भारत के सार्वजनिक ऋण (Public Debt) पर ब्याज़ भुगतान पिछले एक दशक में लगभग तीन गुना बढ़ गया है। वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) में ब्याज़ भुगतान का अनुमान ₹12.76 लाख करोड़ तक पहुँचने का है। यह बढ़ोतरी भारत की बदलती ऋण संरचना और वित्तीय दबावों को उजागर करती है।
1. ब्याज़ भार कैसे बढ़ा?
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FY16 में ब्याज़ भुगतान आज की तुलना में काफ़ी कम था, लेकिन FY26 तक यह बढ़कर लगभग तीन गुना हो जाएगा।
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मुख्य कारण:
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महँगा उधार (High Borrowing Costs): कोविड महामारी के दौरान ऊँची ब्याज़ दरों पर भारी कर्ज़ लिया गया।
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ऋण चुकौती दबाव: मध्यम व दीर्घकालिक बॉन्ड की परिपक्वता (Maturity) से अचानक अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।
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2. ऋण की मात्रा और Debt-to-GDP अनुपात
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सकल सरकारी ऋण (Gross Government Debt):
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FY16 → ₹71 लाख करोड़ (GDP का 51.5%)
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FY26 → अनुमानित ₹200 लाख करोड़ (GDP का 56.1%)
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महामारी के दौरान FY21 में ऋण अनुपात 61.4% पर पहुँचा, जो अब घटकर 56.1% पर है।
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लक्ष्य: 2031 तक ऋण अनुपात 50% पर लाना।
3. उधारी लागत और बॉन्ड बाज़ार रुझान
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महामारी काल में ऊँची ब्याज़ दरों के चलते उधारी महँगी रही।
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10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड यील्ड:
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FY20–21 में औसत 6.6%
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अब 6.5–6.55% के बीच, अप्रैल 2025 में 6.4% (तीन साल का न्यूनतम स्तर)।
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हालाँकि यील्ड में गिरावट निवेशकों के भरोसे का संकेत है, लेकिन महँगे पुराने ऋण की वजह से ब्याज़ बोझ कम नहीं हुआ।
4. ऋण प्रबंधन रणनीति: Buybacks और Switches
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बॉन्ड Buybacks: परिपक्वता से पहले बॉन्ड वापस ख़रीदना।
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बॉन्ड Switches: अल्पकालिक प्रतिभूतियों को दीर्घकालिक बॉन्ड में बदलना।
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उद्देश्य:
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तत्काल चुकौती का दबाव घटाना।
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परिपक्वता अवधि फैलाकर Rollover Risk कम करना।
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5. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) और वित्तीय अनुशासन
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FY25: 4.8% GDP, अनुमान से बेहतर।
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FY26 लक्ष्य: 4.4% GDP।
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मई 2025 में राजकोषीय घाटा केवल 0.8% (पिछले वर्ष की 3.1% तुलना में बहुत कम)।
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** मज़बूत कर वसूली** से नए उधार की ज़रूरत घट रही है, जिससे ब्याज़ दरों पर दबाव कम हो सकता है।
क्यों महत्वपूर्ण है?
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आर्थिक स्थिरता: बढ़ते ब्याज़ खर्च से विकास योजनाओं पर होने वाला खर्च घट सकता है।
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ऋण चुकौती दबाव: महामारी-काल के महँगे कर्ज़ अब भी वित्तीय बोझ बने हुए हैं।
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Debt-to-GDP दिशा: FY21 के 61.4% से FY26 में 56.1% और 2031 तक 50% का लक्ष्य।
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नीतिगत साधन: Buybacks और Switches से सरकार सक्रिय रूप से ऋण बोझ प्रबंधन कर रही है।
यह विषय UPSC, RBI ग्रेड B, बैंकिंग परीक्षाओं और किसी भी अर्थव्यवस्था-संबंधी प्रतियोगी परीक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।


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