भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे की निष्पक्षता बनाए रखने में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की अहम भूमिका होती है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के प्रमुख के रूप में सीईसी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की निगरानी करते हैं। हाल के राजनीतिक विवादों और चुनावी गड़बड़ियों के आरोपों के बीच सीईसी को हटाने की प्रक्रिया को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है। यह प्रक्रिया जानबूझकर कठिन बनाई गई है ताकि संस्था की स्वतंत्रता सुरक्षित रह सके।
भारतीय संविधान अनुच्छेद 324(5) के तहत सीईसी को विशेष सुरक्षा प्रदान करता है। इसके अनुसार:
सीईसी को केवल सिद्ध कदाचार (proven misbehaviour) या अक्षमता (incapacity) की स्थिति में ही हटाया जा सकता है।
संसद के दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों से प्रस्ताव पारित होना आवश्यक है।
जांच समिति द्वारा आधार स्थापित किए जा सकते हैं।
राष्ट्रपति को संसद की सिफारिश पर ही कार्य करना होगा, उनके पास कोई विवेकाधिकार नहीं है।
अब तक किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाया नहीं गया है, जो इस प्रावधान की गंभीरता और दुर्लभता को दर्शाता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 ने पुराने 1991 के कानून को प्रतिस्थापित किया और नई व्यवस्था दी—
नियुक्ति प्रक्रिया: सीईसी और ईसी को राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं, जो प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री वाली चयन समिति की सिफारिश पर आधारित होती है।
खोज समिति: कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार करती है।
पात्रता: सचिव स्तर के पदों पर कार्य कर चुके और चुनाव प्रबंधन अनुभव रखने वाले अधिकारी।
कार्यकाल: अधिकतम 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो। पुनर्नियुक्ति नहीं।
वेतन व दर्जा: अब सीईसी का वेतन कैबिनेट सचिव के बराबर है (पहले यह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर था)।
हटाना: अन्य चुनाव आयुक्तों को केवल सीईसी की सिफारिश पर ही हटाया जा सकता है, जिस पर आलोचना हुई है।
विपक्षी दलों ने निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्न उठाए हैं और सीईसी को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने पर चर्चा की है।
2023 अधिनियम में चयन समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को बाहर करना आलोचना का विषय है। पहले न्यायपालिका की उपस्थिति से तटस्थता सुनिश्चित होती थी।
इस अधिनियम में सीईसी और ईसी के लिए सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पदों पर नियुक्ति पर कोई रोक नहीं है, जिससे उनकी दीर्घकालिक निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।
इस अधिनियम की न्यायिक समीक्षा (judicial review) की मांग करते हुए याचिकाएँ सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं।
यह विषय प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं और सिविल सेवा की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें शामिल हैं:
संवैधानिक प्रावधान और “चेक्स एंड बैलेंसेज़”।
संवैधानिक संस्थाओं की संरचना और स्वतंत्रता।
हाल के कानूनी सुधार और राजनीतिक बहसें।
2023 अधिनियम जैसी ऐतिहासिक विधायी पहल।
इस विषय की समझ से परीक्षार्थियों को कानून, राजनीति और लोकतांत्रिक संस्थाओं के आपसी संबंध को बेहतर समझने में मदद मिलेगी, जो सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्रों और साक्षात्कार दोनों के लिए अहम है।
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