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नाबार्ड ने पूरे किए 44 वर्ष: वित्तीय समावेशन की दिशा में निरंतर विस्तार

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने हाल ही में अपना 44वां स्थापना दिवस मनाया, जिसमें ग्रामीण विकास, वित्तीय समावेशन और संस्थागत सशक्तिकरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया गया। वर्ष 1982 में स्थापित नाबार्ड भारत के ग्रामीण परिदृश्य में सतत और समावेशी विकास को साकार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों, वृत्तचित्रों और प्रकाशनों का आयोजन किया गया, जिनमें बैंक की उपलब्धियों और भविष्य की प्राथमिकताओं को प्रदर्शित किया गया। विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश राज्यों में नाबार्ड द्वारा संचालित बुनियादी ढांचा विकास और ऋण पहलों को प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया।

पृष्ठभूमि
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना 12 जुलाई 1982 को बी. शिवरामन समिति की सिफारिशों के आधार पर एक शीर्ष विकास वित्तीय संस्था के रूप में की गई थी। इसे संसद के एक अधिनियम के माध्यम से इस उद्देश्य से स्थापित किया गया कि यह वित्तीय और गैर-वित्तीय हस्तक्षेपों के माध्यम से सतत और समान कृषि एवं ग्रामीण विकास को बढ़ावा दे। तब से, नाबार्ड सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन, ग्रामीण ऋण संस्थानों को पुनर्वित्त प्रदान करने और अपने विभिन्न कोषों जैसे ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष (RIDF) के माध्यम से ग्रामीण अवसंरचना के समर्थन में एक प्रमुख एजेंसी बन गया है।

44वें स्थापना दिवस का महत्व
नाबार्ड के 44वें स्थापना दिवस ने बीते दशकों में संस्था के योगदान को रेखांकित करने और ग्रामीण भारत को रूपांतरित करने की इसकी नवप्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने का मंच प्रदान किया। इस अवसर पर “रूट्स ऑफ चेंज” नामक एक लघु वृत्तचित्र और “निधि” नामक प्रकाशन का विमोचन किया गया, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और हस्तशिल्पियों की प्रदर्शनी लगाई गई, साथ ही उत्कृष्ठ प्राथमिक कृषि साख समितियों (PACS) और जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों (DCCBs) को सम्मानित किया गया। इस दिन ने सहकारी ऋण सुधार, डिजिटल सशक्तिकरण और जमीनी स्तर पर वित्तीय पहुंच के प्रति नाबार्ड की प्रतिबद्धता को उजागर किया।

प्रमुख उपलब्धियां
समारोह के दौरान, नाबार्ड के आंध्र प्रदेश क्षेत्रीय कार्यालय ने वर्ष 2024–25 के लिए ₹42,842 करोड़ के ऋण और ₹31.83 करोड़ की अनुदान सहायता के वितरण की घोषणा की। ये निधियां अवसंरचना विकास और संस्थागत क्षमता निर्माण के लिए थीं। ईस्ट गोदावरी, वेस्ट गोदावरी और नंद्याल जिलों में नए जिला विकास प्रबंधक (DDM) कार्यालयों का उद्घाटन स्थानीय स्तर पर नाबार्ड की उपस्थिति को मजबूत करने की दिशा में एक कदम था।

अरुणाचल प्रदेश में नाबार्ड ने ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष (RIDF) के तहत 485 परियोजनाओं के लिए ₹4,613 करोड़ की स्वीकृति दी, जिससे ग्रामीण संपर्क, सिंचाई और आजीविका के अवसरों में सुधार हुआ। “सहकारिता एक बेहतर विश्व का निर्माण करती है” विषय पर एक जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया गया, जिसमें RBI, SIDBI, NCDC और स्थानीय सहकारी संघों समेत कई हितधारकों ने भाग लिया।

उद्देश्य और दृष्टिकोण
नाबार्ड का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना है, जिसके लिए यह ऋण पहुंच को सरल बनाता है, जलवायु-लचीली कृषि को बढ़ावा देता है और सहकारी संस्थाओं को मजबूत करता है। यह ग्रामीण ऋण प्रणाली में डिजिटल परिवर्तन, हितधारकों की क्षमता वृद्धि और अन्य सरकारी पहलों के साथ समन्वय को भी प्रोत्साहित करता है। इसकी दीर्घकालिक दृष्टि आत्मनिर्भर ग्रामीण समुदायों को विकसित करना है, जिसमें विशेष ध्यान पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों पर केंद्रित है।

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