एशिया 2025 तक विश्व की आधी बिजली का उपयोग करेगा, जबकि अफ्रीका वैश्विक आबादी की अपनी हिस्सेदारी से काफी कम (बिजली की) खपत करना जारी रखेगा। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने जारी एक नये अनुमान में यह दावा किया है। भारत में 5.3 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ रही बिजली की मांग 2022 में 8.4 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इसकी वजह कोविड महामारी के बाद देश की मजबूत रिकवरी रही।अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने अपनी नई रिपोर्ट में यह दावे किए हैं। एजेंसी ने अनुमान जताया है कि साल 2023 से 2025 के बीच भारत में बिजली की मांग 5.6 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ सकती है।
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मुख्य बिंदु
- एजेंसी ने कहा कि एशिया में बिजली की ज्यादा खपत 1.4 अरब आबादी वाले चीन में की जाएगी, जिसकी वैश्विक विद्युत खपत में हिस्सेदारी 2015 के एक चौथाई से बढ़ कर इस दशक के मध्य तक एक तिहाई हो जाएगी।
- रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2022 देश के लिए बीते 100 साल में सबसे गर्म महीना साबित हुआ। अप्रैल से जुलाई के बीच भी बिजली की औसत मांग 2021 के मुकाबले 14 प्रतिशत अधिक रही।
- 10 जून को 211 गीगावाट बिजली की मांग का रिकॉर्ड बना। इसके परिणामस्वरूप, मांग की सालाना वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो चीन की 2.6 प्रतिशत वृद्धि से कहीं ज्यादा है। चीन में 2015 से 2019 के बीच 5.4 प्रतिशत की औसत वृद्धि हुई थी।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले तीन साल यानी 2025 तक दुनिया की आधी बिजली एशियाई देश खर्च करेंगे। इनमें चीन सबसे ऊपर है, जो अकेले 33 प्रतिशत बिजली खर्च करेगा। यह अमेरिका, यूरोपीय संघ व भारत, तीनों द्वारा खर्च की जाने वाली बिजली से अधिक है।
- वर्ष 2022 तक भारत के पास 410 गीगावाट बिजली बनाने की क्षमता थी। इसमें 236 गीगावाट जीवाश्म ईंधन, 52 गीगावाट पनबिजली परियोजनाओं, 115 गीगावाट अक्षय ऊर्जा साधनों और बाकी बिजली परमाणु परियोजनाओं से बनाई जा सकती है।
- साल 2025 तक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विश्व की आधी उत्पादन वृद्धि भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की वजह से होगी। हिस्सेदारी के लिहाज से चीन इसका नेतृत्व करेगा तो भारत सबसे तेज 81 प्रतिशत वृद्धि करेगा। पनबिजली उत्पादन भी भारत ने 2017 से 2021 के बीच 10 प्रतिशत सालाना बढ़ाया है।