जब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर ने अपना पहला वर्ष पूरा किया, उसी समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक ऐसे चरण में प्रवेश कर गई जिसे विशेषज्ञ “दुर्लभ गोल्डीलॉक्स फेज़” कह रहे हैं — ऐसा समय जब आर्थिक वृद्धि तेज़ है, मुद्रास्फीति (महंगाई) कम है और नीतियाँ स्थिर एवं अनुमानित हैं।
यह स्थिति इसलिए भी खास है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय कई झटकों से जूझ रही है — व्यापार युद्ध, बढ़ती अमेरिकी टैरिफ़ नीतियाँ, भू-राजनीतिक तनाव और कमजोर होती मुद्राएँ। फिर भी भारत की अर्थव्यवस्था ने अद्भुत मजबूती दिखाई है।
“गोल्डीलॉक्स अर्थव्यवस्था” वह स्थिति है जब अर्थव्यवस्था:
तेज़ और टिकाऊ वृद्धि दिखाती है
मुद्रास्फीति कम और स्थिर रहती है
नीतिगत दिशा स्पष्ट और स्थिर रहती है
अधिकतर देशों में तेज़ वृद्धि के दौरान महंगाई बढ़ जाती है, या फिर महंगाई को नियंत्रित करने पर वृद्धि घट जाती है।
लेकिन दोनों का संतुलन एक साथ मिलना बहुत दुर्लभ होता है — इसीलिए इसे रेयर गोल्डीलॉक्स फेज़ कहा जाता है।
खुदरा महंगाई लगातार तीन वर्षों से गिर रही है।
वर्तमान में यह सिर्फ 2.2% है — RBI की लक्ष्य सीमा के निचले स्तर से भी कम।
FY 2025–26 की पहली दो तिमाहियों में भारत की वास्तविक GDP वृद्धि 8% रही — दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़।
पिछले साढ़े चार वर्षों में औसत वृद्धि 8.2% रही है (महामारी के रिबाउंड वर्ष को छोड़कर भी)।
चूंकि महंगाई अब लक्ष्य से भी कम है, मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती कर इसे 5.25% कर दिया।
2025 में RBI कुल 125 बेसिस पॉइंट की दरों में कटौती कर चुका है — यह संकेत है कि नीतियाँ स्पष्ट रूप से विकास-समर्थक हैं।
विशेषज्ञ इसे नीतिगत समरूपता (policy symmetry) कहते हैं:
महंगाई बढ़े तो सख्ती,
महंगाई गिरे तो नरमी।
इससे RBI की विश्वसनीयता और निवेशकों का भरोसा दोनों बढ़ते हैं।
रुपया इस वर्ष 5% से अधिक कमजोर हुआ है और ₹90 प्रति डॉलर पार कर गया है।
लेकिन अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह स्थिति चिंताजनक नहीं है क्योंकि:
गिरावट का मुख्य कारण वैश्विक डॉलर की मजबूती है, न कि घरेलू कमजोरी।
RBI ने कृत्रिम रूप से रुपये को बचाने की कोशिश नहीं की, जिससे विदेशी भंडार पर दबाव नहीं पड़ा।
RBI ने अपना ध्यान अपने मुख्य लक्ष्य — मुद्रास्फीति और आर्थिक स्थिरता — पर रखा।
यह दृष्टिकोण परिपक्व नीति प्रबंधन का संकेत माना जाता है।
यह चरण:
व्यापार और उद्योग का आत्मविश्वास बढ़ाता है
उधार लेना सस्ता करता है
विदेशी निवेश आकर्षित करता है
वास्तविक आय में सुधार करता है
भारत की वैश्विक आर्थिक साख को मजबूत करता है
स्थिरता से रोजगार, निवेश और समग्र आर्थिक गति में वृद्धि होती है।
वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव
कच्चे तेल की अस्थिर कीमतें
अमेरिकी टैरिफ़ के कारण निर्यात दबाव
मुद्रा बाज़ार में अस्थिरता
फिर भी, मजबूत घरेलू मांग और विश्वसनीय नीति प्रबंधन भारत को इन चुनौतियों से निपटने की क्षमता देते हैं।
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