तमिलनाडु सरकार ने कावेरी नदी डेल्टा में पाई जाने वाली एक कमजोर प्रजाति, स्मूथ-कोटेड ऊदबिलाव की सुरक्षा के लिए एक खास संरक्षण पहल शुरू की है। यह कार्यक्रम ऊदबिलाव की आबादी का अध्ययन करने, उनके रहने की जगहों को बेहतर बनाने और ऊदबिलाव और स्थानीय मछुआरा समुदायों के बीच टकराव को कम करने पर केंद्रित है। यह पहल ताज़े पानी के इकोसिस्टम में गिरावट को लेकर बढ़ती चिंता को दिखाती है और प्रजातियों के संरक्षण के महत्व पर ज़ोर देती है।
तमिलनाडु संरक्षण पहल का विवरण
यह संरक्षण कार्यक्रम लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा से संबंधित तमिलनाडु विधानसभा सत्र के दौरान घोषित किया गया। आधिकारिक रूप से इसे “स्मूथ-कोटेड ऊदबिलाव (Smooth-coated Otter) की जनसंख्या गतिशीलता, व्यवहार पैटर्न और आवास सुधार के अध्ययन हेतु संरक्षण पहल” नाम दिया गया है। यह परियोजना कावेरी डेल्टा क्षेत्र में तंजावुर, तिरुवारुर और कड्डालोर जिलों के कुछ हिस्सों को कवर करेगी।
इस परियोजना के प्रमुख उद्देश्यों में ऊदबिलाव की जनसंख्या का आकलन करना, महत्वपूर्ण आवासों की पहचान और प्राथमिकता निर्धारण करना, प्रदूषण और मानव–वन्यजीव संघर्ष जैसे खतरों का अध्ययन करना तथा रीड (सरकंडा) रोपण और फिश लैडर जैसी उपायों के माध्यम से आवास बहाली शामिल है। इस परियोजना को ₹20 लाख की प्रशासनिक स्वीकृति मिली है, जिसमें से ₹10 लाख वित्तीय वर्ष 2025–26 के लिए आवंटित किए गए हैं।
परियोजना में शामिल संस्थान
यह संरक्षण पहल तमिलनाडु वन विभाग की शोध इकाई एडवांस्ड इंस्टीट्यूट फॉर वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन (AIWC), वंडलूर, चेन्नई के नेतृत्व में संचालित की जा रही है। क्षेत्रीय अनुसंधान कार्य एवीसी ऑटोनॉमस कॉलेज, मयिलाडुथुरै के वन्यजीव जीवविज्ञान विभाग द्वारा, वन विभाग की निगरानी में किया जाएगा। यह अध्ययन एक वर्ष की अवधि के लिए प्रस्तावित है। इसके अतिरिक्त, एंडेंजर्ड वाइल्डलाइफ एंड एनवायरनमेंटल ट्रस्ट (EWET) भी कावेरी डेल्टा में आवास मानचित्रण, क्षेत्रीय सर्वेक्षण और जन-जागरूकता कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है।
स्मूथ-कोटेड ऊदबिलाव के बारे में
स्मूथ-कोटेड ऊदबिलाव एशिया की सबसे बड़ी ऊदबिलाव प्रजाति है। यह नदियों, झीलों, आर्द्रभूमियों, मैंग्रोव क्षेत्रों और सिंचाई नहरों में पाया जाता है। तमिलनाडु में ये ऊदबिलाव विशेष रूप से कावेरी डेल्टा के कुछ हिस्सों में देखे जाते हैं, जहां स्थानीय मछुआरे इन्हें प्यार से “मीनाकुट्टी” (अर्थात मछली पकड़ने वाले पिल्ले) कहते हैं।
स्मूथ-कोटेड ऊदबिलाव—
- समूहों में रहते और शिकार करते हैं, जिन्हें बेवी (Bevvies) कहा जाता है
- सीटी और चहचहाहट जैसी आवाज़ों से आपस में संवाद करते हैं
- कार्प, कैटफिश, तिलापिया और झींगे जैसी मछलियों पर भोजन करते हैं
एक ऊदबिलाव समूह प्रतिवर्ष लगभग एक टन मछली का उपभोग कर सकता है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
संरक्षण की स्थिति और कानूनी सुरक्षा
- स्मूथ-कोटेड ऊदबिलाव को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट में कमजोर (Vulnerable) श्रेणी में रखा गया है।
- भारत में उन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित किया गया है, जो उच्चतम स्तर की कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
- इसके बावजूद, आवास के नुकसान और बढ़ते मानवीय दबाव के कारण, खासकर संरक्षित क्षेत्रों के बाहर, उनकी संख्या में तेजी से गिरावट आई है।
ऊदबिलाव संरक्षण का महत्व
ऊदबिलावों को संकेतक प्रजाति (Indicator Species) माना जाता है, अर्थात इनकी उपस्थिति यह दर्शाती है कि नदियां और आर्द्रभूमियां स्वस्थ हैं। ऊदबिलावों का संरक्षण करने से—
- मीठे पानी की जैव विविधता का संरक्षण होता है
- दीर्घकाल में मछली संसाधनों में सुधार होता है
- कृषि और आजीविका को सहारा देने वाली आर्द्रभूमियों की रक्षा होती है
जैसा कि विशेषज्ञों का मानना है, ऊदबिलावों को बचाने का अर्थ अंततः मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र को बचाना है।
मुख्य बिंदु
- तमिलनाडु ने कावेरी डेल्टा में स्मूथ-कोटेड ऊदबिलाव संरक्षण पहल शुरू की
- यह प्रजाति IUCN द्वारा Vulnerable श्रेणी में सूचीबद्ध है
- भारत में इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत संरक्षण प्राप्त है
- परियोजना तंजावुर, तिरुवारूर और कुड्डालोर जिलों में लागू होगी
- कुल स्वीकृत राशि ₹20 लाख, जिसमें ₹10 लाख वर्ष 2025–26 के लिए
- पहल का उद्देश्य जनसंख्या अध्ययन, आवास सुधार और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना है


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