पासपोर्ट पावर इंडेक्स में भारत की सबसे बड़ी छलांग: जानिए क्या हुआ बदलाव

भारत ने हेनले पासपोर्ट इंडेक्स 2025 में अब तक की सबसे बड़ी छलांग दर्ज की है, जिसमें वह 85वें स्थान से आठ पायदान ऊपर चढ़कर 77वें स्थान पर पहुंच गया है। अब भारतीय पासपोर्ट धारकों को 59 देशों में वीज़ा-फ्री या वीज़ा-ऑन-अराइवल की सुविधा प्राप्त है, जिससे भारत का वैश्विक पासपोर्ट रैंक और प्रभावशाली हुआ है। यह प्रदर्शन पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे क्षेत्रीय पड़ोसियों से बेहतर है और भारत की मजबूत होती कूटनीतिक सक्रियता और वैश्विक संपर्क को दर्शाता है।

पृष्ठभूमि: हेनले पासपोर्ट इंडेक्स

हेनले पासपोर्ट इंडेक्स दुनिया के सबसे प्रभावशाली पासपोर्ट की एक वैश्विक रूप से मान्यता प्राप्त रैंकिंग है, जो वीज़ा-फ्री या वीज़ा-ऑन-अराइवल की पहुंच के आधार पर तैयार की जाती है। यह इंडेक्स अंतरराष्ट्रीय हवाई परिवहन संघ (IATA) के आंकड़ों के आधार पर हर तिमाही अपडेट किया जाता है। इसे लंदन स्थित परामर्श फर्म Henley & Partners द्वारा तैयार किया जाता है, जो नागरिकता और वैश्विक आवागमन (global mobility) में विशेषज्ञता रखती है।

भारत की रैंकिंग में उछाल का महत्व

भारत ने हेनले पासपोर्ट इंडेक्स 2025 में 85वें स्थान से छलांग लगाकर 77वां स्थान प्राप्त किया है — जो अब तक का सबसे बड़ा वार्षिक सुधार है। अब भारतीय नागरिक 59 देशों की यात्रा बिना पूर्व वीज़ा अनुमति के कर सकते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की गतिशीलता (ग्लोबल मोबिलिटी) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह सुधार भारत के पर्यटन, व्यापार और राजनयिक प्रभाव को बढ़ावा देता है।

भारतीयों के लिए वीज़ा-फ्री और वीज़ा-ऑन-अराइवल देश (2025)

वीज़ा-फ्री प्रवेश वाले देश

भारत के नागरिक अब कई प्रमुख एशियाई पर्यटक स्थलों में वीज़ा-फ्री यात्रा कर सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • मलेशिया

  • इंडोनेशिया

  • थाईलैंड

  • मालदीव

  • फिलीपींस

  • श्रीलंका (हाल ही में जोड़ा गया)

वीज़ा-ऑन-अराइवल की सुविधा वाले देश

  • मकाओ

  • म्यांमार

वैश्विक रैंकिंग की तुलना

हालांकि भारत की स्थिति में सुधार हुआ है, फिर भी यह शीर्ष देशों से काफी पीछे है। जापान, सिंगापुर, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों के पासपोर्ट धारकों को 190 से अधिक देशों में वीज़ा-फ्री या वीज़ा-ऑन-अराइवल सुविधा प्राप्त है। भारत की हालिया प्रगति इस दिशा में सकारात्मक संकेत है और यह वैश्विक कूटनीति और आवागमन में बढ़ती भागीदारी को दर्शाता है।

रैंक देश वीज़ा-फ्री गंतव्य देशों की संख्या
1 सिंगापुर 193
2 जापान, दक्षिण कोरिया 190
3 जर्मनी, फ्रांस, इटली 189
6 यूनाइटेड किंगडम (गिरावट) 186
10 अमेरिका (गिरावट) 182
77 भारत 59

भारत अब पाकिस्तान, बांग्लादेश और कई अफ्रीकी देशों से ऊपर रैंक करता है, जो क्षेत्रीय प्रगति का संकेत है। यह दर्शाता है कि भारत की वैश्विक पहुंच, कूटनीतिक संबंध और यात्रा स्वतंत्रता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

हेनले पासपोर्ट इंडेक्स 2025 में शीर्ष देश

  • रैंक 1: सिंगापुर – 193 गंतव्य

  • रैंक 2: जापान, दक्षिण कोरिया – 190 गंतव्य

  • रैंक 3: फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, डेनमार्क, फिनलैंड, आयरलैंड – 189 गंतव्य

  • रैंक 4: ऑस्ट्रिया, स्वीडन, पुर्तगाल, नॉर्वे, नीदरलैंड्स, लक्ज़मबर्ग, बेल्जियम – 188 गंतव्य

  • रैंक 5: न्यूज़ीलैंड, स्विट्ज़रलैंड, ग्रीस – 187 गंतव्य

  • रैंक 6: यूनाइटेड किंगडम – 186 गंतव्य

  • रैंक 7: ऑस्ट्रेलिया, पोलैंड, माल्टा, चेक गणराज्य, हंगरी – 185 गंतव्य

  • रैंक 8: संयुक्त अरब अमीरात (UAE), कनाडा, एस्टोनिया – 184 गंतव्य

रणनीतिक प्रभाव और कूटनीतिक उद्देश्य

  • मजबूत द्विपक्षीय संबंध: वीज़ा माफी (Visa Waivers) कई देशों के साथ भारत के संबंधों के सशक्त होने का संकेत देती है।

  • वैश्विक स्थिति: पासपोर्ट की मज़बूती भारत की बढ़ती सॉफ्ट पावर और सफल विदेश नीति को दर्शाती है।

  • नागरिकों को लाभ: पर्यटन, व्यापार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए विदेश यात्रा अब अधिक सरल और सुविधाजनक हो गई है।

चुनौतियाँ और गतिशीलता में असमानता 

  • प्रगति के बावजूद, भारत अब भी शीर्ष रैंक वाले पासपोर्ट से काफी पीछे है, जिसका मुख्य कारण है:

    • यूरोप के शेंगेन क्षेत्र, अमेरिका और अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं तक सीमित पहुंच।

  • भारत और सिंगापुर के बीच गतिशीलता अंतर (mobility gap) अब भी 134 देशों का है।

  • इस अंतर को कम करने के लिए निरंतर वीज़ा वार्ताओं और पारस्परिक समझौतों की आवश्यकता है।

दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था: ADB की भविष्यवाणी में एक बार फिर भारत सबसे आगे!

एशियाई विकास बैंक (ADB) ने अनुमान लगाया है कि भारत की जीडीपी 2025 में 6.5% और 2026 में 6.7% की दर से वृद्धि करेगी, जिससे भारत की स्थिति दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में और मजबूत होती है। यह अनुमान मजबूत घरेलू मांग, सामान्य मानसून और संभावित मौद्रिक शिथिलता (monetary easing) पर आधारित है। इसके साथ ही, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में कमी के चलते महंगाई दर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के लक्षित दायरे में रहने की संभावना है।

पृष्ठभूमि: एडीबी और एशियाई आर्थिक परिदृश्य

एशियाई विकास बैंक (ADB) एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिए आर्थिक पूर्वानुमान प्रदान करने हेतु हर साल कई बार एशियन डेवलपमेंट आउटलुक (ADO) रिपोर्ट जारी करता है। जुलाई 2025 संस्करण में समग्र रूप से मिश्रित स्थिति दिखाई गई है, हालांकि भारत एक मजबूत प्रदर्शनकर्ता बना हुआ है। इसके विपरीत, व्यापक विकासशील एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए पूर्वानुमान कम कर दिए गए हैं, जिसका कारण कमजोर निर्यात, वैश्विक व्यापार तनाव और सुस्त मांग है। क्षेत्र के लिए 2025 की वृद्धि दर को घटाकर 4.7% (पहले 4.9%) और 2026 के लिए 4.6% कर दिया गया है।

भारत की विकास दर का महत्व

भारत की विकास दर का अनुमान वैश्विक आर्थिक वृद्धि में उसकी अग्रणी भूमिका की पुष्टि करता है। यह दर्शाता है कि भारत वैश्विक अनिश्चितताओं और व्यापारिक व्यवधानों के बावजूद मजबूत बना हुआ है। यह अनुमान रोजगार, निवेश और निजी खपत के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है और घरेलू एवं विदेशी निवेशकों के बीच भरोसे को और मजबूत करता है।

विकास के प्रमुख कारण

  • मजबूत घरेलू मांग: उपभोग और निवेश के नेतृत्व में बढ़ोत्तरी।

  • सामान्य मानसून: कृषि उत्पादन और ग्रामीण खर्च में वृद्धि।

  • मौद्रिक शिथिलता: नीतिगत ब्याज दरों में संभावित कटौती से ऋण वृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है।

निम्न मुद्रास्फीति

  • शीर्ष मुद्रास्फीति अनुमान: 2025 में 3.8% और 2026 में 4.0%

  • जून 2025 की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति 2.1% रही, जो पिछले छह वर्षों में सबसे कम है, मुख्यतः नकारात्मक खाद्य मुद्रास्फीति के कारण।

अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना

  • चीन: 2025 में 4.7% और 2026 में 4.3% की स्थिर वृद्धि का अनुमान।

  • दक्षिण-पूर्व एशिया: सबसे अधिक प्रभावित, 2025 के लिए पूर्वानुमान घटाकर 4.2% और 2026 के लिए 4.3% कर दिया गया।

  • भारत: सभी प्रमुख एशियाई अर्थव्यवस्थाओं से अधिक तेजी से बढ़ता हुआ देश बना हुआ है और क्षेत्रीय नेतृत्व बनाए हुए है।

चुनौतियाँ और वैश्विक जोखिम

  • अमेरिका द्वारा टैरिफ में वृद्धि और व्यापार तनाव।

  • संभावित भू-राजनीतिक संघर्ष, जो आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर सकते हैं।

  • चीन के रियल एस्टेट बाजार में मंदी।

  • ऊर्जा कीमतों में अस्थिरता।

इन जोखिमों के बावजूद, एडीबी के मुख्य अर्थशास्त्री अल्बर्ट पार्क ने क्षेत्र को आर्थिक मूल सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करने, मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय सहयोग मजबूत करने की सलाह दी है ताकि विकास की गति बनी रहे।

भारतीय वायुसेना से 62 साल बाद रिटायर होगा MIG-21

भारतीय वायुसेना (IAF) सितंबर 2025 तक प्रतिष्ठित मिग-21 लड़ाकू विमानों को सेवा से हटा देगी, जिससे भारत की सैन्य विमानन में इनकी छह दशक लंबी सेवा का समापन होगा। ये विमान एक समय भारतीय वायुसेना की रीढ़ माने जाते थे, लेकिन अब सुरक्षा संबंधी चिंताओं और अत्याधुनिक स्वदेशी रूप से विकसित एलसीए तेजस मार्क 1ए को जगह देने के उद्देश्य से इन्हें चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है।

पृष्ठभूमि

मिग-21 को पहली बार 1963 में भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया था। यह भारत का पहला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान था, जिसे सोवियत संघ ने विकसित किया था। दशकों तक इसने कई महत्वपूर्ण सैन्य अभियानों में भाग लिया, जिनमें 1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, 1999 का कारगिल युद्ध और 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक शामिल हैं। इसकी लंबी सेवा अवधि ने इसे भारतीय रक्षा इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय बना दिया है।

महत्त्व

मिग-21 की सेवानिवृत्ति भारत की वायु युद्ध क्षमताओं में एक पीढ़ीगत बदलाव को दर्शाती है। यह देश की आधुनिक और स्वदेशी तकनीक जैसे एलसीए तेजस की ओर अग्रसर होने का संकेत है, जो सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ मिशन के अनुरूप है। इसके साथ ही यह कदम परिचालन सुरक्षा को भी बढ़ाएगा, क्योंकि हाल के वर्षों में मिग-21 कई दुर्घटनाओं का शिकार रहा है।

चुनौतियाँ और चिंताएँ

अपनी गौरवपूर्ण विरासत के बावजूद, मिग-21 को लगातार हो रही दुर्घटनाओं के कारण “फ्लाइंग कॉफ़िन” की संज्ञा दी गई है। एलसीए तेजस की आपूर्ति में हो रही देरी, विशेष रूप से GE एयरोस्पेस से इंजन की देर से आपूर्ति के कारण, वायुसेना की युद्ध तैयारी पर इस संक्रमण काल में अतिरिक्त दबाव डाल रही है।

भविष्य की योजनाएँ

भारतीय वायुसेना मिग-21 स्क्वाड्रनों, जो वर्तमान में नल एयरबेस (राजस्थान) में तैनात हैं, को तेजस मार्क 1ए विमानों से बदलने की योजना बना रही है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) मार्च 2026 तक कम से कम छह तेजस विमानों की आपूर्ति करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। यह बदलाव वायुसेना के बेड़े को आधुनिक बनाने और युद्धक दक्षता को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

‘बेस्ट मैजिक क्रिएटर’ अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय बनीं सुहानी शाह

भारतीय महिला जादूगर और मेंटलिस्ट सुहानी शाह ने इतिहास रच दिया है। उन्होंने ‘जादू की दुनिया का ऑस्कर’ कहे जाने वाले एफआईएसएम (वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ मैजिक) अवॉर्ड को अपने नाम किया है।

कब से मैजिक करने लगीं सुहानी?

सुहानी शाह भारत की सबसे प्रसिद्ध मेंटलिस्ट और जादूगरों में से एक हैं, जिन्होंने सात साल की उम्र से ही जादूगरी के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत की थी और इतनी छोटी उम्र में ही उन्होंने शो करना शुरू कर दिया था। सुहानी शाह अब तक 5,000 से अधिक लाइव परफॉर्मेंस दे चुकी हैं।

जादू की दुनिया का ‘ऑस्कर’ जीत रचा इतिहास

जादू की दुनिया का ऑस्कर कहे जाने वाले सबसे सम्मानित अवॉर्ड में से एक वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ मैजिक- 2025 का खिताब जीतकर उन्होंने देश का नाम ऊंचा कर दिया है। शाह की इस उपलब्धि ने वैश्विक जादू के मंच पर भारत को अलग पहचान दिलाई है।

एफआईएसएम जीतने वाली पहली भारतीय बनी सुहानी

उल्लेखनीय है कि एफआईएसएम के 2025 संस्करण ने ऑनलाइन क्रिएटर्स को समर्पित एक नई श्रेणी शुरू की है, जिसमें उन कलाकारों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से जादू की पहुंच को बढ़ाया है। इस क्षेत्र में भारत की सुहानी शाह ने अब परचम लहरा दिया है।

उदयपुर की रहने वाली है सुहानी शाह 

सुहानी शाह भारत की सबसे प्रसिद्ध जादूगरों और मेंटलिस्ट में से एक हैं। उनका जन्म उदयपुर के एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था। अपने जुनून को पूरा करने के लिए उन्होंने दूसरी कक्षा में ही स्कूल छोड़ दिया। फिर उन्होंने होम स्कूलिंग से अपनी पढ़ाई पूरी की। उन्होंने सात साल की उम्र में जादू के क्षेत्र में अपना करियर शुरू किया।

उन्होंने 2019 तक 5,000 से ज़्यादा लाइव परफॉर्मेंस दी हैं। उनका पहला स्टेज शो 22 अक्टूबर 1997 को अहमदाबाद के ठाकोर भाई देसाई हॉल में हुआ था। उन्हें ऑल इंडिया मैजिक एसोसिएशन द्वारा “जादूपरी” की उपाधि से सम्मानित किया गया है। वर्तमान में, वह एक कॉर्पोरेट ट्रेनर, लेखिका और काउंसलर के रूप में कार्यरत हैं।

पिछले 9 वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने ₹12 लाख करोड़ से अधिक की राशि बट्टे खाते में डाली

एक महत्वपूर्ण वित्तीय खुलासे में वित्त मंत्रालय ने हाल ही में राज्यसभा को सूचित किया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) ने वित्त वर्ष 2016 से 2025 के बीच ₹12 लाख करोड़ से अधिक की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) को बट्टे खाते में डाल दिया है। हालांकि इतने बड़े पैमाने पर ऋण बट्टे खाते में डाले गए हैं, फिर भी विभिन्न कानूनी माध्यमों के तहत ऋण की वसूली के प्रयास जारी हैं। इसके साथ ही, सार्वजनिक बैंकों में 48,570 पदों पर एक बड़े स्तर की भर्ती प्रक्रिया चल रही है, जो बैंकिंग क्षेत्र में एक अहम प्रगति मानी जा रही है। यह विकास अर्थव्यवस्था, बैंकिंग और शासन से संबंधित प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है।

पृष्ठभूमि: बैंक ऋणों को बट्टे खाते में क्यों डालते हैं

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि किसी गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) पर पूर्ण प्रावधान कर दिया गया है, तो बैंक उसे चार वर्षों के बाद बट्टे खाते में डाल सकते हैं। हालांकि, बट्टे खाते में डालना उधारकर्ता की देनदारी को समाप्त नहीं करता; बैंक अब भी कानूनी माध्यमों से ऋण वसूली का प्रयास जारी रखते हैं, जैसे कि:

  • ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT)

  • सारफेसी अधिनियम (SARFAESI)

  • राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) के अंतर्गत दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (IBC)

वित्त वर्ष 2016 से 2025 के बीच सार्वजनिक बैंकों द्वारा कुल ₹12,08,828 करोड़ की राशि को बट्टे खाते में डाला गया। इसमें से ₹5.82 लाख करोड़ की राशि केवल FY21 से FY25 के बीच लिखी गई।

बट्टे खाते की प्रवृत्तियाँ

12 सार्वजनिक बैंकों में से 10 बैंकों ने पिछले पाँच वर्षों में बट्टे खाते की राशि में गिरावट दर्ज की। हालांकि, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) और केनरा बैंक जैसे प्रमुख बैंकों में विशेष रूप से FY25 में इसमें वृद्धि देखी गई। यह अंतर सार्वजनिक बैंकों में परिसंपत्ति गुणवत्ता प्रबंधन के विभिन्न स्तरों को दर्शाता है।

वसूली और कानूनी कार्रवाई

इन बट्टे खातों से वसूली की प्रक्रिया जारी है। मंत्रालय ने बताया कि:

  • 1,629 उधारकर्ताओं (₹1.62 लाख करोड़ से अधिक के ऋण वाले) को जानबूझकर चूककर्ता घोषित किया गया है (31 मार्च 2025 तक)।

  • धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) और भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम (FEOA) के तहत ₹15,000 करोड़ और ₹750 करोड़ की संपत्तियाँ जब्त की गईं।

  • बैंक धोखाधड़ी मामलों में ₹25,000 करोड़ से अधिक की राशि पीड़ित बैंकों को वापस मिली है।

  • नौ व्यक्तियों को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया गया है, और नौ को PMLA के तहत दोषी ठहराया गया है।

रोज़गार और भर्ती (PSBs में)

31 मार्च 2025 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार:

  • सार्वजनिक बैंकों में 96% पद भरे गए हैं।

  • FY20 से FY25 के बीच 1.48 लाख कर्मचारियों की भर्ती की गई।

  • FY25–26 के लिए 48,570 कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया चल रही है।

  • सेवानिवृत्ति, अप्रत्याशित इस्तीफे और अधिवार्षिकी के कारण कर्मचारियों की कमी बनी रहती है।

दिल्ली सरकार ने पदक विजेताओं के नकद पुरस्कार राशि में बढ़ोतरी की

दिल्ली सरकार ने ओलंपिक और पैरालंपिक पदक विजेताओं के लिए नकद पुरस्कारों में भारी वृद्धि की है, जिसका उद्देश्य खेल उत्कृष्टता को बढ़ावा देना और युवाओं को सशक्त बनाना है। यह निर्णय हाल ही में शुरू की गई “मुख्यमंत्री खेल प्रोत्साहन योजना” के तहत लिया गया है, जिसका मकसद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल प्रतिभाओं को पहचान देना और उन्हें सम्मानित करना है। इस पहल के जरिए सरकार प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को प्रेरित करने और दिल्ली को एक खेल हब के रूप में विकसित करने की दिशा में काम कर रही है।

पृष्ठभूमि
पहले दिल्ली में ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेताओं को ₹3 करोड़ की प्रोत्साहन राशि दी जाती थी, जिसे अब बढ़ाकर ₹7 करोड़ कर दिया गया है। सरकार ने यह निर्णय खिलाड़ियों को बेहतर समर्थन देने और खेल को करियर के रूप में बढ़ावा देने के राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप लिया है।

महत्त्व
इस कदम का उद्देश्य अधिक युवाओं को खेलों की ओर आकर्षित करना और उन्हें उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना है। वित्तीय पुरस्कार और सरकारी नौकरियों के माध्यम से यह योजना खिलाड़ियों को पूरी तरह प्रशिक्षण और प्रतियोगिता पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता करती है।

उद्देश्य

  • अंतरराष्ट्रीय खेल उपलब्धियों को सम्मानित करना

  • पदक विजेता खिलाड़ियों को गरिमामय करियर विकल्प प्रदान करना

  • शहरी क्षेत्रों में युवाओं के बीच खेलों की भागीदारी को बढ़ावा देना

मुख्य विशेषताएं

  • ओलंपिक और पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेताओं को ₹7 करोड़

  • रजत पदक के लिए ₹5 करोड़ और कांस्य पदक के लिए ₹3 करोड़

  • ओलंपिक स्वर्ण और रजत पदक विजेताओं को ग्रेड A की सरकारी नौकरी

  • एशियाई और पैरा एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक पर ₹3 करोड़, रजत पर ₹2 करोड़ और कांस्य पर ₹1 करोड़

अन्य पहलें

  • मुख्यमंत्री डिजिटल एजुकेशन योजना की शुरुआत

  • सरकारी स्कूलों के 11वीं कक्षा के उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले 1,200 छात्रों को लैपटॉप

  • सभी दिल्ली सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर लैब की स्थापना

यह योजनाएं न केवल खेलों को बढ़ावा देंगी बल्कि डिजिटल साक्षरता और शैक्षणिक विकास को भी नई दिशा देंगी।

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने FY26 के लिए भारत की विकास दर का पूर्वानुमान घटाया

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (Ind-Ra), जो एक प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसी है, ने वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 6.3% कर दिया है। इससे पहले यह अनुमान इससे अधिक था। यह संशोधन वैश्विक अनिश्चितताओं, निवेश भावनाओं की कमजोरी और कुछ घरेलू सहायक कारकों जैसे कम मुद्रास्फीति और मौद्रिक सहजता के सम्मिलित प्रभाव को दर्शाता है। यह अपडेट उस समय आया है जब वैश्विक व्यापार मंदी और सतर्क निवेशक व्यवहार को लेकर व्यापक चिंताएँ बनी हुई हैं, जिससे भारत की समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण पर प्रभाव पड़ सकता है।

पृष्ठभूमि
हाल के तिमाहियों में भारतीय अर्थव्यवस्था से मिश्रित संकेत मिले हैं। पहले Ind-Ra का अनुमान अधिक आशावादी था, लेकिन घरेलू और वैश्विक दोनों स्तरों पर आर्थिक परिदृश्य में बदलाव आया है। इस संशोधन के पीछे प्रमुख कारणों में अमेरिका द्वारा एकतरफा टैरिफ वृद्धि शामिल है, जिससे वैश्विक व्यापार तनाव और बढ़ गया है। साथ ही, अपेक्षाकृत कमजोर निवेश माहौल ने एजेंसी को अपना अनुमान 30 आधार अंक घटाने के लिए प्रेरित किया, जिससे यह भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमानित दायरे 6.3%–6.8% के निचले छोर के करीब आ गया है।

पूर्वानुमान का महत्व
यह ग्रोथ अनुमान में कटौती इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दर्शाती है कि भारत की आर्थिक पुनर्प्राप्ति वैश्विक और घरेलू चुनौतियों के बीच कितनी नाज़ुक है। भले ही भारतीय रिज़र्व बैंक 6.5% की वृद्धि दर का अनुमान जताता है, इंड-रा का सतर्क दृष्टिकोण बढ़ती बाहरी अस्थिरताओं की ओर संकेत करता है। विशेष रूप से विनिर्माण और निर्यात जैसे क्षेत्रों में अनुमानित और वास्तविक निवेश गतिविधियों के बीच की खाई चिंता का कारण बनी हुई है।

प्रमुख बाधाएँ (Headwinds)
इंड-रा ने कई अवरोधों की ओर ध्यान दिलाया है:

  • अमेरिका द्वारा टैरिफ वृद्धि, जिससे वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता बढ़ी है।

  • वैश्विक मांग में मंदी के कारण निवेशकों की नई पूंजीगत व्यय (Capex) करने में हिचकिचाहट।

  • विनिर्माण क्षेत्र में कमजोरी और ग्रीनफील्ड परियोजनाओं की धीमी प्रगति।

  • IMF और विश्व बैंक जैसे वैश्विक संस्थानों ने भी 2025 के लिए वैश्विक GDP वृद्धि दर को क्रमशः 2.8% और 2.3% तक घटाया है।

घरेलू समर्थन और सकारात्मक कारक (Tailwinds)
इन चुनौतियों के बावजूद कुछ घरेलू कारक आशाजनक हैं:

  • मौद्रिक सहजता, जिससे कर्ज लेने की लागत कम होगी।

  • जून 2025 में खुदरा महंगाई (CPI) 2.1% के साथ 77 महीनों के न्यूनतम स्तर पर रही।

  • सामान्य से अधिक मानसून की भविष्यवाणी, जिससे ग्रामीण मांग और कृषि उत्पादन को बल मिल सकता है।

ये कारक वैश्विक मंदी के प्रभाव को कम करने और FY26 में धीरे-धीरे आर्थिक पुनरुद्धार को सहारा देने में मदद कर सकते हैं।

क्षेत्रीय प्रभाव और पूंजीगत व्यय (Capex) रुझान
इंड-रा का अनुमान है कि FY26 में Gross Fixed Capital Formation (GFCF) की वृद्धि दर 6.7% रहेगी, जो पहले के अनुमान से कम है। टेलीकॉम, वस्त्र (गारमेंट्स) और रसायन (केमिकल) जैसे क्षेत्रों में कैपेक्स में सुस्ती देखी जा सकती है, जबकि ऊर्जा, लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग और वाणिज्यिक रियल एस्टेट क्षेत्र अपनी वृद्धि गति बनाए रख सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश अब भी पूंजी निर्माण का प्रमुख प्रेरक बना हुआ है।

मुद्रास्फीति पर दृष्टिकोण (Inflation Outlook)
वित्त वर्ष 2025-26 में खुदरा मुद्रास्फीति औसतन 3% रहने का अनुमान है, जो RBI के 4% लक्ष्य से काफी नीचे है। यह मुद्रास्फीतिकीय नरमी (disinflation) की प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो पहले ही शुरू हो चुकी है। गिरती महंगाई उपभोक्ता मांग को प्रोत्साहित करेगी और मौद्रिक नीति समिति (MPC) पर दबाव को कम करेगी।

अमेरिका फिर UNESCO से बाहर निकलेगा

संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक और शैक्षिक एजेंसी यूनेस्को (UNESCO) से हटने का फैसला किया है, यह निर्णय पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के तहत लिया गया है। यह कदम ट्रंप के पहले कार्यकाल में 2017 में लिए गए ऐसे ही निर्णय की पुनरावृत्ति है, जिसे राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 2023 में पलट दिया था। व्हाइट हाउस ने इस कदम के पीछे वैचारिक मतभेदों का हवाला दिया है, यह आरोप लगाते हुए कि यूनेस्को “वोक” और “विभाजनकारी” एजेंडों को बढ़ावा देता है, जो अमेरिकी हितों के अनुकूल नहीं हैं।

पृष्ठभूमि

यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) की स्थापना 1945 में वैश्विक शांति को शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और संचार के माध्यम से बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। अमेरिका का यूनेस्को के साथ संबंध हमेशा जटिल रहा है—वह 1984 में इससे बाहर हुआ था और 2003 में पुनः शामिल हुआ। अमेरिका के यूनेस्को से मतभेद मुख्यतः इसके कथित रूप से अमेरिका-विरोधी या इज़राइल-विरोधी रुख और वित्तीय कुप्रबंधन को लेकर रहे हैं।

इस निर्णय का महत्व

यह फैसला “अमेरिका फर्स्ट” (America First) विदेश नीति को दर्शाता है, जो बहुपक्षीय सहयोग की अपेक्षा राष्ट्रीय संप्रभुता को प्राथमिकता देती है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि यूनेस्को उन विचारधाराओं और नीतियों का समर्थन करता है जो अमेरिकी मूल्यों के विपरीत हैं। यह कदम अमेरिका और इज़राइल के बीच गठजोड़ को और मजबूत करता है, क्योंकि इज़राइल लंबे समय से यूनेस्को की फिलिस्तीन को लेकर नीतियों की आलोचना करता रहा है।

प्रमुख कारण

  • यूनेस्को द्वारा 2011 में फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्यता देना।

  • यूनेस्को प्रस्तावों में कथित इज़राइल-विरोधी पूर्वाग्रह।

  • व्हाइट हाउस के अनुसार, यूनेस्को द्वारा “वोक” सांस्कृतिक और सामाजिक एजेंडों का समर्थन।

  • यह आरोप कि यूनेस्को एक वैश्विकवादी एजेंडा बढ़ावा देता है जो अमेरिकी प्राथमिकताओं से टकराता है।

वैश्विक सहयोग पर प्रभाव

हालाँकि अमेरिका यूनेस्को के बजट में लगभग 8% का योगदान देता है, लेकिन अधिकारियों का मानना है कि इसका वित्तीय प्रभाव सीमित होगा। फिर भी, प्रतीकात्मक प्रभाव काफी गहरा है। यह कदम शिक्षा की पहुंच, सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और होलोकॉस्ट शिक्षा जैसे मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग को कमजोर कर सकता है। आलोचकों का कहना है कि इस फैसले से यूनेस्को में चीन का प्रभाव बढ़ सकता है, जो अब इसका सबसे बड़ा वित्तीय योगदानकर्ता बन गया है।

झारखंड सरकार ने देश की पहली खनन पर्यटन परियोजना शुरू की

झारखंड भारत का पहला राज्य बनने जा रहा है जो एक माइनिंग टूरिज्म प्रोजेक्ट शुरू करेगा। इस परियोजना का उद्देश्य राज्य की समृद्ध खनिज विरासत को प्रदर्शित करना है, जिसके तहत लोगों को खदानों के अंदर ले जाकर मार्गदर्शित टूर और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान किए जाएंगे। यह पहल राज्य सरकार और सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL) के संयुक्त प्रयास से चलाई जा रही है।

इस परियोजना का उद्देश्य पर्यटन को नए रूप में विकसित करना है, जिससे न केवल आर्थिक अवसर बढ़ेंगे, बल्कि आम जनता को खनन प्रक्रियाओं और झारखंड के खनिज इतिहास के बारे में शिक्षित भी किया जाएगा। यह पहल खनन को केवल एक औद्योगिक प्रक्रिया न मानकर उसे शिक्षा और सांस्कृतिक जागरूकता का माध्यम बनाने की दिशा में एक अनूठा कदम है।

पृष्ठभूमि
झारखंड, जो भारत के लगभग 40% खनिज संसाधनों का भंडार रखता है, लंबे समय से देश का एक प्रमुख खनन केंद्र रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बार्सिलोना स्थित गावा म्यूज़ियम ऑफ माइन्स की यात्रा से प्रेरित होकर राज्य सरकार अब अपने खनन क्षेत्र के कुछ हिस्सों को पर्यटन के लिए खोलने जा रही है। इसके तहत सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL) के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) जैसे औपचारिक साझेदारी की गई है।

उद्देश्य
इस परियोजना का उद्देश्य है:

  • झारखंड में वैकल्पिक पर्यटन को बढ़ावा देना

  • विद्यार्थियों और आम लोगों को शैक्षणिक अनुभव प्रदान करना

  • औद्योगिक विरासत और स्थानीय संस्कृति को उजागर करना

  • रोज़गार के अवसर पैदा करना और आर्थिक विकास को गति देना

मुख्य विशेषताएँ

  • पायलट चरण की शुरुआत रामगढ़ जिले की नॉर्थ उरीमारी (बिरसा) ओपन-कास्ट माइंस से होगी

  • दो टूर सर्किट निर्धारित किए गए हैं:

    • राजरप्पा रूट: ₹2,800 + GST, इसमें छिन्नमस्तिका मंदिर और पतरातू घाटी शामिल

    • पतरातू रूट: ₹2,500 + GST, जिसमें पर्यटन विहार का दौरा शामिल

  • ये टूर सप्ताह में दो बार संचालित होंगे, प्रत्येक में 10–20 पर्यटकों का समूह

  • टूर में भोजन, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक स्थलों का भ्रमण शामिल

  • आगे चलकर तीन प्रमुख सर्किट बनाए जाएंगे:

    • ईको-माइनिंग सर्किट-1

    • ईको-माइनिंग सर्किट-2

    • धार्मिक सर्किट

महत्त्व और प्रभाव
यह परियोजना भारत में अपनी तरह का पहला पर्यटन मॉडल है, जो उद्योग, पर्यावरण और संस्कृति को जोड़ता है। इससे—

  • कम प्रसिद्ध क्षेत्रों में पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी

  • स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा और आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ेंगी

  • खनन के इतिहास और पर्यावरणीय जागरूकता को बल मिलेगा

  • झारखंड की सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती मिलेगी

केरल में एम्ब्रोसिया बीटल से रबर बागानों को खतरा

केरल के रबर बागानों को एक आक्रामक कीट, एम्ब्रोसिया बीटल (Euplatypus parallelus) से गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है, जो हानिकारक फफूंदों को साथ लाकर पेड़ों को व्यापक रूप से नुकसान पहुंचा रहा है। इस संक्रमण से लेटेक्स उत्पादन प्रभावित हो रहा है और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है, जिससे वैज्ञानिकों और किसानों के बीच चिंता बढ़ गई है।

पृष्ठभूमि

एम्ब्रोसिया बीटल, जो मूल रूप से मध्य और दक्षिण अमेरिका का निवासी है, भारत में पहली बार 2012 में गोवा के काजू पेड़ों पर देखा गया था। यह कीट आमतौर पर तनावग्रस्त या मरे हुए पेड़ों को निशाना बनाता है, जिनमें सुरंगें बनाकर वह फफूंद के बीजाणु छोड़ता है। यह बीटल Fusarium ambrosia और हाल ही में पहचाना गया Fusarium solani फफूंद अपने साथ लाता है, जो पेड़ों के लिए अत्यधिक विनाशकारी साबित हो रहे हैं।

संक्रमण का तरीका

यह बीटल पेड़ के तनों में सुरंगें (गैलेरी) बनाता है, जहां ये फफूंद विकसित होती हैं। परस्पर लाभकारी संबंध में, ये फफूंद बीटल और उसके लार्वा के लिए भोजन का काम करती हैं, जबकि बीटल इन फफूंदों के प्रसार में मदद करते हैं। अधिकांश ऐम्ब्रोसिया बीटल्स के विपरीत, इस प्रजाति में मायकैन्जिया (फफूंद ले जाने वाले अंग) नहीं होते, जिससे इसकी फफूंद ले जाने की क्षमता असामान्य और चिंताजनक बन जाती है।

रबर बागानों पर प्रभाव

संक्रमित पेड़ों से लेटेक्स रिसने लगता है, पत्ते झड़ने लगते हैं और तना सूखने लगता है। फफूंद जाइलम वाहिकाओं को अवरुद्ध कर देती है, जिससे जल प्रवाह बाधित होता है और लकड़ी की गुणवत्ता गिरती है। परिणामस्वरूप, लेटेक्स उत्पादन घटता है और पेड़ की रिकवरी धीमी या असंभव हो जाती है। यह स्थिति केरल के रबर किसानों के लिए गंभीर आर्थिक संकट पैदा कर सकती है।

नियंत्रण उपाय और चुनौतियाँ

वर्तमान उपायों में संक्रमित पेड़ों को हटाना, बीटल पकड़ने के लिए ट्रैप्स लगाना और ऐंटी-फंगल उपचार शामिल हैं। हालांकि, फफूंद का आंतरिक संक्रमण होने के कारण ये उपाय सीमित रूप से ही प्रभावी हैं। प्रारंभिक पहचान और निगरानी अत्यंत आवश्यक है, लेकिन बड़े पैमाने पर बागानों में इसे लागू करना कठिन है।

व्यापक जोखिम

यह ऐम्ब्रोसिया बीटल 80 से अधिक चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों पर आक्रमण कर सकता है, जिनमें सागौन, कॉफी, काजू और नारियल शामिल हैं। यदि यह अन्य रोगजनक फफूंदों से नए संबंध बना लेता है, तो पारिस्थितिक और आर्थिक जोखिम कई गुना बढ़ सकते हैं। इसके अतिरिक्त, Fusarium प्रजातियां मानव स्वास्थ्य, विशेष रूप से कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को भी प्रभावित कर सकती हैं।

सिफारिशें

विशेषज्ञ केरल के लिए क्षेत्र-विशिष्ट रणनीतियों की सिफारिश करते हैं, क्योंकि सार्वभौमिक उपाय प्रभावी नहीं हो सकते। आशाजनक समाधानों में विरोधी फफूंदों (antagonistic fungi) और लाभकारी सूक्ष्मजीवों को पेड़ों के भीतर स्थापित करना शामिल है। दीर्घकालिक प्रबंधन के लिए वैज्ञानिकों, सरकारी एजेंसियों और किसानों के बीच सहयोग आवश्यक है।

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