हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day 2024) मनाया जाता है। दुनिया भर में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों के बारे में अपने नागरिकों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए यह दिन मनाया जाता है। विश्व आत्मकेंद्रित जागरूकता दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग और संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा ऑटिस्टिक सेल्फ एडवोकेसी नेटवर्क, ग्लोबल ऑटिज्म प्रोजेक्ट और स्पेशलिस्टर्न फाउंडेशन सहित नागरिक समाज भागीदारों के समर्थन से किया जाता है।
क्या है साल 2024 की थीम?
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस की इस साल की थीम, ‘Empowering Autistic Voices’ यानी इस डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों की आवाज को मजबूती देना है, जिससे समाज में ऐसे लोगों के प्रति स्वीकार्यता बढ़े और वह भी अच्छी जिंदगी और बेहतर करियर की दिशा में आगे बढ़ सकें। बता दें, कि नीले रंग को ऑटिज्म के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है, जिसके चलते हर साल इस दिन प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों को नीले रंग की रोशनी से सजाया भी जाता है।
दिन का इतिहास:
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव (ए/आरईएस/62/139) नामित किया। परिषद ने 1 नवंबर, 2007 को ‘विश्व आत्मकेंद्रित जागरूकता दिवस’ पारित किया और इसे 18 दिसंबर, 2007 को अपनाया। इसका उद्देश्य ऑटिस्टिक लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालना था। पहला विश्व आत्मकेंद्रित दिवस वर्ष 2008 में 2 अप्रैल को मनाया गया था। विश्व आत्मकेंद्रित दिवस केवल सात आधिकारिक स्वास्थ्य-विशिष्ट संयुक्त राष्ट्र दिवसों में से एक है।
ऑटिज्म क्या है?
ऑटिज़्म, या ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (autism spectrum disorder – ASD), सामाजिक कौशल, दोहराव वाले व्यवहार, भाषण और अशाब्दिक संचार के साथ चुनौतियों की विशेषता वाली स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला को संदर्भित करता है। ऑटिज्म एक विकास विकार है। विकार को सामाजिक संपर्क और संचार के साथ कठिनाइयों की विशेषता है जिसमें प्रतिबंधित और दोहराव वाला व्यवहार भी शामिल हो सकता है। ऑटिज्म के लक्षण अक्सर पहले तीन वर्षों के दौरान बच्चे के माता-पिता द्वारा देखे जाते हैं। ये लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं।
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस का महत्व
ऑटिज्म के विकार को दूर किया जा सकता है। इसके लिए माता-पिता समेत लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। हालांकि, महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक होता है। इसके अलावा, बच्चे ऑटिज्म के अधिक शिकार होते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ का यह प्रयास सरहनीय है। इससे ऑटिज्म को जड़ से खत्म किया जा सकता है।