प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्तमान नागरिक संहिता को सांप्रदायिक और भेदभावकारी करार देते हुए कहा कि ‘सेक्यूलर नागरिक संहिता’ समय की मांग है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रखने की दृढ़ता पर अडिग रहने की घोषणा करते हुए पीएम ने राजनीति में परिवारवाद का वर्चस्व खत्म करने का आहृवान किया।
प्रधानमंत्री ने अपनी तीसरी पारी में लाल किले की प्राचीर से पहले संबोधन में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सुधारों के बड़े एजेंडे को आगे बढ़ाने के इरादे साफ करते हुए देश में सामान्य नागरिक संहिता (यूनिफार्म सिविल कोड) लागू करने की पहल करने का एलान किया।
धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की पैरवी
दरअसल 15 अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में देश में धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की पैरवी करते हुए भारत को ‘विकसित राष्ट्र’ बनाने का संकल्प और ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का सपना साकार करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि देश का एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है कि जिस नागरिक संहिता को लेकर हम लोग जी रहे हैं, वह सचमुच में साम्प्रदायिक और भेदभाव करने वाली संहिता है। मैं चाहता हूं कि इस पर देश में गंभीर चर्चा हो और हर कोई अपने विचार लेकर आए।
सेक्यूलर सिविल कोड को बताया समय की मांग
पीएम ने कहा कि इसलिए समय की मांग है अब देश में एक सेक्यूलर सिविल कोड हो। उन्होंने कहा, ‘हमने 75 साल सांप्रदायिक सिविल कोड में बिताए अब सेक्यूलर सिविल कोड की तरफ जाना होगा, तभी देश में धर्म के आधार पर जो भेदभाव हो रहें है, उससे हमें मुक्ति मिलेगी।’
गौरतलब है कि राम मंदिर और धारा 370 के साथ सामान्य नागरिक संहिता दशकों से भाजपा के तीन कोर राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा रहा है। पहले दो कार्यकाल में दोनों प्रमुख एजेंड़े को पूरा करने के बाद तीसरे कार्यकाल के दौरान पीएम ने यूनिफार्म सिविल कोड पर फोकस बढ़ाने के इरादे जाहिर कर दिए।