3 अगस्त, 2021 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) ने कहा कि राज्य के राज्यपाल (Governor) मौत की सजा के मामलों सहित कैदियों को क्षमा कर सकते हैं। राज्यपाल (Governor) कम से कम 14 साल की जेल की सजा पूरी करने से पहले ही कैदियों (prisoners) को माफ कर सकते हैं। कोर्ट (Court) ने यह भी कहा कि क्षमा करने की राज्यपाल की शक्ति दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 433 ए के तहत दिए गए प्रावधान को ओवरराइड करती है।
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कोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 161 के तहत कैदी को क्षमा करने की राज्यपाल (Governor) की संप्रभु शक्ति (sovereign power) का प्रयोग वास्तव में राज्य सरकार (State government) द्वारा किया जाता है, न कि राज्यपाल (Governor) अपने दम पर। भारतीय संविधान (Indian constitution) का अनुच्छेद 161 किसी राज्य के राज्यपाल को कानून के खिलाफ किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा को माफ करने, राहत देने, राहत देने या सजा देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति प्रदान करता है।
धारा 433A के बारे में:
धारा (Section) 433 A में कहा गया है कि 14 साल की जेल के बाद ही कैदी की सजा को माफ किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि संहिता की धारा 433-A संविधान के अनुच्छेद 72 या 161 के तहत क्षमादान देने की राष्ट्रपति (President) या राज्यपाल (Governor) की संवैधानिक शक्ति (constitutional power) को प्रभावित नहीं कर सकती है और न ही प्रभावित करती है। ऐसी शक्ति संप्रभु की शक्ति के प्रयोग में है। हालांकि, राज्यपाल को राज्य सरकार की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा।
सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण टेकअवे:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना: 26 जनवरी 1950;
- भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति: एनवी रमण (NV Ramana)।