क्या भारत की जैव अर्थव्यवस्था 2030 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है?

भारत का बायोइकोनॉमी क्षेत्र (जैव-अर्थव्यवस्था क्षेत्र) — जो कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण और स्वास्थ्य को बायोटेक्नोलॉजी के माध्यम से जोड़ता है — अब सतत आर्थिक विकास का एक प्रमुख स्तंभ बनता जा रहा है। वर्ष 2024 में इसका मूल्य 150 अरब अमेरिकी डॉलर आँका गया था, जिसमें से लगभग 55% योगदान कृषि क्षेत्र का है। बढ़ती निर्यात मांग, हरित रोजगार अवसर और ग्रामीण आय वृद्धि के साथ यह क्षेत्र “विकसित भारत @2047” के लक्ष्य में परिवर्तनकारी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

क्षेत्र का अवलोकन: वृद्धि और संभावनाएँ

भारत की बायोइकोनॉमी केवल बढ़ नहीं रही, बल्कि तेज़ी से विविधीकरण भी कर रही है।

  • वर्तमान मूल्यांकन (2024): 150 अरब डॉलर

  • लक्ष्य (2030): 300 अरब डॉलर (BioE3 नीति के तहत)

  • कृषि-बायोटेक निर्यात वृद्धि: 14–16% वार्षिक, विशेष रूप से बायोफर्टिलाइज़र और बायोपेस्टिसाइड में

  • स्टार्टअप्स: 3,000 से अधिक एग्री-बायोटेक स्टार्टअप सक्रिय, DBT, ICAR और राज्य तकनीकी मिशनों द्वारा समर्थित

मुख्य तकनीकी क्षेत्र:

  • जलवायु-सहिष्णु बीज

  • एआई और डिजिटल ट्विन्स आधारित सटीक कृषि

  • जैव-इनपुट (एंजाइम, बायोफोर्टिफाइड फसलें)

  • छोटे किसानों के लिए स्मार्ट मशीनीकरण

सामाजिक-आर्थिक महत्व

बायोइकोनॉमी केवल अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि खाद्य, पोषण और जलवायु लक्ष्यों को भी मजबूत करती है।

  • खाद्य सुरक्षा: कृषि में अभी भी 43% श्रमबल कार्यरत; बायोटेक उत्पादकता और लचीलापन बढ़ाती है।

  • ग्रामीण रोजगार: 2030 तक 1 करोड़ (10 मिलियन) हरित नौकरियाँ उत्पन्न होने की संभावना।

  • आय वृद्धि: जैव-आधारित मूल्य श्रृंखलाएँ किसानों की आय में 25–30% तक बढ़ोतरी कर सकती हैं (नीति आयोग मॉडल)।

  • पोषण सुरक्षा: बायोफोर्टिफाइड फसलें ग्रामीण परिवारों (35%) में छिपी भूख को घटाती हैं।

  • हरित विकास: 2030 तक 20 मिलियन टन CO₂ उत्सर्जन में कमी की संभावना।

  • वैश्विक लक्ष्य: भारत 2030 तक वैश्विक बायोइकोनॉमी (1.5 ट्रिलियन डॉलर) में 5% हिस्सेदारी हासिल करने का लक्ष्य रखता है।

किसान वर्गीकरण और तकनीकी आवश्यकताएँ

भारत के किसान एकरूप नहीं हैं, इसलिए तकनीकी समाधान भी उनके अनुरूप होने चाहिए।

किसान वर्ग अनुपात आवश्यक तकनीकी दृष्टिकोण
छोटे किसान (Aspiring) 70–80% कम लागत वाले सरल समाधान
संक्रमणशील किसान (Transitioning) 15–20% मध्यम स्तर का मशीनीकरण
उन्नत किसान (Advanced) 1–2% डिजिटल टूल और डाटा-आधारित कृषि

इसका अर्थ है कि एक ही समाधान सबके लिए उपयुक्त नहीं, बल्कि स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित कृषि-तकनीक मॉडल जरूरी हैं।

सरकार की प्रमुख योजनाएँ

भारत सरकार ने बायोइकोनॉमी के विकास के लिए कई नीतियाँ और योजनाएँ शुरू की हैं —

  • BioE3 नीति (2024): 2030 तक 300 अरब डॉलर का रोडमैप

  • राष्ट्रीय जैव-अर्थव्यवस्था नीति (ड्राफ्ट 2024): जैव संसाधनों के सतत उपयोग को प्रोत्साहन

  • गोबरधन योजना: जैव-अपशिष्ट को जैव-उत्पादों में बदलने हेतु सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल

  • डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन (2021–25): सटीक कृषि हेतु GIS और डिजिटल उपकरण

  • राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी रणनीति (2022–25): अनुसंधान एवं उद्योगिक पैमाने पर जैव-तकनीकी विस्तार

  • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA): जलवायु-संवेदनशील तकनीकों को बढ़ावा

प्रमुख चुनौतियाँ

तेज़ी के बावजूद कुछ बाधाएँ अब भी क्षेत्र की प्रगति को सीमित करती हैं —

  • कम तकनीकी पहुँच: केवल 12% किसान ही उन्नत एग्रीटेक का उपयोग करते हैं (FAO 2024)

  • भूमि खंडन: औसत जोत आकार मात्र 1.08 हेक्टेयर, जिससे मशीनीकरण कठिन होता है

  • वित्तीय बाधा: एग्रीटेक स्टार्टअप्स को कुल कृषि ऋण का केवल 1.8% प्राप्त होता है (NABARD 2025)

  • कुशल श्रम की कमी: ग्रामीण युवाओं में केवल 7% ही बायोटेक या डिजिटल कृषि में प्रशिक्षित (NSDC 2024)

  • आयात पर निर्भरता: लगभग 80% जैव-एंजाइम, लैब उपकरण, बायोरिएक्टर आयातित

  • अनुसंधान-उद्योग समन्वय की कमी: केवल 15% ICAR–DBT शोध उत्पाद बाजार तक पहुँचते हैं

  • धीमी नियामक मंज़ूरी: जैव-इनपुट्स को स्वीकृति में 18–24 महीने लगते हैं

स्थिर तथ्य एवं परीक्षा हेतु मुख्य बिंदु

बिंदु विवरण
वर्तमान मूल्य (2024) 150 अरब अमेरिकी डॉलर
लक्ष्य (2030) 300 अरब डॉलर एवं 5% वैश्विक हिस्सेदारी
कृषि-बायोटेक निर्यात 14–16% वार्षिक वृद्धि
रोजगार सृजन 2030 तक 1 करोड़ हरित नौकरियाँ
तकनीकी चुनौतियाँ 12% टेक अपनाना, 1.08 हे. औसत जोत, 1.8% ऋण स्टार्टअप्स को
मुख्य नीतियाँ BioE3, डिजिटल कृषि मिशन, गोबरधन, NMSA
मुख्य बाधाएँ नियामक देरी, आयात निर्भरता, कमजोर अनुसंधान-व्यवसाय जुड़ाव
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vikash

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