 10%–17% के दायरे में रहे।

  • 2019 के बाद: नया मोड़; 2025 तक ‘हाँ’ मत घटकर 56% रह गया, जबकि मतदान से दूरी बढ़कर 44% हो गई — 1955 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर।

यह प्रवृत्ति भारत के एक गुटनिरपेक्ष पर्यवेक्षक से रणनीतिक रूप से स्वायत्त अभिनेता बनने की दिशा में संक्रमण को दर्शाती है, जो अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए वैश्विक मंच पर अधिक परिपक्व और सुसंगत नीति अपना रहा है।

रणनीतिक मतदान से दूर की ओर भारत के रुझान के पीछे के कारण

1. ध्रुवीकृत वैश्विक व्यवस्था

आज की वैश्विक व्यवस्था में प्रमुख शक्तियों—जैसे अमेरिका, चीन और रूस—के बीच गहरी विभाजक रेखाएं उभर चुकी हैं, जिससे संयुक्त राष्ट्र में आम सहमति बनाना कठिन हो गया है। भारत किसी एक खेमे में शामिल होने के बजाय तटस्थ रहने को प्राथमिकता देता है, जिससे उसकी स्वतंत्र विदेश नीति की छवि बनी रहती है।

2. प्रस्तावों की जटिलता

आधुनिक UN प्रस्ताव अक्सर बहुआयामी और विरोधाभासी होते हैं, जिन्हें राजनयिक कभी-कभी “क्रिसमस ट्री प्रस्ताव” (Christmas trees) कहते हैं — यानी जिनमें हर किसी के लिए कुछ न कुछ जोड़ा गया होता है। ऐसे प्रस्तावों पर मतदान से दूरी अपनाकर भारत विवादास्पद या अस्पष्ट प्रावधानों का समर्थन या विरोध करने से बचता है।

3. संप्रभुता की मुखर अभिव्यक्ति

आज के दौर में मतदान से दूरी को निर्णयहीनता नहीं, बल्कि भारत के संप्रभु राजनयिक विवेक का प्रतीक माना जाता है। इससे भारत अपनी रणनीतिक लचीलापन बनाए रखते हुए द्विपक्षीय हितों की रक्षा कर सकता है, बिना किसी प्रमुख सहयोगी देश को नाराज़ किए।

भारत के मतदान से दूरी की रणनीतिक महत्वता

  • स्वतंत्रता का संकेत: मतदान से दूरी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और आधुनिक संदर्भ में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों के साथ उसकी निरंतरता को दर्शाती है।

  • राजनयिक संतुलन साधना: भारत संवेदनशील वैश्विक मुद्दों जैसे रूस-यूक्रेन संघर्ष, म्यांमार संकट या इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद पर पक्ष लेने से बचता है, जिससे संतुलन बनाए रखता है।

  • वैश्विक छवि पर जोखिम: हालांकि यह रणनीति भारत को लचीलापन देती है, लेकिन कुछ सहयोगी देशों द्वारा इसे मानवाधिकारों या सुरक्षा मामलों पर प्रतिबद्धता की कमी के रूप में भी देखा जा सकता है।

इस तरह, भारत की नई मतदान रणनीति एक परिपक्व, संतुलित और स्वायत्त विदेश नीति की ओर उसके संक्रमण को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।

प्रकरण अध्ययन और व्यावहारिक प्रभाव

हालांकि विश्लेषण में किसी विशेष प्रस्ताव का नाम नहीं लिया गया है, भारत की मतदान से दूरी (abstention) की रणनीति कुछ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विशेष रूप से देखने को मिली है—

  • रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े प्रस्तावों में

  • म्यांमार और चीन में मानवाधिकार उल्लंघन पर प्रस्तावों में

  • इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष से संबंधित बहसों में

इन सभी मामलों में भारत ने मतदान से दूरी अपनाकर अपने प्रमुख रणनीतिक साझेदारों के साथ संबंध बनाए रखे, जबकि साथ ही साथ कुछ मुद्दों पर अपनी चिंताओं का संकेत भी दिया। यह संतुलन भारत के दीर्घकालिक कूटनीतिक हितों के अनुरूप है।

भविष्य की दिशा

भारत की यह “रणनीतिक दूरी” की नीति निकट भविष्य में भी जारी रहने की संभावना है, विशेष रूप से तब तक जब तक भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के लिए प्रयासरत है और एक मध्यम शक्ति (Middle Power) के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत कर रहा है।

यह दृष्टिकोण भारत को वैश्विक संबंधों में एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में स्थापित करता है — जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रूप से भागीदारी करता है, लेकिन बिना किसी पक्षपात या संप्रभु हितों से समझौता किए।

भारत का पर्यटन क्षेत्र और विज़न 2047 : $32 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की ओर

भारत सरकार ने 2047 तक पर्यटन क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान को 10% तक बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। यह लक्ष्य भारत को $32 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था में बदलने की व्यापक योजना का हिस्सा है। सांस्कृतिक विरासत, प्राकृतिक विविधता और आध्यात्मिक संपदा से समृद्ध भारत का पर्यटन क्षेत्र आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और वैश्विक प्रभाव का एक प्रमुख इंजन बन सकता है — बशर्ते ढांचागत और रणनीतिक चुनौतियों का समाधान किया जाए।

पृष्ठभूमि
वर्तमान में पर्यटन भारत की GDP में लगभग 5–6% का योगदान देता है। 2023 के आंकड़ों के अनुसार, भारत वैश्विक पर्यटन आय में 14वें स्थान पर है और विश्व स्तर पर 1.8% राजस्व का हिस्सा रखता है। इस क्षेत्र में 24% की संयोजित वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) का अनुमान है। सरकार अब 2047 तक इस हिस्सेदारी को दोगुना करने के लिए सतत और समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

महत्व
पर्यटन एक श्रम-प्रधान उद्योग है, जो ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार उत्पन्न करने की क्षमता रखता है। यह विदेशी मुद्रा अर्जन, बुनियादी ढांचे के विकास और सांस्कृतिक कूटनीति को भी मजबूत करता है। भारत की आध्यात्मिक, पारिस्थितिक और ऐतिहासिक विविधता उसे वैश्विक यात्रा रुझानों — जैसे मेडिकल टूरिज्म, साहसिक पर्यटन और ईको-टूरिज्म — में अग्रणी भूमिका निभाने का अवसर देती है।

भारत में पर्यटन के प्रकार

  • आध्यात्मिक पर्यटन: मंदिर, तीर्थ स्थल और धार्मिक सर्किट लाखों यात्रियों को आकर्षित करते हैं।

  • साहसिक पर्यटन: लद्दाख, सिक्किम और हिमालय की ट्रेकिंग लोकप्रिय है।

  • समुद्र तटीय पर्यटन: गोवा, केरल और अंडमान-निकोबार जैसे स्थल मुख्य आकर्षण हैं।

  • सांस्कृतिक पर्यटन: पुष्कर मेला, ताज महोत्सव जैसी परंपराएं विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।

  • वन्यजीव पर्यटन: जिम कॉर्बेट और काजीरंगा जैसे नेशनल पार्क पर्यावरण प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

  • चिकित्सा पर्यटन: “हील इन इंडिया” पहल के तहत भारत कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सेवा प्रदान करता है।

मुख्य चुनौतियाँ

  • बुनियादी ढांचे की कमी: कई प्रमुख स्थलों पर परिवहन और सुविधाओं का अभाव।

  • पर्यावरणीय क्षरण: अनियंत्रित पर्यटन से पारिस्थितिकी तंत्र पर दुष्प्रभाव।

  • मानकीकरण की कमी: सेवाओं की गुणवत्ता में असंगति।

  • मौसमी निर्भरता: पर्यटन में मौसम के अनुसार उतार-चढ़ाव।

  • प्रचार की कमी: कम प्रसिद्ध स्थलों का पर्याप्त विपणन नहीं होता।

  • संस्कृति-संवेदनशीलता: विरासत संरक्षण और पर्यटन के बीच संतुलन की आवश्यकता।

सरकारी पहलें

  • 50 डेस्टिनेशन चैलेंज मोड (2025 बजट): प्रमुख स्थलों पर बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी को बेहतर बनाना।

  • स्वदेश दर्शन योजना: थीम-आधारित सर्किट का विकास विश्व स्तरीय सुविधाओं के साथ।

  • प्रसाद योजना: तीर्थ और विरासत स्थलों पर अवसंरचना सुधार।

  • मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा: सार्वजनिक-निजी भागीदारी और चिकित्सा यात्रियों के लिए वीज़ा प्रक्रिया में ढील।

  • अतिथि देवो भव: आतिथ्य उद्योग के कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम।

  • वीज़ा सुधार: ई-वीज़ा और शुल्क माफी जैसे उपाय।

  • सतत पर्यटन समर्थन: ईको-टूरिज्म, ज़िम्मेदार यात्रा और ग्रीन सर्टिफिकेशन को बढ़ावा।

  • रोजगार उपाय (2025–26): होमस्टे के लिए मुद्रा ऋण, राज्यों को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन, और वीज़ा प्रणाली का सरलीकरण।

यह रणनीति भारत को न केवल एक वैश्विक पर्यटन हब बना सकती है, बल्कि इसके माध्यम से आत्मनिर्भर भारत और विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी सिद्ध हो सकती है।

नेट-जीरो बैंकिंग एलायंस से हटने पर HSBC को आलोचना का सामना

जुलाई 2025 में, दुनिया के सबसे बड़े बैंकिंग संस्थानों में से एक, एचएसबीसी ने नेट-जीरो बैंकिंग अलायंस (एनजेडबीए) से हटने पर जलवायु के प्रति जागरूक ग्राहकों और हितधारकों की कड़ी आलोचना की, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग समूह है जो बैंकिंग प्रथाओं को जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह एलायंस वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप बैंकिंग प्रथाओं को संरेखित करने के लिए समर्पित सबसे बड़ा उद्योग समूह है। HSBC ऐसा करने वाला पहला प्रमुख ब्रिटिश बैंक बन गया, जिससे यह संकेत मिला कि वित्तीय क्षेत्र की नेट-ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्धता कमजोर पड़ रही है। इस फैसले के बाद कई ग्राहकों, विशेषकर हरित ऊर्जा कंपनियों ने HSBC से अपने संबंध तोड़ दिए और इसके पर्यावरणीय दावों पर विश्वास नहीं होने का हवाला दिया।

पृष्ठभूमि: नेट-ज़ीरो बैंकिंग एलायंस (NZBA) क्या है?
अप्रैल 2021 में शुरू हुआ नेट-ज़ीरो बैंकिंग एलायंस (NZBA) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम वित्त पहल (UNEP FI) द्वारा संचालित बैंकों का एक वैश्विक गठबंधन है। इसके सदस्य पेरिस समझौते के अनुरूप 2050 तक अपने ऋण और निवेश पोर्टफोलियो को नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के साथ संरेखित करने का संकल्प लेते हैं। इसमें शामिल बैंकों को हर पाँच साल में अंतरिम लक्ष्य तय करने और प्रगति की पारदर्शी रिपोर्टिंग करने की आवश्यकता होती है। इस गठबंधन का उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र को जलवायु-लचीला और सतत वित्तपोषण के मार्ग पर लाना है।

HSBC की वापसी और उसके पीछे का कारण
HSBC की NZBA से वापसी उसके चीफ सस्टेनेबिलिटी ऑफिसर जूलियन वेंटज़ेल के उस बयान के बाद हुई, जिसमें उन्होंने कहा कि कार्बन-गहन उद्योगों के प्रति बढ़ते पूर्वाग्रह के कारण यह गठबंधन संतुलन खो रहा है। बैंक का तर्क है कि पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्रों को समर्थन देना ऊर्जा संक्रमण की अवधि में आर्थिक स्थिरता के लिए आवश्यक है। हालांकि, इस कदम से HSBC की नैतिक प्रतिबद्धता और प्रतिष्ठा पर सवाल उठे हैं, खासकर जब उसने पूर्व में सार्वजनिक रूप से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ठोस कार्रवाई के वादे किए थे।

ग्राहकों की नाराज़गी और सार्वजनिक प्रतिक्रिया
प्रमुख हरित व्यवसाय नेताओं ने HSBC के फैसले पर तीव्र प्रतिक्रिया दी। नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की अग्रणी कंपनी Ecotricity, जिसका सालाना हरित कारोबार £600 मिलियन है, ने HSBC से सार्वजनिक रूप से संबंध तोड़ लिए। कंपनी के संस्थापक डेल विंस ने यह घोषणा की कि वे अब Lloyds Banking Group के साथ काम करेंगे। उन्होंने कहा कि ग्राहक अब जागरूक हो चुके हैं और नैतिक बैंकिंग विकल्पों का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। विंस के बयान ने इस बात पर जोर दिया कि अब जलवायु मुद्दों पर वित्तीय जवाबदेही की मांग को लेकर आम लोगों और कंपनियों से जमीनी स्तर पर दबाव तेजी से बढ़ रहा है। व्यक्तियों और संस्थानों दोनों की ओर से यह मांग उठ रही है कि बैंक और वित्तीय संस्थाएं अपने पर्यावरणीय वादों के प्रति पारदर्शी और जिम्मेदार बनें।

बैंकिंग और जलवायु वित्त पर प्रभाव
HSBC का यह कदम अन्य वित्तीय संस्थानों को भी अपने पर्यावरणीय जुड़ावों पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित कर सकता है, या फिर यह निर्णय HSBC को वैश्विक जलवायु निगरानी के बीच अलग-थलग भी कर सकता है। यह निर्णय एक बार फिर जलवायु आदर्शवाद और व्यवहारिक वित्त के बीच बहस को जन्म देता है—जहाँ बैंक उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्यों और पारंपरिक जीवाश्म ईंधन में निवेश के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं। अब नियामक संस्थाएं, निवेशक और ग्राहक बैंकों को जलवायु पारदर्शिता, सततता मानदंड और सामाजिक ज़िम्मेदारी के आधार पर और भी बारीकी से आंक सकते हैं।

पहली बार नौकरी करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मिलेंगे 15,000 रुपए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जुलाई 2025 को बिहार के मोतिहारी में एक सार्वजनिक रैली के दौरान नई रोजगार प्रोत्साहन योजना की घोषणा की। इस योजना के तहत निजी क्षेत्र में पहली बार नौकरी पाने वाले युवाओं को ₹15,000 की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इसका उद्देश्य देश में रोजगार सृजन को बढ़ावा देना और युवाओं को औपचारिक रोजगार क्षेत्र से जोड़ना है।

पृष्ठभूमि
यह घोषणा प्रधानमंत्री की पूर्वी चंपारण (East Champaran) यात्रा के दौरान हुई, जहाँ उन्होंने ₹7,200 करोड़ से अधिक की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास  किया। इस अवसर पर चार ‘अमृत भारत’ ट्रेनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना भी किया गया, जो देश के अवसंरचना और रोजगार को विकास के दो प्रमुख इंजन के रूप में रेखांकित करता है। यह पहल युवाओं को निजी क्षेत्र में रोजगार के प्रति प्रोत्साहित करने और उन्हें भारत के आर्थिक विकास में भागीदार बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।

उद्देश्य
इस योजना का मुख्य उद्देश्य निजी क्षेत्र में युवाओं को रोजगार प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना है, जिसके तहत प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। यह पहल सरकार की “आत्मनिर्भर और विकसित बिहार” की व्यापक दृष्टि के अनुरूप है, जिसमें राज्य के भीतर ही अवसर सृजित कर युवाओं को सशक्त बनाया जाएगा।

मुख्य विशेषताएँ

  • ₹15,000 की प्रोत्साहन राशि उन युवाओं को दी जाएगी जो पहली बार निजी क्षेत्र में नौकरी शुरू करेंगे।

  • योजना 1 अगस्त 2025 से लागू की जाएगी।

  • इसके लिए ₹1 लाख करोड़ का बजट आवंटित किया गया है, जिससे इसका व्यापक दायरा और सुनियोजित क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।

  • यह योजना पहली बार रोजगार पाने वालों को लक्षित करती है ताकि प्रवासन को रोका जा सके और स्थानीय रोजगार में वृद्धि हो सके।

महत्व
यह योजना पूर्वी भारत विशेषकर बिहार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहाँ बेरोजगारी और बाहरी प्रवासन लंबे समय से बड़ी चुनौती रहे हैं। इस पहल से निजी क्षेत्र में औपचारिक रोजगार को बढ़ावा मिलेगा, सरकारी नौकरियों पर निर्भरता घटेगी, और युवाओं को राज्य में ही बनाए रखने में मदद मिलेगी। इसके माध्यम से बिहार के युवाओं को सशक्त बनाकर राज्य के आर्थिक और सामाजिक विकास को नई दिशा दी जाएगी।

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का चाय निर्यात 2.85% बढ़ा

विश्व के प्रमुख चाय उत्पादक और निर्यातक देशों में शामिल भारत ने वित्त वर्ष 2024–25 के दौरान अपने चाय निर्यात में मामूली लेकिन सकारात्मक वृद्धि दर्ज की है। टी बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत से चाय का निर्यात 2.85% बढ़ा है, जो वैश्विक स्तर पर चाय की स्थिर मांग और बेहतर बाजार मूल्य संकेतकों को दर्शाता है। निर्यात मूल्य में हुई वृद्धि प्रति किलोग्राम बेहतर मूल्य प्राप्ति को दर्शाती है, जो क्षेत्रीय असमानताओं के बावजूद भारत की चाय उद्योग के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

पृष्ठभूमि
भारत पारंपरिक रूप से एक प्रमुख वैश्विक चाय निर्यातक रहा है, जहाँ असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्य चाय उत्पादन की रीढ़ हैं। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन टी बोर्ड ऑफ इंडिया चाय की खेती, प्रसंस्करण और निर्यात को नियंत्रित और प्रोत्साहित करता है। हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय मांग में वृद्धि, गुणवत्ता सुधार, और मूल्य संवर्धित उत्पादों में विविधता ने चाय निर्यात प्रवृत्तियों को प्रभावित किया है।

निर्यात मात्रा में वृद्धि
वित्त वर्ष 2024–25 में भारत का चाय निर्यात 250.73 मिलियन किलोग्राम से बढ़कर 257.88 मिलियन किलोग्राम हो गया, जो 2.85% की वृद्धि को दर्शाता है। यह वृद्धि मुख्य रूप से उत्तरी भारत के चाय उत्पादक राज्यों की बदौलत हुई, जहाँ निर्यात में 8.15% की बढ़ोतरी हुई—149.05 मिलियन किलोग्राम से बढ़कर 161.20 मिलियन किलोग्राम। इसके विपरीत, दक्षिण भारत से चाय निर्यात में 4.92% की गिरावट दर्ज की गई—101.68 मिलियन किलोग्राम से घटकर 96.68 मिलियन किलोग्राम।

निर्यात मूल्य और मूल्य निर्धारण
वित्त वर्ष 2024–25 में चाय के औसत निर्यात मूल्य में उल्लेखनीय वृद्धि हुई—₹258.30 प्रति किलोग्राम से बढ़कर ₹290.97 प्रति किलोग्राम, यानी 12.65% की वृद्धि। यह दर्शाता है कि बेहतर गुणवत्ता, अनुकूल वैश्विक मूल्य प्रवृत्तियाँ और अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में ब्रांडिंग की सुदृढ़ स्थिति भारत की चाय को अधिक प्रतिस्पर्धी बना रही है।

कैलेंडर वर्ष के आधार पर तुलना
अगर कैलेंडर वर्ष (जनवरी से दिसंबर) के हिसाब से देखा जाए, तो 2024 में भारत का कुल चाय निर्यात 10.57% बढ़कर 256.17 मिलियन किलोग्राम हो गया। इसमें उत्तर भारत का योगदान 155.49 मिलियन किलोग्राम रहा (10.28% वृद्धि), जबकि दक्षिण भारत ने 100.68 मिलियन किलोग्राम का निर्यात किया (11.02% वृद्धि)। यह आंकड़ा दर्शाता है कि वित्तीय वर्ष में अस्थिरता के बावजूद समग्र वार्षिक प्रदर्शन संतुलित रहा।

महत्त्व और प्रभाव
भारत के चाय निर्यात में हुई यह वृद्धि रोज़गार, ग्रामीण आय, और विदेशी मुद्रा अर्जन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से उत्तर भारत—असम और पश्चिम बंगाल—के लिए यह वृद्धि बेहद अहम है, क्योंकि इन क्षेत्रों में चाय की खेती आजीविका का प्रमुख स्रोत है। प्रति किलोग्राम निर्यात मूल्य में हुई वृद्धि यह सुनिश्चित करती है कि मात्रा में सीमित वृद्धि के बावजूद राजस्व क्षमता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जो उद्योग की स्थिरता और दीर्घकालिक लाभप्रदता के लिए आशाजनक संकेत है।

मुंबई में पहले आईआईसीटी परिसर का उद्घाटन

भारत के रचनात्मक क्षेत्र को एक बड़ी प्रेरणा मिली है, जहाँ मुंबई में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिएटिव टेक्नोलॉजी (IICT) के पहले परिसर का उद्घाटन हुआ। इस पहल का उद्देश्य एनिमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग, कॉमिक्स और एक्सटेंडेड रियलिटी (AVGC-XR) जैसे क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर भारत की भागीदारी को सशक्त बनाना है। यह संस्थान विश्वस्तरीय प्रशिक्षण और सहयोगों के माध्यम से उद्योग-तैयार प्रतिभाओं को तैयार करेगा। इस पहल को भारत की डिजिटल और क्रिएटिव अर्थव्यवस्था को मजबूत करने तथा उभरती तकनीकों को कौशल विकास में एकीकृत करने की सरकार की व्यापक दृष्टि के अनुरूप देखा जा रहा है।

पृष्ठभूमि
IICT की संकल्पना रचनात्मक प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए की गई थी। भारत में AVGC-XR क्षेत्र तेज़ी से बढ़ रहा है, और वैश्विक स्तर पर कंटेंट निर्माण और इमर्सिव अनुभवों की मांग में इज़ाफा हो रहा है। इस आवश्यकता को समझते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और महाराष्ट्र सरकार ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत IICT की स्थापना की पहल की।

महत्त्व
IICT का शुभारंभ भारत में क्रिएटिव टेक्नोलॉजी शिक्षा के औपचारिक संस्थानीकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इस परिसर का उद्घाटन केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मुंबई स्थित NFDC परिसर में किया। यह संस्थान एनिमेशन, गेमिंग, वीएफएक्स और XR में करियर बनाने के इच्छुक युवाओं के लिए एक लॉन्चपैड की भूमिका निभाएगा और भारत को डिजिटल रचनात्मकता और उत्पादन में वैश्विक नेतृत्व की दिशा में ले जाएगा। साथ ही यह टेक-आधारित रचनात्मक उद्योगों में रोजगार सृजन को भी प्रोत्साहित करेगा।

उद्देश्य

  • एनीमेशन, गेमिंग, वीएफएक्स, पोस्ट-प्रोडक्शन और XR में उन्नत, उद्योगोन्मुख प्रशिक्षण प्रदान करना।

  • गूगल, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल जैसी वैश्विक टेक कंपनियों के साथ सहयोग कर प्रशिक्षण की गुणवत्ता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करना।

  • AVGC-XR के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में कार्य करना, जिसमें छात्र, कार्यरत पेशेवर और प्रशिक्षक सभी को सहायता मिल सके।

  • भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था के विकास को गति देना और देश को डिजिटल कंटेंट की वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करना।

प्रमुख विशेषताएं

  • पहले बैच में 300 छात्र, उद्योग पेशेवर और प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाएगा।

  • दूसरा IICT परिसर महाराष्ट्र के फिल्म सिटी में निर्माणाधीन है, जिसे प्राकृतिक वातावरण के साथ समेकित रूप से डिजाइन किया गया है।

  • रचनात्मक तकनीकी क्षेत्र की बदलती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 17 उद्योग-समन्वित पाठ्यक्रमों की शुरुआत की गई।

  • उद्घाटन समारोह में WAVES 2025 Outcome Reports जारी की गईं और IICT का आधिकारिक लोगो भी अनावरण किया गया।

  • प्रसार भारती और महाराष्ट्र फिल्म, मंच एवं सांस्कृतिक विकास निगम के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) का आदान-प्रदान हुआ, जिसका उद्देश्य एक मीडिया और फिल्म नवाचार केंद्र की स्थापना है।

यह संस्थान आने वाले वर्षों में भारत को वैश्विक क्रिएटिव टेक्नोलॉजी हब बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

ऑस्कर विजेता गीतकार एलन बर्गमैन का निधन

ऑस्कर विजेता गीतकार एलन बर्गमैन का निधन हो गया है। वैराइटी की रिपोर्ट के मुताबिक गुरुवार 17 जुलाई को अपने लॉस एंजिल्स आवास में उन्होंने आखिरी सांस ली। वे 99 वर्ष के थे। आगामी 11 सितंबर को वे अपना 100वां जन्मदिन मनाते। अपनी पत्नी मैरिलिन बर्गमैन के साथ उन्होंने पाँच दशकों से अधिक समय तक सैकड़ों कालजयी गीतों की रचना की। फिल्म और टेलीविजन संगीत की दुनिया में उनके योगदान को तीन एकेडमी अवॉर्ड, तीन एमी अवॉर्ड और व्यापक सराहना के रूप में मान्यता मिली।

पत्नी मर्लिन कीथ बर्गमैन के साथ दिए हिट गाने

ऑस्कर, ग्रैमी और एमी जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार अपने नाम कर चुके गीतकार एलन बर्गमैन की अपनी पत्नी मर्लिन कीथ के साथ सॉन्ग राइटिंग में जुगलबंदी छह दशकों से भी अधिक समय तक चली। इन्होंने ‘द विंडमिल्स ऑफ योर माइंड’, ‘द वे वी वेयर’ और ‘इन द हीट ऑफ द नाइट’ जैसे हिट गाने प्रोड्यूस किए।

तीन अकादमी पुरस्कार जीते

बता दें कि एलन बर्गमैन की पत्नी मर्लिन कीथ का निधन जनवरी 2022 में हो गया था। वह अमेरिकन सोसायटी ऑफ कम्पोजर्स, ऑथर्स एंड पब्लिशर्स (ASCAP) की पहली महिला अध्यक्ष और बोर्ड की अध्यक्ष थीं। यह म्यूजिक प्रोड्यूसर्स के अधिकारों वाली एक प्रमुख सोसायटी है। बात करें बर्गमैन की तो उन्होंने तीन अकादमी पुरस्कार जीते। उन्हें करीब 13 और ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नॉमिनेट किया गया था, जिनमें से पांच उनके करीबी दोस्त लेग्रैंड के साथ थे।

सौ से ज्यादा गाने लिखे बर्गमैन दंपति ने

एलन बर्गमैन का जन्म 11 सितंबर 1925 को न्यूयॉर्क में हुआ था। एलन और मर्लिन यानी बर्गमैन दंपत्ति ने सौ से ज्यादा गीत लिखे, जिनमें से अधिकांश फिल्मों और टीवी के लिए थे। उन्होंने रॉजर्स एंड हार्ट, कोल पोर्टर और इरविंग बर्लिन के पारंपरिक ग्रेट अमेरिकन सॉन्गबुक युग को 60, 70 और 80 के दशक की आधुनिक पॉप सेंसिबिलिटी के साथ जोड़ा था।

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