रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरवीएम) पर आठ राष्ट्रीय और 40 क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग के साथ चर्चा की। इस दौरान चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग मशीन के प्रोटोटाइप का डेमो नहीं दे सका क्योंकि विपक्ष ने इसके खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। विपक्ष ने पहले भी इस तरह की प्रणाली को लागू करने की आवश्यकता पर सवाल उठाया था।
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निर्वाचन आयोग ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा विकसित RVM किसी भी तरह से इंटरनेट से जुड़ी नहीं होगी। पिछले महीने निर्वाचन आयोग ने कहा था कि अगर यह पहल लागू की जाती है, तो प्रवासियों के लिए इससे ‘‘सामाजिक परिवर्तन” हो सकता है। प्रत्येक मशीन के जरिए 72 निर्वाचन क्षेत्रों में रह रहे प्रवासी मतदाता दूरस्थ मतदान केंद्र से अपना वोट डाल सकते हैं। RVM के उपयोग की अनुमति देने के लिए कानून में आवश्यक बदलाव जैसे मुद्दों पर जनवरी के अंत तक राजनीतिक दलों को अपने विचार लिखित रूप में देने के लिए कहा गया था।
रिमोट वोटिंग मशीन क्या है?
रिमोट वोटिंग मशीन यानी आरवीएम के बारे में सबसे पहले जानकारी बीते साल 29 दिसंबर को सामने आई थी। चुनाव आयोग ने इसके बारे में बताते हुए कहा था कि आरवीएम के जरिये घरेलू प्रवासी नागरिक यानी अपने गृह राज्य से बाहर रह रहे मतदाता भी वोट डाल सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर कोई मतदाता कानपुर में पैदा हुआ है और किसी कारण से दूसरे राज्य या किसी अन्य जगह रह रहा है। इस स्थिति में वो मतदाता वोट नहीं कर पाता है। आरवीएम की मदद से ऐसे मतदाताओं को भी वोटिंग का अधिकार दिया जाएगा। ईवीएम की तरह ही आरवीएम के लिए किसी तरह के इंटरनेट या कनेक्टिविटी की जरूरत नहीं होती है।
रिमोट वोटिंग मशीन का फायदा?
बता दें कि अभी एक मतदाता को अपना वोट डालने के लिए शारीरिक रूप से उस जिले की यात्रा करनी पड़ती है जहां वे एक पंजीकृत मतदाता है, लेकिन अगर नई पहल लागू की जाती है तो प्रवासी मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए अपने गृह जिले की यात्रा करने की आवश्यकता नहीं होगी और इसके बजाय रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल कर सकेंगे।
कैसे गिने जाएंगे आरवीएम के वोट?
आरवीएम में लगभग सभी चीजें ईवीएम की तरह ही काम करती हैं। ईवीएम की यूनिट की तरह ही आरवीएम की यूनिट राज्य, निर्वाचन क्षेत्र और उम्मीदवार को दिया गया वोट दर्ज हो जाएगा। आरवीएम के साथ लगी वीवीपैट मशीन में भी ईवीएम की तरह ही पर्ची में सारे विवरण प्रिंट होकर वोटर को दिखेंगे। मतगणना के दौरान आरवीएम में दिए गए वोट के आंकड़ों को संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के कुल वोटों से जोड़ दिया जाएगा।
आरवीएम को लेकर शुरुआत कब हुई थी ?
कुछ साल पहले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने इस विषय पर एक स्टडी की थी। जिसमें सामने आया था कि प्रवासी मतदाताओं के मताधिकार का इस्तेमाल न करने की वजह से मतदान पर असर पड़ता है। 29 अगस्त 2016 को चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के साथ इस पर चर्चा की। जिसमें इंटरनेट वोटिंग, प्रॉक्सी वोटिंग, तय तारीख से पहले मतदान और पोस्टल बैलेट से प्रवासियों के लिए वोटिंग कराने पर विचार किया गया। हालांकि, इस पर सहमति नहीं बन पाई।
इसके बाद चुनाव आयोग ने आईआईटी के संस्थानों के साथ मिलकर रिमोट वोटिंग मशीन पर एक रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू किया. इसमें मतदाताओं को उनके गृह राज्य से दूर मतदान केंद्रों पर टू-वे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करके बायोमेट्रिक डिवाइस और वेब कैमरे की मदद से वोट डालने की अनुमति देने की व्यवस्था बनाई गई।