हाल ही में वैज्ञानिकों और संरक्षण विशेषज्ञों ने नरपुह (Narpuh) वन्यजीव अभयारण्य को लेकर गंभीर चिंता जताई है। चूना-पत्थर (लाइमस्टोन) की खनन गतिविधियाँ और आसपास स्थापित सीमेंट फैक्ट्रियाँ इस अभयारण्य के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए दीर्घकालिक खतरा बन रही हैं। यह क्षेत्र मेघालय के सबसे जैव-विविध और पारिस्थितिक रूप से समृद्ध क्षेत्रों में से एक है।
नरपुह वन्यजीव अभयारण्य के बारे में
स्थान और स्थापना
नरपुह वन्यजीव अभयारण्य मेघालय के पूर्व जयंतिया हिल्स ज़िले, जोवाई (Jowai) के निकट स्थित है। इसे वर्ष 2014 में आधिकारिक रूप से वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। यह जयंतिया हिल्स क्षेत्र का एकमात्र संरक्षित क्षेत्र है।
- इस अभयारण्य का पारिस्थितिक महत्व इसके भौगोलिक स्थान के कारण और भी बढ़ जाता है:
- चारों ओर से यह रिज़र्व फ़ॉरेस्ट से घिरा हुआ है
- केवल दक्षिण-पश्चिमी सीमा असम राज्य से लगती है
- इस कारण नरपुह मेघालय और असम के बीच एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक गलियारे (Ecological Corridor) के रूप में कार्य करता है।
भौगोलिक विशेषताएँ और नदियाँ
लुखा नदी (Lukha River)
अभयारण्य की उत्तरी सीमा लुखा नदी द्वारा निर्धारित होती है, जो एक प्राकृतिक अवरोध का कार्य करती है। ऐसी नदियाँ:
- स्थानीय जैव-विविधता को बनाए रखने
- जलीय जीवों के संरक्षण
- सूक्ष्म जलवायु (Microclimate) के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
जलवायु और वर्षा
नरपुह वन्यजीव अभयारण्य की सबसे विशिष्ट विशेषता इसकी अत्यधिक वर्षा है। यहाँ वार्षिक वर्षा 6,000 मिमी से अधिक होती है, जो मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्राप्त होती है।
अधिक वर्षा का प्रभाव:
- घने वनों के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ
- संकटग्रस्त और स्थानिक (Endemic) प्रजातियों का संरक्षण
- सदाबहार (Evergreen) और अर्ध-सदाबहार (Semi-evergreen) वनों की निरंतरता
- इसी कारण यह अभयारण्य भारत के सबसे अधिक वर्षा वाले वन पारिस्थितिकी तंत्रों में गिना जाता है।
वनस्पति (Vegetation)
नरपुह में मेघालय के बचे हुए सबसे ऊँचे सदाबहार और अर्ध-सदाबहार वन पाए जाते हैं। ये वन:
- महत्वपूर्ण कार्बन सिंक हैं
- जलवायु संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं
प्रमुख वनस्पति प्रजातियाँ:
- कैस्टानोप्सिस इंडिका
- कैस्टानोप्सिस ट्रिबुलॉइड्स
- डायसॉक्सिलम प्रजाति
- एलेओकार्पस प्रजाति
- एंगेलहार्डटिया स्पिकाटा
- सियाजियम प्रजाति
ये पौध प्रजातियाँ वन्यजीवों के साथ-साथ स्थानीय समुदायों के जीवन-यापन में भी सहायक हैं।
जीव-जंतु (Fauna): समृद्ध जैव-विविधता
- इस अभयारण्य में कई दुर्लभ, संकटग्रस्त और संवेदनशील जीव प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
प्रमुख पशु प्रजातियाँ:
- हूलॉक गिब्बन (भारत का एकमात्र वानर/एप)
- सेरो (Serow)
- स्लो लॉरिस
- स्लॉथ भालू
- लार्ज इंडियन सिवेट
- लेपर्ड कैट
- क्लाउडेड लेपर्ड
- बार्किंग डियर
क्लाउडेड लेपर्ड जैसे शीर्ष शिकारी की उपस्थिति इस क्षेत्र के स्वस्थ और संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र को दर्शाती है।
- हाल की संरक्षण चुनौतियाँ
- चूना-पत्थर खनन से खतरा
पूर्व जयंतिया हिल्स क्षेत्र चूना-पत्थर से समृद्ध है, जिसके कारण:
- अनियंत्रित खनन
- आवास का विखंडन (Habitat Fragmentation)
- वन क्षेत्र में कमी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
सीमेंट फैक्ट्रियों का प्रभाव
अभयारण्य के निकट स्थित सीमेंट संयंत्र:
- वायु और जल प्रदूषण
- वन्यजीवों की आवाजाही में बाधा
- दीर्घकालिक पारिस्थितिक क्षति का कारण बन रहे हैं।
वैज्ञानिकों का चेतावनी है कि यदि इन गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो नरपुह वन्यजीव अभयारण्य की जैव-विविधता को अपूरणीय क्षति पहुँच सकती है।
नरपुह वन्यजीव अभयारण्य का महत्व
परीक्षा और नीति-निर्माण के दृष्टिकोण से नरपुह वन्यजीव अभयारण्य अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह:
- एक जैव-विविधता हॉटस्पॉट है
- जलवायु नियमन में योगदान देता है
- कई संकटग्रस्त प्रजातियों का प्राकृतिक आवास है
- विकास बनाम संरक्षण के संघर्ष को उजागर करता है


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