हाल ही में बनारस शहनाई को भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया जाना भारत की समृद्ध अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को एक ऐतिहासिक मान्यता है। पूरी दुनिया में उस्ताद बिस्मिल्ला खान के माध्यम से प्रसिद्ध हुई शहनाई केवल एक वाद्य यंत्र नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और धार्मिक संगीत का प्रतीक है। वाराणसी (काशी) के पारंपरिक कारीगरों के लिए यह GI टैग केवल एक आधिकारिक प्रमाणपत्र नहीं है, बल्कि उनकी पीढ़ियों से चली आ रही विरासत, निष्ठा और शिल्प कौशल को मिला एक भावनात्मक और सांस्कृतिक सम्मान है।
मुख्य बिंदु
बनारस शहनाई के बारे में
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वाद्य यंत्र: पारंपरिक वायु-वाद्य यंत्र, जिसे धार्मिक और सांस्कृतिक अवसरों पर विशेष महत्व प्राप्त है।
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उत्पत्ति: वाराणसी (बनारस), उत्तर प्रदेश।
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सांस्कृतिक महत्व: मंदिरों, विवाह समारोहों, घाटों और शास्त्रीय संगीत प्रस्तुतियों में बजाई जाती है।
GI टैग और मान्यता
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प्रदान किया गया द्वारा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
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कारीगरों की ओर से प्राप्त किया: रमेश कुमार, चौथी पीढ़ी के शहनाई निर्माता।
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महत्त्व: बनारस शहनाई की विशिष्टता और भौगोलिक विरासत की प्रामाणिकता को संरक्षित और बढ़ावा देता है।
उस्ताद बिस्मिल्ला खान की भूमिका
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शहनाई को वैश्विक पहचान दिलाई।
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वाराणसी के निवासी, बनारस शहनाई का चेहरा माने जाते हैं।
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इस वाद्य यंत्र को शास्त्रीय मंचों पर विशेष स्थान दिलाने में अहम योगदान।
कारीगरों की शिल्पकला
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प्रयुक्त सामग्री: शीशम और सागवान की लकड़ी।
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रीड का स्रोत: डुमरांव, बिहार।
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निर्माण में लगने वाला समय: प्रति शहनाई 2–3 दिन।
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प्रक्रिया: स्वर की शुद्धता के लिए अत्यंत सटीक गणनाओं की आवश्यकता।
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भावना और दर्शन: इसे एक पवित्र रचना के रूप में देखा जाता है, न कि केवल एक व्यावसायिक उत्पाद के रूप में।
सारांश/स्थैतिक जानकारी | विवरण |
समाचार में क्यों? | बनारस शहनाई को भौगोलिक संकेत (GI) टैग की मान्यता मिली |
वाद्य यंत्र | बनारस शहनाई |
GI टैग प्रदान किया गया | अप्रैल 2025 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा |
सांस्कृतिक प्रतिनिधि | उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान |
भौगोलिक उत्पत्ति | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
प्रयुक्त सामग्री | शीशम और सागवान की लकड़ी, डुमरांव (बिहार) से प्राप्त रीड |
निर्माण अवधि | प्रति शहनाई 2–3 दिन |