भारत सरकार ने भौगोलिक संकेत (GI) प्राप्त चावल की किस्मों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नए हार्मोनाइज्ड सिस्टम ऑफ नोमेनक्लेचर (HSN) कोड विकसित करने की पहल की है। व्यापार विश्लेषकों का कहना है कि यह दुनिया में पहली बार है कि जीआई-मान्यता प्राप्त चावल के लिए एचएस कोड पेश किया गया है।
GI-टैग वाले चावल के लिए नए HS कोड क्यों?
अब तक, भारत का चावल निर्यात व्यापक HSN कोड के तहत वर्गीकृत होता था, जिससे सामान्य और विशेष चावल की किस्मों के बीच अंतर करना कठिन था। इस नई व्यवस्था से:
- GI-टैग प्राप्त चावल किस्मों को विशिष्ट पहचान मिलेगी।
- निर्यातकों को अनावश्यक व्यापार प्रतिबंधों से बचाने में मदद मिलेगी।
- इन उच्च गुणवत्ता वाली चावल किस्मों को उचित मूल्य और वैश्विक मान्यता मिलेगी।
हाल की नीतिगत बदलाव और चावल निर्यात पर प्रभाव
भारत सरकार ने हाल के महीनों में घरेलू जरूरतों और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन बनाने के लिए कई नीतिगत परिवर्तन किए हैं:
- सितंबर 2024: धान, भूसा (ब्राउन राइस) और सेमी-मिल्ड चावल पर निर्यात शुल्क 20% से घटाकर 10% कर दिया गया। पूरी तरह मिल्ड चावल (परबॉयल्ड और बासमती को छोड़कर) पर निर्यात शुल्क हटा दिया गया।
- अक्टूबर 2024: परबॉयल्ड और भूसा चावल पर निर्यात शुल्क पूरी तरह समाप्त कर दिया गया, जिससे इन किस्मों को वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाया गया।
नए HS कोड से संभावित लाभ
- बेहतर बाजार स्थिति: GI-टैग वाले चावल को वैश्विक बाजार में विशिष्ट पहचान मिलेगी, जिससे इसकी ब्रांडिंग और मूल्य निर्धारण में सुधार होगा।
- आसान व्यापार और कस्टम क्लीयरेंस: नए कोड से निर्यात दस्तावेज़ीकरण सरल होगा और गलत वर्गीकरण की संभावना कम होगी।
- निर्यात प्रतिबंधों से सुरक्षा: यदि सामान्य चावल किस्मों पर कोई व्यापार प्रतिबंध लगता है, तो विशिष्ट HS कोड होने से इन GI-टैग चावल किस्मों को अलग से मान्यता मिलेगी और वे इन प्रतिबंधों से बच सकेंगे।
भविष्य में GI-टैग वाले कृषि उत्पादों पर प्रभाव
GI-टैग प्राप्त चावल के लिए विशिष्ट HS कोड तैयार करना भारत सरकार की व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य देश की अनूठी कृषि विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देना है। यह कदम किसानों के हितों की रक्षा करेगा और भारत को विशिष्ट वैश्विक बाजारों में मजबूती से स्थापित करने में मदद करेगा, जहां विशिष्ट कृषि उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है।