स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र, कोलंबो में अंतरराष्ट्रीय रामायण और वैदिक अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित रामायण सम्मेलन में भारत और श्रीलंका के प्रतिष्ठित विद्वानों व धार्मिक नेताओं ने भाग लिया। इस सम्मेलन में भगवान श्रीराम के वैश्विक प्रभाव और श्रीलंका में रामायण से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों की महत्ता पर चर्चा की गई।
रामायण की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता
रामायण, हिंदू धर्म के महानतम महाकाव्यों में से एक, विश्वभर में विद्वानों, इतिहासकारों और भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है। श्रीलंका, रावण के साम्राज्य और रामायण में वर्णित महत्वपूर्ण स्थलों के कारण इस महाकाव्य से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता को समझते हुए, इस सम्मेलन में रामायण के ऐतिहासिक, धार्मिक और दार्शनिक पहलुओं पर विचार-विमर्श किया गया।
रामायण सम्मेलन के प्रमुख बिंदु
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विद्वानों एवं विशेषज्ञों की सहभागिता
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बीकानेर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित और गुजरात विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा गुप्ता ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया।
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भारत और श्रीलंका के धार्मिक गुरु और वैदिक विद्वानों ने भगवान श्रीराम के जीवन और मूल्यों के वैश्विक प्रभाव पर चर्चा की।
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ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाणों के माध्यम से रामायण के सांस्कृतिक प्रभाव को समझाया गया।
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श्रीलंका की रामायण विरासत पर चर्चा
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विशेषज्ञों ने रामायण से जुड़े श्रीलंका के पुरातात्विक और पौराणिक महत्व को उजागर किया।
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श्रीलंका के कई स्थान भगवान श्रीराम और रावण से जुड़े हुए हैं, जो तीर्थयात्रा और अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
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सम्मेलन में उन स्थानों को विशेष रूप से रेखांकित किया गया, जहां भगवान श्रीराम की लीलाएं और रावण के साथ युद्ध के प्रसंग घटित हुए थे।
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श्रीलंका में महत्वपूर्ण रामायण स्थल
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सीता एलिया (सीता अम्मन मंदिर): नुवारा एलिया के निकट स्थित यह स्थान वह माना जाता है, जहां रावण ने माता सीता को बंदी बनाकर रखा था। यहां स्थित सीता मंदिर प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
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मनवारी मंदिर: चिलाव में स्थित इस मंदिर को वह पहला स्थान माना जाता है, जहां भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय के पश्चात शिवलिंग की स्थापना की थी। इसे “रामलिंगम” कहा जाता है, और यहां पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलने की मान्यता है।
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मुन्नेश्वरम मंदिर: यह मंदिर वह स्थान है, जहां भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने के बाद भगवान शिव की आराधना की थी। यह मंदिर हिंदू और बौद्ध दोनों समुदायों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
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भगवान श्रीराम के आदर्शों का वैश्विक प्रभाव
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सम्मेलन में धार्मिक नेताओं और विद्वानों ने श्रीराम के चरित्र, मूल्यों और शासन प्रणाली के वैश्विक प्रभाव पर प्रकाश डाला।
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भगवान श्रीराम को धर्म, नेतृत्व और भक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
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थाईलैंड, इंडोनेशिया, कंबोडिया और नेपाल जैसे देशों में रामायण से प्रेरित कला और साहित्य आज भी प्रचलित हैं।
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सम्मेलन में रामायण के दार्शनिक शिक्षाओं पर विशेष जोर दिया गया, जो समाज में एकता, भक्ति और न्याय को बढ़ावा देती हैं।
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इस सम्मेलन ने रामायण के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का कार्य किया, जिससे रामायण से जुड़े स्थलों और मूल्यों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली।
पहलू | विवरण |
कार्यक्रम का नाम | अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन |
आयोजक | अंतरराष्ट्रीय रामायण और वैदिक अनुसंधान संस्थान |
स्थान | स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र, कोलंबो |
प्रमुख वक्ता | प्रो. मनोज दीक्षित (बीकानेर विश्वविद्यालय), प्रो. नीरजा गुप्ता (गुजरात विश्वविद्यालय), भारत और श्रीलंका के धार्मिक नेता |
मुख्य विषय | भगवान श्रीराम का प्रभाव, रामायण का वैश्विक प्रभाव, श्रीलंका का रामायण में महत्व |
चर्चित महत्वपूर्ण स्थल | सीता एलिया, मनवारी मंदिर, मुन्नेश्वरम मंदिर |
मुख्य निष्कर्ष | सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करना, आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना, रामायण पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करना |