FISU World University Games 2025: तीरंदाजी में भारत ने जीता स्वर्ण

भारत ने जर्मनी के राइन-रुहर में आयोजित FISU वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स 2025 में गर्व का क्षण दर्ज किया, जब तीरंदाज परनीत कौर और कुशल दलाल ने कंपाउंड मिक्स्ड टीम आर्चरी इवेंट में देश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता। यह उपलब्धि न केवल भारत की खेल जगत में बढ़ती सफलता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि विश्व स्तर पर भारतीय विश्वविद्यालयों के खिलाड़ी अब गैर-पारंपरिक ओलंपिक खेलों, जैसे कंपाउंड आर्चरी, में भी अपना परचम लहरा रहे हैं।

पृष्ठभूमि

FISU वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स, जिसे अक्सर यूनिवर्सिएड कहा जाता है, एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन है, जिसे हर दो साल में इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स फेडरेशन (FISU) द्वारा आयोजित किया जाता है। 2025 संस्करण 16 से 27 जुलाई तक जर्मनी के छह शहरों में आयोजित हो रहा है। इस प्रतियोगिता में भारत के लगभग 300 खिलाड़ी विभिन्न खेलों में भाग ले रहे हैं।

आर्चरी, विशेष रूप से कंपाउंड फॉर्मेट, वैश्विक स्तर पर तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। विशेष बात यह है कि कंपाउंड आर्चरी को पहली बार लॉस एंजेलेस 2028 ओलंपिक में शामिल किया जाएगा, जिससे इस श्रेणी में भाग ले रहे खिलाड़ियों के लिए यह अवसर और भी महत्वपूर्ण और प्रतिस्पर्धात्मक बन गया है।

राइन-रुहर 2025 में तीरंदाजी में भारत का पदक प्रदर्शन

स्वर्ण पदक

  • इवेंट: कंपाउंड मिक्स्ड टीम

  • विजेता: पारनीत कौर और कुशल दलाल

  • फाइनल स्कोर: भारत (157) ने दक्षिण कोरिया (154) को हराया

रजत पदक

  • इवेंट: कंपाउंड पुरुष टीम

  • टीम: कुशल दलाल, साहिल राजेश जाधव, हृतिक शर्मा

  • परिणाम: तुर्की से बेहद कड़े मुकाबले में हार (232–231)

कांस्य पदक

  • इवेंट: कंपाउंड महिला टीम

  • टीम: पारनीत कौर, अवनीत कौर, मधुरा धमंगांवकर

  • परिणाम: ग्रेट ब्रिटेन को हराया (232–224)

इन तीनों पदकों की जीत एक ही दिन में हुई, जिससे भारत की कुल पदक संख्या 2025 खेलों में अब तक पाँच हो गई है।

उपलब्धि का महत्व

  • गैर-ओलंपिक खेलों को बढ़ावा: कंपाउंड तीरंदाजी जैसे अभी तक व्यापक पहचान न पाने वाले खेल को इस तरह की उपलब्धियों से नई पहचान और लोकप्रियता मिल रही है।

  • एलए 2028 का मार्ग प्रशस्त: अब जब कंपाउंड तीरंदाजी को ओलंपिक में शामिल कर लिया गया है, भारतीय तीरंदाजों के पास शीर्ष स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का सशक्त अवसर है।

  • खेलों में महिला भागीदारी: पारनीत कौर की टीम और व्यक्तिगत दोनों स्पर्धाओं में सफलता, तीरंदाजी में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और उत्कृष्टता को दर्शाती है।

  • विश्वविद्यालय स्तर की प्रतिभा: यह प्रदर्शन भारतीय विश्वविद्यालयों में मौजूद गहराई वाली खेल प्रतिभा को दर्शाता है, जो दीर्घकालिक खेल विकास के लिए बेहद अहम है।

विश्व मैंग्रोव दिवस: प्रकृति के तटीय संरक्षकों का संरक्षण

विश्व मैंग्रोव दिवस, जो हर वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है, एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय जागरूकता दिवस है जिसका उद्देश्य मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा और संरक्षण को बढ़ावा देना है। यूनेस्को द्वारा 2015 में आधिकारिक मान्यता प्राप्त यह दिवस, मैंग्रोव वनों के विशाल पारिस्थितिक मूल्य की याद दिलाता है — ये तटीय आपदाओं से प्राकृतिक ढाल की तरह काम करते हैं और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करते हुए कार्बन सिंक की भूमिका निभाते हैं। चिंता की बात यह है कि 1980 के बाद से दुनिया के लगभग आधे मैंग्रोव वन नष्ट हो चुके हैं, जिससे इनका संरक्षण और पुनर्स्थापन अब पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है।

मैंग्रोव क्या हैं?

मैंग्रोव एक विशेष प्रकार के वृक्ष और झाड़ियाँ होती हैं, जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में नमकीन या खारे पानी वाले तटीय क्षेत्रों में उगती हैं। इनकी जटिल जड़ प्रणालियाँ इन्हें अत्यधिक लवणता, ऑक्सीजन की कमी और नियमित ज्वार-भाटे जैसी कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रहने में सक्षम बनाती हैं। दुनिया भर में लगभग 110 प्रजातियाँ मैंग्रोव की पाई जाती हैं। इन वृक्षों की विशेष संरचना तटों को कटाव से बचाने और जलीय जीवों के प्रजनन स्थल प्रदान करने में सहायक होती है।

विश्व मैंग्रोव दिवस का इतिहास और उत्पत्ति

विश्व मैंग्रोव दिवस को यूनेस्को द्वारा जुलाई 2015 में अपनी महासभा के दौरान घोषित किया गया था। यह दिन कोलंबियाई पर्यावरणविद गुइलेर्मो कैनो इसाज़ा की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्होंने मैन्ग्रोव वनों की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवाए थे। इस दिवस की शुरुआत, मैंग्रोव वनों की तेज़ी से हो रही कटाई — जो मुख्यतः जलीय कृषि, शहरीकरण और लकड़ी की कटाई के कारण हो रही थी — के प्रति वैश्विक चिंता के रूप में हुई थी। इसका उद्देश्य लोगों में जागरूकता फैलाना, स्थानीय स्तर पर संरक्षण कार्यों को प्रेरित करना, और वैश्विक नीतियों को प्रोत्साहित करना है, जिससे मैन्ग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का सतत उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का महत्व

प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा:

मैंग्रोव पेड़ सुनामी, तूफान और ज्वार की लहरों से रक्षा करने वाली प्राकृतिक दीवार की तरह काम करते हैं। उदाहरणस्वरूप, तमिलनाडु का एक गांव 2004 की सुनामी के दौरान लगभग सुरक्षित रहा क्योंकि उसके चारों ओर घने मैन्ग्रोव थे।

‘ब्लू कार्बन’ भंडारण:
मैंग्रोव वन एक हेक्टेयर में उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में पांच गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड संग्रहित करते हैं। ये जलवायु परिवर्तन से लड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं।

जैव विविधता के केंद्र:
इनकी जटिल जड़ प्रणाली मछलियों, केकड़ों, झींगों, घोंघों और यहां तक कि बाघों और मगरमच्छों जैसे संकटग्रस्त जीवों के लिए आदर्श प्रजनन स्थल है।

आजीविका का साधन:
स्थानीय समुदायों को शहद, रेशम और समुद्री भोजन जैसे संसाधन मैन्ग्रोव से प्राप्त होते हैं जिन्हें स्थायी और जिम्मेदार तरीके से संग्रह किया जा सकता है।

मैंग्रोव वनों को खतरे

झींगा पालन और जलीय कृषि:
झींगा तालाब बनाने के लिए मैंग्रोव की कटाई होती है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता गिरती है और रासायनिक प्रदूषण होता है।

ईंधन और लकड़ी के लिए कटाई:
मैंग्रोव लकड़ी निर्माण और ईंधन के लिए कीमती मानी जाती है, जिससे अवैध कटाई आम हो गई है।

शहरीकरण और बुनियादी ढांचा:

नदी मोड़ना, सड़क निर्माण और औद्योगिक परियोजनाएँ मैंग्रोव के प्राकृतिक आवास को नष्ट करती हैं।

जलवायु परिवर्तन:
समुद्र स्तर में वृद्धि और लवणता में बदलाव से मैंग्रोव का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है।

विश्व मैंग्रोव दिवस कैसे मनाएँ?

मैंग्रोव पौधा लगाएँ:
यदि आप तटीय क्षेत्र में रहते हैं या जा रहे हैं, तो स्थानीय प्रजातियों का पौधारोपण करें।

शिक्षा और जागरूकता फैलाएँ:
स्कूलों, कॉलेजों या सोशल मीडिया पर मैंग्रोव की महत्ता पर कार्यक्रम आयोजित करें।

हरित आजीविका का समर्थन करें:
स्थायी रूप से एकत्रित शहद, मछली जैसे उत्पादों को बढ़ावा दें और स्थानीय व्यापार को समर्थन दें।

जलवायु के प्रति सजग बनें:
प्लास्टिक कम करें, पैदल चलें या साइकिल का प्रयोग करें, ताकि समुद्री पारिस्थितिकी की रक्षा हो सके।

मैंग्रोव से जुड़े रोचक तथ्य

प्राचीन इतिहास:
मैंग्रोव के जीवाश्म बताते हैं कि ये 7.5 करोड़ साल पहले भी अस्तित्व में थे।

सुनदर्शन – विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन:
पश्चिम बंगाल स्थित यह वन यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

लवण निस्सारण क्षमता:
मैंग्रोव पेड़ पत्तियों या छाल के माध्यम से अतिरिक्त नमक बाहर निकाल देते हैं।

ऑक्सीजन प्रदाता:
कठिन परिस्थितियों के बावजूद ये पेड़ ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं और वायु की गुणवत्ता सुधारते हैं।

कोरल के मित्र:
मैंग्रोव गाद को छानकर और कोरल के बच्चों को आश्रय देकर कोरल को सफेद होने से बचाते हैं।

ब्रिटेन में किंग चार्ल्स से मिले PM मोदी, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत भेंट किया खास पौधा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूनाइटेड किंगडम की अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान सैंड्रिंघम हाउस में किंग चार्ल्स तृतीय से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान उन्होंने किंग चार्ल्स तृतीय को शरद ऋतु में लगाए जाने वाले एक पेड़ का उपहार दिया। ये पौधा “एक पेड़ मां के नाम” पर्यावरण पहल के तहत भेंट किया गया है। इसका उद्देश्य माताओं के सम्मान में वृक्षारोपण को बढ़ावा देना है।

पृष्ठभूमि

‘एक पेड़ मां के नाम’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई एक हरित पहल है, जिसका उद्देश्य लोगों को अपनी माताओं की स्मृति या सम्मान में वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करना है। यह अभियान पर्यावरणीय उत्तरदायित्व और प्रकृति से व्यक्तिगत भावनात्मक जुड़ाव को प्रोत्साहित करता है। यह भारत के जलवायु कार्रवाई और पारिस्थितिकीय स्थिरता की व्यापक कोशिशों का हिस्सा है।

महत्व

प्रधानमंत्री द्वारा भेंट किया गया यह पौधा भारत की ग्रीन डिप्लोमेसी के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है और वैश्विक नेताओं को पर्यावरणीय मुद्दों में सहभागी बनाने का प्रयास भी है। किंग चार्ल्स तृतीय स्वयं लंबे समय से सतत जीवनशैली, जैविक खेती और जलवायु कार्रवाई के समर्थक रहे हैं, जिससे यह एक अर्थपूर्ण और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध प्रतीक बना। इस कदम ने वैश्विक मंच पर भारत के सांस्कृतिक मूल्यों और सॉफ्ट पावर को भी उजागर किया।

उद्देश्य:

इस पहल का मुख्य उद्देश्य है—

  • नागरिकों को प्रेरित करना कि वे वृक्षारोपण के माध्यम से हरित अभियान में भाग लें।

  • सतत विकास से भावनात्मक जुड़ाव को प्रोत्साहित करना।

  • भारत के हरित अभियानों के प्रति वैश्विक जागरूकता बढ़ाना।

  • पर्यावरण संरक्षण में समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।

भेंट किए गए पौधे की प्रमुख विशेषताएं:

  • उपहार में दिया गया पौधा डेविडिया इनवोलुक्रेटा ‘सोनोमा’ है, जिसे सोनोमा डव ट्री या रूमाल ट्री के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह एक सजावटी प्रजाति है, जिसकी विशेषता इसके सफेद पंखुड़ीनुमा ब्रैक्ट्स हैं, जो उड़ते हुए रूमाल या कपोतों (doves) जैसे प्रतीत होते हैं।

  • यह पेड़ 2–3 वर्षों में जल्दी खिलने लगता है।

  • इसे शरद ऋतु में सैंडरिंघम एस्टेट पर रोपा जाएगा।

प्रभाव:

इस भेंट ने भारत–ब्रिटेन के संबंधों को केवल पर्यावरण के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि भारत–यूके मुक्त व्यापार समझौता (CETA), योग और आयुर्वेद सहयोग, तथा खेल कूटनीति के माध्यम से युवा जुड़ाव जैसे क्षेत्रों में भी मजबूती दी। यह पौधा भारत और ब्रिटेन के बीच दीर्घकालिक हरित साझेदारी का प्रतीक है और जलवायु उत्तरदायित्व के क्षेत्र में भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी सुदृढ़ करता है।

मध्य प्रदेश ने बेरोजगार युवाओं के लिए मासिक सहायता की शुरुआत की

मध्य प्रदेश सरकार ने बेरोजगार युवाओं को कौशल विकास में सहयोग देने के उद्देश्य से एक नई पहल शुरू की है, जिसके तहत औद्योगिक इंटर्नशिप के दौरान युवाओं को मासिक वजीफा दिया जाएगा — महिलाओं को ₹6,000 और पुरुषों को ₹5,000। यह योजना राज्य की मौजूदा लाड़ली बहना योजना का विस्तार मानी जा रही है, जिसमें अब पुरुष लाभार्थियों को भी ‘लाड़ली भाइयों’ के अनौपचारिक नाम से शामिल किया गया है। यह पहल न केवल युवाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करेगी, बल्कि उन्हें उद्योगों से जोड़कर व्यावसायिक प्रशिक्षण और रोजगार के अवसरों को भी सुलभ बनाएगी।

पृष्ठभूमि

मध्य प्रदेश में युवाओं की बड़ी जनसंख्या है — जिनमें 1.5 करोड़ से अधिक युवा शामिल हैं, और इनमें से लगभग 1.53 करोड़ की उम्र 20 से 30 वर्ष के बीच है। बेरोजगारी और कौशल असंतुलन की समस्या राज्य के लिए लंबे समय से चिंता का विषय रही है। इससे पहले युवा स्वाभिमान रोजगार योजना (2019) के तहत शहरी युवाओं को ₹4,000 मासिक वजीफे के साथ रोजगार गारंटी दी जाती थी, लेकिन प्रशासनिक बदलावों के कारण योजना को बंद कर दिया गया था।

उद्देश्य

इस नई पहल के मुख्य उद्देश्य हैं:

  • बेरोजगार युवाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करना।

  • उद्योगों में इंटर्नशिप को प्रोत्साहित करना, जिससे व्यावहारिक कौशल में सुधार हो।

  • एक प्रशिक्षित कार्यबल तैयार कर औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाना।

मुख्य विशेषताएं

  • मासिक वजीफा: महिलाओं को ₹6,000 और पुरुषों को ₹5,000।

  • योजना में पंजीकृत उद्योगों में इंटर्नशिप करने वाले युवाओं के लिए खुला।

  • लाड़ली बहना योजना के साथ एकीकृत — लाभार्थी महिलाओं को अब दिवाली के बाद ₹1,500/माह मिलेंगे, जो 2028 तक बढ़कर ₹3,000 हो जाएंगे।

  • त्योहारों के अवसर पर विशेष प्रोत्साहन की व्यवस्था।

  • भोपाल के पास अचारपुरा औद्योगिक क्षेत्र को एक विशेष औद्योगिक हब के रूप में विकसित किया जा रहा है।

महत्व

यह पहल लैंगिक-संवेदनशील कल्याण दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी को प्रोत्साहित करती है। उद्योगों को इस योजना में शामिल कर रोजगार को आर्थिक विकास से जोड़ा गया है, जिससे युवा ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग के साथ-साथ आय भी प्राप्त कर सकेंगे।

इसरो प्रमुख डॉ. वी नारायणन को जीपी बिड़ला मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वर्तमान अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ. वी. नारायणन को हाल ही में वर्ष 2025 का प्रतिष्ठित जी.पी. बिड़ला मेमोरियल अवॉर्ड प्रदान किया गया। यह सम्मान उन्हें भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनके उत्कृष्ट योगदान और अत्याधुनिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने में उनके नेतृत्व के लिए दिया गया है। यह पुरस्कार भारत के प्रमुख वैज्ञानिक सम्मानों में से एक है, जो विज्ञान, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्रों में गहरा प्रभाव डालने वाले व्यक्तियों को मान्यता देता है।

पृष्ठभूमि

जी.पी. बिड़ला मेमोरियल अवॉर्ड, जिसे पहले लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड के नाम से जाना जाता था, प्रसिद्ध उद्योगपति और समाजसेवी घनश्यामदास (जी.पी.) बिड़ला की स्मृति में दिया जाता है। यह सम्मान जी.पी. बिड़ला पुरातत्वीय, खगोलविज्ञान और वैज्ञानिक संस्थान द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसकी अध्यक्षता निर्मला बिड़ला करती हैं। यह पुरस्कार विज्ञान, शिक्षा, खगोलशास्त्र और जनसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों को दिया जाता है।

डॉ. वी. नारायणन के बारे में

डॉ. नारायणन ने इसरो में एक लंबा और प्रभावशाली करियर बिताया है, विशेष रूप से क्रायोजेनिक प्रणोदन तकनीक (cryogenic propulsion) के क्षेत्र में। इसरो के अध्यक्ष बनने से पहले, वे लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC) के निदेशक के रूप में कार्यरत थे। उनके नेतृत्व में भारत ने गगनयान, चंद्रयान-3, और आदित्य-एल1 जैसे मिशनों में जटिल प्रणोदन प्रणालियों का सफल परीक्षण और एकीकरण किया।

सम्मान का महत्व

यह पुरस्कार भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान और विकास में बढ़ती क्षमता को मान्यता देता है और इस यात्रा में डॉ. नारायणन की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है। यह उन्हें डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, डॉ. कस्तूरीरंगन और डॉ. वेंकटरमण रामकृष्णन जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों की श्रेणी में रखता है, और भारत की वैज्ञानिक विरासत को वैश्विक स्तर पर जोड़ता है। साथ ही, यह इसरो की वैश्विक अंतरिक्ष अभियानों और वैज्ञानिक कूटनीति में बढ़ती रणनीतिक भूमिका को भी रेखांकित करता है।

पूर्व विजेता

अब तक यह पुरस्कार 32 नोबेल पुरस्कार विजेताओं सहित अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों को दिया जा चुका है, जिनमें शामिल हैं:

  • डॉ. वेंकटरमण रामकृष्णन (रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार)

  • प्रो. जोगेश पाटी (सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी)

  • डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (भारत के पूर्व राष्ट्रपति)

  • डॉ. कस्तूरीरंगन (पूर्व इसरो अध्यक्ष)

प्रोफेसर उमा कांजीलाल बनीं IGNOU की पहली महिला कुलपति

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में नए कुलपति का नियुक्ति हो गई है। प्रोफेसर उमा कांजीलाल को यह कमान सौंपी गई है। इसी के साथ उन्हें इग्नू की पहली महिला कुलपति बनने का गौरव हासिल हुआ। ओपन और डिस्टेंस लर्निंग (ODL), डिजिटल शिक्षा और अकादमिक नेतृत्व में तीन दशकों से अधिक के अनुभव के साथ, उनका इस प्रतिष्ठित पद पर आसीन होना समावेशी और प्रौद्योगिकी-प्रेरित उच्च शिक्षा पर भारत के बढ़ते फोकस को दर्शाता है।

पृष्ठभूमि

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू), जिसकी स्थापना 1985 में हुई थी, विश्व का सबसे बड़ा मुक्त विश्वविद्यालय है, जो लाखों शिक्षार्थियों को समावेशी और लचीली शिक्षा प्रदान करता है। स्थापना से ही यह ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ODL) मॉडल का अग्रणी रहा है। कई प्रतिष्ठित विद्वानों के नेतृत्व के बावजूद, प्रोफेसर उमा कंजारिलाल इग्नू की 40 वर्षीय इतिहास में पहली महिला कुलपति बनी हैं।

प्रो. कंजारिलाल ने 2003 में इग्नू में पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्यभार संभाला था और इसके बाद उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक और प्रशासनिक पदों पर कार्य किया। मार्च 2021 से जुलाई 2024 तक उन्होंने प्रो-वाइस चांसलर के रूप में सेवा दी, और जुलाई 2024 से जुलाई 2025 तक कार्यकारी कुलपति के रूप में कार्यरत रहीं। जुलाई 2025 में उन्हें औपचारिक रूप से कुलपति नियुक्त किया गया।

नियुक्ति का महत्व

कांच की दीवार को तोड़ना: प्रो. उमा कंजारिलाल की नियुक्ति इग्नू की पहली महिला कुलपति के रूप में भारतीय शैक्षणिक क्षेत्र में लैंगिक प्रतिनिधित्व के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ODL) नेतृत्व: ओडीएल क्षेत्र में 36 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ, उनके नेतृत्व से इग्नू की वैश्विक अकादमिक साख को और मजबूती मिलने की अपेक्षा है।

डिजिटल शिक्षा में विशेषज्ञता: भारत की ऑनलाइन शिक्षा पहल की प्रमुख हस्ती के रूप में, वह डिजिटल सामग्री वितरण और व्यापक पहुँच के क्षेत्र में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं, जो इग्नू को तकनीक-संचालित शिक्षा के अगले चरण तक ले जा सकती है।

मुख्य योगदान

SWAYAM और SWAYAM PRABHA की राष्ट्रीय समन्वयक: शिक्षा मंत्रालय की इन पहलों के तहत, प्रो. कंजिलाल ने गुणवत्तापूर्ण ऑनलाइन और टेलीविज़न शिक्षा को निःशुल्क रूप में देशभर में पहुँचाने का कार्य किया।

नेतृत्व भूमिकाएँ: उन्होंने इग्नू की कई प्रमुख इकाइयों का नेतृत्व किया, जिनमें शामिल हैं –

  • सेंटर फॉर ऑनलाइन एजुकेशन

  • इंटर-यूनिवर्सिटी कंसोर्टियम फॉर टेक्नोलॉजी एनैबल्ड फ्लेक्सिबल एजुकेशन

  • एडवांस्ड सेंटर फॉर इनफॉर्मेटिक्स एंड इनोवेटिव लर्निंग

फुलब्राइट फेलोशिप: 1999–2000 में अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉय, अर्बाना-शैंपेन में फेलोशिप के दौरान उन्हें वैश्विक शैक्षणिक दृष्टिकोण प्राप्त हुआ।

अंतरराष्ट्रीय अनुभव: जॉर्डन में UNRWA (संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी) के साथ कार्य कर अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक परियोजनाओं में योगदान दिया।

मुख्य फोकस क्षेत्र और दृष्टिकोण

  • समावेशी शिक्षा: ओपन लर्निंग सिस्टम के माध्यम से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को शिक्षा तक पहुँच प्रदान करना।

  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: ICT-सक्षम पुस्तकालयों, ई-लर्निंग उपकरणों और MOOCs के ज़रिए डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देना।

  • वैश्विक सहयोग: ओपन एजुकेशन में अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को मजबूत करना।

  • क्षमता निर्माण: शिक्षकों के प्रशिक्षण और शिक्षार्थियों के समर्थन तंत्र को सुदृढ़ बनाना।

गीतांजलि श्री ने ‘वंस एलिफेंट्स लिव्ड हियर’ के लिए पेन ट्रांसलेट पुरस्कार जीता

अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री को उनकी किताब ‘वंस एलिफेंट्स लिव्ड हियर’ के लिए पेन ट्रांसलेट अवॉर्ड से सम्मानित करने का फैसला किया गया है। लंदन स्थित मानवाधिकार संगठन ‘इंग्लिश पेन’ ने यह जानकारी दी। ‘इंग्लिश पेन’ ने बताया कि उसने पेन ट्रांसलेट अवॉर्ड के लिए दुनिया के 11 क्षेत्रों की 13 भाषाओं में रची गई 14 किताबों को चुना है।

उसने बताया कि पेन ट्रांसलेट और एसएएलटी के सहयोग से चयनित विजेताओं में भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री की ‘वंस एलिफेंट्स लिव्ड हियर’ (जिसका हिंदी से अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया है) और पाकिस्तानी शायरा सारा शगुफ्ता की ‘आइज, आइज, आइज’ (जिसका उर्दू से अनुवाद जावेरिया हसनैन ने किया है) शामिल हैं।

लघु कथाओं का एक संग्रह

‘वंस एलिफेंट्स लिव्ड हियर’ लघु कथाओं का एक संग्रह है, जो स्मृति, क्षति, विस्थापन और सामाजिक परिवर्तनों से लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव जैसे विषयों की पड़ताल करती है। विजेताओं का चयन एक स्वतंत्र बहुक्षेत्रीय चयन पैनल द्वारा “रचनाओं की उत्कृष्ट साहित्यिक गुणवत्ता, प्रकाशन परियोजना की मजबूती और ब्रिटिश ग्रंथ विविधता में उनके योगदान के आधार पर” किया गया है।

पेन ट्रांसलेट अवॉर्ड के अन्य विजेताओं में

पेन ट्रांसलेट अवॉर्ड के अन्य विजेताओं में मोहम्मद अल-असद (फलस्तीन) की ‘चिल्ड्रन ऑफ द ड्यू’, जिसका अरबी से अनाहीद अल-हरदान और मैया टैबेट ने अनुवाद किया है; डैनियला कैट्रीलियो (चिली) की ‘चिल्को’, जिसका स्पेनिश से जैकब एडेलस्टीन ने अनुवाद किया है; कॉन्सेइसाओ एवरिस्टो (ब्राजील) की ‘द बैकस्ट्रीट ऑफ मेमोरी’, जिसका पुर्तगाली से एनी मैकडरमोट ने अनुवाद किया है; गेल फेय (रवांडा/फ्रांस) की ‘जैकारांडा’, जिसका फ्रेंच से सारा अर्दिजोन ने अनुवाद किया है; मार गार्सिया पुइग (स्पेन) की ‘द हिस्ट्री ऑफ वर्टिब्रेट्स’, जिसका कैटलन से मारा फेय लेथेम ने अनुवाद किया है; और पीटर कुर्जेक (जर्मनी) की ‘एक्रॉस द आइस’, जिसका जर्मन से इमोजेन टेलर ने अनुवाद किया है, शामिल हैं।

इसके अलावा, पद्मा विश्वनाथन द्वारा पुर्तगाली से अनुवादित एना पाउला माइया (ब्राजील) की ‘ऑन अर्थ एज इट इज बिनीथ’, गेय किनोच द्वारा डेनिश से अनुवादित मैडम नीलसन (डेनमार्क) की ‘लामेंटो’, साशा डगडेल द्वारा रूसी से अनुवादित मारिया स्टेपानोवा (रूस) की ‘डिसेपियरिंग एक्ट्स’, स्टीफन कोमारनिकिज द्वारा यूक्रेनी से अनुवादित ‘टेक सिक्स: सिक्स यूक्रेनी वुमेन’ (यूक्रेन); अरबी से अनुवादित ‘पैलेस्टीन माइनस वन’ (फलस्तीन); और स्पेनिश, पुर्तगाली, मापुचे और क्वेचुआ से अनुवादित ‘ला लुचा: लैटिन अमेरिकन फेमिनिज्म टुडे’ को भी इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है।

गीतांजलि श्री के बारे में

गीतांजलि श्री एक सम्मानित हिंदी उपन्यासकार और कहानीकार हैं। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि उनके उपन्यास रेत समाधि (Tomb of Sand) के लिए मिली, जिसे 2022 में इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपनी अनोखी कथन शैली और गहन सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि के लिए जानी जाने वाली गीतांजलि भारतीय विषयों को वैश्विक मंच पर प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती हैं। अनुवादक डेज़ी रॉकवेल के साथ उनकी साझेदारी इस अंतरराष्ट्रीय सफलता में बेहद महत्वपूर्ण रही है।

रिले पॉवेल ने पंकज आडवाणी को हराकर विश्व 6-रेड स्नूकर खिताब जीता

IBSF वर्ल्ड 6-रेड स्नूकर चैंपियनशिप 2025 में एक चौंकाने वाले मुकाबले में वेल्स के 16 वर्षीय क्यू खिलाड़ी रिले पॉवेल ने भारत के दिग्गज स्नूकर खिलाड़ी पंकज आडवाणी को हराकर खिताब जीत लिया। बहरीन की राजधानी मनामा में खेले गए इस रोमांचक फाइनल में पॉवेल ने आडवाणी को 5-4 से मात दी, जिससे आडवाणी अपने 40वें जन्मदिन पर रिकॉर्ड 29वां विश्व खिताब जीतने से चूक गए। यह जीत पॉवेल के करियर का एक अहम मोड़ साबित हुई है और यह स्नूकर खेल में उभरती युवा प्रतिभाओं के वैश्विक उदय को दर्शाती है।

टूर्नामेंट की पृष्ठभूमि

इंटरनेशनल बिलियर्ड्स एंड स्नूकर फेडरेशन (IBSF) वर्ल्ड 6-रेड चैंपियनशिप एक प्रतिष्ठित वैश्विक टूर्नामेंट है, जिसमें दुनिया भर के शीर्ष क्यू खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। पारंपरिक स्नूकर के विपरीत, “6-रेड” प्रारूप में केवल छह लाल गेंदें होती हैं, जिससे खेल तेज़ और अधिक आक्रामक बन जाता है। भारत के सबसे सफल क्यू खिलाड़ी पंकज आडवाणी इस टूर्नामेंट में वाइल्डकार्ड के रूप में शामिल हुए थे और उनसे उनके 29वें विश्व खिताब की उम्मीद की जा रही थी।

फाइनल मुकाबला: अनुभव बनाम युवा ऊर्जा

फाइनल मुकाबला नौ फ्रेमों का था। आडवाणी ने अपनी बेहतरीन सेफ्टी प्ले का प्रदर्शन करते हुए शुरुआत में मैच पर नियंत्रण बना लिया। उन्होंने तीसरे फ्रेम में शानदार 73 अंकों की क्लीयरेंस लगाई और चौथे फ्रेम में ब्लैक बॉल प्लेऑफ के जरिए बढ़त बनाकर स्कोर 3-1 कर दिया।

हालांकि, आक्रामक पॉटिंग शैली के लिए मशहूर राइली पॉवेल ने जबरदस्त वापसी की। उन्होंने अगले पांच में से चार फ्रेम जीतते हुए दो क्लीन शीट दर्ज कीं और अंतिम फ्रेम में 38-9 से निर्णायक जीत हासिल कर खिताब अपने नाम कर लिया।

जीत का महत्व

रिले पॉवेल के लिए: यह जीत उनके करियर का निर्णायक क्षण है। टूर्नामेंट में अंडर-17 और अंडर-21 खिताब चूकने के बाद, सीनियर कैटेगरी में यह जीत वैश्विक मंच पर उनकी आधिकारिक उपस्थिति को चिह्नित करती है।

पंकज आडवाणी के लिए: भले ही यह हार रही हो, लेकिन मैच ने यह साबित किया कि 40 वर्ष की उम्र में भी वे एक जबरदस्त प्रतिस्पर्धी हैं। सेमीफाइनल में आदित्य मेहता पर उनकी जीत रणनीतिक कुशलता का उत्कृष्ट उदाहरण रही।

स्नूकर के लिए: यह परिणाम युवा प्रतिभाओं के उभरते प्रभुत्व और खेल में एक नई पीढ़ी के आगमन की ओर संकेत करता है, जो पहले अनुभवी खिलाड़ियों के अधीन था।

मुख्य झलकियाँ और परिणाम

  • विजेता: रिले पॉवेल (वेल्स)

  • उपविजेता: पंकज आडवाणी (भारत)

  • फाइनल स्कोर: 5-4 (41-6, 10-38, 0-73, 35-42, 38-15, 39-1, 42-0, 0-44, 38-9)

  • अंडर-21 चैंपियन: सेबास्टियन माइलवेस्की (पोलैंड) ने पान यीमिंग (चीन) को 5-0 से हराया

भारत और मालदीव ने डाक टिकट विमोचन के साथ मनाई मित्रता की 60वीं वर्षगांठ

भारत और मालदीव ने 25 जुलाई 2025 को अपने राजनयिक संबंधों की 60वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में स्मारक डाक टिकटों का विमोचन कर एक ऐतिहासिक क्षण को चिह्नित किया। इन टिकटों का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद मुइज़्ज़ु द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। डाक टिकटों में दोनों देशों की साझा समुद्री विरासत की सुंदर झलक देखने को मिलती है। यह प्रतीकात्मक पहल न केवल एक महत्वपूर्ण राजनयिक पड़ाव का स्मरण है, बल्कि भारत और मालदीव के बीच सांस्कृतिक, आर्थिक और समुद्री सहयोग की गहराई को भी दर्शाती है।

पृष्ठभूमि

  • भारत और मालदीव के बीच राजनयिक संबंध औपचारिक रूप से 1965 में स्थापित हुए, ठीक उसी समय जब मालदीव ने स्वतंत्रता प्राप्त की थी।
  • भारत उन पहले देशों में शामिल था, जिन्होंने नवस्वतंत्र मालदीव को मान्यता दी और उसके साथ औपचारिक संबंध स्थापित किए।
  • बीते दशकों में दोनों देशों ने व्यापार, सुरक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, बुनियादी ढांचे और जलवायु लचीलापन जैसे क्षेत्रों में मजबूत साझेदारी को विकसित किया है, जिससे द्विपक्षीय संबंध निरंतर सशक्त और बहुआयामी होते गए हैं।

स्मारक डाक टिकटों का महत्व

ये डाक टिकट भारत और मालदीव की साझा समुद्री परंपराओं और हिंद महासागर में ऐतिहासिक व्यापारिक संबंधों का दृश्य रूप प्रस्तुत करते हैं। केरल के बेयपोर से संबंधित पारंपरिक भारतीय नौका ‘उरु’ भारत की समृद्ध जहाज़ निर्माण परंपरा और प्राचीन समुद्री विरासत का प्रतीक है। वहीं, ‘वधु धोनी’, पारंपरिक मालदीवियन मछली पकड़ने वाली नौका, मालदीव की गहराई से जुड़ी समुद्री संस्कृति और द्वीपीय जीवनशैली को दर्शाती है। ये दोनों प्रतीक सदियों से चले आ रहे भारत और मालदीव के परस्पर सहयोग और मित्रता को दर्शाते हैं।

टिकट विमोचन के उद्देश्य

  • भारत और मालदीव के बीच 60 वर्षों की राजनयिक साझेदारी का उत्सव मनाना और मजबूत द्विपक्षीय संबंधों के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराना।

  • दोनों देशों को जोड़ने वाली सांस्कृतिक और समुद्री विरासत को प्रदर्शित करना।

  • साझा प्रतीकों के माध्यम से लोगों के बीच आपसी जुड़ाव को प्रोत्साहित करना।

  • वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत-मालदीव संबंधों की ऐतिहासिक गहराई के प्रति जागरूकता बढ़ाना।

डाक टिकटों की विशेषताएँ

  • इन टिकटों को पारंपरिक कारीगरी और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है।

  • उरु: केरल के बेयपोर शिपयार्ड में हाथ से बनाई गई एक बड़ी लकड़ी की नौका (धो), जिसे ऐतिहासिक रूप से हिंद महासागर व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

  • वधु धोनी: एक पारंपरिक मालदीवियन नौका, जिसे प्रवाल भित्तियों और तटीय क्षेत्रों में मछली पकड़ने के लिए उपयोग किया जाता है। यह आत्मनिर्भरता और समुद्री विरासत का प्रतीक है।

  • टिकटों की कलाकृति और डिज़ाइन में टिकाऊपन, परंपरा और क्षेत्रीय एकता को प्रमुखता से दर्शाया गया है।

भारतीय रेलवे ने रचा इतिहास, हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन का हुआ सफल ट्रायल

भारत ने 25 जुलाई 2025 को चेन्नई स्थित इंटेग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में अपने पहले हाइड्रोजन-चालित ट्रेन कोच का सफल परीक्षण कर हरित परिवहन के एक नए युग में प्रवेश किया है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि भारतीय रेल में सतत और स्वच्छ गतिशीलता की दिशा में एक बड़ा कदम है और भारत को उन कुछ चुनिंदा देशों की सूची में शामिल करती है जो हाइड्रोजन आधारित रेल प्रौद्योगिकी को अपना रहे हैं। यह पहल भारत के नेट-ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने और रेलवे बुनियादी ढांचे को स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों के साथ आधुनिक बनाने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।

पृष्ठभूमि

हाइड्रोजन ट्रेनों की अवधारणा वैश्विक स्तर पर डीजल चालित इंजनों के विकल्प के रूप में उभरी, विशेषकर उन रेल मार्गों पर जो अभी तक विद्युतीकृत नहीं हैं। जर्मनी, फ्रांस और जापान जैसे देशों ने पहले ही सीमित मार्गों पर हाइड्रोजन ट्रेनें शुरू कर दी हैं। भारत ने 2023 में “हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज” पहल के तहत इस तकनीक की संभावनाओं का पता लगाना शुरू किया। रेलवे मंत्रालय ने डीजल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट्स (DEMU) को हाइड्रोजन से संचालित इकाइयों में रूपांतरित करने और नई हाइड्रोजन ट्रेनें विकसित करने का प्रस्ताव रखा, ताकि धरोहर और पर्वतीय मार्गों पर स्वच्छ परिवहन को बढ़ावा दिया जा सके।

हाइड्रोजन कोच परीक्षण का महत्व

  • भारत में पहली बार: इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में परीक्षण किया गया ड्राइविंग पावर कोच देश का पहला स्वदेशी रूप से निर्मित और परीक्षण किया गया हाइड्रोजन ट्रेन कोच है।

  • स्वच्छ और हरित नवाचार: हाइड्रोजन ट्रेनें शून्य टेलपाइप उत्सर्जन करती हैं, केवल जलवाष्प छोड़ती हैं, जो भारत के हरित लक्ष्यों के अनुरूप है।

  • वैश्विक नेतृत्व की दिशा में कदम: 1,200 हॉर्सपावर की हाइड्रोजन चालित ट्रेन का विकास भारत को तकनीकी रूप से उन्नत रेलवे देशों की श्रेणी में लाता है।

  • ऊर्जा सुरक्षा के लिए रणनीतिक: यह ऊर्जा विविधीकरण को बढ़ावा देता है और आयातित जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करता है।

भारत में हाइड्रोजन ट्रेनों के उद्देश्य

  • हरित परिवहन को बढ़ावा: रेलवे से कार्बन उत्सर्जन को कम करना।

  • पर्वतीय और धरोहर मार्गों का आधुनिकीकरण: पर्यटन और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छ परिवहन।

  • स्वदेशी तकनीक का विकास: मेक इन इंडिया को मज़बूती देते हुए घरेलू नवाचार को बढ़ावा देना।

  • जलवायु संकल्पों की पूर्ति: 2070 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य में योगदान देना।

विशेषताएँ और लागत संरचना

  • योजना: ‘हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज’ कार्यक्रम के तहत 35 हाइड्रोजन चालित ट्रेनों के संचालन की योजना है।

  • प्रति ट्रेन अनुमानित लागत: ₹80 करोड़

  • प्रति मार्ग बुनियादी ढांचा लागत: लगभग ₹70 करोड़

  • पायलट परियोजना: ₹111.83 करोड़ की लागत से एक डीज़ल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट (DEMU) को हाइड्रोजन ईंधन सेल से परिवर्तित कर जिंद–सोनीपत (उत्तर रेलवे) खंड पर चलाने की योजना।

  • हालांकि प्रारंभिक संचालन लागत अधिक है, लेकिन बड़े पैमाने पर उत्पादन और नवाचार के साथ लागत में गिरावट की संभावना है।

भविष्य की संभावनाएं

  • हाइड्रोजन ट्रेनें गैर-विद्युतीकृत मार्गों पर डीज़ल इंजनों का स्थान ले सकती हैं।

  • ये ट्रेनें दूरदराज़, पर्वतीय और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव के साथ सेवाएं दे सकती हैं।

  • भविष्य में भारत हाइड्रोजन आधारित रेल तकनीक का वैश्विक केंद्र बन सकता है, जिसमें निर्यात की भी संभावनाएं हैं।

  • यह पहल राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को भी मज़बूती प्रदान करती है।

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