चावल के प्रमुख वैश्विक निर्यातक भारत द्वारा विदेशी बिक्री पर प्रतिबंध अगले वर्ष तक बढ़ाए जाने की आशंका है। यह निर्णय 2008 के खाद्य संकट के बाद से चावल की कीमतों को अपने उच्चतम स्तर के करीब रखने के लिए तैयार है। चावल निर्यात पर प्रतिबंध लागू रहने का असर वैश्विक बाजार में कीमतों पर और दबाव बढ़ा देगा। वैसे भी बीते माह चावल निर्यात बैन करने के बाद कीमतें 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं।
कम कीमतों और पर्याप्त भंडार ने पिछले एक दशक में भारत को वैश्विक स्तर पर चावल का शीर्ष शिपर्स बनने में मदद की है। भारत वर्तमान में कुल वैश्विक निर्यात का लगभग 40 फीसदी अकेले निर्यात करता है। भारत से सबसे बड़े चावल खरीदारों में अफ्रीकी देश बेनिन और सेनेगल शीर्ष पर हैं। पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार घरेलू कीमतों में वृद्धि को रोकने और भारतीय उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए चावल निर्यात पर प्रतिबंध कड़े करने के साथ ही आगे भी जारी रखने की संभावना है।
जब तक घरेलू चावल की कीमतें ऊपर की ओर दबाव का सामना कर रही हैं, तब तक प्रतिबंध बने रहने की संभावना है। प्रतिबंध के चलते अगस्त में चावल की कीमतें 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं, सबसे कमजोर आयातक देशों के खरीदारों ने खरीदारी रोक दी तो कुछ ने छूट की मांग की। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि चावल की कीमत अक्टूबर में भी एक साल पहले की तुलना में 24% आगे थीं।
अल नीनो का आगमन पूरे एशिया में फसलों को नष्ट कर देता है। ऐसे समय में जब विश्व भंडार लगातार तीसरी वार्षिक गिरावट की ओर बढ़ रहा है तब यह वैश्विक चावल बाजार को और सख्त कर सकता है। थाईलैंड सरकार ने कहा है कि सूखे मौसम के कारण नंबर-2 निर्यातक देश के यहां धान का उत्पादन 2023-24 में 6 फीसदी तक लुढ़कने की आशंका है। ऐसे में भारत के बाद थाइलैंड भी निर्यात में कटौती कर सकता है, जिससे वैश्विक बाजार में चावल की कीमतों पर भारी दबाव देखने को मिल सकता है।
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