ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने घोषणा की है कि यूट्यूब उन इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म में शामिल होगा, जिन्हें दिसंबर से यह सुनिश्चित करना होगा कि यूजर्स की उम्र कम से कम 16 वर्ष हो। ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अपने आगामी सोशल मीडिया प्रतिबंध में YouTube को भी शामिल करने का आधिकारिक फैसला किया है, जिससे इस प्लेटफॉर्म को एक शैक्षिक उपकरण मानने की पूर्व प्रतिबद्धता पलट गई है। दिसंबर 2025 में लागू होने वाला यह नया कानून फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिकटॉक, स्नैपचैट और एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर भी लागू होगा। इस कानून के तहत सोशल मीडिया कंपनियों पर 16 साल से कम उम्र के बच्चों के अकाउंट ब्लॉक करने की ज़िम्मेदारी है, वरना उन्हें 50 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (32 मिलियन डॉलर) तक का भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है।
हानिकारक कंटेंट की भूमिका
यह निर्णय मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया की eSafety Commission द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण पर आधारित था, जिसमें पाया गया कि 37% बच्चों ने YouTube पर हानिकारक सामग्री देखी थी। ऐसी सामग्री में शामिल थीं:
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महिलाओं के प्रति सेक्सिस्ट, स्त्रीविरोधी या घृणास्पद विचार
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खतरनाक ऑनलाइन चुनौतियाँ और मारपीट वाले वीडियो
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अस्वस्थ भोजन या व्यायाम की आदतें प्रोत्साहित करने वाली सामग्री
मंत्री का पक्ष
ऑस्ट्रेलिया की संचार मंत्री एनीका वेल्स (Anika Wells) ने इस फैसले का बचाव करते हुए एक तीव्र उपमा दी:
“बच्चों को बिनाजिम्मेदारी सोशल मीडिया पर छोड़ना ऐसा है जैसे किसी बच्चे को शार्क से भरे खुले समुद्र में तैरना सिखाना — जबकि हम चाहें तो उन्हें सुरक्षित लोकल पूल में सिखा सकते हैं।”
वेल्स ने कहा कि “हम समुद्र को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन शार्क पर नजर रख सकते हैं”, और स्पष्ट किया कि वह टेक कंपनियों की कानूनी धमकियों से डरने वाली नहीं हैं।
प्रतिबंध कैसे लागू होगा?
“विश्व-प्रथम” क़ानून
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लेबर सरकार यह कानून 2024 में ही पास कर चुकी थी, और 12 महीने का समय तकनीकी परीक्षण व नियम तैयार करने के लिए दिया गया था।
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उम्र सत्यापन परीक्षण: 2025 की शुरुआत में किए गए परीक्षणों में यह पाया गया कि उम्र की पुष्टि निजी, सुरक्षित और प्रभावी तरीक़े से संभव है।
सीमाएँ भी हैं
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रिपोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि हर मंच पर उम्र की पुष्टि के लिए कोई एकदम सटीक प्रणाली उपलब्ध नहीं है।
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गोपनीयता की चिंताएँ: आलोचकों को डर है कि ये नई तकनीकें कुछ मंचों को ज़रूरत से ज़्यादा व्यक्तिगत डेटा इकट्ठा करने का मौका दे सकती हैं, जिससे निजता का हनन हो सकता है।


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