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एनसीपीसीआर ने झारखंड में अभ्रक खदानों को ‘बाल श्रम मुक्त’ घोषित किया

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने 5 जुलाई 2024 को कोडरमा, झारखंड में आयोजित एक कार्यक्रम में झारखंड की अभ्रक खदानों को ‘बाल श्रम-मुक्त’ घोषित किया। समारोह में बोलते हुए, एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने घोषणा की कि यह है देश में अभ्रक खनन में बाल श्रम की आपूर्ति श्रृंखला को खतम करने का पहला सफल प्रयास है। भारत में 14 वर्ष तक की आयु के कामकाजी बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता है।

झारखंड की अभ्रक खदानों में बाल श्रम

अभ्रक एक चमकदार, पारभासी खनिज है जिसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और निर्माण जैसे विभिन्न उद्योगों में किया जाता है। यह झारखंड के कोडरमा और गिरिडीह जिलों में प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। कोडरमा को कभी भारत की अभ्रक राजधानी या अभ्रक नगरी कहा जाता था।

अभ्रक खनन एक समय इस क्षेत्र में एक फलता-फूलता व्यवसाय था। हालाँकि, 1980 के वन संरक्षण अधिनियम के पारित होने के बाद , केंद्र सरकार की अनुमति के बिना वन क्षेत्र में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इससे क्षेत्र में कई अवैध खनन गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं। आसपास के गरीब परिवार अभ्रक या ढिबरा इकट्ठा करने के लिए खदानें में काम करने लगे । स्थानीय भाषा में अभ्रक को ढिबरा कहा जाता है। अतिरिक्त कमाई के लिए गरीब परिवार अक्सर अपने बच्चों को ढिबरा इकट्ठा करने के लिए ले जाते थे। एक समय ढिबरा इकट्ठा करने के काम में लगभग 20,000 बच्चे कार्यरत थे।

बाल श्रम मुक्त अभ्रक

अभ्रक खनन में बाल श्रम के व्यापक उपयोग को रोकने के लिए सरकार ने नागरिक समाज के सहयोग से अभ्रक खनन में बाल श्रम के उपयोग को रोकने और खनन से मुक्त बाल श्रमिकों के पुनर्वास के लिए एक पहल शुरू की। राज्य सरकार, जिला प्रशासन, ग्राम पंचायत, नागरिक समाज और केंद्र सरकार की भागीदारी से 20 साल पहले बाल श्रम मुक्त अभ्रक पहल शुरू की गई थी। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्थापना के बाद उसे भी इस पहल में शामिल किया गया ।

अभियान के तहत स्कूल ना जाने वाले हर बाल श्रमिक की पहचान की गई। बच्चों को खनन से हटाकर स्कूलों में दाखिला कराया गया। इस बात का ध्यान रखा गया कि बच्चे स्कूल में नामांकित रहें और खनन गतिविधियों में दोबारा शामिल न हों।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर)

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) एक वैधानिक निकाय है जिसे बाल अधिकार संरक्षण आयोग (सीपीसीआर) अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया था। एनसीपीसीआर, 2007 में अस्तित्व में आया। एनसीपीसीआर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है। एनसीपीसीआर की स्थापना संविधान और देश के अन्य कानूनों में दिए गए बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए की गई है।

एनसीपीसीआर को शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण ( पीओसीएसओ) अधिनियम 2012 द्वारा प्रदान किए गए बच्चों के अधिकारों को भी सुनिश्चित करना है। एनसीपीसीआर द्वारा 18 वर्ष तक के बच्चों को बच्चा माना जाता है। एनसीपीसीआर में एक अध्यक्ष और 6 सदस्य होते हैं, जिनमें से दो सदस्य महिलाएँ होती हैं।

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