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सरकार ने मराठी, पाली, असमिया, प्राकृत और बंगाली को ‘शास्त्रीय भाषा’ के रूप में दी मंजूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला लिया गया। इसे लेकर सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है और यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए सरकार के हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने, हमारी विरासत पर गर्व करने, सभी भारतीय भाषाओं और हमारी समृद्ध विरासत पर गर्व करने के दर्शन के अनुरूप है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक्स’ पर एक के बाद एक कई पोस्ट कर इन भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि उनके नेतृत्व वाली सरकार क्षेत्रीय भाषाओं को लोकप्रिय बनाने की अपनी प्रतिबद्धता पर अटूट रही है। पीएम मोदी ने इस फैसले पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए ‘एक्स’ पर सिलसिलेवार पोस्ट किए और कहा कि ये सभी भाषाएं सुंदर हैं और देश की जीवंत विविधता को रेखांकित करती हैं।

पृष्ठभूमि और मानदंड

“शास्त्रीय भाषाओं” की अवधारणा 2004 में स्थापित की गई थी, जिसमें तमिल को यह दर्जा प्राप्त करने वाली पहली भाषा थी। शास्त्रीय दर्जे के मानदंडों में 1500-2000 साल से अधिक पुराने ग्रंथों की उच्च प्राचीनता, प्राचीन साहित्य का एक समृद्ध संग्रह और एक विशिष्ट साहित्यिक परंपरा शामिल है। 2005 में संशोधित, इन दिशानिर्देशों को तब से संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया पर लागू किया गया है। साहित्य अकादमी के तहत भाषाई विशेषज्ञ समिति (LEC) द्वारा 2024 में सिफारिशों के बाद नवीनतम परिवर्धन को मंजूरी दी गई, जिसने पुष्टि की कि मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली इन मानकों को पूरा करते हैं।

भाषा और रोजगार पर प्रभाव

इन भाषाओं को “शास्त्रीय” के रूप में वर्गीकृत करने से शिक्षा, शोध और दस्तावेज़ीकरण के माध्यम से उनके संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा। केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना जैसी सरकारी पहल पहले से ही शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा दे रही हैं। इस निर्णय से शिक्षा, शोध, अनुवाद, संग्रह और डिजिटल दस्तावेज़ीकरण में नौकरियों के सृजन की उम्मीद है, जिससे भारत की भाषाई विरासत और समृद्ध होगी।

राज्यों और व्यापक सांस्कृतिक प्रभाव

यह निर्णय मुख्य रूप से महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, असम (असमिया), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों पर प्रभाव डालेगा, जहाँ पाली और प्राकृत बोलने वाले लोग हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थान इन भाषाओं के शामिल होने से लाभान्वित होंगे, क्योंकि इनका क्लासिकल भाषाओं के रूप में मान्यता मिलना गहन सांस्कृतिक अन्वेषण और संरक्षण को बढ़ावा देता है।

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