वित्त वर्ष 2024–25 में भारत के विदेशी निवेश परिदृश्य में नाटकीय बदलाव देखने को मिला, जहाँ भारतीय कंपनियों के विदेशी निवेश में 67.74% की तेज़ वृद्धि दर्ज हुई। यह निवेश पिछले वर्ष के 24.8 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 41.6 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
ईवाई (EY) की नवीनतम रिपोर्ट “इंडिया अब्रॉड: नेविगेटिंग द ग्लोबल लैंडस्केप फॉर ओवरसीज़ इन्वेस्टमेंट – 2025” के अनुसार, यह उछाल ईएसजी (पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक) सिद्धांतों, गिफ्ट सिटी सुधारों और वैश्विक कर पुनर्संरेखन के संगम का परिणाम है, जिसने भारतीय कंपनियों की वैश्विक विस्तार रणनीति को नया रूप दिया है।
निवेश वृद्धि के पीछे प्रमुख कारण
1. ईएसजी और रणनीतिक विविधीकरण पर ध्यान
भारतीय कंपनियाँ अब अपने विदेशी विस्तार में ईएसजी सिद्धांतों को शामिल कर रही हैं। वैश्विक दबाव, जैसे—यूरोपीय संघ में कार्बन प्राइसिंग, अमेरिका में सप्लाई चेन ऑडिट और निवेशकों की अपेक्षाएँ—सतत निवेश को अनिवार्य बना रहे हैं।
तेज़ी से निवेश पाने वाले क्षेत्र:
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सूचना प्रौद्योगिकी
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ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी
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दवा और स्वास्थ्य क्षेत्र
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ऑटोमोबाइल और मोबिलिटी
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आतिथ्य और लाइफ़स्टाइल अवसंरचना
2. गिफ्ट सिटी का उदय
गुजरात स्थित गिफ्ट सिटी अब विदेशी निवेश संरचना का प्रमुख केंद्र बन गया है। आरबीआई के आँकड़ों के अनुसार गिफ्ट सिटी के माध्यम से निवेश FY23 के 0.04 अरब डॉलर से बढ़कर FY25 में 0.81 अरब डॉलर तक पहुँच गया है।
गिफ्ट सिटी के फायदे:
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कर-कुशल संरचनाएँ
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पारदर्शी नियमन
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परिचालन व लागत लाभ
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POEM (Place of Effective Management) पर नियंत्रण
3. नए निवेश गंतव्य
पारंपरिक केंद्र जैसे सिंगापुर, मॉरीशस और नीदरलैंड्स अब नए गंतव्यों के साथ पूरक हो रहे हैं। उभरते केंद्रों में शामिल हैं:
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यूएई – सीईपीए (CEPA) समझौते से ऊर्जा के अलावा अवसंरचना, फिनटेक और डिजिटल टेक में निवेश
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लक्ज़मबर्ग – फंड मैनेजमेंट और ग्रीन फाइनेंस में अग्रणी
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स्विट्ज़रलैंड – आईपी अधिकार संरक्षण और उन्नत कानूनी-वित्तीय ढाँचे के लिए प्रसिद्ध
4. वैश्विक कर सुधारों का प्रभाव
BEPS 2.0 और OECD का ग्लोबल मिनिमम टैक्स भारतीय कंपनियों की निवेश संरचना को प्रभावित कर रहे हैं। अब अधिक पारदर्शी और सब्सटेंस-बेस्ड मार्ग अपनाने की दिशा में रुझान है।
व्यापक प्रभाव
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आउटबाउंड निवेश मूल्य में वृद्धि के साथ लेन-देन की संख्या भी 15% बढ़ी।
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यह दर्शाता है कि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारतीय कंपनियों का सीमा-पार निवेश को लेकर विश्वास मज़बूत हो रहा है।


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