विश्व बांस दिवस 2025: थीम, इतिहास और भारत की भूमिका

विश्व बांस दिवस 2025 को 18 सितम्बर को पूरे विश्व में मनाया जाएगा, जिसका उद्देश्य बांस को एक सतत एवं बहुउपयोगी संसाधन के रूप में बढ़ावा देना है। बांस को अक्सर “हरा सोना” (Green Gold) कहा जाता है, क्योंकि यह ग्रामीण आजीविका, पर्यावरण संरक्षण तथा उद्योग एवं डिज़ाइन में नवाचार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत, जो विश्व के सबसे बड़े बांस उत्पादक देशों में से एक है, राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) जैसी पहलों के माध्यम से बांस को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाता है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए यह दिवस पर्यावरण, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के संदर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

विश्व बांस दिवस क्या है?

  • विश्व बांस दिवस पहली बार 2009 में बैंकॉक (8वाँ विश्व बाँस कांग्रेस) में मनाया गया।

  • इसे विश्व बांस संगठन (World Bamboo Organization) द्वारा शुरू किया गया था ताकि बाँस के सांस्कृतिक, आर्थिक और पारिस्थितिक महत्व को उजागर किया जा सके।

  • तब से इस दिन को रोपण कार्यक्रमों, सांस्कृतिक आयोजनों और नीतिगत चर्चाओं के माध्यम से बाँस की भूमिका को जलवायु कार्रवाई और आर्थिक विकास में रेखांकित किया जाता है।

विश्व बांस दिवस 2025 की थीम

“अगली पीढ़ी का बांस: समाधान, नवाचार और डिज़ाइन”

मुख्य बिंदु

  • जलवायु और विकास चुनौतियों को हल करने में बांस की आधुनिक उपयोगिता।

  • नवाचार में युवाओं और उद्यमियों की भागीदारी।

  • परंपरा और प्रौद्योगिकी के समन्वय से बांस-आधारित डिज़ाइन और उत्पादों का विकास।

  • आवास, पैकेजिंग, फर्नीचर और जलवायु-सहनशील समाधान जैसे क्षेत्रों में बांस को भविष्य-उन्मुख सामग्री के रूप में प्रस्तुत करना।

भारत की भूमिका

भारत ने बांस को जलवायु कार्रवाई, रोजगार सृजन और आर्थिक वृद्धि के लिए एक रणनीतिक संसाधन माना है।

राष्ट्रीय बांस मिशन (NBM) के प्रमुख उद्देश्य

  • कृषि/बंजर भूमि पर बांस के रोपण का विस्तार।

  • नर्सरी, ऊतक संवर्धन प्रयोगशालाओं और प्रसंस्करण अवसंरचना को बढ़ावा।

  • कारीगरों और किसानों के लिए प्रशिक्षण और विपणन सहायता।

  • उत्पाद विकास एवं उद्योग से जुड़ाव।

  • बांस को वन विभाग से कृषि श्रेणी में स्थानांतरित करना ताकि किसानों को इसकी खेती आसान हो।

भारत में बांस उत्पादन

  • भारत में लगभग 1.4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र और करीब 136 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

  • बांस हस्तशिल्प, फर्नीचर, कागज़, पैकेजिंग, निर्माण जैसे क्षेत्रों को समर्थन देता है।

आर्थिक एवं पारिस्थितिक महत्व

  • बांस तेजी से बढ़ता है और मृदा स्वास्थ्य सुधारता है।

  • वनों की कटाई और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाता है।

  • किसानों और कारीगरों के लिए लंबे समय तक आय का स्रोत है।

  • लकड़ी और प्लास्टिक के आयात को कम करने में सहायक।

  • भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में कुल बांस भंडार का 2/3 हिस्सा है, जो इसके सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व को दर्शाता है।

स्थिर तथ्य

  • तिथि: 18 सितम्बर 2025

  • पहली बार मनाया गया: 2009, बैंकॉक (विश्व बाँस कांग्रेस)

  • थीम (2025): “अगली पीढ़ी का बांस: समाधान, नवाचार और डिज़ाइन”

  • आयोजक: विश्व बांस संगठन

  • भारत की प्रमुख योजना: राष्ट्रीय बांस मिशन

[wp-faq-schema title="FAQs" accordion=1]
vikash

Recent Posts

World Soil Day 2025: जानें मृदा दिवस क्यों मनाया जाता है?

हर साल विश्व मृदा दिवस 5 दिसंबर को मनाया जाता है। मृदा को आम बोलचाल…

2 hours ago

अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक दिवस 2025: इतिहास और महत्व

अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवक दिवस हर साल 5 दिसंबर को मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम…

3 hours ago

संयुक्त राष्ट्र प्रणाली: मुख्य निकाय, कोष, कार्यक्रम और विशेष एजेंसियां

यूनाइटेड नेशंस (UN) एक बड़े इंस्टीट्यूशनल सिस्टम के ज़रिए काम करता है जिसे UN सिस्टम…

4 hours ago

मिज़ोरम के पूर्व राज्यपाल स्वराज कौशल का 73 वर्ष की उम्र में निधन

मिजोरम के पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ अधिवक्ता स्वराज कौशल का 4 दिसंबर 2025 को 73…

7 hours ago

Aadhaar प्रमाणीकरण लेनदेन नवंबर में 8.5 प्रतिशत बढ़कर 231 करोड़ हुए

भारत में आधार का उपयोग लगातार तेजी से बढ़ रहा है। नवंबर 2025 में, आधार…

7 hours ago