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वैश्विक सूचकांक में भारत की मुक्त अभिव्यक्ति रैंकिंग

अमेरिका स्थित थिंक टैंक द फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच द्वारा किए गए एक वैश्विक सर्वेक्षण में भारत को 33 देशों में 24वां स्थान मिला है। फ्री स्पीच इंडेक्स (Free Speech Index) में भारत का स्कोर 62.6 रहा, जो दक्षिण अफ्रीका (66.9) और लेबनान (61.8) के बीच है। यह सर्वे अक्टूबर 2024 में किया गया था और रिपोर्ट “हू इन द वर्ल्ड सपोर्ट्स फ्री स्पीच?” शीर्षक से प्रकाशित हुई।

भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रमुख निष्कर्ष:

  • रैंकिंग और स्कोर – 33 देशों में 24वां स्थान, स्कोर: 62.6
  • जनता की धारणा बनाम वास्तविकता – भारतीयों को लगता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में सुधार हुआ है, लेकिन वैश्विक स्तर पर स्थिति विपरीत बताई गई है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भारतीयों की राय

  • सरकार द्वारा सेंसरशिप के बिना बोलने के अधिकार को भारतीय मूल्यवान मानते हैं।
  • सरकार की आलोचना के प्रति समर्थन वैश्विक औसत से कम है।
  • 37% भारतीयों का मानना है कि सरकार को अपनी नीतियों की आलोचना को रोकने का अधिकार होना चाहिए (यह आंकड़ा सर्वेक्षण में शामिल देशों में सबसे अधिक)।
  • तुलना करें तो: यू.के. (5%) और डेनमार्क (3%) में यह प्रतिशत बहुत कम है।

भारत वैश्विक रुझानों से अलग क्यों?

  • आमतौर पर जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अधिक समर्थन होता है, वहां कानूनी सुरक्षा भी अधिक होती है।
  • लेकिन भारत, हंगरी और वेनेजुएला इस प्रवृत्ति से अलग हैं – इन देशों में जनता का समर्थन अधिक है, लेकिन कानूनी संरक्षण कमज़ोर है।

वैश्विक परिदृश्य:

शीर्ष देश:

  • नॉर्वे (87.9) और डेनमार्क (87.0) को सर्वाधिक रैंकिंग मिली।
  • हंगरी (85.5) और वेनेजुएला (81.8) में भी समर्थन अधिक दिखा, हालांकि वहां सरकारी प्रतिबंध ज्यादा हैं।

फ्री स्पीच में वैश्विक गिरावट:

  • 2021 के बाद कई लोकतांत्रिक देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थन में गिरावट आई है।
  • अमेरिका, इज़राइल और जापान में यह गिरावट विशेष रूप से देखी गई।
  • इंडोनेशिया (56.8), मलेशिया (55.4), और पाकिस्तान (57.0) में सुधार हुआ, लेकिन वे अभी भी निचले पायदान पर हैं।

रिपोर्ट में “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिर्फ कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि यह खुली बहस और असहमति को सहन करने की संस्कृति पर भी निर्भर करती है।”

यदि जनता इस स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्ध नहीं रहती, तो कानूनी सुरक्षा भी बेअसर हो सकती है। – जैकब मचंगामा, द फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच के कार्यकारी निदेशक।

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