एक अप्रत्याशित राजनयिक घटनाक्रम के तहत भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में नियुक्त अपने कार्यकारी निदेशक डॉ. के.वी. सुब्रमणियन को उनके कार्यकाल की समाप्ति से छह महीने पहले ही वापस बुला लिया है। इस निर्णय ने IMF के भीतर संभावित मतभेदों और बहुपक्षीय आंकड़ा मानकों पर भारत के रुख को लेकर अटकलों को जन्म दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत की वैश्विक वित्तीय संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की बढ़ती प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
3 मई 2025 को भारत सरकार ने डॉ. के.वी. सुब्रमणियन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत के कार्यकारी निदेशक पद से कार्यकाल पूरा होने से छह महीने पहले वापस बुला लिया। यह निर्णय कैबिनेट की नियुक्ति समिति (ACC) द्वारा लिया गया और उनकी सेवाएं 30 अप्रैल 2025 से प्रभावी रूप से समाप्त कर दी गईं। हालांकि कोई आधिकारिक कारण नहीं दिया गया, मीडिया सूत्रों का मानना है कि यह फैसला IMF के साथ मतभेदों और कुछ विवादों के चलते लिया गया।
मुख्य बिंदु
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नियुक्ति की तारीख: 1 नवंबर 2022 (तीन वर्ष का कार्यकाल)
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समाप्ति की तारीख: 30 अप्रैल 2025 (छह महीने पहले)
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संभावित कारण:
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IMF के डेटा मानकों व आर्थिक आकलनों पर सवाल
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आधिकारिक पद पर रहते हुए अपनी पुस्तक “India @ 100” का प्रचार, जिससे हितों का टकराव माना जा सकता है
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भारत में IMF के प्रतिनिधि के रूप में भूमिका
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भारत एक चार देशों के समूह का हिस्सा है जिसमें शामिल हैं:
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बांग्लादेश
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श्रीलंका
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भूटान
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IMF की कार्यकारी बोर्ड में कुल 25 कार्यकारी निदेशक (ED) होते हैं।
डॉ. के.वी. सुब्रमणियन का परिचय
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शैक्षणिक योग्यता: शिकागो विश्वविद्यालय (University of Chicago Booth School of Business) से अर्थशास्त्र में पीएच.डी.
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भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) के रूप में कार्यकाल: 2018–2021
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विभिन्न सरकारी समितियों व नीति मंचों में सदस्य
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संरचनात्मक सुधार और प्रगतिशील आर्थिक नीतियों के समर्थक
इस निर्णय का महत्व
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यह घटना IMF जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं के डेटा पारदर्शिता और संचालन पर सवाल उठाती है।
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यह भारत के वैश्विक आर्थिक मंचों पर आत्मविश्वास और मुखरता को दर्शाती है।
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इससे IMF में भारत की नीति-निर्माण में भागीदारी और प्रभाव पर असर पड़ सकता है।