लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला 5 से 12 अक्टूबर 2025 तक ब्रिजटाउन, बारबाडोस में आयोजित होने वाले 68वें राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन (CPC) में भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे। यह सम्मेलन राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (CPA) द्वारा आयोजित किया जाता है और इसमें 180 CPA शाखाओं से सांसद लोकतंत्र, सुशासन और वैश्विक सहयोग जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हैं।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल और तैयारियाँ
उच्च स्तरीय प्रतिनिधित्व
भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल होंगे –
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राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश
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राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के पीठासीन अधिकारी और सचिव
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CPA इंडिया रीजन के प्रतिनिधि
सम्मेलन से पूर्व, अध्यक्ष बिड़ला ने संसद भवन में एक अंतर-मंत्रालयी बैठक की, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारियों ने सम्मेलन के एजेंडे, विषयगत सत्रों और भारत की भूमिका की जानकारी दी।
सम्मेलन का विषय और भारत की भागीदारी
वैश्विक संवाद पर जोर
68वें CPC का विषय है – “The Commonwealth: A Global Partner” (राष्ट्रमंडल: एक वैश्विक साझेदार)।
अध्यक्ष ओम बिड़ला आम सभा को संबोधित करेंगे और भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं तथा संसदीय नेतृत्व की भूमिका पर प्रकाश डालेंगे।
थीमेटिक कार्यशालाएँ
भारतीय प्रतिनिधि सात कार्यशालाओं में भाग लेंगे, जिनमें मुख्य विषय होंगे –
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लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़बूत करना
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शासन में प्रौद्योगिकी का उपयोग
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जलवायु परिवर्तन और जन स्वास्थ्य
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वित्तीय पारदर्शिता
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शक्तियों का पृथक्करण
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बहुपक्षवाद और वैश्विक सहयोग
इन सत्रों में भारत अपने अनुभव साझा करेगा और अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ प्रथाओं से सीख लेगा।
युवा गोलमेज सम्मेलन: भविष्य के नेताओं को सशक्त बनाना
युवा सुरक्षा और सशक्तिकरण पर केंद्रित
विशेष Youth Roundtable सत्र में आधुनिक सामाजिक चुनौतियों पर चर्चा होगी, जैसे –
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गैंग हिंसा
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साइबर बुलिंग
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डिजिटल सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य
यह पहल CPA की समावेशी संवाद की प्रतिबद्धता को दर्शाती है और भारत की युवा शक्ति मिशन तथा डिजिटल इंडिया जैसी पहलों से जुड़ती है।
राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन (CPC) के बारे में
संसदीय आदान-प्रदान की परंपरा
CPC विश्व का सबसे बड़ा वार्षिक संसदीय सम्मेलन है, जिसका उद्देश्य है –
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विधायी नवाचारों का आदान-प्रदान
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लोकतांत्रिक मानकों को मज़बूत करना
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सहयोगात्मक शासन मॉडल को बढ़ावा देना
1911 में स्थापित CPA संसदीय लोकतंत्र को प्रोत्साहित करने और सदस्य देशों की विधायी क्षमताओं को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


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