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IGNCA गीता एवं नाट्यशास्त्र के यूनेस्को मान्यता पर संगोष्ठी का आयोजन करेगा

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) 30-31 जुलाई 2025 को नई दिल्ली में ‘शाश्वत ग्रंथ एवं सार्वभौमिक शिक्षाएं: यूनेस्को स्मृति विश्व अंतर्राष्ट्रीय रजिस्टर में भगवद् गीता एवं नाट्यशास्त्र का अंकन’ शीर्षक से दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करेगा। इस संगोष्ठी का आयोजन दो आधारभूत भारतीय ग्रंथों भगवद् गीता एवं नाट्यशास्त्र को प्रतिष्ठित यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल किए जाने अवसर पर किया जा रहा है, जिसमें उनके वैश्विक महत्व एवं स्थायी प्रासंगिकता को मान्यता प्रदान की गई है।

अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में उद्घाटन सत्र

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र 30 जुलाई 2025 को शाम 4:00 बजे नई दिल्ली स्थित अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित किया जाएगा।

मुख्य अतिथि:

श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, माननीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री, भारत सरकार।

अध्यक्षता:

श्री राम बहादुर राय, पद्म भूषण सम्मानित एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ट्रस्ट के अध्यक्ष।

विशिष्ट अतिथि:

  • स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज, संस्थापक — G.I.E.O. गीता एवं गीता ज्ञान संस्थानम्, कुरुक्षेत्र।

  • डॉ. सोनल मानसिंह, पद्म विभूषण से सम्मानित और पूर्व राज्यसभा सांसद।

यह सत्र भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों की सार्वभौमिक शिक्षाओं और सांस्कृतिक धरोहर पर चर्चा की आधारभूमि तैयार करेगा।

समापन सत्र – इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA), जनपथ

समापन सत्र 31 जुलाई 2025 को शाम 5:00 बजे नई दिल्ली स्थित IGNCA, जनपथ के ‘संवेत ऑडिटोरियम’ में आयोजित किया जाएगा।

मुख्य अतिथि:

श्री विवेक अग्रवाल, सचिव, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार।

विशिष्ट अतिथि:

प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, कुलपति, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय।

अध्यक्षता:

डॉ. सच्चिदानंद जोशी, सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA)।

सारांश प्रस्तुति:

प्रो. (डॉ.) रमेश सी. गौड़ संगोष्ठी के विचार-विमर्श का संक्षिप्त सार प्रस्तुत करेंगे।

संगोष्ठी का उद्देश्य और महत्व

यह संगोष्ठी निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आयोजित की गई है—

वैश्विक मान्यता का उत्सव:
भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ रजिस्टर में शामिल किए जाने का अभिनंदन करना, जो मानवता की सबसे मूल्यवान दस्तावेज़ी धरोहरों को संरक्षित करता है।

शाश्वत प्रासंगिकता की पुनर्पुष्टि:
गीता की सार्वभौमिक ज्ञान परंपरा एवं नाट्यशास्त्र की कलात्मक और सांस्कृतिक गहराई को आधुनिक संदर्भ में समझना।

विद्वत् संवाद को प्रोत्साहन:
देश-विदेश के विद्वानों, सांस्कृतिक विचारकों, और धरोहर विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर इन ग्रंथों की समकालीन उपयोगिता पर विमर्श करना।

परंपरा और आधुनिकता का संगम:
इन शास्त्रों की शिक्षाओं द्वारा आधुनिक चिंतन, प्रदर्शन कला, और नैतिक मूल्यों पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखांकित करना।

भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र के बारे में

भगवद्गीता, महाभारत का एक भाग है, जिसे जीवन, धर्म और नैतिकता पर गहन दृष्टिकोण प्रदान करने वाला आध्यात्मिक और दार्शनिक मार्गदर्शक ग्रंथ माना जाता है। यह संवाद अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच हुआ, जिसमें कर्म, भक्ति और ज्ञान के मार्गों की व्याख्या की गई है।

नाट्यशास्त्र, महान ऋषि भरत मुनि द्वारा रचित एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है, जो नाट्य, नृत्य और संगीत जैसे प्रदर्शन कलाओं के सिद्धांतों का विशद वर्णन करता है। इसे भारतीय शास्त्रीय कलाओं की आधारशिला माना जाता है।

इन दोनों ग्रंथों को यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में दर्ज किया जाना न केवल उनके पांडुलिपियों और सांस्कृतिक महत्व की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि यह भारत के वैश्विक ज्ञान परंपरा में योगदान को भी पुनः स्थापित करता है।

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