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Brain Drain in India: कारण, परिणाम और आगे की राह

विदेश मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2024 में 2 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता त्याग दी, जो कुशल प्रवासन की निरंतर प्रवृत्ति को दर्शाता है। इसने एक बार फिर “ब्रेन ड्रेन” (प्रतिभा पलायन) की बहस को तेज कर दिया है, जिसमें अत्यधिक शिक्षित और कुशल व्यक्ति बेहतर अवसरों की तलाश में विदेश चले जाते हैं, जिससे मूल देश की प्रतिभा का नुकसान होता है। भारत के संदर्भ में यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका प्रभाव न केवल आर्थिक विकास पर पड़ता है, बल्कि स्वास्थ्य सेवा, प्रौद्योगिकी और शोध जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर भी गहराई से महसूस किया जाता है।

प्रतिभा पलायन क्या है?
प्रतिभा पलायन (Brain Drain) का अर्थ है अत्यधिक कुशल या शिक्षित व्यक्तियों का बेहतर वेतन, जीवन स्तर या कार्य अवसरों की तलाश में दूसरे देश में प्रवास करना।

प्रतिभा पलायन के प्रकार

  1. भौगोलिक प्रतिभा पलायन (Geographic Brain Drain):
    राजनीतिक अस्थिरता, खराब जीवन-स्तर या सीमित अवसरों के कारण एक देश या क्षेत्र से दूसरे में प्रवासन।

  2. संगठनात्मक/औद्योगिक प्रतिभा पलायन (Organizational/Industrial Brain Drain):
    कुशल कर्मियों का किसी कंपनी या उद्योग को अस्थिरता या विकास की कमी के कारण छोड़ना।

ब्रेन गेन और ब्रेन सर्कुलेशन

  • ब्रेन गेन (Brain Gain):
    अन्य देशों से कुशल प्रतिभा प्राप्त करना।

  • ब्रेन सर्कुलेशन (Brain Circulation):
    कुशल व्यक्ति विदेश में अनुभव प्राप्त कर बाद में अपने देश लौटकर योगदान देना।

प्रतिभा पलायन क्यों होता है?

1. धकेलने वाले कारक (Push Factors – घरेलू चुनौतियां)

  • सीमित उच्च शिक्षा सीटें: उदाहरण के लिए, NEET UG 2025 में 22.09 लाख आवेदकों के लिए केवल 1.8 लाख MBBS सीटें।

  • कमजोर अवसंरचना: कई राज्य कॉलेजों में आधुनिक लैब, कार्यशालाएं और शोध सुविधाओं की कमी।

  • कम वेतन: भारत और विकसित देशों के बीच वेतन अंतर काफी अधिक।

  • कम शोध वित्तपोषण: 2024 में GDP का केवल 0.64% R&D पर व्यय (आर्थिक सर्वेक्षण 2024–25)।

  • उच्च प्रतिस्पर्धा: भीड़भाड़ वाला रोजगार बाजार, जिसके कारण आंशिक या कम रोजगार (underemployment)।

  • सांस्कृतिक और सामाजिक कारण: उदार समाजों की प्राथमिकता, आरक्षण नीतियों से असंतोष।

  • उच्च कर: पुरानी व्यवस्था में कर की अधिकतम दर 42.7%, जबकि सिंगापुर में 22% और UAE में 0%।

2. खींचने वाले कारक (Pull Factors – विदेशी आकर्षण)

  • विकसित अर्थव्यवस्थाओं में उच्च वेतन और करियर वृद्धि

  • बेहतर जीवन गुणवत्ता – उन्नत स्वास्थ्य सेवाएं और स्वच्छ वातावरण।

  • आधुनिक तकनीक और शोध तक पहुंच – वैश्विक विश्वविद्यालयों और उद्योगों में।

  • अनुकूल आव्रजन नीतियां – जैसे अमेरिका का H-1B वीज़ा और कनाडा के पोस्ट-स्टडी वर्क परमिट।

प्रतिभा पलायन के परिणाम

1. आर्थिक और मानव पूंजी की हानि

  • स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: WHO मानकों को पूरा करने के लिए भारत को 24 लाख डॉक्टरों की कमी है।

  • प्रौद्योगिकी ह्रास: 2000 के दशक से अब तक 20 लाख से अधिक आईटी पेशेवर विदेश जा चुके हैं।

  • छात्र पलायन: हर साल 2 लाख छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं, जिनमें से 85% वापस नहीं लौटते।

  • सार्वजनिक निवेश की हानि: IITs/मेडिकल कॉलेजों में सब्सिडी प्राप्त शिक्षा का लाभ विदेशी अर्थव्यवस्थाओं को मिलता है।

  • GDP पर असर: कर, पेंशन और नवाचार में कमी से सालाना अनुमानित $160 बिलियन का नुकसान।

2. क्षेत्र-विशिष्ट प्रभाव

  • स्वास्थ्य क्षेत्र: 10 लाख से अधिक डॉक्टर और 20 लाख नर्स विदेशों में, विशेषकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में।

  • R&D कमजोरी: वैज्ञानिकों का पलायन नवाचार को बाधित करता है।

  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा में गिरावट: उच्च-प्रौद्योगिकी उद्योगों में नेतृत्व क्षमता कम होती है।

भारत के लिए प्रतिभा पलायन के लाभ
चुनौतियों के बावजूद, प्रतिभा पलायन से भारत को कुछ महत्वपूर्ण लाभ भी मिलते हैं—

  • विदेशी प्रेषण (Remittances): वित्त वर्ष 2024–25 में भारत को $135.46 बिलियन का प्रेषण प्राप्त हुआ, जो व्यापार घाटे का 47% कवर करता है।

  • ज्ञान और कौशल हस्तांतरण: लौटकर आने वाले प्रवासी अपनी विशेषज्ञता लाते हैं, जिससे स्टार्टअप और उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।

  • सॉफ्ट पावर: वैश्विक नेतृत्व भूमिकाओं में भारतीयों की मौजूदगी भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाती है।

  • रोज़गार बाज़ार संतुलन: प्रवासन से कुछ घरेलू नौकरी बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा कम होती है।

  • विदेश नीति में प्रभाव: प्रवासी भारतीयों की लॉबिंग से द्विपक्षीय संबंध मजबूत होते हैं।

  • रिवर्स ब्रेन ड्रेन: वैभव शिखर सम्मेलन (VAIBHAV Summit) जैसी सरकारी पहल वापसी प्रवासन को प्रोत्साहित करती है।

आगे की राह: मस्तिष्क पलायन पर रोक के उपाय

  • शोध वित्तपोषण बढ़ाना: R&D खर्च को GDP के कम से कम 1–2% तक बढ़ाया जाए।

  • उच्च शिक्षा क्षमता का विस्तार: अधिक मेडिकल, इंजीनियरिंग और शोध संस्थानों की स्थापना।

  • प्रतिस्पर्धी वेतन: महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों के लिए प्रोत्साहन योजनाएं लागू करना।

  • वैश्विक सहयोग: विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ संयुक्त शोध परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना।

  • व्यवसायिक माहौल में सुधार: स्टार्टअप नियमों को सरल बनाकर प्रवासी पेशेवरों की वापसी आकर्षित करना।

  • जीवन गुणवत्ता में सुधार: शहरी प्रदूषण, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और बुनियादी ढांचे की स्थिति को बेहतर करना।

  • कर सुधार: भारत की कर व्यवस्था को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना।

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