केंद्र सरकार ने पहली बार तय की मनरेगा में खर्च की सीमा

वित्त वर्ष 2025–26 की पहली छमाही में कुल वार्षिक आवंटन का अधिकतम 60% खर्च की सीमा तय कर दी गई है। यह निर्णय केंद्र सरकार द्वारा योजना के नकदी प्रवाह (कैश फ्लो) को नियंत्रित करने की दृष्टि से लिया गया है, लेकिन इससे योजना की मांग-आधारित प्रकृति प्रभावित हो सकती है, खासकर जब पिछले वर्ष से ₹21,000 करोड़ की लंबित देनदारियां पहले से मौजूद हैं।

समाचार में क्यों?

वित्त मंत्रालय ने पहली बार मनरेगा पर मासिक/त्रैमासिक व्यय नियंत्रण (MEP/QEP) लागू किया है, जिसमें पहली छमाही में खर्च को वार्षिक बजट के 60% तक सीमित किया गया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने शुरुआत में इसका विरोध किया था। उच्च श्रम मांग और लंबित भुगतानों के कारण इस निर्णय से ग्रामीण रोजगार सृजन पर असर पड़ सकता है।

मुख्य घटनाक्रम

बिंदु विवरण
वार्षिक बजट (2025–26) ₹86,000 करोड़
पहली छमाही व्यय सीमा ₹51,600 करोड़ (60%)
8 जून 2025 तक व्यय ₹24,485 करोड़ (28.47%)
लंबित भुगतान (2024–25 से) ₹21,000 करोड़
लक्ष्यित श्रम बजट 198.86 करोड़ मानव-दिवस
पहली छमाही लक्ष्य 133.45 करोड़ मानव-दिवस (67.11%)
  • शुरुआत: 2006–07 में 200 पिछड़े जिलों में

  • 2007–08 में 130 और जिलों में विस्तार

  • 2008–09 से पूरे भारत में लागू

  • प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का गारंटीकृत रोजगार

  • कोविड-19 के दौरान अहम भूमिका; 2020–21 में 7.55 करोड़ परिवारों की भागीदारी

  • 2024–25 में भाग लेने वाले परिवार घटकर 5.79 करोड़ हुए

MEP/QEP क्या है?

  • वित्त मंत्रालय द्वारा 2017 में शुरू की गई प्रणाली

  • मंत्रालयों के बजट को मासिक या त्रैमासिक आधार पर बांटकर व्यय नियंत्रण

  • नकदी प्रवाह प्रबंधन और अनावश्यक उधारी से बचाव

  • अब तक मनरेगा को इसकी मांग-आधारित प्रकृति के कारण इससे मुक्त रखा गया था

महत्व और प्रभाव

सकारात्मक पहलू

  • राजकोषीय अनुशासन को बढ़ावा

  • रोजगार सृजन के लिए अग्रिम योजना संभव

  • फंड के अनुचित संचय को रोकेगा

चिंताएं

  • लंबित भुगतान के चलते मजदूरी में देरी या रोजगार में कटौती संभव

  • योजना की मांग-आधारित आत्मा को क्षति

  • कृषि के गैर-मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीतिक असंतोष की आशंका

महाराष्ट्र में अब हर इंफ्रा प्रोजेक्ट को मिलेगा ‘आधार’ जैसा यूनिक आईडी

पारदर्शिता और प्रभावी निगरानी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में सभी अवसंरचना विकास परियोजनाओं को एक भू-टैग युक्त 13-अंकीय अल्फान्यूमेरिक यूनिक आईडी (Infra ID) से चिन्हित करना अनिवार्य कर दिया है। यह आईडी प्रशासनिक स्वीकृति मिलने के बाद परियोजना की प्राथमिक पहचान के रूप में कार्य करेगी। इस पहल का उद्देश्य डिजिटल एकरूपता लाना, दोहराव को रोकना और विभिन्न विभागों में परियोजनाओं की वास्तविक समय में निगरानी को सक्षम बनाना है। Infra ID पोर्टल के माध्यम से यह प्रणाली संचालित होगी, और लक्ष्य है कि मार्च 2026 तक पिछले पांच वर्षों में स्वीकृत सभी परियोजनाएं इस पोर्टल पर पंजीकृत हो जाएं।

क्यों है ख़बरों में?

महाराष्ट्र सरकार ने 9 जून 2025 को Infra ID पोर्टल को सक्रिय कर दिया है। परियोजना स्तर पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू की गई यह पहल पहले चरण में विदर्भ क्षेत्र के वर्धा ज़िले में लागू की जाएगी। 1 अक्टूबर 2025 से इसे राज्य के सभी विभागों और ज़िलों में विस्तार दिया जाएगा। वर्ष 2020 से स्वीकृत सभी अवसंरचना परियोजनाओं का पंजीकरण मार्च 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य है।

यूनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर आईडी पहल के उद्देश्य

  • महाराष्ट्र की हर अवसंरचना परियोजना को एक डिजिटल पहचान प्रदान करना।

  • विभागों के बीच समन्वय बेहतर बनाना और परियोजनाओं की पुनरावृत्ति से बचाव करना।

  • भू-टैगिंग के माध्यम से वास्तविक समय में निगरानी को सक्षम बनाना।

  • परियोजना डेटा को केंद्रीकृत कर सुशासन और पारदर्शिता को बढ़ावा देना।

यूनिक आईडी कैसे काम करती है

यह 13-अंकों की अल्फ़ा-न्यूमेरिक (अक्षर और संख्या वाली) पहचान होती है, जिसमें निम्नलिखित घटक शामिल होते हैं:

  • 1 अक्षर का राज्य कोड – जैसे M महाराष्ट्र के लिए

  • 2 अंकों का वर्ष कोड – जैसे 25 (वर्ष 2025 के लिए)

  • 4 अक्षरों का योजना/कार्यक्रम कोड

  • 3 अक्षरों का ज़िला कोड

  • 2 अक्षरों का परिसंपत्ति प्रकार संक्षिप्त रूप

  • 3 अंकों की क्रम संख्या

उदाहरण: M25RURWRDRODW001
(यह कोड किसी ग्रामीण विकास योजना के अंतर्गत वर्धा ज़िले में जल निकासी से जुड़ी संपत्ति को दर्शा सकता है)

यह आईडी परियोजना को प्रशासनिक मंज़ूरी मिलने के बाद अनिवार्य हो जाती है।

पहले चरण में शामिल विभाग

  • लोक निर्माण विभाग

  • ग्रामीण विकास विभाग

  • नगरीय विकास विभाग

  • जल संरक्षण विभाग

  • जल आपूर्ति एवं स्वच्छता विभाग

  • सिंचाई विभाग

प्रौद्योगिकी का उपयोग

  • सभी परियोजनाओं को MRSAC (महाराष्ट्र रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशन सेंटर) के माध्यम से जियो-टैग किया जाएगा।

  • इन्फ्रा आईडी पोर्टल के ज़रिए आम जनता और विभिन्न विभागों को परियोजना डेटा तक पहुंच मिलेगी।

  • यह प्लेटफॉर्म परियोजना की स्वीकृति से लेकर पूर्णता तक के पूर्ण जीवनचक्र प्रबंधन को मजबूत बनाता है।

कार्यान्वयन समयरेखा

  • जून 2025: Infra ID Portal की शुरुआत।

  • अक्टूबर 2025: सभी ज़िलों/विभागों में विस्तार।

  • मार्च 2026: पिछले 5 वर्षों की स्वीकृत परियोजनाओं का पंजीकरण पूर्ण करने की समयसीमा।

शासन तंत्र 

  • परियोजना की यूनिक आईडी रद्द या संशोधित करने का अधिकार ज़िला कलेक्टर की समिति को होगा।

  • उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए निगरानी उपाय प्रणाली में समाहित किए गए हैं ताकि परियोजनाओं की प्रामाणिकता बनी रहे।

बिंदु विवरण
समाचार में क्यों? महाराष्ट्र सरकार ने सभी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए जियो-टैग युक्त यूनिक आईडी शुरू की
नीति का नाम बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए इंफ्रा यूनिक आईडी
कार्यान्वयनकर्ता महाराष्ट्र सरकार
आईडी संरचना 13-अंकीय अल्फान्यूमेरिक कोड (राज्य, वर्ष, योजना, जिला आदि को दर्शाता है)
तकनीकी मंच MRSAC (महाराष्ट्र रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशन सेंटर)
पूर्ण राज्यव्यापी लागू 1 अक्टूबर, 2025 से
लक्ष्य पूर्णता तिथि मार्च 2026
पायलट जिला वर्धा (विदर्भ)

बिक्रम में 2 मेगावाट का सौर ऊर्जा प्लांट शुरू, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया उद्घाटन

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना जिले की बिक्रम लॉक नहर के किनारे 2 मेगावाट की नहर-बैंक सौर परियोजना का उद्घाटन किया। यह परियोजना बिहार सरकार की जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत हरित और सतत ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई है। खास बात यह है कि यह परियोजना राज्य सरकार पर किसी वित्तीय बोझ के बिना, निजी भागीदारी से विकसित की गई है। आगामी 25 वर्षों तक यह संयंत्र ₹3.10 प्रति यूनिट की दर से बिजली आपूर्ति करेगा। इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण को बल मिलेगा और राज्य में इस प्रकार की अन्य परियोजनाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत बनेगा।

समाचार में क्यों?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 10 जून 2025 को पटना जिले की बिक्रम लॉक नहर के किनारे निर्मित 2 मेगावाट की नहर बैंक सौर ऊर्जा परियोजना का उद्घाटन किया। यह परियोजना राज्य की जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत हरित और सतत ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम है। खास बात यह है कि इस परियोजना को राज्य सरकार के खजाने पर कोई भार डाले बिना निजी भागीदारी के माध्यम से विकसित किया गया है।

परियोजना के मुख्य बिंदु:

  • स्थान: बिक्रम लॉक नहर, पटना जिला, बिहार

  • क्षमता: 2 मेगावाट (MW)

  • राज्य पर लागत: ₹0 (निजी कंपनी द्वारा विकसित)

  • बिजली क्रय मूल्य: ₹3.10 प्रति यूनिट, 25 वर्षों के लिए निर्धारित

  • भूमि: जल संसाधन विभाग के स्वामित्व में

  • लाभार्थी: बिक्रम और आस-पास के क्षेत्र के निवासी

उद्देश्य और महत्व:

  • हरित और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना

  • जल-जीवन-हरियाली अभियान का समर्थन करना

  • अप्रयुक्त नहरों और तटबंधों की भूमि का उपयोग सौर परियोजनाओं के लिए प्रोत्साहित करना

  • पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करना

  • कार्बन उत्सर्जन में कमी में मदद करना

  • ग्रामीण क्षेत्रों को सस्ती और निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना

  • स्थानीय रोजगार और आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देना

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान:

“हम नहरों, बांधों और तटबंधों की जगहों का उपयोग करके बड़े पैमाने पर सौर संयंत्र बना रहे हैं। यह केवल ऊर्जा का विषय नहीं है, बल्कि रोजगार, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक स्थिरता का भी सवाल है। हमारा उद्देश्य सभी को भरोसेमंद, सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल बिजली उपलब्ध कराना है।”

उपस्थित प्रमुख अधिकारी:

  • बिजेंद्र प्रसाद यादव – ऊर्जा एवं योजना मंत्री

  • विजय कुमार चौधरी – जल संसाधन मंत्री

  • अमृत लाल मीणा – मुख्य सचिव

  • डॉ. थियागराजन एस.एम. – जिलाधिकारी, पटना

  • पंकज कुमार पाल – सचिव, ऊर्जा विभाग (परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत की)

सारांश/स्थिर जानकारी विवरण
क्यों खबर में? बिहार CM ने पटना में 2 मेगावाट नहर किनारे सौर संयंत्र का उद्घाटन किया
परियोजना का नाम बिक्रम लॉक नहर सौर ऊर्जा परियोजना
स्थान बिक्रम, पटना जिला, बिहार
उद्घाटनकर्ता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
क्षमता 2 मेगावाट (MW)
टैरिफ ₹3.10 प्रति यूनिट (25 वर्षों का विद्युत खरीद समझौता)
विकासकर्ता निजी फर्म (PPP मॉडल, राज्य पर कोई वित्तीय बोझ नहीं)
सरकारी मिशन जल-जीवन-हरियाली अभियान
मुख्य लाभ हरित ऊर्जा, कार्बन उत्सर्जन में कमी, ग्रामीण विकास

Axiom-4 अंतरिक्ष मिशन: प्रक्षेपण तिथि, चालक दल के सदस्य और मुख्य विवरण

आगामी ऐक्सिओम मिशन-4 (Axiom-4) केवल एक और अंतरिक्ष उड़ान नहीं है—यह भारत सहित कई देशों के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि का प्रतीक है। इस मिशन में भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल की भागीदारी भारत के अंतरिक्ष युग में एक नए अध्याय की शुरुआत करती है। यह मिशन न केवल अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रतीक है, बल्कि वैज्ञानिक नवाचार और मानव अंतरिक्ष उड़ान में व्यावसायिक प्रगति का भी प्रतिनिधित्व करता है।

Axiom-4 द्वारा आयोजित यह मिशन चार अंतरिक्ष यात्रियों की एक विविध टीम को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक ले जाएगा। इस अभियान का उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान, जन-संपर्क गतिविधियों और अंतरिक्ष वाणिज्य को एक साथ जोड़ना है, जिससे वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष अन्वेषण के नए द्वार खुलेंगे।

मिशन का परिचय
Axiom-4 केवल एक और अंतरिक्ष उड़ान नहीं है — यह भारत और कई अन्य देशों के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इस मिशन में भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की भागीदारी भारत की वैश्विक अंतरिक्ष उपस्थिति को दर्शाती है। इस मिशन का उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान, सार्वजनिक शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।

मिशन विवरण

विवरण जानकारी
मिशन का नाम Axiom Mission 4 (Ax-4)
प्रक्षेपण तिथि स्थगित (अब तक)
प्रक्षेपण समय सुबह 8:22 (ईटी)
प्रक्षेपण स्थल LC-39A, NASA कैनेडी स्पेस सेंटर
यान स्पेसएक्स ड्रैगन
लॉन्च प्रदाता SpaceX
गंतव्य अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS)
अवधि लगभग 14 दिन
उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान, शिक्षा, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग

शुभांशु शुक्ला – पायलट (भारत)

  • भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन

  • गगनयान मिशन के लिए चयनित

  • 2000+ घंटे की उड़ान का अनुभव

  • सु-30 MKI, मिग-21, मिग-29, जगुआर जैसे विमानों का संचालन

  • जन्म: लखनऊ | शिक्षा: सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, NDA के पूर्व छात्र

पैगी व्हिटसन – कमांडर (सं.रा. अमेरिका)

  • अमेरिका की सबसे अनुभवी अंतरिक्ष यात्रियों में से एक

  • NASA की पूर्व अंतरिक्ष यात्री, अब Axiom Space में

  • इस मिशन की सुरक्षा और तकनीकी संचालन की प्रमुख

स्लावोस उज़्नांस्की-विस्निएव्स्की – मिशन स्पेशलिस्ट (पोलैंड)

  • जैव-चिकित्सा एवं अंतरिक्ष सिस्टम इंजीनियर

  • पोलैंड के प्रतिनिधि के रूप में ISS पर जा रहे हैं

टिबोर कपू – मिशन स्पेशलिस्ट (हंगरी)

  • मैकेनिकल इंजीनियर

  • हंगरी के पहले अंतरिक्ष यात्रियों में शामिल

  • वैज्ञानिक प्रयोगों और संचालन कार्यों की जिम्मेदारी

मिशन के उद्देश्य

वैज्ञानिक अनुसंधान

  • मानव स्वास्थ्य, सूक्ष्म गुरुत्व और जैविक प्रणालियों पर प्रयोग

  • जीवन समर्थन प्रणाली और चिकित्सा अध्ययन

  • दीर्घकालिक मानव मिशनों की तैयारी में योगदान

अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • भारत, अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के प्रतिनिधियों का संयुक्त मिशन

  • सरकारी सहयोग से संचालित वाणिज्यिक अंतरिक्ष कार्यक्रमों की मिसाल

शिक्षा और जनसंपर्क

  • छात्रों को प्रेरित करने के लिए लाइव सेशन्स और अंतरिक्ष से प्रयोग

  • वैज्ञानिक सोच और STEM शिक्षा को बढ़ावा

शुभांशु शुक्ला: भारत की नई अंतरिक्ष पहचान

जन्म व पृष्ठभूमि:

  • जन्म: 10 अक्टूबर 1985, लखनऊ

  • शिक्षा: सिटी मॉन्टेसरी स्कूल

  • परिवार: पत्नी दंत चिकित्सक, एक चार वर्षीय पुत्र

भारतीय वायु सेना में योगदान:

  • 2006 में फाइटर पायलट के रूप में कमीशन

  • वर्तमान में ग्रुप कैप्टन

  • गगनयान मिशन के लिए अंतिम चार में चयनित

Ax-4 में भूमिका:

  • पायलट के रूप में ड्रैगन यान के संचालन, दिशा-निर्देशन और आपातकालीन नियंत्रण की जिम्मेदारी

Axiom 4: भविष्य की ओर एक कदम

Ax-4 मिशन अंतरिक्ष यात्रा को निजी और सरकारी सहयोग से आगे बढ़ाने का प्रतीक है। भारत, हंगरी और पोलैंड जैसे देशों के लिए यह वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का सुनहरा अवसर है।

संक्षिप्त जानकारी 

  • प्रक्षेपण स्थल: NASA Kennedy Space Center

  • अंतरिक्ष यात्री: भारत, अमेरिका, पोलैंड, हंगरी से

  • मिशन अवधि: 14 दिन

  • उद्देश्य: अनुसंधान, शिक्षा, सहयोग

  • शुभांशु शुक्ला की भागीदारी भारत के लिए ऐतिहासिक

SEBI ने Algo प्लेटफॉर्म ब्रोकर्स के लिए शुरू की सेटलमेंट स्कीम

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने अनियमित एल्गोरिदम ट्रेडिंग (Algo Trading) प्लेटफॉर्म से जुड़े मामलों का निपटारा करने के लिए एक तीन महीने की सेटलमेंट योजना शुरू की है। यह योजना 16 जून से 16 सितंबर 2025 तक खुली रहेगी और इसका उद्देश्य है – ब्रोकर्स को लंबित मामलों का समाधान करने का अवसर देना, ताकि वे आगे की कानूनी कार्रवाई से बच सकें।

समाचार में क्यों?

10 जून 2025 को SEBI ने यह सेटलमेंट स्कीम उन स्टॉक ब्रोकर्स के लिए शुरू की, जिन पर अनधिकृत एल्गो प्लेटफॉर्म से जुड़ने के आरोप हैं। SEBI ने ज़ेरोधा, 5पैसा और मोटिलाल ओसवाल जैसे 100 से अधिक ब्रोकर्स को शोकॉज नोटिस जारी किए थे। अब इन ब्रोकर्स को कोर्ट, SAT (Securities Appellate Tribunal) या SEBI के सामने लंबित मामलों को निपटाने का मौका दिया गया है।

सेटलमेंट योजना का दायरा

  • आवेदन की समयसीमा: 16 जून से 16 सितंबर 2025

  • पात्रता: वे ब्रोकर्स जिनके खिलाफ SEBI, SAT या कोर्ट में एल्गो प्लेटफॉर्म से जुड़े मामले लंबित हैं।

  • सेटलमेंट राशि: प्रति ब्रोकर्स लगभग ₹1 लाख अनुमानित

  • सहायता: 16 जून को SEBI एक FAQ जारी करेगा जिससे ब्रोकर्स को प्रक्रिया समझने में मदद मिलेगी।

पृष्ठभूमि

SEBI की जांच में पाया गया कि कई ब्रोकर्स ने TradeTron जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से API (Application Programming Interface) का उपयोग कर ऑटोमैटिक ट्रेडिंग की सुविधा दी। इन प्लेटफॉर्म्स ने निश्चित मुनाफा देने वाली रणनीतियाँ पेश कीं, जो SEBI के नियमों का उल्लंघन है। इन रणनीतियों ने खुदरा निवेशकों को जोखिम भरे सौदों की ओर आकर्षित किया और पारदर्शिता तथा खुलासे के मानकों का उल्लंघन किया।

SEBI द्वारा नियमन में सख्ती

SEBI ने एल्गो ट्रेडिंग के लिए नए नियम लागू किए हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • एल्गो प्रदाताओं का पंजीकरण (Empanelment)

  • ब्रोकर्स और स्टॉक एक्सचेंजों की जवाबदेही

  • ऐसे प्लेटफॉर्म से ब्रोकर्स की स्पष्ट दूरी जो अवास्तविक मुनाफे का दावा करते हैं।

उद्देश्य और महत्त्व

  • निवेशक संरक्षण: अवैध एल्गो प्लेटफॉर्म से निवेशकों को बचाना।

  • बाजार की विश्वसनीयता: स्वचालित ट्रेडिंग में पारदर्शिता और अनुशासन सुनिश्चित करना।

  • एकमुश्त अवसर: ब्रोकर्स को न्यूनतम दंड के साथ पुराने उल्लंघनों को नियमित करने का अवसर देना।

यह पहल भारतीय पूंजी बाजार में जवाबदेही, पारदर्शिता और निवेशक विश्वास को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

बांके बिहारी कॉरिडोर क्या है?

बांके बिहारी कॉरिडोर उत्तर प्रदेश के वृंदावन में स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के आसपास विकसित किया जा रहा एक प्रमुख आधारभूत एवं तीर्थ विकास परियोजना है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित सबसे पूजनीय धार्मिक स्थलों में से एक है।

कॉरिडोर का उद्देश्य

बांके बिहारी कॉरिडोर का मुख्य उद्देश्य है:

  • मंदिर क्षेत्र में भीड़भाड़ को कम करना

  • विशेष रूप से जन्माष्टमी, होली जैसे पर्वों पर श्रद्धालुओं की आवागमन और सुरक्षा में सुधार

  • श्रद्धालु अनुभव को बेहतर बनाना, जिसमें सुव्यवस्थित और सौंदर्यपूर्ण वातावरण की रचना शामिल है

  • आपातकालीन चिकित्सा और सुरक्षा सेवाओं की सुगम पहुँच सुनिश्चित करना

कॉरिडोर की प्रमुख विशेषताएँ

  • चौड़ाई: प्रस्तावित कॉरिडोर 7 मीटर चौड़ा होगा ताकि श्रद्धालुओं और धार्मिक जुलूसों का सुचारु संचालन हो सके

  • कुल क्षेत्रफल: परियोजना का विस्तार लगभग 5.5 एकड़ में होगा, जो मंदिर परिसर के चारों ओर फैला होगा

  • डिज़ाइन: परियोजना का डिज़ाइन वृंदावन की विरासत वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा रहा है

प्रस्तावित सुविधाएँ

  • श्रद्धालुओं के लिए प्रतीक्षा क्षेत्र

  • सार्वजनिक शौचालय

  • चिकित्सा एवं आपातकालीन सेवाएँ

  • पेयजल सुविधा

  • दुकानें और सांस्कृतिक प्रदर्शन क्षेत्र

  • सुरक्षा के लिए निगरानी प्रणाली

सरकारी भूमिका

  • यह परियोजना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही है, जो राज्य में धार्मिक पर्यटन और आधुनिक बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य कर रही है

  • मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं इस परियोजना में सक्रिय रुचि दिखा रहे हैं और उन्होंने इसके आध्यात्मिक महत्व और आर्थिक संभावना दोनों पर बल दिया है

विवाद और चिंताएँ

यद्यपि यह परियोजना कई लाभ प्रदान करती है, लेकिन इसके कुछ पहलुओं को लेकर विवाद भी उत्पन्न हुए हैं:

  • स्थानीय निवासियों और पुजारियों को आशंका है कि भूमि अधिग्रहण से पुरानी इमारतें, घर और छोटे व्यवसाय प्रभावित हो सकते हैं

  • वृंदावन की पारंपरिक धार्मिक भावना और सांस्कृतिक स्वरूप को बनाए रखने को लेकर चिंता व्यक्त की गई है

  • मंदिरों और विरासत संरचनाओं की रक्षा के लिए कानूनी याचिकाएँ और जन-आंदोलन भी हुए हैं

CAQM, CSIR-CRRI और SPA ने NCR में सड़क धूल प्रदूषण से निपटने के लिए समझौता किया

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में सड़क की धूल से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है, जिसमें वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने CSIR–सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRRI) और स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (SPA), नई दिल्ली के साथ त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।
यह साझेदारी 10 जून 2025 को घोषित की गई और इसका उद्देश्य वैज्ञानिक रोड इंजीनियरिंग, हरियाली समाधानों, और डिजिटल एसेट प्रबंधन प्रणालियों को एकीकृत करते हुए NCR के शहरी शहरों में वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाना है।

समाचार में क्यों?

  • 10 जून 2025 को नई दिल्ली में त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए।

  • यह पहल धूल प्रदूषण को लक्षित करती है, जो NCR में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।

  • पहले चरण में 9 प्रमुख औद्योगिक/शहरी शहरों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

  • CAQM में एक प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग सेल (PMC) की स्थापना की जाएगी, जिसमें CRRI और SPA सहयोग करेंगे।

उद्देश्य और लक्ष्य

मुख्य लक्ष्य:

शहरी सड़कों के पुनर्विकास के ज़रिए धूल प्रदूषण को कम करना, और इसे सतत और मानकीकृत डिज़ाइनों के साथ लागू करना।

विशिष्ट उद्देश्य:

  • सड़क निर्माण और रखरखाव के लिए मानक रूपरेखा लागू करना।

  • हरियाली और धूल नियंत्रण उपायों से वायु गुणवत्ता सुधारना।

  • Web-GIS आधारित रोड एसेट मैनेजमेंट सिस्टम (RAMS) से डेटा-आधारित निगरानी को सक्षम बनाना।

चरण-1 में शामिल शहर

  1. दिल्ली

  2. फरीदाबाद

  3. गुरुग्राम

  4. सोनीपत

  5. गाज़ियाबाद

  6. नोएडा

  7. ग्रेटर नोएडा

  8. भिवाड़ी

  9. नीमराना

भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियाँ

CAQM

  • परियोजना क्रियान्वयन प्राधिकरण

  • PMC (Project Monitoring Cell) की स्थापना और समन्वय

CSIR–CRRI

  • रोड इंजीनियरिंग, निर्माण और एसेट प्रबंधन में विशेषज्ञता

  • रोड क्रॉस-सेक्शन डिज़ाइन और नई तकनीकों का तकनीकी समर्थन

SPA–नई दिल्ली

  • शहरी योजना और फुटपाथों की हरियाली पर सुझाव

  • सतत विकास और भूदृश्य एकीकरण में सहयोग

मानक रूपरेखा के मुख्य घटक

  • सड़क की चौड़ाई (ROW) और शहरी आवश्यकताओं के अनुसार क्रॉस-सेक्शन डिज़ाइन

  • हरियाली उपाय जैसे वृक्षारोपण, पेविंग, और धूल अवरोधक

  • Web-GIS आधारित RAMS से सड़क की गुणवत्ता और मरम्मत की स्मार्ट ट्रैकिंग

  • डैशबोर्ड प्रणाली द्वारा परियोजना-वार पारदर्शिता और निगरानी

दीर्घकालिक महत्त्व

  • सड़कों से निकलने वाले PM2.5 और PM10 कणों के उत्सर्जन को कम करता है।

  • वैज्ञानिक शहरी योजना और सतत सड़क निर्माण को बढ़ावा देता है।

  • NCR के शहरों की सौंदर्यता और पर्यावरणीय गुणवत्ता को बेहतर करता है।

  • अन्य प्रदूषित शहरी क्षेत्रों के लिए एक दोहराने योग्य मॉडल स्थापित करता है।

बेंगलुरु बना भारत का ‘तेंदुआ राजधानी’

बेंगलुरु अब आधिकारिक रूप से ‘भारत की तेंदुआ राजधानी’ बन गया है, जिससे यह मेट्रो शहरों के किनारों पर रहने वाले स्वतंत्र रूप से विचरण करने वाले जंगली तेंदुओं की सबसे अधिक संख्या वाला शहर बन गया है। होलेमट्ठी नेचर फाउंडेशन (HNF) द्वारा किए गए एक साल लंबे सर्वेक्षण और संरक्षणवादी डॉ. संजय गुब्बी के नेतृत्व में किए गए अध्ययन के अनुसार, बेंगलुरु के आसपास के जंगलों और झाड़ियों में वर्तमान में लगभग 80–85 तेंदुए रहते हैं। यह इसे एक दुर्लभ शहरी क्षेत्र बनाता है, जो आज भी बड़े शिकारी और अन्य बड़े स्तनधारियों से समृद्ध है — और यह इसके पारिस्थितिक महत्व और स्थायी संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता को दर्शाता है।

समाचार में क्यों?

होलेमट्ठी नेचर फाउंडेशन द्वारा 2024–2025 में किए गए कैमरा-ट्रैप सर्वे में पाया गया कि बेंगलुरु की जंगली तेंदुआ आबादी 80–85 तक पहुंच गई है, जो मुंबई की ज्ञात आबादी (54 तेंदुए) से अधिक है। बनरगट्टा राष्ट्रीय उद्यान (BNP) में तेंदुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, और कई महत्वपूर्ण वन क्षेत्रों को संरक्षण रिजर्व का दर्जा देने का प्रस्ताव है।

सर्वेक्षण के उद्देश्य

  • बेंगलुरु के आस-पास तेंदुओं की संख्या का अनुमान लगाना

  • खंडित पारिस्थितिक क्षेत्रों में आवास उपयोग और गति पैटर्न का अध्ययन

  • मानव-तेंदुआ सह-अस्तित्व के लिए वैज्ञानिक संरक्षण रणनीतियाँ सुझाना

सर्वेक्षण की मुख्य बातें

  • कुल अनुमानित तेंदुए: 80–85

  • बनरगट्टा राष्ट्रीय उद्यान (BNP): 54 तेंदुए (2019 में 40 से वृद्धि)

  • अन्य मेट्रो क्षेत्र के किनारे: लगभग 30 तेंदुए

  • कुल सर्वे क्षेत्र: 282 वर्ग किमी

  • कैमरा ट्रैप की संख्या: 250+

मुख्य सर्वेक्षण क्षेत्र

  • तुरहल्ली, बी.एम. कावाल, यू.एम. कावाल

  • रोएरिच एस्टेट, गोल्लाहल्ली गुड्डा

  • सुलिकेरे, हेसरघट्टा, मरासंद्रा, मंडूर और आसपास के क्षेत्र

अन्य प्रमुख निष्कर्ष

  • 34 स्तनधारी प्रजातियां कैमरे में कैद हुईं

  • IUCN रेड लिस्ट में 8 प्रजातियां: 4 संकटग्रस्त (Endangered), 4 निकट संकटग्रस्त (Near Threatened)

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत:

    • अनुसूची I में 22 प्रजातियां

    • अनुसूची II में 5 प्रजातियां

तेंदुओं की संख्या बढ़ने के कारण

  • BNP में कड़ी सुरक्षा और बेहतर शिकार उपलब्धता

  • स्थानीय समुदायों के साथ सह-अस्तित्व

  • पिछले वर्षों में संघर्ष-तेंदुओं का स्थानांतरण भी एक कारण

HNF की सिफारिशें

  • बी.एम. कावाल, यू.एम. कावाल, रोएरिच एस्टेट और गोल्लाहल्ली गुड्डा को संरक्षण रिजर्व घोषित किया जाए

  • दुर्गडकाल RF, बेट्टहल्लीवाड़े RF, और जे.आई. बछल्ली तथा एम. मणियंबाल के अघोषित वन को BNP में जोड़ा जाए

  • मुनेश्वरबेट्टा–बनरगट्टा कॉरिडोर का संरक्षण किया जाए

  • BNP में भविष्य में तेंदुओं के स्थानांतरण से बचा जाए

  • स्थानीय समुदायों में जागरूकता बढ़ाई जाए और वन्यजीव कॉरिडोर को समर्थन दिया जाए

अध्ययन का महत्त्व

  • यह दर्शाता है कि बेंगलुरु जैसे शहरी क्षेत्र भी जैव विविधता से समृद्ध हो सकते हैं

  • शहरीकरण और बाघ जैसे बड़े शिकारी एक साथ रह सकते हैं — यदि नीति मजबूत हो

  • यह अध्ययन अन्य महानगरों के लिए एक मॉडल है कि कैसे विकास और पारिस्थितिकीय संतुलन एक साथ चल सकते हैं

निर्माणाधीन डेटा सेंटर क्षमता में मुंबई विश्व स्तर पर छठे स्थान पर

मुंबई ने वैश्विक स्तर पर डेटा सेंटर निर्माण क्षमता में 97 शहरों में से 6वां स्थान हासिल किया है, जैसा कि कशमैन एंड वेकफील्ड की नवीनतम रिपोर्ट ‘ग्लोबल डेटा सेंटर मार्केट कम्पैरिजन 2025’ में बताया गया है। वर्तमान में शहर में 335 मेगावाट (MW) क्षमता के डेटा सेंटर निर्माणाधीन हैं, जिससे यह एशिया-पैसिफिक (APAC) क्षेत्र में शीर्ष पर है। इसके चलते मुंबई की ऑपरेशनल क्षमता में 62% की वृद्धि का अनुमान है। इस तेजी का मुख्य कारण है हाइपरस्केलर्स की बढ़ती मांग, क्लाउड कंप्यूटिंग और एआई आधारित वर्कलोड्स का विस्तार, और शहर की मजबूत डिजिटल एवं पावर अवसंरचना।

समाचार में क्यों?

कशमैन एंड वेकफील्ड ने वर्ष 2025 का ‘ग्लोबल डेटा सेंटर मार्केट कम्पैरिजन रिपोर्ट’ जारी किया, जिसमें 97 वैश्विक बाजारों को शामिल किया गया है। मुंबई ने निर्माणाधीन डेटा सेंटर क्षमता के मामले में वैश्विक स्तर पर 6वां और APAC क्षेत्र में पहला स्थान प्राप्त किया है। यह विकास भारत को वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में एक उभरता हुआ केंद्र बना रहा है।

वैश्विक रैंकिंग – निर्माणाधीन डेटा सेंटर क्षमता (शीर्ष 10 शहर)

  1. वर्जीनिया – 1,834 MW

  2. अटलांटा – 1,078 MW

  3. कोलंबस – 546 MW

  4. डलास – 500 MW

  5. फीनिक्स – 478 MW

  6. मुंबई – 335 MW

  7. ऑस्टिन/सैन एंटोनियो – 325 MW

  8. रेनो – 305 MW

  9. लंदन – 265 MW

  10. डबलिन – 249 MW

मुंबई की डेटा सेंटर विशेषताएं

  • निर्माणाधीन क्षमता: 335 मेगावाट (2024 के अंत तक)

  • संभावित वृद्धि: 62% तक परिचालन क्षमता में इजाफा

  • वर्तमान योगदान: भारत की कुल डेटा सेंटर क्षमता का 50% से अधिक

  • प्रमुख परियोजनाएं: बड़े क्लाउड प्रोवाइडर (Hyperscalers) जैसे AWS, Google, Microsoft, Meta द्वारा प्रेरित

मुख्य सहायक तत्व 

  • 12 सबमरीन केबल लैंडिंग स्टेशन

  • हाल ही में जोड़ा गया MIST (म्यांमार/मलेशिया-इंडिया-सिंगापुर ट्रांजिट) केबल लैंडिंग

  • मजबूत डिजिटल नेटवर्क और ऊर्जा आपूर्ति अवसंरचना

चुनौतियां 

  • प्रमुख क्षेत्रों में भूमि की उपलब्धता की कमी

  • कुछ स्थानों पर बिजली की लागत और पहुंच की समस्या

पृष्ठभूमि और प्रमुख कारक

  • क्लाउड कंप्यूटिंग, एआई, IoT और 5G जैसी तकनीकों का विस्तार वैश्विक डेटा उपयोग को तीव्र गति से बढ़ा रहा है, जिससे आधुनिक डेटा सेंटर की मांग भी तेज़ हो रही है।

  • मुंबई का सामरिक समुद्री स्थान, वित्तीय राजधानी होने का दर्जा और मजबूत तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र इसे वैश्विक डेटा केंद्रों के लिए उपयुक्त बनाते हैं।

  • AWS, Google Cloud, Microsoft Azure और Meta जैसे हाइपरस्केलर्स भारत में अपना विस्तार कर रहे हैं, जिससे यह वृद्धि और तेज़ हो रही है।

महत्त्व

  • भारत की वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में स्थिति को और मजबूत करता है।

  • मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी पहल को तकनीकी अवसंरचना से समर्थन देता है।

  • FDI को आकर्षित करता है, खासकर फिनटेक, ई-कॉमर्स और एआई रिसर्च जैसे डेटा-आधारित क्षेत्रों में।

  • डेटा लोकलाइजेशन और भारतीय उपयोगकर्ताओं के लिए बेहतर लेटेंसी को सुनिश्चित करता है।

  • स्मार्ट शहरों और सुरक्षित डिजिटल सेवाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

जस्टिस एनएस संजय गौड़ा ने गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में ली शपथ

न्यायमूर्ति नेरनहल्ली श्रीनिवासन संजय गौड़ा ने आधिकारिक रूप से गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। इससे पहले वे कर्नाटक उच्च न्यायालय में कार्यरत थे। उनका यह तबादला सुप्रीम कोर्ट की योजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में विविधता और बेहतर प्रशासन सुनिश्चित करना है।

शपथ ग्रहण समारोह

न्यायमूर्ति गौड़ा ने सोमवार, 9 जून 2025 को शपथ ली। उन्हें शपथ गुजरात उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल ने दिलाई। यह कार्यक्रम गुजरात उच्च न्यायालय की प्रथम अदालत (First Court), वडोदरा में आयोजित हुआ। इस अवसर पर एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी, वरिष्ठ वकील और अन्य विशिष्ट अतिथि भी उपस्थित थे।

न्यायमूर्ति गौड़ा की विधिक यात्रा

58 वर्षीय न्यायमूर्ति संजय गौड़ा ने वर्ष 1989 में वकालत की शुरुआत की थी। उन्हें नवंबर 2019 में कर्नाटक उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। इसके बाद, सितंबर 2021 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। अपने करियर के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण विधिक मामलों की सुनवाई की है।

तबादले का कारण

अप्रैल 2025 में, भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सात उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के तबादले की सिफारिश की थी। इनमें से चार कर्नाटक से थे, जिनमें न्यायमूर्ति गौड़ा भी शामिल थे। इस कदम के पीछे मुख्य उद्देश्य थे:

  • समावेशिता (Inclusivity): विभिन्न क्षेत्रों और पृष्ठभूमि के न्यायाधीशों को अलग-अलग राज्यों में सेवा का अवसर मिले।

  • न्याय की गुणवत्ता में सुधार: उच्च न्यायालयों के बीच अनुभव और प्रतिभा का आदान-प्रदान हो सके।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का बयान

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव कुमार के नेतृत्व में कॉलेजियम ने इन तबादलों को न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने और इसे अधिक समावेशी और संतुलित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। कॉलेजियम का मानना है कि ऐसे निर्णय न्यायालयों की कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी और विविधतापूर्ण बनाते हैं।

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