हेपेटाइटिस डी क्यों है खतरनाक?
हेपेटाइटिस डी, जिसे HDV भी कहा जाता है, हेपेटाइटिस वायरसों में अनोखा है। यह अकेले जीवित नहीं रह सकता—इसे प्रतिकृति (replication) और लिवर की कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए हेपेटाइटिस बी वायरस (HBV) की ज़रूरत होती है। इसलिए, हेपेटाइटिस डी केवल उन व्यक्तियों को प्रभावित करता है जिनमें पहले से हेपेटाइटिस बी है—या तो सह-संक्रमण (दोनों वायरस एक साथ) या सुपरइन्फेक्शन (पहले से हेपेटाइटिस बी वाले व्यक्ति में हेपेटाइटिस डी का संक्रमण)।
इस संयोजन की सबसे बड़ी चिंता इसका लिवर पर बेहद तेज़ और गंभीर असर है। शोध से पता चलता है कि HDV संक्रमण, हेपेटाइटिस बी की तुलना में लिवर कैंसर का ख़तरा दो से छह गुना बढ़ा देता है। यह वायरस HBV से होने वाले नुकसान को और बढ़ा देता है, जिससे लिवर सिरोसिस और यहां तक कि लिवर फेलियर के मामले तेज़ी से बढ़ सकते हैं।
हेपेटाइटिस डी का फैलाव कैसे होता है?
HDV, हेपेटाइटिस बी और सी की तरह, मुख्यतः रक्त या शारीरिक द्रव के माध्यम से फैलता है:
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संक्रमित रक्त चढ़ाने या सुई/इंजेक्शन साझा करने से
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असुरक्षित यौन संबंध (बिना प्रोटेक्शन) से
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प्रसव के दौरान मां से बच्चे में संक्रमण
भारत में इसकी सामान्य प्रचलन दर कम मानी जाती है, लेकिन उच्च जोखिम वाले समूह—जैसे ड्रग्स इंजेक्शन लेने वाले और लंबे समय से हेपेटाइटिस बी के रोगी—इससे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
निदान और बचाव
HDV का पता लगाने के लिए HDV-RNA ब्लड टेस्ट किया जाता है, जो सक्रिय संक्रमण की पुष्टि करता है। बचाव में हेपेटाइटिस बी वैक्सीन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि HDV को संक्रमण के लिए HBV की ज़रूरत होती है—इसलिए HBV से सुरक्षा का मतलब HDV से भी सुरक्षा है।
दुर्भाग्य से, भारत में राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा होने के बावजूद हेपेटाइटिस बी का टीकाकरण कवरेज केवल लगभग 50% है, जिससे लाखों लोग जोखिम में हैं।
अन्य बचाव उपाय:
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सुरक्षित रक्त चढ़ाने की प्रक्रिया
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गर्भावस्था के दौरान स्क्रीनिंग
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केवल स्टरल (निर्मल) सुई का उपयोग
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सुरक्षित यौन संबंध
दीर्घकालिक खतरे और उपचार की चुनौतियां
HBV और HDV का सह-संक्रमण कहीं अधिक खतरनाक है:
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HDV संक्रमण वाले 75% तक लोग 15 वर्षों में लिवर सिरोसिस का शिकार हो सकते हैं।
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ऐसे मरीजों में लिवर कैंसर का जोखिम दोगुना हो जाता है।
उपचार सीमित हैं—हालांकि बुलेवर्टाइड जैसी नई एंटीवायरल दवाएं आ रही हैं, लेकिन इनकी उपलब्धता अभी कम है, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में।
WHO द्वारा कार्सिनोजेन के रूप में वर्गीकरण का महत्व
हेपेटाइटिस डी को कैंसर पैदा करने वाला (कार्सिनोजेन) घोषित करने से—
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शोध और निगरानी के लिए वैश्विक फंडिंग बढ़ सकती है
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जनस्वास्थ्य जागरूकता में वृद्धि होगी
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स्क्रीनिंग और टीकाकरण अभियान मज़बूत होंगे
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नई दवाओं की मंजूरी और उपलब्धता में तेजी आएगी
यह कदम केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि एक वैश्विक चेतावनी है—ताकि टीकाकरण, शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य सतर्कता के ज़रिए HDV से होने वाले लिवर कैंसर को रोका जा सके।