भारत की समुद्री आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारतीय नौसेना 6 अक्टूबर 2025 को विशाखापट्टनम स्थित नौसैनिक अड्डे पर आईएनएस अंद्रोथ (INS Androth) को शामिल करने जा रही है। यह दूसरी एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट (ASW-SWC) होगी। इस अवसर पर समारोह की अध्यक्षता पूर्वी नौसेना कमान के प्रमुख वाइस एडमिरल राजेश पेंढरकर करेंगे।
आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक
आईएनएस अंद्रोथ का निर्माण कोलकाता स्थित गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) लिमिटेड ने जहाज उत्पादन निदेशालय और युद्धपोत पर्यवेक्षण टीम की देखरेख में किया है।
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इस पोत में 80% से अधिक स्वदेशी उपकरण लगाए गए हैं।
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इसे 13 सितंबर 2025 को नौसेना को सौंपा गया था।
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इसका डिज़ाइन, निर्माण और फिटिंग भारत की विकसित होती शिपबिल्डिंग क्षमता और नौसैनिक इंजीनियरिंग विशेषज्ञता का उदाहरण है।
विरासत और सामरिक महत्व
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अंद्रोथ नाम लक्षद्वीप द्वीपसमूह के अंद्रोथ द्वीप से लिया गया है, जो हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सामरिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है।
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यह नया पोत पूर्ववर्ती आईएनएस अंद्रोथ (P69) की परंपरा को आगे बढ़ाता है, जिसने 27 वर्षों तक नौसेना की सेवा की थी।
उन्नत क्षमताएँ
नया आईएनएस अंद्रोथ केवल तटीय सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आधुनिक मल्टी-रोल प्लेटफॉर्म है। इसमें शामिल हैं:
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पनडुब्बी की पहचान और ट्रैकिंग के लिए उन्नत हथियार और सेंसर सिस्टम
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शैलो वॉटर (कम गहराई वाले जलक्षेत्र) में तेज़ गति से संचालन हेतु वॉटरजेट प्रणोदन प्रणाली
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नेटवर्क-आधारित समुद्री अभियानों के लिए आधुनिक संचार प्रणाली
संचालन में भूमिका
यह पोत निम्न अभियानों के लिए उपयुक्त है:
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एंटी-सबमरीन वॉरफेयर (ASW)
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समुद्री निगरानी और गश्ती
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खोज एवं बचाव (SAR) अभियान
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तटीय रक्षा और बेड़े का समर्थन
मुख्य तथ्य
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आईएनएस अंद्रोथ का शामिल होना: 6 अक्टूबर 2025, विशाखापट्टनम
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यह 16 नियोजित ASW-SWC में से दूसरा पोत है
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निर्माणकर्ता: GRSE, कोलकाता
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स्वदेशीकरण: 80% से अधिक
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नाम: अंद्रोथ द्वीप (लक्षद्वीप) पर आधारित
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भूमिका: पनडुब्बी रोधी युद्ध, तटीय रक्षा, खोज व बचाव अभियान
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पहल का महत्व: आत्मनिर्भर भारत और सागर (SAGAR) दृष्टि को मजबूती


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